top hindi blogs

Friday, July 30, 2010

जैसा खाओ अन्न , वैसा हो मन --और तन भी ---

पिछली पोस्ट में हमने मानव प्रवृति के बारे में जाना । बेशक अधिकांश जनता राजसी प्रवृति की ही होती है क्योंकि सांसारिक लोग सात्विक बहुत कम हो पाते हैं और तामसी भी कम ही होते हैं ।

कहते हैं -जैसा खाओ अन्न, वैसा होवे मन । हम डॉक्टर्स कहते हैं --जैसा खाओ अन्न , वैसा होवे मन और तन ।


अब देखिये भोजन का तन पर प्रभाव :

सात्विक भोजन --निरोगी काया । तन में ताकत , मन में शांति ।
राजसी भोजन ---राजसी ( शाही ) रोग ।

चाट ,पकोड़े , समोसा आदि तीखे पदार्थ खाने से एसिडिटी , अल्सर आदि रोग होने का डर रहता है ।
फैटी फूड्स --- जंक फूड्स---और हाई कैलरीज फूड्स जैसे बटर चिकन --मोटापा , डायबिटीज , हाई कोलेस्ट्रोल , बी पी , हार्ट अटैक ।

तामसी भोजन --तुच्छ रोग , मौत का साया । अपवित्र भोजन से संक्रमण हो सकता है, जो जान लेवा भी हो सकता है ।

अब ज़रा सोचिये आप गोल गप्पे खाते हुए सी सी कर रहे है , फिर भी एक के बाद एक गोल गप्पे गपे जा रहे हैं । कभी सोचा है , गोल गप्पे वाला आपको कैसे खिलाता है गोल गप्पे । जी हाँ , नंगे हाथ से , पानी में हाथ घोलकर , खिलाता है वो । उसी हाथ से सारी साफ सफाई भी करता रहता है , अपने शरीर की भी , आपकी ही आँखों के आगे । ज़रा सोचिये , क्या उसने नाखून काटे हैं ? आखिर हाइजीन का कितना पता होगा उसे ?

इसी तरह , घर में नौकरानी आपको रोटी बनाकर खिला तो देती है , लेकिन क्या आपने उसको पाठ पढाया है हाइजीन का ?

अज़ी उनकी छोडिये , कृपया अपने ही नाखून देखिये --कहीं बढे हुए तो नहीं है न ।

व्यक्तिगत स्वच्छता में हाथ धोने का बड़ा महत्त्व है
आइये देखते हैं कब हाथ धोना अति आवश्यक होता है ---

खाना खाने से पहले
टॉयलेट या यूरिनल जाने के बाद
किसी रोगी की देखभाल करने के बाद
बाहर से आने के बाद
मूंह पोंछने के बाद
हाथ गंदे होने पर

हाथ धोने का सही तरीका :

हमेशा साबुन या एंटीसेप्टिक घोल का इस्तेमाल करें ।
पानी और साबुन लगाकर हाथों को ६ दिशाओं में रगड़ना चाहिए ।
१) हथेलियों पर ।
२) डोर्सम ऑफ़ हैंड्स --यानि हाथ के पिछले हिस्से पर ।
३) वेब्स --उँगलियों के बीच में रगड़ें ।
४) फिंगर टिप्स --उँगलियों के पोरों पर ।
५) अंगूठे के चारों ओर ।
६) दोनों हाथो को घुमाते हुए , सारे हाथ को एक साथ ।

इस तरह हाथ साफ करने से हाथों पर मौजूद कीटाणुओं को काफी कम किया जा सकता है । इससे ओरोफीकल रूट से होने वाली बीमारियों से निजात पाई जा सकती है ।

लेकिन क्या आपको पता है --गोल गप्पे खाने से , साफ पानी न पीने से , साफ सफाई न रखने से --आपको क्या क्या बीमारियाँ हो सकती है ?

अगली पोस्ट में इसी बारे में जानेंगे , हम लोग ।

नोट : यह पोस्ट श्री चंदर कुमार सोनी की फरमाइश पर लिखी गई है । आशा है , आप सभी लाभान्वित होंगे


30 comments:

  1. जानकारी के लिए धन्यवाद मग़र हम है कि जानते हुए भी समझने की कोशिश नहीं करते ज्ञान वर्धक लेख के लिए बधाई

    ReplyDelete
  2. सभी के लिये मूल रूप से आवश्यक और उपयोगी जानकारी ,आभार ।

    ReplyDelete
  3. आपकी यह पोस्ट एक जागरूकता का संदेश दे रही है....स्वास्थ्य संबंधी लाभदायक पोस्ट से निश्चित रूप से बहुत लोग लाभान्वित हो रहे है...एक सार्थक मिशन...बहुत बहुत धन्यवाद आपको ...अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है...

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन जानकारी...... आभार!

    ReplyDelete
  5. बहुत बढ़िया जानकारी! धन्यवाद्!

    ReplyDelete
  6. एक चिकित्सक की उपयोगी सलाह और जानकारियों से भरी उत्तम पोस्ट!

    ReplyDelete
  7. दराल सर,
    खाने-पीने में साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना तो ज़रूरी है ही...आइंदा गोलगप्पे गलव्स वाले से ही खाएंगे या बीकानेर स्टाइल प्लेट में गोलगप्पे और ग्लास में पानी...लेकिन डॉक्टर साहब मेरी जानने वाली एक महिला है...साफ-सफ़ाई को लेकर वो मैनिएक वाली हालत में हैं...पता नहीं कितनी बार दिन में हाथ धोती होंगी...डिटॉल से तीन-चार बार बाथरूम की सफ़ाई कराती रहती हैं...बच्चों और पति का भी हर वक्त नाक में दम किए रखती हैं...एक हद तक ही ध्यान देना ठीक है...वैसे आज हम शहरों में देखें तो छोटे बच्चों की कितनी केयर की जाती है...बेड से नीचे तक उतरने नहीं दिया जाता...फिर भी उनकी प्रतिरोधकता मज़बूत नहीं होती...गांव में बच्चे मिट्टी में खेलने के बावजूद लोह-लठ्ठ हो जाते हैं...हमारे यहां बच्चे को छींक भी आती है तो खुद ही डॉक्टर बनते हुए उसे एंटीबायटिक्स दिए जाने लगते हैं...उससे कितना नुकसान होता है, इस पर भी एक पोस्ट लिखें तो कईयों की आंखें खुल सकेंगी...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  8. बहुत ही उपयोगी जानकारियाँ मिल रही हैं....इस ब्लॉग पर.
    जानते सबकुछ हैं , पर अनदेखा किए रहते हैं...शायद एक बार फिर ये सब पढ़कर सचेत हो जाएँ.
    खुशदीप भाई ने जिन महिला का जिक्र किया है....आप तो डॉक्टर हैं,सही बता पाएंगे ,पर मुझे जहाँ तक लगता है..वह एक मानसिक बीमारी होती है. मैने भी कुछ लोग देखे हैं...ऐसे..पर उन्हें इलाज की जरूरत है. जीना मुश्किल हो जाता है,घर वालों का .

    ReplyDelete
  9. मैं तो पिछली पोस्ट ही देखने आई थी तो देखा इधर नयी पोस्ट आ गयी .है .....आप तो सांस लेने भी नहीं देते ....खैर सोचा शायद खुशदीप जी से पहले मौका मिल जाये पर तामसी वाले फिर बाजी मार गए ......

    बहुत ही उपयोगी पोस्ट .....यूँ बाहर खाने की आदत नहीं है ....पर घर पर ही कभी जानकार अनदेखी हो जाती है .....

    रश्मि जी ने सही कहा वो मानसिक बिमारी ही होगी ...सनकी किस्म के इंसान होते हैं वो ...एक बात जो दिमाग में बस गयी उसे निकाल नहीं पाते ....!!

    ReplyDelete
  10. रश्मि जी , हरकीरत जी , खुशदीप जी ने जिस महिला का जिक्र किया है , वह कम्पल्सिव ओब्सेसिव न्युरोसिस की शिकार लगती है । बेशक उसे इलाज़ की ज़रुरत हो सकती है । वैसे भी अति तो हर चीज़ की ख़राब होती है ।

    साफ़ सफाई जितनी ज्यादा होगी , संक्रमण उतना ही कम होगा । लेकिन इम्युनिटी भी कम रह जाती है । यही कारण है कि विदेशों से भारत आने वाले लोगों को अक्सर डायरिया हो जाता है । इसे ट्रेवलर्स डायरिया कहते हैं । यहाँ रहने वाले लोगों को थोड़ी मात्रा में इन्फेक्शन होता रहता है , इसलिए इम्युनिटी पैदा हो जाती है ।
    लेकिन यहाँ गंदगी ज्यादा होने से वो भी कम पड़ जाती है । इसलिए यहाँ डायरिया से ग्रस्त और मरने वाले बच्चे अभी भी विश्व में सबसे ज्यादा हैं ।

    ReplyDelete
  11. डॉ टी एस दराल जी आप ने बिलकुल सही लिखा हम जेसा खाते है चित वेसा ही होता है, यह बात बुजुर्ग भी कहते है,मै कभी भी बाजार का बना कोई भी समान नही खाता(यहां भी)लेकिन कभी मजबुरी मै खाना पड जाये होटल का खाना तो बस उतना जिस से पेट को आसारा हो जाये,
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  12. डॉ के द्वारा साफ़ साफ़ निर्देश बहुत कम उपलब्ध होते हैं ...आप यह अनूठी जानकारी देकर बहुत कल्याणकारी काम कर रहे हैं ! सादर

    ReplyDelete
  13. एक ज्ञानवर्धक पोस्ट.अच्छी जानकारी मिली अब इसमें से कितना हम लोग जानते हुए भी नहीं जानने का दिखावा करते हैं

    ReplyDelete
  14. Useful and informative postpost .
    thank you .

    ReplyDelete
  15. एक कहावत अंग्रेजी में सुनी थी, "एक आदमी का भोजन दूसरे का विष होता है", और योगियों ने तो (शहरी) भोजन को ही विष माना... इस कारण हिमालय के स्वस्थ वातावरण में रह केवल कन्द, मूल, फल आदि पर शांतिपूर्वक निर्वाह करना अधिक पसंद किया - जो आज संभव ही नहीं है,,, किन्तु आज सब जानते हैं कि किस प्रकार आज जल में, सब्जियों और फलों में, दूध आदि में विष व्याप्त है, (उसमें भले ही स्वयं आदमी का ही हाथ क्यूँ न दिखाई पड़ता हो)... कलियुग में वैसे ही आरंभ में विष का पाया जाना निश्चित माना गया था, ज्ञानी पुरुषों द्वारा ,,, और इस कारण, महात्मा बुद्ध के उपदेश समान, 'मध्य-मार्ग' अपनाना ही सही होगा, जैसा आपने भी कहा है और प्राचीन ज्ञानियों का कथन भी उपलब्ध है, "अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप / अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप्प"... और दूसरी ओर शायद सब जानते हैं कि प्राचीन ज्ञानी भी कह गए कि सांप के काटे से आदमी कम मरता है और अधिक उसके काटे के भय के कारण (कहते हैं मीरा बाई विष पी कर भी नहीं मरी, ईश्वर पर विश्वास के कारण मानसिक संतुलन सही रहने के कारण यद्यपि 'अज्ञानी' की दृष्टि में वो पागल समझी गयी !)...

    ReplyDelete
  16. सही लिखा है आपने लेकिन हमारे देश मे इसे समझेगा कौन ? यहाँ तो पढ़े लिखे भी इन छोटी छोटी बातो का खयाल नही रखते । जैसे हाथ धोने का सही तरीका कितने लोगो को आता है । जिस देखो वह गन्दगी फैलाता रहता है । जिस देश के लोगो को यह तक नही पता कि कहाँ थूकना है उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है ?

    ReplyDelete
  17. यही एक प्राबलम है.... डाक्टर लोगों के ब्लाग पढ़ने से डर लगने लग पड़ता है :-)
    मेरे एक डाक्टर मित्र एक बार बता रहे थे कि डाक्टरी की पढ़ाई के शुरू-शुरू में जब क्लास में शरीर में होने वाले विकारों के बारे में बताया जाता था तो उनमें से लगभग हर किसी को लगने लगता था कि अरे ये बीमारी तो उन्हें भी है...

    ReplyDelete
  18. सही कहा काजल भाई । इसे थर्ड इयर सिंड्रोम कहते हैं ।
    लेकिन सेकण्ड इयर में कई शंकाओं का निवारण भी हुआ था ।

    ReplyDelete
  19. दराल जी,
    मैं तो आज ऐसे ही घुमते-फिरते आपके ब्लॉग पर आ गया था.
    लेकिन.........
    ये क्या??????????
    मैंने आपके इस ब्लॉग पोस्ट (जैसा खाए अन्न.......) पर कमेन्ट की थी, लेकिन अब वो कमेन्ट हैं ही नहीं.
    ये कैसे हो सकता हैं????
    आपने मेरी कमेन्ट को डिलीट कर दिया या मैंने ग़लतफहमी-भ्रम पाला हुआ था???????
    मैंने तो कई बार गाहे-बगाहे अपनी कमेन्ट चैक की हैं. हर बार थी, लेकिन अब नहीं हैं.
    क्या आपने डिलीट कर दी हैं??????
    प्लीज़ रिप्लाई अवश्य देवें, बड़ा अजीब लग रहा हैं मुझे.
    थैंक्स.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

    ReplyDelete
  20. जी हाँ बिलकुल लाभान्वित हो रहे हैं.

    शुक्रिया.

    ReplyDelete
  21. जानकारियों से भरी उत्तम पोस्ट!

    ReplyDelete
  22. साठ के दशक में अपने विवाहोपरांत मैंने जाना कि मेरे डॉक्टर साडू भाई उत्तर प्रदेश आगरा अस्पताल में थे... उन्होंने बताया था कैसे आरंभ में उन्हें उत्तरकाशी पोस्ट कर दिया गया था और पहला केस एक १०-१२ वर्षीया बालक था जो भालू के हमले से बच तो गया किन्तु उसके पंजे ने उसके सर के ऊपर की चमड़ी माथे से पीछे उधेड़ कर खोल दी थी और गुलाबी मांस दिख रहा था... वहाँ कोई एंटीसेप्तिक क्रीम आदि भी उपलब्ध नहीं थी जिस कारण उन्होंने चमड़ी वापिस खींच सिर्फ टाँके लगा दिए... उन्हें भय हुआ क्यूंकि उनके मानस पटल पर आगरा अस्पताल के अनुभव के कारण दृश्य उभर आया कि कैसे पस पड़ जाएगा और उसकी हालत ख़राब हो जाएगी... किन्तु आश्चर्य हुआ जब ऐसा कुछ नहीं हुआ और वो बिल्कुल ठीक हो गया! तब उन्हें आभास हुआ कि कैसे उस वातावरण में हानिकारक सूक्ष्माणु पनप ही नहीं सकते थे!

    ReplyDelete
  23. सोनी जी ,
    टिप्पणी डिलीट करने का सवाल ही नहीं उठता । मोडरेशन न होने पर डिलीट की गई टिपण्णी में भी नाम तो नज़र आता है ।
    आप निश्चिन्त रहें , कोई तकनिकी खराबी रही होगी । आपकी टिप्पणी हमारे लिए आपका स्नेह है , और सम्मानीय है ।

    सही कहा जे सी जी ।
    वातावरण से बहुत फर्क पड़ता है ।

    ReplyDelete
  24. उत्तम जानकारी के लिए आभार!!

    ReplyDelete
  25. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  26. अगले पोस्ट का इंतजार नहीं है। आपकी राय पर सख्ती से अमल शुरु करना ही बेहतर है। कभी कभी की ढिलाई को भी बंद करना होगा.......जय श्री राम जी की ..... हाथ धो हो भला

    ReplyDelete
  27. बहुत अच्छी जानकारी मिली..आभार.

    ReplyDelete
  28. बहुत बढ़िया जानकारी!
    धन्यवाद्!

    ReplyDelete
  29. बहुत ही उपयोगी जानकारियाँ मिल रही हैं आपके इस ब्लॉग पर...
    इस अलख को जलाए रखें

    ReplyDelete