परिस्थितियोंवश पिछले एक सप्ताह से नेट से दूर रहना पड़ा । इसलिए समय ही नहीं मिल पाया , लिखने और पढने का । आज आपके सन्मुख आ पाया हूँ।
नोट: ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल के भाग दौड़ और तनावपूर्ण जीवन में लोग हँसना ही भूल गए हैं। तभी तो अधिकतर लोगों के माथे पर भ्रकुटी तनी हुई और चेहरा गंभीर व ग़मगीन नज़र आता है। विशेष रूप से व्यावासिक जीवन में जो जितना सफल होता है, वह उतना ही ज्यादा गंभीरता का मुखोटा ओढे रहता है। इसीलिए आजकल भारत जैसे विकासशील देश में भी हृदय रोग , मधुमेह व उच्च रक्तचाप जैसी भयंकर बीमारियाँ पनपने लगी हैं।
हँसना स्वास्थ्य के लिए कितना लाभदायक है , यह बात हमारे धार्मिक गुरुओं के अलावा डॉक्टरों से बेहतर और कौन समझ सकता है। ठहाका लगाकर हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे न सिर्फ़ शरीर का प्रत्येक अंग आनंदविभोर होकर कम्पन करने लगता है, बल्कि दिमाग भी कुछ देर के लिए सभी अवांछित विचारों से शून्य हो जाता है। इसीलिए हंसने को एक अच्छा मैडिटेशन माना गया है।
लेकिन आज के युग में हँसना भी एक कृत्रिम प्रक्रिया बन गया है। ठहाका लगाकर हंसने के लिए आवश्यकता होती है एक सौहार्दपूर्ण वातावरण की , जो केवल व्यक्तिगत मित्रों के साथ ही उपलब्ध हो पाता है। और आज के स्वयम्भू समाज में अच्छे मित्र भला कहाँ मिल पाते हैं। इसीलिए आजकल खुलकर हँसना दुर्लभ होता जा रहा है।
देखिये ये कैसी विडम्बना है कि---
वहां गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
यहाँ शहर में लोग हंसने के लिए भी, कलब ढूँढ़ते हैं।
आजकल शहरों में जगह जगह लाफ्टर कलब बन गए हैं ,जहाँ लाफ्टर मैडिटेशन कराया जाता है। लेकिन मुझे तो लगता है कि इस तरह की कृत्रिम हँसी सिर्फ़ मन बहलाने का एक साधन मात्र है। वास्तविक हँसी तो नदारद होती है। जरा गौर कीजिये , एक पार्क में २०-३० लोगों का समूह , एक घेरे में खड़े होकर , झुककर ऊपर उठते हैं , हाथ उठाते हैं, और मुहँ से जोरदार आवाज निकलते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वे लाफ्टर मैडिटेशन नहीं, बल्कि बाबा रामदेव का बताया हुआ कब्ज़ दूर करने का आसन कर रहे हों। उसमे आवाज तो होती है, मगर हँसी नही होती।
जिंदगी का मंत्र --
हर हाल में जिंदगी का साथ निभाते चले जाओ,
किंतु हर ग़म , हर फ़िक्र को , धुएँ में नही ,हँसी में उडाते जाओ।
आप पिछली बार दिल खोलकर कब हँसे थे , जरा सोचियेगा जरूर!
शहरों में लोगों को हँसने का मौका नहीं मिलता है इसीलिए लाफ्टर क्लब भी खुलने लगे हैं इनके माध्यम से कम से कम लोगो को हँसने हंसाने का मौका मिल रहा है और प्रसन्नचित्त रहकर सेहत सुधारने का मौका भी मिल रहा है ....स्वास्थ्य के लिए हँसना जरुरी है
ReplyDeleteवहां गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
ReplyDeleteयहाँ शहर में लोग हंसने के लिए भी, कलब ढूँढ़ते हैं।
सुन्दर..!
क्या बात कह दी आपने...
सच में अब तो हंसने की वजहें कितनी कम हो गयीं हैं...
इसी बात पर एक ठहाका ...हा हा हा हा हा...
बहुत सुंदर ओर किमती बात कह दी आप ने, हम आज के युग मै सिर्फ़ ओर सिर्फ़ नकली चीजो के आदी हो गये है, नकली खाना, नकली हंसी
ReplyDeleteडॉ साहब आप सही कह रहे हैं,आपसी कटुता और केवल आगे बढने की चाह नें चेहरों को तनावग्रस्त कर दिया है.
ReplyDeleteवहां गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
ReplyDeleteयहाँ शहर में लोग हंसने के लिए भी, कलब ढूँढ़ते हैं।
सच मे आज हंसी की अहमियत खो गई है !!!!
hansi se badi koi ishwareey sougaat nahin
ReplyDeleteडॉ साहब !
ReplyDeleteआप उन लोगों में से है जो हम लोगो को अपने निश्छल दिल से बहुत कुछ दे रहे हैं , शायद आपका कोई मंतव्य ही नहीं है ....हित साधन तो बिलकुल नहीं ! आपसे बहुत उम्मीद है , आशा है निराश नहीं करोगे ...
स्वस्थ रहने के लिए हँसना बहुत आवश्यक है!
ReplyDeleteइसके लिए तो आसनों में "हास्यासन" का भी उल्लेख है!
एकदम सहमत.
ReplyDeleteमैं भी यही मानता हूँ हँसता रहता हूँ और हँसाता भी रहता हूँ....सार्थक बात कही आपने हँसो और हँसाओ जिंदगी चैन से बिताओ.....धन्यवाद डॉ. साहब!!
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती! मैं हमेशा हँसी ख़ुशी रहती हूँ चाहे कितना भी गम हो पर मेरा ये मानना है कि सभी को ख़ुशी से हर पल जीना चाहिए चाहे कितनी भी बाधाएं या कठिनाइयों का सामना क्यूँ न करना पड़े! ख़ुद हँसके जीना चाहिए और दूसरों को भी हँसाना चाहिए!
ReplyDeletebahut aacha
Deleteमुझे तो हँसने का रोग है ..........
ReplyDeleteaisa bhi mat kahiyan ki aapko hasine kia rog hein its very dangerous
Deleteवेलकम बैक और डॉक्टर साहब आपके लिए इस मौके पर गाना...
ReplyDeleteतुम आ गए हो, नूर आ गया है,
नहीं तो चरागों से लौ जा रही थी...
जीने की तुमसे वजह मिल गई है,
बड़ी बेवजह ब्लॉगिंग जा रही थी...
और आखिर में ये सुशीला पुरी जी वाला रोग संक्रामक बने और सभी ब्लॉगरों को लग जाए...
जय हिंद...
बहुत सुंदर ओर किमती बात कह दी आप ने
ReplyDeleteडा. दराल साहिब ~ बात तो आपने सौ फीसदी सही कही...सरदार खुशवंत सिंह ने भी कभी एक लेख में लिखा था कि हम अब अपने ऊपर हँसना भूल गए हैं,,,
ReplyDeleteऔर अब तो कार्टून, जो पहले 'मनोरंजन' का एक साधन माना जाया करता था, उसके ऊपर भी विवाद छिड़ जाते हैं...आदि आदि...
'हम हिन्दुस्तानी' कभी अपनी सहनशीलता के लिए प्रसिद्द थे,,,किन्तु आज तो किसी से मजाक में भी बोलने में डर लगता है, क्यूंकि मालूम नहीं कब कोई पेट्रोल के समान भड़क उठे - 'रोड रेज' कि खबरें समाचार पत्रों में पढने को मिलती रहती हैं :)
हम तो भाई अपनी मूर्खता पर ही अकेले-अकेले हंस लेते हैं - और 'उसको' कभी-कभी कह लेते हैं. "बता, चालाक से चालाक को मूर्ख बनाने में, तेरी मर्जी क्या है" ? क्यूंकि सर्वगुण संपन्न शायद वो ही हमेशा अकेला ही खुल के हंस पाता होगा हमारी सब की मूर्खता पर :)
जे सी जी , मैंने कहीं पढ़ा था कि यदि आदमी खुद का मज़ाक उड़ाए तो उसको लोग बहुत अच्छा कोमेदियन मानते हैं , विशेषकर महिलाएं बहुत पसंद करती हैं। शायद इसीलिए मोटा , पतला , नाटा , लम्बा या काला आदमी खुद पर जोक्स सुनाकर हिट हो जाता है। लेकिन मैंने देखा कि मुझमे तो इन में से एक भी गुण नहीं है । यानि हम तो न किसी को हंसा सकते हैं न कोई हमें --।
ReplyDeleteलेकिन फिर मुझे वो दोहा याद आ गया --बुरा जो देखन मैं चला ---और सच मानिये इतने अवगुण नज़र आए कि --आप की बात का अनुमोदन हो गया ।
अति उपयोगी सलाह. पर लोग अपने अहम की वजह से मानते नही हैं.:) और मूंह सुजा कर घूमते हैं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत पते की बात कही आपने डाक्टर साहब ! मगर क्या करे आज तो तथाकथित आधुनिक समाज हमारे इर्द-गिर्द है , उसमे खुल कर हँसना भी एक अस्भयता की निशानी है या यूँ कहे की मैनर्स के अंतर्गत आता है !
ReplyDeleteहंसी ऐसा हथियार है जो रोग , तनाव , और शत्रुता का नाश करता है
ReplyDelete"लेकिन मुझे तो लगता है कि इस तरह की कृत्रिम हँसी सिर्फ़ मन बहलाने का एक साधन मात्र है।"
ReplyDeleteमेरा भी यही विचार है।
Daral saheb,
ReplyDeleteApka lekh bahut pyara laga.dil kholkar hansne ka mahatv bata diya. sarahneey.
अच्छी लगी ये बात भी.सर मेरे साथ थोड़ी मुश्किल है.मुझे हंसी थोड़ी ज्यादा आती है.ऊपरसे बची खुची कसर हमारे घर सभी SAB टीवी देख देख कर पूरी कर लेते हैं.
ReplyDeleteएक अच्छी जानकारी मिली आपके इस लेख से भी.. हँसना मेडिटेशन भी है और मेडिकेसन भी.. :)
ReplyDeleteडा. दराल साहिब ~ एक शेर पेश है किसी गुमनाम कवि का जो पचास के दशक में सुना था:
ReplyDelete"हर फ़न में हूँ उस्ताद, मुझे क्या नहीं आता / बस टांग है लंगड़ी, दौड़ा नहीं जाता!"
एक और:
"नब्ज़ मेरी देख के कहने लगा हकीम
नब्ज़ मेरी देख के कहने लगा हकीम
साला मरेगा!"
(अब डॉक्टर नब्ज़ की जगह बीपी / सुगर देख कहते हैं :)
बहुत खूब जे सी जी ।
ReplyDeleteहम तो कहते हैं --जो बुरे काम करेगा , एक दिन ज़रूर मरेगा ।
ये कैसी रही ।
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteकिन्तु 'सत्य' यह भी है कि जो 'अच्छे' करेगा वो शायद पहले मरेगा,,,:) क्यूंकि कहते हैं अपनी सहायता के लिए भगवान् को 'अच्छे' ही चाहिये होते हैं, इस लिए वो 'बुरों' को बार बार धरती में भेज देता है - उलझाए रखने के लिए अनंत काल तक जब तक वो सुधर न जाएँ :)
आपने तो कन्फ्यूज कर दिया । अब भले कर्म करना तो वैसे ही मुश्किल होता है । उस पर पहला नंबर !
ReplyDeleteअब तो सोचना पड़ेगा । हा हा हा !
डा साहिब, मैं बचपन से ही दिल्ली में रहा हूँ,,,और गोल मार्केट के निकट स्तिथ सरकारी कालोनी में रहने के कारण भारत वर्ष के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को और भाषा आदि देखता-सुनता आया था: बंगाली अधिक, क्यूंकि आरंभ में कोलकाता भारत की राजधानी हुआ करता था...
ReplyDeleteक्रिकेट के खेल में कभी-कभी हमारे स्क्वैर की टीम में हम दूसरे स्क्वैर से भी कुछ लड़के उधार ले लेते थे,,,
इसी प्रकार एक मैच में दो बंगाली लड़के आये,,,एक का नाम 'गुंडा' था और दूसरे का 'डाकू'!
तब अपने बंगाली दोस्तों से पता चला कि 'काले जादू' के कारण बंगाल में कोई राशि के नाम से नहीं पुकारता था,,,और 'यम के दूतों' को धोखा देने के लिए खराब नाम से पुकारते थे, जिससे वो उनको जल्दी नहीं ले जायेंगे, क्यूंकि भगवान् को अच्छे ही चाहिए होते हैं :)
अपना तो सिधांत ही हंसने हंसाने का रहा है...हर बात को हंसी में उड़ने की आदत ने ही अब तक खुश रखा है...ख़ुशी और गम दोनों में मुस्कुराना कभी नहीं छोड़ा...बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने...
ReplyDeleteनीरज
आपके ब्लॉग पे टिप्पणियाँ पढ़ मुस्कराहट तो आ ही जाती है ......और आज कल खुशदीप जी इसी मिशन पे काम करते नज़र आते हैं ....
ReplyDeleteनब्ज़ मेरी देख के कहने लगा हकीम
नब्ज़ मेरी देख के कहने लगा हकीम
साला मरेगा!"
वा.....वाह....इसी नब्ज पे बहुत बढ़िया बात याद आ गयी चलिए अगली बार उतार दूंगी ......!!
ये सच है की हँसने से सारा तनाव दूर हो जाता है ... मन हल्का हो जाता है ...
ReplyDeleteसोचने को मजबूर करता है आपका लेख ....
ha haha hahaha hahaha haha ha
ReplyDeleteye main likhit main hans rahaa hoon.
ha haha ha
bahut badhiyaa--aabhaar.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
अति उपयोगी सलाह.
ReplyDeleteइसी पोस्ट को जब आपने पिछली बार पोस्ट किया था ....उस पर अभी कुछ घंटे पहले ही टिप्पणी की है ...
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट...हँसना-हँसाना बहुत ही ज़रुरी है