घर में ऐ सी , दफ्तर में ऐ सी ,
गाड़ी भी ऐ सी।
ऐ सी ने कर दी , 'डी' की ऐसी की तैसी !
चाय का पैसा , पानी का पैसा ,
चाय पानी का पैसा।
जब सब कुछ पैसा , तो ईमान कैसा !
ना जान , ना पहचान ,
बस जान पहचान।
जब यही समाधान , तो कैसा इम्तिहान !
वधु बिन शादी , शादी बिन प्यार ,
बिन शादी के लिव इन यार।
जब ऐसा व्यवहार , तो व्यर्थ संस्कार !
यार मतलब के , मतलब की यारी ,
बिन मतलब के रिश्ते भी भारी।
मतलब ने मति मारी, विमुख दुनिया सारी !
भ्रष्ट इंसान , रुष्ट भगवान ,
तो बलिष्ठ तूफ़ान।
फिर ध्वस्त मकान , नष्ट सुन्दर ज़हान !
हिन्दू , सिख , ईसाई, ना मुसलमान ,
बनो इंसान , रखो ईमान।
फिर जीवन आसान , बने देश महान !
उतम,अति-उतम
ReplyDeleteआपकी लेखनी है सर्वोतम..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 18 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर आह्वान
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ! विचारों को शब्दों में पिरोया है ,आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteसुन्दर !!!
ReplyDeleteबढ़िया लिखे हैं
ReplyDeleteआजकल समाज की तो तस्वीर कुछ ऐसी ही है....
ReplyDeleteकटु सत्य
ReplyDeleteबहुत सटीक.....
ReplyDeleteलाजवाब....
वाह!!!!
आजकल तो यही हाल है, बहुत लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आजकल का हाल यही है आदरणीय --
ReplyDeleteभ्रष्ट इंसान , रुष्ट भगवान ,
ReplyDeleteतो बलिष्ठ तूफ़ान।
फिर ध्वस्त मकान , नष्ट सुन्दर ज़हान !
आज के सत्य को उकेर दिया है ...
वर्तमान सामाजिक परिवेश का यथार्थपरक चित्रण। भाव-व्यंजना कमाल की है। शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteवर्तमान सामाजिक परिवेश का यथार्थपरक चित्रण। भाव-व्यंजना कमाल की है। शानदार प्रस्तुति।
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