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Tuesday, July 23, 2013

कवि हर हाल में अपना फ़र्ज़ निभाते हैं ---


एक दिन एक कवि मित्र का फोन आया,
बोले भाया।

हम एक हास्य कवि सम्मेलन करा रहे हैं।
उसमे आपको भी बुला रहे हैं ।

लेकिन हम कुछ दे नहीं पाएंगे ,
क्या फिर भी आप कविता सुना पाएंगे ?

हमने कहा भैया, हम कुछ लेकर नहीं सुनाते हैं,
हम वो कवि हैं जो कुछ न कुछ पल्ले से देकर ही सुनाते हैं।

आप हमें अवश्य बुलाइये,
और हमारे लायक कोई सेवा हो तो निसंकोच बतलाइये।

चाहें तो कवियों के लिए ताकत की दवा लिखवा लें,
या फिर सौ दो सौ श्रोताओं का मुफ्त बी पी चेक करवा लें।

कहिये आप हम से क्या सेवा करवाएंगे,
वो बोले , यह तो आपकी कविता सुनकर ही बता पाएंगे।  



कविता सुनाने की जब हमारी बारी आई
अभी हमने आधी कविता ही थी सुनाई,

कि श्रोता जोर जोर से तालियाँ बजाने लगे।
यह देखकर हम और भी जोश में आने लगे।

लेकिन जब शोर हद से ज्यादा होने लगा
और हमें भी कुछ कुछ समझ में आने लगा,

तो हमने कहा मित्रो , आप काहे शोर मचा रहे हैं ,
आखिर लाख रूपये की कविता, हम मुफ्त में सुना रहे हैं।

तभी एक श्रोता की आवाज़ आई ,
अरे मांफ करो भाई।

भले ही टैक्सी का किराया हमसे ले जाइये,
पर मेहरबानी करके आप बैठ जाइये।  



हमने बैठकर माथे का पसीना पोंछा,
और साथ बैठे कवि से पूछा।

भई इतनी गर्मी में भी माइक पर तेज रौशनी क्यों डालते हैं,
जबकि श्रोता तो आराम से अँधेरे में बैठते हैं।

कवि बोला, जब आप जैसे कवि श्रोताओं को बोर करते हैं ,
तब श्रोता सड़े टमाटर और अंडे उछालते हैं।

और निशाना सही जगह पर लगे ,
इसलिए कवि पर तेज रौशनी डालते हैं।

श्रोताओं को इसलिए मिलता अँधेरे का सहारा है ,
ताकि आप देख न पायें, कि टमाटर किसने मारा है।

आपने सही किया जो कहते ही बैठ गए
वर्ना जाने क्या हाल होता।

हमने कहा भैया, यदि  टमाटर हमें लग जाता,
तो चेहरा थोड़ा और लाल हो जाता।

पर यदि निशाना चूक जाता ,
तो सोचिये आपका क्या हाल होता।

मियां बर्ड फ्लू हो जाता , कच्चे अंडे खाकर ,
और फ़ूड पोइजनिंग हो जाती , ग़र पड़े सड़े टमाटर।

अब समझ में आया ,
ये अंडे और सड़े टमाटर कहाँ जाते हैं।

कुछ पट्ठे इकट्ठे कर सारे सड़े
अंडे टमाटर, बिहार के स्कूलों में बेच आते हैं ।



हम तो इतना कहेंगे यारो, मारो जम कर मारो
पर यार अंडे टमाटर अच्छी क्वालिटी के तो मारो।

उन्हें जब हम कवि देश के कुपोषित बच्चों को खिलाएंगे ,
तो उन बच्चों के एनीमिक चेहरे भी टमाटर से लाल हो जायेंगे।  


पैसों के लिए भ्रष्टाचारी भले ही , अपना ईमान गिराते हैं ,
लेकिन कवि हर हाल में दोस्तों, सदा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।


38 comments:

  1. कवि फेंके गए अंडे टमाटर से लोगों का भला करता है … मानना पड़ेगा ऐसे कवि को जो आज के दामों में भी खुद पर टमाटर फिंकवा सके !

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  2. श्रोताओं को इसलिए मिलता अँधेरे का सहारा है ,
    ताकि आप देख न पायें, कि टमाटर किसने मारा है।
    सुन्दर !!

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  3. व वाह व वाह ...क्या बात है आज तो रंग जमा दिया गुरु ! मगर ...

    शेर मारू बड़े लिखने लगे हो सम्हाल कर रहना
    मोहल्ले में टमाटर की, जमाखोरी के चर्चे हैं !

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    1. अब डर नहीं लगता टमाटरों से ,
      मोहल्ले वालों के और भी खर्चे हैं.

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  4. आपकी रचना कल बुधवार [24-07-2013] को
    ब्लॉग प्रसारण पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
    सादर
    सरिता भाटिया

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  5. एकदम सही बात कही आपने ओर्गनैजर महोदय से, सर जी ! कवियों को तो सुनाने से ही बहुत कुछ मिल जाता है! घर में बीबी को सुनाने बैठो तो उसका ध्यान कविता की तरफ कम और टीवी सीरियल पर जाता होता है ! :)

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  6. हम तो इतना कहेंगे यारो, मारो जम कर मारो
    पर यार अंडे टमाटर अच्छी क्वालिटी के तो मारो।
    ...................वाह ...क्या बात है

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  7. चाहें तो कवियों के लिए ताकत की दवा लिखवा लें,
    या फिर सौ दो सौ श्रोताओं का मुफ्त बी पी चेक करवा लें।

    हा हा हा...यानि अपने पास जो कुछ हो उससे ही कविता पढने का जुगाड कर लेना चाहिये.:)

    रामराम.

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    1. ताकत की ज़रुरत तो कवियों को भी होती है. :)

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  8. आप निश्चिंत रहिये आजकल कवियों पर इसलिये सडॆ अंडे टमाटर नही पडते क्योंकि सडे टमाटर अंडो की मिड डे मील के लिये स्कूलों मे काफ़ी डिमांड चल रही है.

    रामराम.

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  9. पैसों के लिए भ्रष्टाचारी भले ही , अपना ईमान गिराते हैं ,
    लेकिन कवि हर हाल में दोस्तों, सदा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।

    क्या बात :)

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  10. हा हा हा!!! सही कह रहे हैं आप ....वाकई कवि हर हाल में अपना फर्ज़ निभाते हैं :)

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  11. ले टमाटर ले अंडे :-)

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  12. वाह वाह.....
    हमारी ओर से तो जोरदार दाद कबूल करें.....अंडे टमाटर खाने वाले कवि कोई और होंगे.....

    सादर
    अनु

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  13. वाह वाह ..हमने तो यहीं बैठे बैठे हास्य कवि सम्मलेन का आनंद ले लिया
    पर घर के अंडे टमाटर को अपनी ही स्क्रीन पर फेंकने की हिम्मत नहीं हुई.:):)

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    1. अच्छा किया , वो तो वो तो बिहार नहीं भेजे जा सकते थे.

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  14. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ३ महान विभूतियों के नाम है २३ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  15. सुन्दर प्रस्तुति ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  16. हमने भी घटिया से घटिया कवि सम्‍मेलन सुने हैं लेकिन ये टमाटर और अण्‍डे फेंकते हुए लोग आज तक नहीं देखें! हमारे शहर में भी इनता निर्यात कीजिए ना।

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    1. जी देखे तो हम ने भी नहीं। लेकिन कभी कभी लगता है कि बोर कवि को बिठाने का कोई तो प्रावधान होना चाहिए। :)

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  17. कुछ पट्ठे इकट्ठे कर सारे सड़े
    अंडे टमाटर, बिहार के स्कूलों में बेच आते हैं ।

    ये है हास्य व्यंग्य और उसकी टंगड़ी बोले तो मार .

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  18. :):) इसी बहाने अच्छे टमाटर मिड डे मील के लिए मिल जाएँ ....

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  19. बहुत बढ़िया..... मंहगाई ऐसे महाशयों का तो बचाव करेगी कम से कम

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  20. कवि सम्मलेन में जाने का शायद फायदा हो जाए ... यही सोच कर तो नहीं गए थे न आप ...
    अच्छी क्वालिटी के टमाटर मांग रहे हैं ... क्या बात है सर ... गज़ल का हास्य लिए है ये रचना ... मज़ा आ गया ...

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  21. हास्य कविता के माध्यम से क्या वार किया है आपने ....बहुत बढिया

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  22. हम तो इतना कहेंगे यारो, मारो जम कर मारो
    पर यार अंडे टमाटर अच्छी क्वालिटी के तो मारो।

    उन्हें जब हम कवि देश के कुपोषित बच्चों को खिलाएंगे ,
    तो उन बच्चों के एनीमिक चेहरे भी टमाटर से लाल हो जायेंगे।


    पैसों के लिए भ्रष्टाचारी भले ही , अपना ईमान गिराते हैं ,
    लेकिन कवि हर हाल में दोस्तों, सदा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं

    गंभीर संदेशपरक कवि सम्मलेन

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  23. शोरदार! जोरदार!
    वाह! वाह!
    बार-बार।

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  24. बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  25. कविता है या पुराना घिसा-पिटा चुटकुला ......यही तो कर रहे हैं मंच पर ये सब कविगण
    ---सही कहा अजित जी ने --टमाटर-अंडे चुटुकुलों में ही फेंके जाते हैं...

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    1. सही कहा गुप्ता जी.
      चुटकलों में भी बहुत सी बातें कही जाती हैं.

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