और एक बार फिर रावण जल जायेगा। बड़ा बेहया है ये वाला रावण। हर वर्ष जलता है , फिर अगले वर्ष पहले से भी बड़ा होकर फिर मूंह उठाकर खड़ा हो जाता है। जलाने वाले भी ऐसे हैं कि थकते ही नहीं। पूरे नौ दिनों तक विविध रूप के कर्मकांड करते हुए दसवें दिन धूम धाम से ज़नाज़ा निकालते हैं और जला कर राख कर खाक में मिला देते हैं . एक बार फिर अन्याय, अधर्म और पाप की हार होती है और न्याय, धर्म और पुण्य की जीत होती है जिसका जश्न भी तुरंत मना लिया जाता है।
यह दुनिया भी अजीब है। जब एक देश में दिन होता है , उसी समय किसी दूसरे देश में रात होती है। इसी तरह एक धर्म के पर्व दूसरे धर्मों के लिए कोई विशेष अर्थ नहीं रखते। यहाँ तक कि एक ही धर्म के लोगों में भी विविधता देखने को मिलती है। एक ही पर्व को एक क्षेत्र के लोग एक तरीके से मनाते हैं, दूसरे क्षेत्र के लोग दूसरे प्रकार से।
अब दशहरा पर्व को ही लीजिये। समस्त उत्तर भारत में दशहरा से पहले नवरात्रे मनाये जाते हैं जिनमे लोग उपवास रखते हैं , सामान्य अन्न खाना छोड़ देते हैं , एक विशेष प्रकार के आहार पर गुजारा करते हैं। इस दिनों में सब लोग मांसाहार छोड़ शुद्ध सात्विक भोजन करने लगते हैं। यहाँ तक कि मदिरा पान पर भी स्वयंभू प्रतिबन्ध लगा देते हैं। दसवें दिन रावण की आहुति देते ही सारे प्रतिबन्ध समाप्त हो जाते हैं।
उत्तर भारत में इन दिनों में सारी पार्टियाँ, भोज और जश्न आदि स्वत: ही प्रतिबंधित हो जाते हैं। लेकिन कुछ लोग तो दिल ही दिल में एक एक दिन गिन गिन कर काटते हैं। फिर जैसे ही रावण वध होता है , सबसे पहले उसका ही जश्न मनाया जाता है। अक्सर अधिकतम पार्टियाँ नवरात्रों से एक दिन पहले और तुरंत बाद आयोजित की जाती हैं। आखिर , एक नहीं दो नहीं , पूरे नौ दिनों तक संयम जो रखना पड़ता है।
मत कहो,कि चीज़ अच्छी नहीं शराब
बस नवरात्रों में ही होती है, यह खराब .
दूसरी ओर बंगाली समाज इसी समय दुर्गा पूजा का पर्व मनाता है। खूबसूरत रंगों और साज सजावट से बनी दुर्गा माँ की मूर्ति की प्रतिदिन पूजा की जाती है। और अंत में उसे यमुना नदी में बहा दिया जाता है। इस बीच स्वादिष्ट पकवानों से जिव्हा की भी पूर्ण संतुष्टि का विशेष ख्याल रखा जाता है। खाने में नाना प्रकार की मच्छलियाँ और अन्य मांसाहार शौक से उदरित किये जाते हैं।
यह देखकर कई सवाल मन में उठते हैं।
* ऐसा क्यों कि इस पर्व में कुछ लोगों के लिए मांसाहार वर्जित हो जाता है,जबकि दूसरे लोग शौक से खाते हैं ?
* क्या शराब और मांसाहार इतने ख़राब हैं कि नवरात्रों में इनका सेवन वर्जित है ?
* यदि हाँ, तो फिर बाकि पूरे साल इनका सेवन क्यों किया जाता है ?
* क्या नौ दिन तक सात्विक रहकर पूरे साल के लिए आत्मिक शुद्धि हो जाती है ?
हमारे लिए तो हर दिन नया दिन और हर रात नई रात होती है। यह अलग बात है कि इन पर्वों से जीवन में विविधता आती है। औरों की खातिर हम भी इन व्यसनों से दूर रहते हैं। हालाँकि वैसे भी हम तो शुद्ध शाकाहारी हैं और मदिरापान कभी कभार ही करते हैं।
काश कि मानसिक पवित्रता का जो ज़ज्बा हम अपने पर्वों में दिखाते हैं , वही सम्पूर्ण जीवन में भी उतार लें।
नोट : रावण वस्तुत: एक मनोदशा होती है। हमारे मन के अहंकार और हठधर्म का नाम ही रावण है। इन मनोभावों को जीतना ही वास्तविक विजय है। जो अपने मन के रावण पर विजय प्राप्त कर लेता है , वही राम कहलाने योग्य है . दशहरा की शुभकामनायें।
...रावण पर कुछ नहीं बोलूँगा,हमें दाँत नहीं तुड़वाने और ना ही कैमरा !
ReplyDeleteफिलहाल,विजयादशमी की शुभकामनाएँ !
JCOctober 24, 2012 11:03 AM
ReplyDeleteलंकापति रावण अर्थात 'दशानन' द्योतक है अनेक भौतिक विषयों के ज्ञाता का, जबकि दूसरी ओर राजकुमार राम विष्णु का सातवाँ अवतार, अयोध्यापति 'दशरथ' पुत्र है, अर्थात जो अंततोगत्वा आध्यात्मिक क्षेत्र का ज्ञाता बन पाया... दोनों शक्तिशाली 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' वाले शिव के भक्त थे, किन्तु दशानन उनके भोलेनाथ साकार रूप का है जो आसानी से इच्छित भौतिक पदार्थ उपलब्ध करा देते हैं... जबकि राम शिव की अर्धांगिनी शक्ति रुपी सती के साकार रूप अमृत दायिनी पार्वती का, जिनकी कृपा से देवताओं अर्थात सौर-मंडल के सदस्यों को अमृत/ सोमरस अर्थात चन्द्रकिरण से लम्बी आयु संभव हुई (और उत्पत्ति के दौरान सीता पार्वती का ही स्वरुप थी!!!)... सौर-मंडल की वर्तमान आयु साढ़े चार अरब वर्ष इसका प्रमाण है...
"हमको मन की शक्ति देना/ मन विजय करें..."!
विजयदशमी की अनेकानेक शुभेच्छाओं सहित!
हमें अपने मन का रावण नहीं दीखता न ही अपनी बेईमानी , हम दूसरों की चोरी देखते हैं सोंचते हैं कि कभी तो लहर इधर भी आयेगी !
ReplyDeleteमंगलकामनाएं !
विजयादशमी की शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteआपके द्वारा उठाये गए प्रश्न तो हम भी पूछते रहते हैं, लोगों से, खुद से.पर उत्तर नहीं मिलता.
ReplyDeleteआपका नोट: ....वाला सन्देश ही ...इसका ज़वाब है ???
ReplyDeleteमैं भी उसीसे सहमत हूँ !
शुभकामनाएँ!
बुराईयों पर विजय पा लें...आप सबको भी विजयादशमी की शुभकामनायें।
ReplyDeleteरावण वस्तुत: एक मनोदशा है.
ReplyDeleteसही कहा है आपने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
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विचारणीय प्रश्न लगभग हर व्यक्ति के मन में उठते होंगे . इन नियमों को लागू करते समय क्या परिस्थितियां रहीं होंगी , समय के साथ उनका कैसा रूपांतरण हुआ ...यह भी प्रश्न ही है .
ReplyDeleteनोट में सबसे महत्वपूर्ण बात कही आपने !
काश कि मानसिक पवित्रता का जो ज़ज्बा हम अपने पर्वों में दिखाते हैं , वही सम्पूर्ण जीवन में भी उतार लें।
ReplyDeleteनोट : रावण वस्तुत: एक मनोदशा होती है। हमारे मन के अहंकार और हठधर्म का नाम ही रावण है। इन मनोभावों को जीतना ही वास्तविक विजय है। जो अपने मन के रावण पर विजय प्राप्त कर लेता है , वही राम कहलाने योग्य है . दशहरा की शुभकामनायें।
इसी बात पर विचार करना ज़रूरी है ....
ऋतु परिवर्तन के समय 'संयम 'बरतने हेतु नवरात्रों का विधान सार्वजनिक रूप से वर्ष मे दो बार रखा गया था जो पूर्ण वैज्ञानिक आधार पर 'अथर्व वेद 'पर अवलंबित था।नौ औषद्धियों का सेवन नौ दिन विशेष रूप से करना होता था। पदार्थ विज्ञान –material science पर आधारित हवन के जरिये पर्यावरण को शुद्ध रखा जाता था। वेदिक परंपरा के पतन और विदेशी गुलामी मे पनपी पौराणिक प्रथा ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया। अब जो पोंगा-पंथ चल रहा है उससे लाभ कुछ भी नहीं और हानी अधिक है। रावण साम्राज्यवादी था उसके सहयोगी वर्तमान यू एस ए के एरावन और साईबेरिया के कुंभकरण थे। इन सब का राम ने खात्मा किया था और जन-वादी शासन स्थापित किया था। लेकिन आज राम के पुजारी वर्तमान साम्राज्यवाद के सरगना यू एस ए के हितों का संरक्षण कर रहे हैं जो एक विडम्बना नहीं तो और क्या है?
ReplyDeleteसही कहा , अब संयम भी बस एक दिखावा भर रह गया है.
Deleteबंगाली समाज इन नौ दिनो में साहित्य के क्षेत्र में जो योगदान देता है, जैसा प्रकाशन वहाँ होता है और जैसी रूची वहाँ के पाठकों में है उसे पढ़कर तो मैं आश्चर्य चकित हूँ। उनका यह योगदान अनुकरणीय है। हेडर पोस्ट में चित्र सही नहीं बैठ पाया है। आधा ही दिख रहा है। देर से आने के लिए खेद। रावण को इतना डूब कर याद करने का अर्थ ही है कि वह अभी मरा नहीं।
ReplyDeleteहैडर की सेटिंग समझ नहीं आ रही .
DeleteJCOctober 25, 2012 1:55 PM
ReplyDeleteयोग का अर्थ है जोड़, और सिद्धों/ योगियों ने हर पंचतत्वों से बने साकार रूप को अनंत शक्ति रुपी आत्मा (देवता/ राम) और अस्थायी शरीर (राक्षस/ रावण) के योग से बना जाना...
और, जिसमें आत्माएं भाग ले रही हैं उस प्राकृतिक काल-चक्र की प्रकृति दर्शाने/ याद दिलाने हेतु, जन्मदिन मनाने समान, त्योहारों के माध्यम से प्रति वर्ष, कुछेक देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को जल में विसर्जन की और राक्षसों को जलाने की प्रथा आदिकाल से 'भारत' में परम्परानुसार चली आ रही है..
"हरी अनंत/ हरी कथा अनन्ता... " कहावत दर्शाती है कैसे भौतिक इन्द्रियों की यह प्रकृति है कि तथाकथित 'मिथ्या जगत' में योगमाया के कारण किसी भी एक ही विषय पर अनेकों दृष्टिकोण हो सकते हैं - शायर की दृष्टि में पतंगे का दीपक की लौ पर जलना उनका जन्म-जन्मान्तर का प्रेम दर्शाता है!!! दूसरी ओर प्राचीन राजपूत क्षत्रियों में लड़ाई में पति के मृत्योपरांत पत्नी का सती हो जाना उनका धर्म!!!...
सुंदर विचार...कभीआना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
ReplyDeleteविचारणीय -तप और त्यागा करने के ये भी सिम्बोलिक विधान बन गए हैं!
ReplyDeleteतनिक पुआरने जमाने के तप और त्याग की कहानियाँ सुनिए -उन्ही के प्रतीकात्मक अवशेष जिन्दा हैं अब !
जो माने करे न माने न करे -कौनो प्रतिबंद नहीं है हिन्दू रीति रिवाजों में -और मैं तो इसी स्वच्छन्दता का अनुयायी हूँ -
कभी आजमा कर देख लीजियेगा :-)
सत्ता मद में जो भी कार्य किये जाते हैं उन्हीं का नाम है रावण-प्रवृत्ति। साथ ही केवल अपनी जन्मभूमि को ही स्वर्ग से भी बड़ी मानना और उसी के लिए सर्वस्व त्याग देने का नाम है राम। इसलिए हमें इसी चिंतन पर आत्मचिन्तन करना चाहिए।
ReplyDeleteधूप-छांही जिंदगी सी मान्यताएं और रंग-बिरंगे विश्वास.
ReplyDeleteपहले रावण एक था ...
ReplyDeleteअब सैकड़ों बसे हैं
देह के अँधेरे कोनों में ...
फिर भी हम है कि..
दम भरते हैं
राम बने फिरते हैं............
बेहद सुन्दर..मन को झकझोरती प्रस्तुति
सादर अभिनन्दन !!!