एक दिन एक कवि मित्र का फोन आया,
बोले भाया।
हम एक हास्य कवि सम्मेलन करा रहे हैं।
उसमे आपको भी बुला रहे हैं ।
लेकिन हम कुछ दे नहीं पाएंगे ,
क्या फिर भी आप कविता सुना पाएंगे ?
हमने कहा भैया, हम कुछ लेकर नहीं सुनाते हैं,
हम वो कवि हैं जो कुछ न कुछ पल्ले से देकर ही सुनाते हैं।
आप हमें अवश्य बुलाइये,
और हमारे लायक कोई सेवा हो तो निसंकोच बतलाइये।
चाहें तो कवियों के लिए ताकत की दवा लिखवा लें,
या फिर सौ दो सौ श्रोताओं का मुफ्त बी पी चेक करवा लें।
कहिये आप हम से क्या सेवा करवाएंगे,
वो बोले , यह तो आपकी कविता सुनकर ही बता पाएंगे।
कविता सुनाने की जब हमारी बारी आई
अभी हमने आधी कविता ही थी सुनाई,
कि श्रोता जोर जोर से तालियाँ बजाने लगे।
यह देखकर हम और भी जोश में आने लगे।
लेकिन जब शोर हद से ज्यादा होने लगा
और हमें भी कुछ कुछ समझ में आने लगा,
तो हमने कहा मित्रो , आप काहे शोर मचा रहे हैं ,
आखिर लाख रूपये की कविता, हम मुफ्त में सुना रहे हैं।
तभी एक श्रोता की आवाज़ आई ,
अरे मांफ करो भाई।
भले ही टैक्सी का किराया हमसे ले जाइये,
पर मेहरबानी करके आप बैठ जाइये।
हमने बैठकर माथे का पसीना पोंछा,
और साथ बैठे कवि से पूछा।
भई इतनी गर्मी में भी माइक पर तेज रौशनी क्यों डालते हैं,
जबकि श्रोता तो आराम से अँधेरे में बैठते हैं।
कवि बोला, जब आप जैसे कवि श्रोताओं को बोर करते हैं ,
तब श्रोता सड़े टमाटर और अंडे उछालते हैं।
और निशाना सही जगह पर लगे ,
इसलिए कवि पर तेज रौशनी डालते हैं।
श्रोताओं को इसलिए मिलता अँधेरे का सहारा है ,
ताकि आप देख न पायें, कि टमाटर किसने मारा है।
आपने सही किया जो कहते ही बैठ गए
वर्ना जाने क्या हाल होता।
हमने कहा भैया, यदि टमाटर हमें लग जाता,
तो चेहरा थोड़ा और लाल हो जाता।
पर यदि निशाना चूक जाता ,
तो सोचिये आपका क्या हाल होता।
मियां बर्ड फ्लू हो जाता , कच्चे अंडे खाकर ,
और फ़ूड पोइजनिंग हो जाती , ग़र पड़े सड़े टमाटर।
अब समझ में आया ,
ये अंडे और सड़े टमाटर कहाँ जाते हैं।
कुछ पट्ठे इकट्ठे कर सारे सड़े
अंडे टमाटर, बिहार के स्कूलों में बेच आते हैं ।
हम तो इतना कहेंगे यारो, मारो जम कर मारो
पर यार अंडे टमाटर अच्छी क्वालिटी के तो मारो।
उन्हें जब हम कवि देश के कुपोषित बच्चों को खिलाएंगे ,
तो उन बच्चों के एनीमिक चेहरे भी टमाटर से लाल हो जायेंगे।
पैसों के लिए भ्रष्टाचारी भले ही , अपना ईमान गिराते हैं ,
लेकिन कवि हर हाल में दोस्तों, सदा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।
कवि फेंके गए अंडे टमाटर से लोगों का भला करता है … मानना पड़ेगा ऐसे कवि को जो आज के दामों में भी खुद पर टमाटर फिंकवा सके !
ReplyDeleteश्रोताओं को इसलिए मिलता अँधेरे का सहारा है ,
ReplyDeleteताकि आप देख न पायें, कि टमाटर किसने मारा है।
सुन्दर !!
व वाह व वाह ...क्या बात है आज तो रंग जमा दिया गुरु ! मगर ...
ReplyDeleteशेर मारू बड़े लिखने लगे हो सम्हाल कर रहना
मोहल्ले में टमाटर की, जमाखोरी के चर्चे हैं !
अब डर नहीं लगता टमाटरों से ,
Deleteमोहल्ले वालों के और भी खर्चे हैं.
जय हो..
ReplyDeleteहा हा हा ,मजा आ गया पड़कर ,
ReplyDeletelatest दिल के टुकड़े
latest post क्या अर्पण करूँ !
आपकी रचना कल बुधवार [24-07-2013] को
ReplyDeleteब्लॉग प्रसारण पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया
एकदम सही बात कही आपने ओर्गनैजर महोदय से, सर जी ! कवियों को तो सुनाने से ही बहुत कुछ मिल जाता है! घर में बीबी को सुनाने बैठो तो उसका ध्यान कविता की तरफ कम और टीवी सीरियल पर जाता होता है ! :)
ReplyDeleteहम तो इतना कहेंगे यारो, मारो जम कर मारो
ReplyDeleteपर यार अंडे टमाटर अच्छी क्वालिटी के तो मारो।
...................वाह ...क्या बात है
चाहें तो कवियों के लिए ताकत की दवा लिखवा लें,
ReplyDeleteया फिर सौ दो सौ श्रोताओं का मुफ्त बी पी चेक करवा लें।
हा हा हा...यानि अपने पास जो कुछ हो उससे ही कविता पढने का जुगाड कर लेना चाहिये.:)
रामराम.
ताकत की ज़रुरत तो कवियों को भी होती है. :)
Deleteआप निश्चिंत रहिये आजकल कवियों पर इसलिये सडॆ अंडे टमाटर नही पडते क्योंकि सडे टमाटर अंडो की मिड डे मील के लिये स्कूलों मे काफ़ी डिमांड चल रही है.
ReplyDeleteरामराम.
पैसों के लिए भ्रष्टाचारी भले ही , अपना ईमान गिराते हैं ,
ReplyDeleteलेकिन कवि हर हाल में दोस्तों, सदा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।
क्या बात :)
तालियाँ तालियँ। :)
ReplyDelete:)
Deleteहा हा हा!!! सही कह रहे हैं आप ....वाकई कवि हर हाल में अपना फर्ज़ निभाते हैं :)
ReplyDeleteले टमाटर ले अंडे :-)
ReplyDeleteकिस रेट पर मिले ?:)
Deleteवाह वाह.....
ReplyDeleteहमारी ओर से तो जोरदार दाद कबूल करें.....अंडे टमाटर खाने वाले कवि कोई और होंगे.....
सादर
अनु
वाह वाह ..हमने तो यहीं बैठे बैठे हास्य कवि सम्मलेन का आनंद ले लिया
ReplyDeleteपर घर के अंडे टमाटर को अपनी ही स्क्रीन पर फेंकने की हिम्मत नहीं हुई.:):)
अच्छा किया , वो तो वो तो बिहार नहीं भेजे जा सकते थे.
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ३ महान विभूतियों के नाम है २३ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हमने भी घटिया से घटिया कवि सम्मेलन सुने हैं लेकिन ये टमाटर और अण्डे फेंकते हुए लोग आज तक नहीं देखें! हमारे शहर में भी इनता निर्यात कीजिए ना।
ReplyDeleteजी देखे तो हम ने भी नहीं। लेकिन कभी कभी लगता है कि बोर कवि को बिठाने का कोई तो प्रावधान होना चाहिए। :)
Deleteकुछ पट्ठे इकट्ठे कर सारे सड़े
ReplyDeleteअंडे टमाटर, बिहार के स्कूलों में बेच आते हैं ।
ये है हास्य व्यंग्य और उसकी टंगड़ी बोले तो मार .
:):) इसी बहाने अच्छे टमाटर मिड डे मील के लिए मिल जाएँ ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..... मंहगाई ऐसे महाशयों का तो बचाव करेगी कम से कम
ReplyDeleteकवि सम्मलेन में जाने का शायद फायदा हो जाए ... यही सोच कर तो नहीं गए थे न आप ...
ReplyDeleteअच्छी क्वालिटी के टमाटर मांग रहे हैं ... क्या बात है सर ... गज़ल का हास्य लिए है ये रचना ... मज़ा आ गया ...
शुक्रिया नास्वा जी.
Deleteहास्य कविता के माध्यम से क्या वार किया है आपने ....बहुत बढिया
ReplyDeleteहम तो इतना कहेंगे यारो, मारो जम कर मारो
ReplyDeleteपर यार अंडे टमाटर अच्छी क्वालिटी के तो मारो।
उन्हें जब हम कवि देश के कुपोषित बच्चों को खिलाएंगे ,
तो उन बच्चों के एनीमिक चेहरे भी टमाटर से लाल हो जायेंगे।
पैसों के लिए भ्रष्टाचारी भले ही , अपना ईमान गिराते हैं ,
लेकिन कवि हर हाल में दोस्तों, सदा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं
गंभीर संदेशपरक कवि सम्मलेन
शोरदार! जोरदार!
ReplyDeleteवाह! वाह!
बार-बार।
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवाह..वाह
ReplyDeleteकविता है या पुराना घिसा-पिटा चुटकुला ......यही तो कर रहे हैं मंच पर ये सब कविगण
ReplyDelete---सही कहा अजित जी ने --टमाटर-अंडे चुटुकुलों में ही फेंके जाते हैं...
सही कहा गुप्ता जी.
Deleteचुटकलों में भी बहुत सी बातें कही जाती हैं.
बढ़िया,सुन्दर।
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