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Tuesday, July 2, 2013

कुछ लोगों की वज़ह से सारे प्रोफेशन को बदनाम न करें --- डॉक्टर्स डे पर विशेष।


डॉ बी सी रॉय की याद में मनाये जाने वाले डॉक्टर्स डे पर सुबह सुबह फेसबुक पर डॉक्टर्स के बारे में मित्रों के विचार पढ़कर बड़ा मूड ख़राब हुआ। इन्हें पढ़कर हम जैसे दिल से कभी न लगाने वाले के भी दिल को सचमुच धक्का सा लगा कि मित्रगण भी डॉक्टर्स के बारे में ऐसा विचार रखते हैं। इस अवसर पर हमने भी अस्पताल में सभी डॉक्टर्स की मीटिंग बुलाई थी, संबोधित करने के लिए। आइये आपको भी अवगत कराते हैं, इस अवसर पर हुई मंत्रणा से :

मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के समय अक्सर सीनियर्स फ्रेशर्स से एक सवाल पूछते हैं -- डॉक्टर क्यों बनना चाहते हो ? इस पर अक्सर फ्रेशर्स का ज़वाब होता है -- मरीजों की सेवा करने के लिए। यह सुनकर सभी जमकर ठहाका लगाते हैं -- देखो यह देशभक्त मरीजों की सेवा करना चाहता है। फ्रेशर को उस समय इस ठहाके का अर्थ समझ नहीं आता। समझ में आता है जब वह शिक्षा पूर्ण कर सड़क पर आता है , जीविका उपार्जन के लिए।

हमने आठवीं पास कर जब नवीं कक्षा में बायोलोजी विषय चुना तब लोगों न कहा -- अच्छा डॉक्टर बनना चाहते हो ! तब जाकर हमें पता चला कि बायोलोजी लेने से डॉक्टर बनते हैं। लेकिन आजकल न सिर्फ अभिभावक बल्कि बच्चे भी पैदा होते ही करियर की बात करने लगते हैं और इसके प्रति अत्यंत जागरूक होते हैं। हालाँकि आजकल मेडिकल और इंजीनियरिंग के अलावा छात्रों के सामने और बहुत से विकल्प उपलब्ध हैं,फिर भी मेडिकल प्रोफेशन का आकर्षण अभी भी बरक़रार है। इसलिए अभी भी डॉक्टर्स को क्रीम ऑफ़ द सोसायटी कहा जाता है।

हमने जब मेडिकल में एडमिशन लिया तब कोचिंग की न सुविधा थी , न ही सामर्थ्य। लेकिन अब बच्चे को अभिभावक नवीं कक्षा से ही मेडिकल एडमिशन की कोचिंग के लिए तैयार कर देते हैं। विधालय के साथ साथ चार साल की कोचिंग बच्चों के लिए कितना बड़ा बोझ होता है , यह आसानी से समझा जा सकता है। कमरतोड़ मेहनत और लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी एडमिशन की कोई गारंटी नहीं होती। एडमिशन हो गया तो पांच वर्ष के लिए सारी दुनिया को भूलकर किताबी कीड़ा बनना पड़ता है। इस बीच ग्रेजुएशन करते करते पी जी की तैयारी शुरू हो जाती है। फिर दो साल की कोचिंग , पी जी एडमिशन के लिए। जिसे नहीं मिलता , वह प्राइवेट अस्पताल में पैसा देकर पी जी करता है जिसके लिए कितना रुपया देना पड़ता है , यह बताना भी संभव नहीं।

तीन साल तक पी जी करने के बाद तीन वर्ष की सीनियर रेजीडेंसी करनी पड़ती है। इसके बाद एक डॉक्टर फेकल्टी या कंसल्टेंट की पोस्ट के लिए एलिजिबल होता है। इस समय तक उसकी उम्र करीब ३० वर्ष हो चुकी होती है। लेकिन सरकारी अस्पताल में मुश्किल से १ % लोगों को जॉब मिलता है। बाकि सभी प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करते हैं जहाँ आजकल डी एम् / एम सी एच की डिग्री के बिना आप घुस ही नहीं सकते। यानि फिर दो साल की एक और डिग्री जिसकी सीट्स बहुत कम होती हैं। इस तरह यदि भाग्य ने पूर्ण साथ दिया तो ३५ वर्ष की आयु में एक डॉक्टर अपनी जिंदगी शुरू करता है।

जो डॉक्टर इतना सब हासिल नहीं कर पाते उनके लिए एक ही रास्ता है कि वो लाखों रूपये लगाकर एक क्लिनिक खोल कर जनरल प्रेक्टिस करें जहाँ उनका कॉम्पिटिशन होता है अंगूठा छाप / झोला छाप क्वेक्स से जिन पर सरकार का भी कोई नियंत्रण नहीं है। सारे रूल्स रेगुलेशंस भी क्वालिफाइड डॉक्टर्स पर ही लागु होते हैं। दिन रात की मेहनत के बाद भी सारे डॉक्टर्स अच्छा पैसा कमा लेते हों , ऐसा भ्रम ही है।

बेशक डॉक्टर्स भी इन्सान ही होते हैं और उनकी भी ज़रूरतें वही होती हैं जो बाकि सब की होती हैं। हालाँकि भ्रष्टाचार से प्रभावित होने को कदापि सही नहीं ठहराया जा सकता, और न ही शिक्षा पर अत्यधिक खर्च होने से भ्रष्ट होने का तर्क स्वीकार्य है। फिर भी , वर्तमान परिवेश में जहाँ रोगी एक कस्टमर होता है और उसे कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में डॉक्टर के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने का प्रावधान प्राप्त है, ऐसे में डॉक्टर का अतिरिक्त सावधान होना अनिवार्य है। नतीजन , उपचार की कीमत बढ़ जाती है। हालाँकि, डॉक्टर्स में भी ऐसे कई मिल जायेंगे जो हिप्पोक्रेटिक ओथ को भूलकर सिर्फ पैसे के पीछे दौड़ते हैं। फिर भी एक डॉक्टर ही होता है जो दर्द से तड़पते , कराहते या घायल रोगी को अपनी योग्यता से नया जीवन प्रदान करता है।

आज भले ही उपचार की अनेक तकनीक या विधाएं उपलब्ध हों , लेकिन बात जब शल्य चिकित्सा की आती है तब एक एलोपेथिक डॉक्टर निश्चित ही भगवान से कम नहीं होता। बाई पास सर्जरी हो या सिजेरियन , ऑर्गन ट्रांसप्लांट हो या डायलिसिस , आई वी एफ से संतान उत्पत्ति का सुख मिले या लासिक से दृष्टि दोष से मुक्ति , आधुनिक चिकित्सा का कोई विकल्प नहीं है। ऑपरेशन थियेटर के बाहर खड़े मरीज़ के रिश्तेदारों के लिए डॉक्टर सिर्फ और सिर्फ भगवान ही होता है क्योंकि उस समय रोगी की जिंदगी लगभग उसी के हाथों में होती है। ज़ाहिर है , रोगी को भी डॉक्टर पर विश्वास कर अपनी जिंदगी उसे सौपनी पड़ती है। अंत में किसी विरले केस को छोड़कर लगभग सभी रोगी जब निश्चेतना से बाहर आते हैं तब उसकी सांसें किसी दूसरी जिंदगी से कम नहीं होती।

अत: मित्रो , सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के वातावरण में रह कर भी डॉक्टर्स हमारे जीवन दाता होते हैं, इस बात से नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में सिर्फ भड़ास निकालने के लिए डॉक्टर्स को दोष न देकर, आइये उस भगवान से प्रार्थना करें कि कभी इस भगवान के पास जाना न पड़े, क्योंकि यदि जाना ही पड़ा तो यही भगवान आपको उस भगवान के पास असमय जाने से रोक सकता है। लॉन्ग लिव डॉक्टर्स !             

नोट : अच्छे बुरे लोग सभी जगह होते हैं , इसलिए कुछ लोगों की वज़ह से सारे प्रोफेशन को बदनाम न करें , यही गुजारिश है ।    

   

47 comments:

  1. गंदगी कहां नही होती? कमल भी कीचड में ही खिलते हैं.

    रामराम.

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  2. सर्वप्रथम डाक्टर्स डे की हार्दिक शुभकामनाये , डा० साहब ! निश्चित तौर पर इस शानदार पेशे को कुछ लोग बदनाम कर रहे है और जिसका अहसास मुझे खुद अप्रेल माह में गुडगाँव के मेदांता जैसे बड़े अस्पताल में हुआ, जहां मेरे एक पारिवारिक रिश्तेदार की अल्पायु में मृत्यु हुई। किन्तु आपका यह कथन एकदम सत्य है कि चंद गलत लोगो की वजह से सबसे ज्यादा कष्ट एक कर्तव्यनिष्ठ और सही इंसान को झेलना पड़ता है। मैंने इस दर्द को अभी कल -परसों भी महसूस किया जब एक न्यूज चैनल ने अपने साईट पर यह खबर छापी कि दो लोग केदारनाथ में कुकर में छुपा के रखी मरे हुए लोगो की उन उँगलियों के साथ पकडे गए जिन पर अंगूठिया थी। उस आलेख के लेखक ने यह नहीं लिखा कि आखिर उन लोगो की पहचान क्या थी। वो कहाँ के रहने वाले थे, बस सिर्फ चटपटी खबर छाप दी। हकीकत यह थी की वे दोनों साधू भेष में मैदानों से पहाड़ों पर गए थे। वहाँ उस साइट पर टिप्पणियों में लोगो ने पहाडियों के प्रति जो भड़ांस निकाली हुई थी उसे पढ़कर बड़ा कष्ट हुआ। मैं यह नहीं कहता कि पहाडी बहुत शरीफ लोग है, अच्छे -बुरे लोग हर जगह मौजूद है किन्तु इतने गिरे हुए होंगे कि सोने की अंगूठियाँ निकालने के लिए मृतकों की उंगलिया ही समेट लेंगे, ऐसा कम से कम मैं नहीं सोच सकता।

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    1. सही कहा , समाज में गन्दगी सब जगह है। लेकिन सब को एक लाठी से नहीं हांका जा सकता। एक डॉक्टर पैसा तो कमा सकता है , लेकिन जान बूझ कर मरीज़ की जिंदगी से कभी नहीं खेलता, कुछ एक अपवाद को छोड़कर ।

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    2. यहाँ पहाड़ियों की बात ही नही है चोरों की बात है ...
      लाशों कि ऊँगली से अंगूठियाँ बिना उंगली काटे नहीं निकलती ...

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    3. आपकी बात से पूर्णत : सहमत हूँ सक्सेना साहब ! किन्तु जिस तरह से उस घटना कर्म को ख़बरों में पेश किया गया था , कोई भी व्यक्ति यही धारणा बनाता जो वहाँ पर आम लोगो ने व्यक्त की थी। जबकि हकीकत भिन्न थी !

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  3. जहां तक मेडिकल प्रोफ़ेसन का सवाल है, वास्तव में जब से अस्प्तालों में कार्पोरेट कल्चर आया है और पूंजी जुटाने के लिये इन्होने शेयर बाजार का सहारा लिया उसी दिन इस सेवा रूपी पेशे को धंधे का रूप मिल गया था.

    लेकिन आज भी सरकारी अस्पतालों का यह कल्चर नही है, वहां थोडी लेट लतीफ़ी अवश्य होती है पर इस तरह की लूट खसोट नही होती.

    कुछ लालची सिरफ़िरे तो हर धंधे में होते हैं पर उसका मतलब यह नही की सभी एक जैसे हों.

    हमको तो भगवान की किरपा से आज तक जितने भी डाक्टर मिले सब भले मानुष ही मिले.

    यहां आजकल मैं मेरे मित्र के अस्पताल की देखभाल के लिये दो घंटे रोज वहां जाता हूं क्योंकि मित्र और उनका परिवार अमेरिका भ्रमण पर गया है. आजकल अस्पताल का माहोल नजदीक से देख पा रहा हूं इसलिये मैं आपकी पीडा समझ सकता हूं. आप परेशान ना हों.

    रामराम.

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    1. रामपुरिया जी , बेशक प्राइवेट अस्पताल एक व्यवसाय है। लेकिन इसमें बुराई क्या है !
      बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए स्ट्रेटिजी और प्लानिंग तो ज़रूरी है। फिर भी सेवा में कमी नहीं रहती। हम तो स्वयं मानते हैं कि यदि आपको सलाह लेनी है तो सरकारी डॉक्टर के पास जाइये , और कोई ऑपरेशन आदि कराना है तो प्राइवेट से बेहतर कुछ नहीं , बशर्ते आप खर्च सहन कर सकें। आजकल इन अस्पतालों में विदेशी बहुत आ रहे हैं क्योंकि उनके देश में यही काम दस गुना दाम में होता है ।

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    2. यह बात आपने बिल्कुल सही कही है.

      सभी चीजों में भलाई बुराई स्वभावत: होती ही है. यदि अस्पताल व्यवसाय नही बनता तो आज जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं यहां मिल रही हैं वो नही मिलती. मुंबई में डा. रमाकांत पाण्डा का एशियन हार्ट इंस्टीच्यूट इसका जीता जागता उदाहरण है जहां विदेशी थोडे से पैसे में उनसे बाईपास करवा कर दो महिने भारत भ्रमण भी कर जाते हैं.

      मेरी समझ से एक सरकारी सेवा में रत डाक्टर को जितना अनुभव होता है वह बेशकीमती होता है. प्राथमिक तौर पर सरकारी डाक्टर से ही राय लेना चाहिये फ़िर आगे की कवायद अपनी जेब अनुसार करनी चाहिये.

      रामराम.

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  4. आपने यह बताने में संकोच किया है कि एक डाक्टर बनने में कितना खर्च आता है?

    हम बताये देते हैं कि आजकल यह 80 लाख से एक खोके के बीच बैठ रहा है.:)

    रामराम.

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    1. जयपुर का कम्पाउंडर ऐसे थोड़े ही २०० करोड़ का मालिक बन गया ताऊ :)

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    2. लगता है आप रिबेट दे रहे हैं। :)

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    3. हमें आज तक यह समझ नहीं कि ये कम्पाउंडर क्या होता है ! :)

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    4. Dr, sahib, I was referring to this story; http://indiatoday.intoday.in/video/property-worth-rs-200-crore-seized-from-compounder-in-jaipur/1/286400.html

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    5. जी, यह न्यूज आइटम मैंने भी देखा था। यहाँ कुछ भी संभव है।

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    6. गोदियाल जी व डाक्टर साहब, आप दोनों ताऊ के पीछे क्यों पडे हैं? क्या हो गया जो ताऊ ने इस बहती गंगा से दो सौ करोड निकाल लिये तो? बहुत बुरी बात है इस तरह दूसरों की कमाई को नजर लगाना.

      रामारम.

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  5. एकदम पते की बात.

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  6. आपकी पोस्ट से सहमत हूँ मगर ..
    व्यवस्था के कारण, कोई भी डाक्टर, ४० वर्ष से पहले पैसे कमाने की नहीं सोंच पाता..
    -लगभग ४० वर्ष बाद भी एक डाक्टर को साधारण पैसे कमाने के लिए भी अपना क्लिनिक खोलने के लिए कम से कम एक करोड़ कहाँ से लाए
    -उन्हें अपने बच्चों का पेट पालने के लिए कुछ अन्य उपाय करना उनकी मजबूरी है ..
    =जो अपना पैत्रक संपत्ति बेचकर क्लिनिक खोलने में सफल हों भी जाएँ वे इमानदारी में कितना कमा पाते हैं, कि बैंक अथवा उस पैसे का ब्याज निकल जाए
    -कितने खुशकिस्मत डॉ हैं जो सरकारी सेवाओं में लगे हैं और आपकी भांति संतोषी हैं ??
    जो डॉ इमानदार हैं , उनमें मेरे कई मित्र हैं डॉ दराल , डॉ आर एस गुप्ता ,जिनके पास आज भी अच्छी कार नहीं है , वे संतोषी हैं अतः खुश हैं
    -पर अधिकतर डाक्टर अपना रास्ता निकलने के लिए शोर्टकट अपनाते हैं

    मैं अपने किसी मित्र के बच्चे को डाक्टर बनाने को नहीं कहता , क्योंकि इस लाइन में पैसे नहीं है ..

    मगर हज़ारों मायुसों को नया जीवन देते डाक्टरों से बेहतर और कौन हो सकता है ..

    आपको नमन डाक्टर ..


    धरती के भगवान् डॉक्टर
    हों अच्छे इंसान डॉक्टर

    हमको जीवन दान दिया है
    है तेरा अहसान डॉक्टर

    ऊपरवाले का मानव को
    धरती पर वरदान डॉक्टर

    जिसके आने से दिल खुश हो
    हैं ऐसे मेहमान डॉक्टर

    कम सदा ऐसे ही करना
    हो तेरा गुणगान डॉक्टर

    धंधा गन्दा ना हो जाये
    रखते इसका ध्यान डॉक्टर

    लालच में गर फंस जाये तो
    बन जाते शैतान डॉक्टर

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    1. सतीश जी , आप से पूर्णतया सहमत हूँ। हालाँकि , किसी भी रूप में भ्रष्टाचार की भर्त्सना ही होनी चाहिए।
      आपने सही लिखा है। ग़ज़ल का दूसरा रूप वास्तव में बहुत सुन्दर बन पड़ा है।
      जिन डॉ बी सी रॉय की याद में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है , उनकी जीवनी को एक बार सब को ज़रूर पढना चाहिए।

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    2. डॉ बी सी रॉय अपने आप में एक चमत्कार थे, हमने तो उनको कभी नही देखा पर हमारे पिताजी ने उनसे इलाज भी करवाया है और पिताजी आज भी 85 साल की उम्र में हमसे भी ज्यादा हट्टे कट्टे हैं जो डा.राय के किस्से जब तब सुनाया ही करते हैं.

      हमारे शहर में एक डा. एस.के.मुखर्जी भी इसी श्रेणी के डाक्टर थे जिन्हें पूरे मध्य प्रदेश में देवता की तरह पूजा जाता था.

      रामराम.

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  7. उपरोक्त पंक्तियाँ भाई गिरीश पंकज की हैं जो उन्होंने डॉ दिवस के अवसर पर लिखी हैं ...

    https://www.facebook.com/girishpankaj2?fref=ts

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    1. शुक्रिया। सही भावना में लिखी है यह ग़ज़ल।

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    2. यह रचना भाई गिरीश पंकज की पैरोडी है , जो मैंने फेस बुक पर छापी थी जिससे लोगों को दूसरा पहलू भी नज़र आये ...
      ऐसे भी डाक्टर है जिनसे हम रूबरू होते हैं ...


      कम पैसे दे,निकल न जाए
      इसका रखते ध्यान डाक्टर

      पैसे बचा कर, ले न जाए
      और बीमारी, खोजें डाक्टर !

      बिना जरूरत पेट फाड़कर
      किडनी गायब करें डाक्टर

      बिना सर्जरी निकल न जाए
      पूरा करते, काम डाक्टर !

      बीमारी की बात, बाद में
      पहले पूंछे, काम डाक्टर

      मामूली से , पेट दर्द में
      पहले भरती, करें डाक्टर

      ना मानो तो जाकर देखो
      कैसे काटें, जेब डाक्टर !

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    3. ओह ! तो यह कारिस्तानी आपकी है ! :)
      इसे पढ़कर ऐसा लग रहा है जैसे गोदियाल की के कमेन्ट की पैरोडी बनाई है। : ) :)
      सॉरी सतीश जी , आज तो गलती हो गई।

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  8. अच्छे और बुरे का अस्तित्व हर जगह व्याप्त है। एक डॉक्टर से लोगों की अपेक्षाएं भी बहुत ज्यादा होती है, अर्थ से लेकर जीवन बचाव में। किसी डॉक्टर के हाथों लगातार सफलता लगती है और कोई प्रारम्भ में ही असफल होते रहते है। पता नहीं तकदीर का खेल है या अतिरिक्त योग्यता का। किसी सर्जन के यहां लाईन लगती है तो किसी के यहां कोई नहीं फटकता। जीवन बचाने के लिए लोग महंगे से महंगा उपचार करवाते है किन्तु उपचार हो जाने के बाद खर्च पर विचार करते है कि बहुत ले लिया!! यह मानवीय स्वभाव की विडम्बना है।

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    1. हमारे देश में अभी भी विदेशों की अपेक्षा इलाज बहुत सस्ता है। हालाँकि आम आदमी के लिए फिर भी महंगा है। इसीलिए विदेशी भी इलाज कराने यहाँ बड़ी तादाद में आने लगे हैं। लेकिन जिस तरह पांचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती , उसी तरह हर डॉक्टर की योग्यता भी अलग होती है।

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  9. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिये ओम बना और उनकी बुलेट से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  10. डाक्टर साहब, जरा स्पैम में कैद टिप्पणियों को आजाद किजीये, फ़ोलो अप मेल में धडाधड कमेंट आये जा रहे हैं जिना जवाब देने के लिये यहां टिप्पणियां ही मौजूद नही हैं.:)

    रामराम.

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    1. ये स्पैम अचानक ज्यादा एक्टिव हो गया है। हमारी भी टिप्पणियां सीधे स्पैम में जा रही हैं।

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    2. पता नही बराबर बाबा को क्या हुआ है आजकल, मालिक की प्रति टिप्पणीयां भी सीधे स्पैम में डालता है.

      आपसे और सतीश जी से निवेदन है कि या तो आप दोनों खर्चा स्वयं करें या चंदा करले, पर ब्लागरों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिये राज बाबा और ताऊ बाबा से एक यज्ञ हवन संपन्न करवा लें वर्ना यह आपदा और बढती जायेगी.

      हमने आप लोगों को चेता दिया है फ़िर हमें दोष मत देना की बाबा लोगों ने समय रहते क्यॊं नही बताया.

      रामराम.

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    3. भूल सुधार:-

      पता नही "बराबर बाबा" को क्या हुआ है आजकल
      की जगह
      पता नही "ब्लागर बाबा" को क्या हुआ है आजकल, पढा जाये.

      रामराम.

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  11. हमने इसी लिये वहाँ का रुख नहीं किया क्योंकि पढ़ना अधिक पड़ता है।

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  12. डॉ साहब इस पोस्ट में प्रस्तुत आपके विचारों का मैं शतशः समर्थन करता हूँ। 'चिकत्सा समाज सेवा है,व्यवसाय नहीं' यह संदेश हमें भी 'आयुर्वेद रत्न' की उपाधि के साथ मिला है। मैंने आपको फेसबुक पर जिस कविता/गजल का लिंक दिया वह डाक्टर्स के समर्थन में ही है। फिर भी आपका मूड खराब क्यों हुआ?संभवतः किसी और ने कुछ लिखा होगा। मैंने तो अपने ब्लाग के माध्यम से भी लोगों को निशुल्क चिकित्सकीय और ज्योतिषीय जांनकारियां उपलब्ध कराई हैं और कुछ ब्लागर्स को उनकी वांछित जांनकारियां ईमेल द्वारा भी भेजी हैं। लेकिन उन लोगों ने 'ज्योतिष एक मीठा जहर'आदि ब्लाग/फेसबुक पोस्ट्स लिख कर 'ज्योतिष' पर अमर्यादित प्रहार किए हैं। तोता वाला,बैल वाला,तिलक छाप पुजारी जैसे पाखंडी,ढोंगियों को ज्योतिषी मान कर ज्योतिष और ज्योतिषियों की खिल्ली उड़ाने वाले ब्लागर्स अंतर्राष्ट्रीय पुरुसकारों से सम्मानित किए गए हैं। डाक्टर्स के संबंध में आपके तर्क सही और ठीक हैं। ठीक यही बात 'ज्योतिष' और 'ज्योतिषियों' पर भी लागू होती है।

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    1. माथुर जी , इसका आपकी पोस्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है।
      विचारों में भिन्नता होना तो स्वाभाविक है। लेकिन बेशक हमें एक दुसरे के विचारों का सम्मान करना चाहिए।

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    2. This comment has been removed by the author.

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    3. .
      .
      .
      @ डाक्टर्स के संबंध में आपके तर्क सही और ठीक हैं। ठीक यही बात 'ज्योतिष' और 'ज्योतिषियों' पर भी लागू होती है।

      दराल सर, आपको विरोध करना चाहिये था, पर यह आपकी महानता है कि आप इस विचार का भी सम्मान कर रहे हैं... पर मेरा विरोध दर्ज किया जाये...आधुनिक Evidence Based Medicine और फलित ज्योतिष में कोई तुलना नहीं की जा सकती, एक विज्ञान है और दूसरा बिना किसी आधार की पोंगापंथ कयासबाजी, परेशान व आत्मविश्वास की कमी के अज्ञानी शिकारों के दोहन का तंत्र...


      ...

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  13. सच को बयाँ करती आपकी शानदार पोस्ट !
    शुभकामनायें!

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  14. आपने मेरे विचारों को महत्त्व दिया, यह बड़ी बात है। सद्भावी मन ही ऐसे कर सकता है। धन्यवाद

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  15. बढ़िया पोस्ट, अच्छी टिप्पणियाँ।

    हम लाख कहें 'भगवान बचाये इन डाक्टरों से' मगर जब अपने पर पड़ती है डाक्टर को भगवान मानकर उनके पास नतमस्तक हो जाना ही पड़ता है। हर पेशे में अच्छे-बुरे सभी होते हैं। हम अभी अच्छे दौर में रह रहे हैं। संवेदनाएं बची हुई है, अच्छे को अच्छा कहा जा रहा है

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  16. "अच्छे बुरे लोग सभी जगह होते हैं , इसलिए कुछ लोगों की वज़ह से सारे प्रोफेशन को बदनाम न करें , यही गुजारिश है ।"

    आप से १०० % सहमत हूँ !

    एक बार फिर हैप्पी डाक्टर'स डे ... सर जी ... :)

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  17. डाक्टर साहब मैं भगवान को तो नहीं मानता मगर एक डाकटर को बढ़ कर मानता हूँ -मेरा एक जनरल आपरेशन हुआ था गैल स्टोन का -मुझे डाक्टर ईश्वर से भी बढ़कर लगे .मेरे कई सहपाठी मित्र हैं जिनकी मैं बहुत इज्जत करता हूँ और आम तौर पर सभी डाकटर मेरे लिए सम्माननीय हैं!
    मगर प्रशासनिक ढाँचे में जहाँ पहले एक अंग्रेज डी एम और सिविल सर्जन का जो रुतबा था उसे स्वाधीन भारत के ब्युरोक्रेटी ने बाट लगा दी है -बिचारे सी एम् ओ साहब डी एम के सामने दबे सिमटे से रहते हैं -मुझे बहुत बुरा लगता है ! इतना त्याग और इतनी उपेक्षा सहकर कैसे यह कैडर अपने आत्मबल को बनाए हुए है ,विचारणीय है!

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  18. अरविन्द जी , हम टेक्नोक्रेट हैं और ब्यूरोक्रेट्स टेक्नोक्रेट्स पर हमेशा हावी रहे हैं।

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  19. डाक्टर का पेशा हमेशा ही सम्माननीय होता है ..... और यह भी सच है कि सभी को एक ही लाठी से नहीं हाँका जा सकता .... अच्छे बुरे इंसान हर जगह होते हैं कुछ की वजह से आम राय बनाना उचित नहीं है ....

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  20. भ्रष्‍टाचार समाज का अंग है और इससे प्रत्‍येक वर्ग इससे प्रभावित हो रहा है लेकिन चिकित्‍सक की अपनी नैतिक मर्यादाएं होती हैं जिसे उसे पालन करना चाहिए।

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  21. आपने सच कहा है ... ऐसा हर प्रोफेशन में हो रहा है आज कल ... कुछ लोगों की वजह से होता है ये सब ... पर विश्वास सभी से उठने लगता है ... क्रिमिनल क्रिमिनल है उसे वैसे ही ट्रीट करना चाहिए ...
    आपको डाक्टर दिवस की बधाई ...

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  22. जी हम तो एक ही डाक्टर को जानते हैं जो किसी भगवान से कम नहीं .....

    हैप्पी डाक्टर्स डे .......!!

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  23. बात तो आपकी बिलकुल ठीक है, मगर वो कहते हैं ना "एक गंदी मछ्ली पूरे तालाब को गंदा कर देती है"
    बस वैसा ही कुछ हाल हर जगह हर प्रोफ़्फ़ेशन में होता है। इसलिए आप बुरा न माने कहने दें जिसको जो कहना है
    अंत में जाना सभी को भगवान से पहले डॉ के पास ही है। :))

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