बहुत दिनों से ब्लॉग के हैडर की तस्वीर को बदलने की सोच रहा था. आखिर यह तस्वीर पसंद आई और लगा दी. श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी ने पसंद का चटका भी लगा दिया. लेकिन उनका कमेन्ट पढ़कर हमने इस तस्वीर को ध्यान से देखा और जो समझ आया , वह इस प्रकार है :
* जिंदगी एक सफ़र है.
* इन्सान राहगीर हैं.
* जिंदगी के सफ़र की डगर भिन्न भिन्न हैं.
* कोई राह ऊबड़ खाबड़ है तो कोई इस सड़क की तरह साफ और चिकनी सतह वाली.
* कहीं काँटों भरी राह मिलती है तो कहीं फूलों भरी.
* कोई राह सीधी होती है , कोई टेढ़ी मेढ़ी .
* किसी राह पर हमसफ़र मिल जाते हैं , कभी अकेले ही चलना पड़ता है.
अब सवाल यह उठता है -- हम किस राह पर चलें .
अब सवाल यह उठता है -- हम किस राह पर चलें .
* अक्सर हमें जो राह मिलती है , उस पर हमारा कोई वश नहीं होता. लेकिन एक बार राह पर चल पड़ें तो उसे आसान बनाना हमारे हाथ में अवश्य होता है .
* यदि राह के बारे में हमारे सामने विकल्प हों तो यह हम पर निर्भर करता है की हम कौन सी राह चुनते हैं.
* सही राह का चुनना अत्यंत आवश्यक होता है.
* अक्सर राह तो मिल जाती है, लेकिन राह भटकना बड़ा आसान होता है।
* अक्सर राह तो मिल जाती है, लेकिन राह भटकना बड़ा आसान होता है।
* राह वही जो मंजिल तक पहुंचाए. हालाँकि हमारी मंजिल क्या है , यह समझना बड़ा मुश्किल होता है.
अंत में यही कहा जा सकता है -- हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए की हम जहाँ भी चलें, राह की कठिनाइयाँ स्वयं दूर हो जाएँ , डगर पर सफ़र सुहाना लगे -- जैसा इस तस्वीर को देखकर लग रहा है.
नोट: यह तस्वीर कनाडा के टोरंटो शहर के पास एल्गोंक्विन नामक जंगल की है, जिसके मध्य से होकर यह ६० किलोमीटर लम्बी सड़क गुजरती है.
ये मौसम सुहाना फिजा भीगी भीगी,
ReplyDeleteबड़ा लुफ्त आता गर तुम साथ होते,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
राह जैसी भी हो..हमसफ़र प्यारा हो तो काँटे भी फूल लगते हैं.....
ReplyDeleteबहुत प्यारी पोस्ट..कुछ कुछ कविता जैसी :-)
सादर
अनु
जब साथी हो खूबसूरत, और सफ़र हसीं
Deleteतो मौसम को भी खबर हो जाती है. :)
जैसे इस तस्वीर में !
उबड़-खाबड़ राह भी हमसफ़र के सानिध्य में सुहाना लगने लगता है.
ReplyDeleteसहमत 'अनु' जी से
कनाडा सफ़र के बारे में कुछ हो जाए :)
ReplyDeleteक्या भाई जी ! जून जुलाई २००९ की सारी पोस्ट्स इसी से भरी पड़ी हैं .
Deleteअब इस तस्वीर को जल्दी से बदलना मत । एक तो ये सुंदर है फिर बडे साइज में काफी बढिया लगी । बाकी विचार भी बढिया
ReplyDeleteचित्र तो है ही बढ़िया और इस चित्र के माध्यम से आपने जो सीख दी है वो तो बहुत ही बढ़िया है ... जय हो !
ReplyDeleteपृथ्वीराज कपूर - आवाज अलग, अंदाज अलग... - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शुक्रिया शिवम् .
Deleteवाह , एक सुंदर रास्ते की खूबसूरत तस्वीर से जिंदगी के सफ़र और मंज़िल का कितना अदभुत दर्शन प्रस्तुत कर दिया आपने । जिंदगी का सफ़र और उसकी मंज़िल नियति तय करती है हां हम उस तक पहुंचते कैसे हैं ये जरूर हम पर निर्भर करता है ।
ReplyDeleteडॉ साहब आपकी पारखी नज़र को सलाम ।
जरूरी है दिल्ली में पटाखों का प्रदूषण
चलनेवाला अपने सफ़र को सुहाना बना सकता है....।
ReplyDeleteए मंजिल , कुछ देर और मेरा इन्तेजार कर ,
ReplyDeleteइन टेढ़े-मेढे रास्तों से मुहोब्बत है मुझे |
एक तस्वीर के माध्यम से लिखा गया बहुत बारीक लेख | निसंदेह रास्ता सही हो तो मंजिल तक पहुँचने में आसानी रहती है |
सादर
सबसे पहले हेडर पर ही नज़र पड़ी, बहुत ख़ूबसूरत तस्वीर है।
ReplyDeleteऔर राह कोई भी मिले, उसे सही राह बना लेने की काबिलियत खुद में होनी चाहिए।
JCNovember 04, 2012 6:26 AM
ReplyDeleteडॉक्टर तारीफ़ जी, तस्वीर निसंदेह अत्यंत मनमोहक है - जंगल के बीच से गुजरता एक साफ़-सुथरा कंटक विहीन पथ किसी गंतव्य विशेष की ओर पथिक/ यात्री को ले जाता!!!
सीमित जीवन काल के भीतर मानव जगत में प्रत्येक व्यक्ति के उद्देश्य, अर्थात निर्धारित गंतव्य तक पहुँचने हेतु विभिन्न मार्गों को प्रतिबिंबित करते बचपन का एक खेल याद आ गया!!!
इस में अनेक पथों का जाल बना होता था और उस में खेलने वाला बच्चा यदि मार्ग के प्रवेश द्वार से आरम्भ करता था तो दूसरी ओर निकासी के द्वार पर, अर्थात गंतव्य स्थान पर फल रखा होता था... खेल में केवल एक मार्ग ही होता था जो सीधे फल तक पहुंचता था, शेष अन्य मार्ग कुछ दूर जा बंद हो जाते थे और फिर एक और नए मार्ग पर चलना पड़ता था ...और, फिर फिर खो जाने का भय रहता था... किन्तु इसे भाग्य कहें अथवा मन का रुझान कहें, अथवा आत्मा का मार्ग दर्शन, कि कुछ बच्चे सीधे सही मार्ग पर चल फल तक पहुँच जाते थे, जबकि अन्य अधिक देर भटकते रह, देर से ही भले, अंततोगत्वा पहुँच ही जाते थे...:)
राह चुन लेना अपने वश में कहा , मगर हमारे कर्म राह को सुगम बना दे ...
ReplyDeleteबात तो है !
तस्वीर कोई भी हो .. अर्थ अपना होता है ..
ReplyDeleteबहुत सटीक चिंतन है आपका
डॉ दराल साहब आप चीजों को बखूबी देखते परखते हैं और उससे बड़ी बात उसको बहुत ही खूबसूरती से परोसते हैं.
ReplyDeleteशुक्रिया रमाकांत जी.
Deleteउत्तम बात...एक बार फिर चले आईये यहाँ...
ReplyDeleteदेखते हैं .
Deleteसुहाना सफर और ये मौसम हसीं
ReplyDeleteहमे डर हैं हम खो ना जाए कही.
सुन्दर तस्वीर ……सुन्दर विचार
ReplyDeleteराह चुनी है, बढ़े चला चल,
ReplyDeleteओ मतवाले, यही सही है।
ReplyDeleteयूं ही कट जाएगा सफर साथ चलने से....
"सफ़र" हुआ सुहाना भले हुए हम "सफ़र"
ReplyDeleteराह वही सुगम है,
जरा जन्म से मुक्ति दिला दे,
बाकी है सब सिफर ....
सटीक कथन "कर्म ही राह
दिखलाता है, सुगम बनाता है ... तत्व परक ..
"हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए की हम जहाँ भी चलें,
राह की कठिनाइयाँ स्वयं दूर हो जाएँ , डगर पर सफ़र सुहाना लगे"
बहुत कुछ बतला दिया "डगर" की इस तस्वीर ने ....सुन्दर "दर्शन"
........सादर
दो गाम चलूँ मंजिल की तरफ
ReplyDeleteऔर सामने मंजिल आ जाए //
खुशनुमा अहसास!
हैडर बहुत सुंदर है ..... और राह की व्याख्या ने सच ही सोचने पर मजबूर कर दिया .... ज़िंदगी खुद ही राह चुन लेती है बस हम तो निरंतर चलते रहते हैं ...
ReplyDeleteसबसे बडी बात है मजिंल को पहचानना रास्ते तो खुद मिल जाँएगे
ReplyDeleteJCNovember 05, 2012 6:43 AM
Deleteजब कोई व्यक्ति किसी रोग से ग्रसित हो जाता है तो वो अपनी क्षमतानुसार किसी चिकित्सक के पास चला जाता है...
और, मान लीजिये जब वो उसे गोली दे कहता है कि तीन-तीन गोलियां पानी के साथ हर चार घंटे में एक सप्ताह ले लीजिये तो प्रश्न नहीं करता तीन क्यूँ चार क्यूँ नहीं, क्यूंकि उसे मालूम है कि डॉक्टर के पास कई वर्षों की पढ़ाई के साथ साथ कई वर्ष का उस क्षेत्र में अनुभव भी है... जिसे कोई भी आम आदमी चुटकी बजाते नहीं समझ सकता!!! आदि आदि...
ऐसे ही वर्षों की तपस्या और अनुभव के बाद हमारे ज्ञानी ध्यानी पूर्वज कह गए कि मानव जन्म का उद्देश्य केवल निराकार ब्रह्म (भगवान्) और उसके साकार रूपों को ही जानना है...
गीता में भी यह लिखा है, किन्तु अधिकतर आधुनिक बुद्धिजीवी उस पर आज आम तौर पर चर्चा नहीं करते क्यूंकि हमको भटकाने के लिए अनंत गंतव्य और उन तक पहुँचने के लिए असंख्य मार्ग धरा पर बिछे पड़े हैं ... और युवा तो पश्चिम की नक़ल कर आज कभी कभी सुनाई पड़ता है कहते कि वो भगवान् को मानता ही नहीं है!!!
"अलग अलग सब बतलाते हैं/ ... राह पकड़ तू एक चला चल/ पा जाएगा मधुशाला"!
जे सी जी , मेडिकल साइंस को तो फिर काफी हद तक मनुष्य ने समझ लिया है. लेकिन जिंदगी के रहस्य को अभी पूर्ण रूप से नहीं समझ पाए हैं . तभी तो मृत्यु पर कोई वश नहीं चलता. लेकिन जितना हो सके , जैसा की आपने भी कहा -- ज्ञानी ध्यानी लोगों के अनुभव से फायदा उठाना चाहिए.
Deleteहमारी भौतिक इन्द्रियाँ दोषपूर्ण हैं - किसी की कम तो किसी की अधिक - जिस कारण प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित ज्ञान अधूरा ही रहता है... किन्तु फिर भी यदि कोई 'भारत' में ही आदि काल से विभिन्न क्षेत्रों में चली आ रही विभिन्न प्रथा आदि को देखे तो पायेगा कि यहाँ लगभग हर वस्तु अथवा जीव को हर वर्ष पूजा जाता आ रहा है!!!
Delete'विदेशियों' को अजीब लगता है कि यहाँ मंदिर है जहां चूहों की पूजा होती है!!! विशेष अवसर पर वट वृक्ष पर सुहागनें धागा बाँध रही होती हैं, अथवा साँपों को दूध पिलाया जाता है!!! पत्थर से बनी मूर्तियों/ लिंग तक को पूजा जाता है, आदि आदि!!!...
और शायद कुछ लोग इनसे अनुमान लगा सकते हैं कि हिन्दू मान्यता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का उद्देश्य, विभिन्न रूपों में से किसी भी माध्यम से उनको भगवान् का ही प्रतिरूप मान, निराकार शक्ति रुपी भगवान् तक पहुंचना रहा होगा!!!
खूबसूरत सन्देश ..खूबसूरत चित्र के माध्यम से.
ReplyDeleteइस चित्र के विषय में मैं भी पूछना चाह रही थी पर फिर भूल जाती थी ,बहुत ही जबरदस्त चित्र है उसके माध्यम से सही पते की बात भी कही है बहुत बढ़िया प्रस्तुति बधाई आपको
ReplyDeleteJCNovember 06, 2012 7:09 AM
ReplyDeleteआधुनिक वैज्ञानिक कुछेक सदियों के शोध के बाद जान पाए हैं कि यद्यपि मानव जाति प्रकृति में सर्वश्रेष्ठ रचना प्रतीत होती है इसका पृथ्वी रुपी स्टेज पर पदार्पण केवल कुछ लाख वर्ष पूर्व ही हुवा है जबकि आम सूक्षमाणु, बैक्टीरिया, लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले धरा पर आ गया था... और पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति प्राकृतिक है, जैसे एक से क्रोमोसोम से आरम्भ कर कालान्तर में यदि एक वृक्ष बन गया तो दूसरा मानव!!!...
१९८० के दशक से ही अब कुछ वैज्ञानिक भी जीव की क्लिष्ट रासायनिक संरचना देख पृथ्वी पर जीवन को किसी अत्यन्त बुद्धिमान जीव का डिजाइन मानने लगे हैं यद्यपि वे अभी भी सम्पूर्ण सृष्टि को एक ही शक्ति/ 'भगवान्' द्वारा रचित हुवा मानने के लिए तैयार नहीं हैं...
बाधाएं तो प्रत्येक मार्ग में ही आएंगी, हमें ही मार्ग की बाधाओं को दूर करना है और मार्ग को प्रशस्त भी करना है।
ReplyDeleteअसल बात है चलना ,राही है तू चलता जा ,हर मुश्किल आसान यहाँ .शुक्रिया आपकी टिपण्णी हमारी धरोहर है .
ReplyDeleteआह! मैं उस महफिल से महरूम रहा जो मेरे जिक्र से शुरू हुई !! :(
ReplyDeleteचलने के बारे में कभी लिखा था..
चलते-चलते मिल जाते हैं
खो जाते हैं चलते-चलते
जहाँ न हो चौराहा कोई
ऐसी राह! मगर कहाँ है?
इतनी लम्बी और सुंदर सड़क देखकर तो कुछ और लिखना पड़ेगा। :)