थोड़े बड़े हुए तो नाड़िया वैद्ध के बारे में जाना । बहुत पहुंचे हुए वैद --सिर्फ नाड़ी देखकर ही सारी बिमारियों का इलाज करने वाले । सोचकर ही हैरानी होती थी --यह ऐसे कैसे जान लेते हैं सब ।
डॉक्टर बने तो पता चला --नाड़ी देख कर क्या पता चलता है । और क्या नहीं ।
नाड़ी यानि पल्स --डॉक्टर आम तौर पर रेडियल पल्स का इस्तेमाल करते हैं , रोगी के रोग के बारे में जानने के लिए । इसे हाथ के अंगूठे से थोडा ऊपर उंगली से महसूस किया जाता है ।
नाड़ी से क्या पता चलता है ?
* नाड़ी की गति --सामान्य या तेज या धीमी .
* नाड़ी की नियमितता .
* वोल्यूम और पल्स प्रेशर .
* विशेष किस्म की पल्स .
गति :
फास्ट पल्स ( टेकिकार्डिया ) यानि नाड़ी का तेज चलना । इसके मुख्य कारण होते हैं :
* बुखार --आम तौर पर एक डिग्री फारेन्हाईट तापमान बढ़ने से पल्स १० तक बढ़ जाती है ।
* खून की कमी --एनीमिया .
* हाईपरथायरायडिज्म --इसमें सोते हुए भी पल्स तेज चलती है ।
* नर्वसनेस , बेचैनी, डर
* हाई या लो बी पी
* डीहाईडरेशन ( शरीर में पानी की कमी )
* एक्सरसाइज
* सिगरेट और शराब का अत्यधिक सेवन
* विशेष हृदय रोग
स्लो पल्स के कारण :
* हाईपोथायरायडिज्म
* एथलीट्स
* कुछ दवाईयों का असर जैसे बीटा ब्लोकर्स
* हार्ट ब्लॉक तथा अन्य हृदय रोग
* पोइजनिंग
* टायफोइड ( मियादी बुखार )
इस तरह नाड़ी से मुख्य रूप से सिर्फ नाड़ी का तेज या धीमा होना ही जाना जा सकता है । यह जानकारी कुछ रोगों के निदान में सहायक सिद्ध होती है ।
लेकिन एक जनरल फिजिशियन इससे ज्यादा कुछ नहीं जान सकता । हालाँकि कार्डियोलोजिस्ट कुछ विशेष परिस्थितयों में हृदय रोग से सम्बंधित जानकारी जुटा सकते हैं ।
अब आप ही सोचिये कि एक वैद्ध जो अक्सर अंगूठा छाप या दो चार क्लास पास होता था , उसे नाड़ी देख कर क्या पता चलता होगा ।
* कुछ दवाईयों का असर जैसे बीटा ब्लोकर्स
* हार्ट ब्लॉक तथा अन्य हृदय रोग
* पोइजनिंग
* टायफोइड ( मियादी बुखार )
इस तरह नाड़ी से मुख्य रूप से सिर्फ नाड़ी का तेज या धीमा होना ही जाना जा सकता है । यह जानकारी कुछ रोगों के निदान में सहायक सिद्ध होती है ।
लेकिन एक जनरल फिजिशियन इससे ज्यादा कुछ नहीं जान सकता । हालाँकि कार्डियोलोजिस्ट कुछ विशेष परिस्थितयों में हृदय रोग से सम्बंधित जानकारी जुटा सकते हैं ।
अब आप ही सोचिये कि एक वैद्ध जो अक्सर अंगूठा छाप या दो चार क्लास पास होता था , उसे नाड़ी देख कर क्या पता चलता होगा ।
लेकिन हमारी जनता भी इतनी भोली रही है कि बस वैद्ध जी ने कहा और हमने मान लिया । हालाँकि उपचार में विश्वास भी बहुत काम आता है लेकिन उसके लिए भी कोई तो आधार होना चाहिए ।
विशेष :
अक्सर लोगों को कहते सुनते हैं कि --दिल धड़कने लगा । अब यह किसी सुंदरी को देख कर हो या किसी भयंकर दृश्य को देख कर । लेकिन अचानक दिल की धड़कन महसूस होने लगती है । वैसे तो दिल तब तक धड़कता है जब तक साँस है । लेकिन साँस की तरह दिल की धड़कन का भी तभी पता चलता है , जब यह अचानक तेज हो जाये । इसे पैल्पिटेशन ( palpitation) कहते हैं ।
यदि यह लगातार रहे और अपने आप ठीक न हो तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह किसी गंभीर रोग का लक्षण हो सकता है ।
अक्सर लोगों को कहते सुनते हैं कि --दिल धड़कने लगा । अब यह किसी सुंदरी को देख कर हो या किसी भयंकर दृश्य को देख कर । लेकिन अचानक दिल की धड़कन महसूस होने लगती है । वैसे तो दिल तब तक धड़कता है जब तक साँस है । लेकिन साँस की तरह दिल की धड़कन का भी तभी पता चलता है , जब यह अचानक तेज हो जाये । इसे पैल्पिटेशन ( palpitation) कहते हैं ।
यदि यह लगातार रहे और अपने आप ठीक न हो तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह किसी गंभीर रोग का लक्षण हो सकता है ।
जानकारी भरी पोस्ट और नसीहत ...अमल करने की आवश्यकता है बस ....!
ReplyDeleteआज का लेख जानकारी भरा हुआ तो है पुराने समय के वैध भी किसी अंग्रेजी हकीम (doctor) से कम ना थे, आज का लेख वीरु जी की तरह बेहद ही संग्रहनीय भी है। वैसे अंग्रेजों के आने से पहले तक सारी स्वास्थय जिम्मेदारी इन्ही हकीम वैध के भरोसे ही तो थी।
ReplyDeleteऔर वो क्या होता था डॉ.साहिब जो परदे के अंदर महिला के हाथ में बंधे धागे से ही हकीम जी का नब्ज टटोल कर रोग बतलाना.
ReplyDeleteआपने सुन्दर जानकारी दी है इस लेख में.
बहुत बहुत आभार जी.
यहां वैद्य का वैज्ञानिक परामर्श मिल जाता है.
ReplyDeleteयह भी एक अलग अंदाज है, मर्ज की दवा बताने का, डा० साहब !
ReplyDeleteबिना डाक्टर की फीस दिए, बड़े काम की जानकारी मिल गयी !
ReplyDeleteआभार आपका !
दिल धडकने लगा चांदनी रात में...
ReplyDeleteक्या करें उम्र ही ऐसी है, हा हा हा...
कहा जाता है की हरेक के मस्तिष्क के कनेक्शन अलग अलग होते हैं... हर गैलेक्सी समान हमारी गैलेक्सी को भी आरम्भ में एक पतली प्लेट समान, (वास्तविक शून्य, काशी को केंद्र मान, वर्तमान में ८२.५ डिग्री पूर्व ग्रीनविच गाँव से) पूर्व-पश्चिम फैली माना / जाना गया... और उत्पत्ति से इसे वर्तमान में भी एक बीच में मोटी (लंबोदर?) उत्तर-दक्षिण भी विस्तारित जाना गया है, किन्तु किनारे की ओर अभी भी पतली और हमारे सौर-मंडल को इसके किनारे की ओर जाना गया है...
ReplyDeleteजैसे सेंट्रीफ्यूज के बाहरी ओर मंथन से मक्खन बाहरी ओर जाता है, जिस कारण कृष्ण गोकुल में यदुवंशी दर्शाए जाते हैं :)
यह कथा-कहानियों, पुरानों, आदि का देश, जहां शिव जी पार्वती को कहानी के माध्यम से सत्य बताते हैं,व्यास मुनि गणेश को 'महाभारत' लिखाते हैं, इत्यादि इत्यादि, अर्थात 'पौराणिक भारत' देश विचित्र है... पूर्व दिशा को आरम्भ मान, पश्चिम को भी को भी, किन्तु दो नम्बरी! और उसी प्रकार दक्षिण-उत्तर दिशाओं को नंबर तीन ('३', ॐ), किन्तु सर्वोच्च स्थान उत्तर दिशा को दिया गया जहां हिमालय है, कैलाश-मानसरोवर है, और शिवजी का परिवार आज भी चोटी पर बैठ आनंद ही नहीं परमानन्द की स्थिति मैं अनादी काल से बैठा है और अनंत तक इसी स्थिति में रहेगा :)
केवल एक कहानी जो समाचार पत्रों में भी पढ़ी थी -
एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी...
अर्थी उठा 'राम नाम सत्य' पुकारते शोक संतप्त रिश्तेदार और अन्य शुभचिंतक श्मशान घात पहुँच गए,...
परम्परावत बेटे ने पंडित के निर्देश पर क्रिया=कर्म कर आत्मा की सूचना हेतु एक घट अर्थात घड़े में पानी भर, उसमें कंकड़ मार छिद्र कर, चिता पर रखे शव के चारों ओर घुमा खाली कर, तदोपरांत चिता को अग्नि दे दी गयी...
(किन्तु मुर्दा बेटा वास्तव में ही जैसे मस्त था!) मृत व्यक्ति गर्मी पा उठ खड़ा हुआ, और सभी भूत भूत चिल्ला भाग खड़े हुए :)...
अब ह्रदय को दो नम्बरी जान ह्रदय रुक काये तो उसे क्लिनिकल डैथ कहा जाता है, अब मृत्यु तभी मानी जाती है जब मस्तिष्क भी काम करना बंद करदे (ब्रेन डैड)... पश्चिम अभी भी सीख रहा है, किन्तु पूर्व को मूर्ख समझता / कहता है :)
सुन्दर जानकारी दी है आपने.....आपका आभार डाक्टर साहब
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी मिली ... पोस्ट का शीर्षक तो कुछ और ही कह रहा था ..
ReplyDeleteकाफी सारी नयी जानकारी मिली ... आपकी राय पर अमल जरुर करेंगे ... आभार !
ReplyDeletevistrit jaankari ...
ReplyDeleteआगरा के नामी डाक्टरों मे शामिल रहे एक एलोपैथिक डा साहब नाड़ी भी देखते थे और होम्योपैथी दावा भी सजेस्ट कर देते थे। एस एन मेडीकल कालेज आगरा के मेडीसन विभागाध्यक्ष डा हाज़रा तो घर पर होम्योपैथी से ही उपचार करते हैं।
ReplyDeleteअंगूठा छाप के बारे मे तो नहीं कह सकते परंतु 'नाड़ी परीक्षण'आयुर्वेद जो पंचम वेद है के अनुसार समस्त रोगों की जानकारी संभव है। दोनों हाथों की नाड़ी देखना चाहिए तभी सही निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। अंगूठे के पास वाली तर्जनी अंगुली पर'वात' और बगल की मध्यमा उंगली पर 'कफ',उसके बाद वाली अनामिका उंगली पर 'पित्त'का आभास होता है। वायु +आकाश =वात,प्रथिवी +जल =कफ,अग्नि=पित्त । धमक की गिनती से रोग का अनुमान होता है दोनों या तीनों अंगुलियों पर एक साथ तेज गतिविधि हो तो भयंकरता की सूचना रहती है।अधिकतर एलोपैथी वाले 'नाच न आवे आँगन टेढ़ा'के कारण 'नाड़ी परीक्षण'का नाहक मज़ाक उड़ाते हैं। परंतु सुयोग्य एलोपैथी विशेज्ञ इसका खुद सहारा लेते हैं।
माथुर जी , आयुर्वेद और होमियोपेथी दोनों मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियाँ हैं . इनमे भी एलोपेथी की तरह नाड़ी देखना सिखाया जाता है .
ReplyDeleteलेकिन वैद्ध हकीमों को कौन सिखाता है . इन अनपढ़ लोगों को क्वेक्स कहा जाता है जो जान के दुश्मन साबित हो सकते हैं .
डॉ हाजरा को मैं भी जनता हूँ .
लेकिन आपकी जानकारी के लिए इतना कहना चाहूँगा की अब दूसरी पद्धति में इलाज करना गैर कानूनी है . यानि एक एलोपेथिक डॉक्टर होमियो या आयुर्वेदिक दवाएं इस्तेमाल नहीं कर सकता .
जैसा की मैंने बताया , नाड़ी का इस्तेमाल कुछ ही दशाओं में हो सकता है , वह भी एक सपोर्टिव एविडेंस के रूप में .
राकेश जी , पर्दे के भीतर तो बहुत कुछ अवांछित हो जाता है .
नसीरुद्दीन शाह की एक फिल्म आई थी आधारशिला...उसमें नसीर का एक दोस्त होता है जो पढ़ा लिखा होने के बावजूद शहर में बेरोज़गारी से तंग आकर गांव चला जाता है...वहां वो अपने नाम के साथ डॉक्टर जोड़कर क्लीनिक खोल लेता है...नसीर उससे मिलने जाते हैं तो देखते हैं कि एक मरीज बैठा है और उसने पेपरवेट कान से लगा रखा है...
ReplyDeleteनकली डॉक्टर नसीर से बात भी करता रहता है और मरीज से पूछता रहता है बुखार उतर रहा है, मरीज कहता है-उतर रहा है...उसी दुकान पर एक छोटा सा खराब मिनी फ्रिज होता है...फ्रिज के बाहर लिखा होता है 'x-रा'...अब डॉक्टर साहब मरीज को फ्रिज के सामने खड़ा कर दरवाज़ा कुछ देर के लिए खोलते हैं...फ्रिज के अंदर बल्ब जल रहा होता है...फ्रिज बंद कर डॉक्टर साहब फ्रिज के पीछे से एक काली फिल्म (कहीं शहर से लाई हुई पुरानी फिल्म) निकालते हैं...और कहते हैं हो गया तेरा 'x-रा'....अब वो नकली डॉक्टर इसी तरह मरीजों को बेवकूफ बना कर अपनी रोजीरोटी का जुगाड़ करता है...
जय हिंद...
bahut achchi jaankari di hai.aabhar.
ReplyDeleteहिन्दुस्तानी जनता विश्वास पर बहुत कुछ मान लेती है.
ReplyDeleteजानकारी परक पोस्ट के लिए आभार.
डॉक्टर साहिब, आपने कहा. "...आपकी जानकारी के लिए इतना कहना चाहूँगा की अब दूसरी पद्धति में इलाज करना गैर कानूनी है . यानि एक एलोपेथिक डॉक्टर होमियो या आयुर्वेदिक दवाएं इस्तेमाल नहीं कर सकता ..."
ReplyDeleteक्या वो स्वयं अपने लिए, अथवा अपने परिवार के सदस्यों के लिए भी, इनका उपयोग नहीं कर सकता? या आपका अर्थ है की कोई प्रैक्टिसिंग डॉक्टर इन को अपने बीमारों के लिए प्रीस्क्राइब नहीं कर सकता?
जी हाँ , जे सी जी , यह प्रैक्टिसिंग डॉक्टर्स के लिए है । सरकारी डॉक्टरों समेत ।
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, सूचना हेतु धन्यवाद! जहां तक रोगी की इच्छा है, वो तो यह है कि उसके शारीरिक / मानसिक / आद्यात्मिक कष्ट का निवारण किसी भी प्रकार शीघ्र हो जाए, क्यूंकि घर का एक सदस्य बीमार पद जाए तो पूरा परिवार के सदस्य मानसिक रूप से बीमार हो जाता है... और कुछ ला-इलाज बीमारियों के कारण समय बहुत खिंच जाता है केवल, हताश, चिकित्सकों के फेरे लगाते ... इसी कारण, यदि कोई शुभ-चिन्तक कह दे कि कोई 'बाबा' / 'झोला छाप' ठीक कर सकता है तो 'पढ़ा-लिखा' भी संभव है भटक जाए...ऐसे में किसी के भी दिल की धड़कन बढ़ना शायद स्वभाविक है, और मन को स्थिर करना / सदा रहना ही इलाज़ है (जैसा गीता में श्री कृष्ण भी कह गए की हम उन पर आत्म समर्पण करें) ?
ReplyDeleteअक्सर लोगों को कहते सुनते हैं कि --दिल धड़कने लगा । अब यह किसी सुंदरी को देख कर हो या किसी भयंकर दृश्य को देख कर ।
ReplyDeleteजानकारी तो जोरदार रही, पुराने समय में बैद्यजी के अलावा कोई और बीमारी ठीक करने वाला भी नही होता था. हो सकता है विश्वास ही काम आता हो और सबसे बडी बात यह कि कुछ रोगों का इलाज शरीर स्वयं ही पांच सात दिन में अपने आप कर लेता है.
वैसे हमारी पल्स बीपी हाई हों या लो हो ताई के लठ्ठ की याद आते ही अपने आप ठीक हो जाते हैं और याद से ठीक ना हो तो दो चार खाकर अपने लेबल में आ जाते हैं.:)
ये सबसे पक्का इलाज है, किसी को गम्भीर बीमारी हो तो अपनी बीरबानी से लठ्ठ खाकर देखले.:)
रामराम
बहुत ही रोचक तरीके से अच्छी जानकारी दी ...शुक्रिया
ReplyDeleteडॉ.साहिब ,नमस्कार !
ReplyDeleteदिल वालों को...दिल की जानकारी ....काश! आप पहले मिले होते ..
आने के वक्त ,तो आप कहीं के कहीं रहे
आप तब आये ,जब हम ही नही रहे...हा हा हा |
फिर भी आभार !
एक नज़र इधर भी
बढ़िया पोस्ट लिखी डाक्टर साहब आपने। पल्स रेट के बारे में यह भी लिख देते कि कितना होना सही है ? अधिक क्या है ? कम क्या है? डाक्टर के पास जाओ तो वे नाड़ी छू कर पल्स रेट गिन लेते हैं। यह कैसे गिनते हैं ? क्या हम भी गिन सकते हैं ? पल्स रेट गिनना भी सिखा देते तो मजा आ जाता।
ReplyDeleteबनारस में अकथा नामक स्थान पर एक वैद्य हैं। नाम शायद दिनेश शर्मा है। आयूर्वैदिक दवाई ही देते हैं। अंग्रेजी नहीं देते। दावा करते हैं कि नाड़ी देखकर आपके शरीर में कौन सी बिमारी है शर्तिया बता देंगे। लोग जाते भी हैं। मुझे यकीन नहीं होता। उनके पास भीड़ भी लगी होती है। लोग दिखाने के लिए नम्बर लगाते हैं। क्या उनका दावा सही होने की संभावना है?
देवेन्द्र पाण्डे जी , अकेले नाड़ी देखकर किसी रोग का पता नहीं चलता ।
ReplyDeleteरोगियों को बेवक़ूफ़ बनाने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं ।
सामान्य पल्स ७२ / मिनट होती है । ६० से नीचे कम और ८० से ज्यादा अधिक मानी जाती है । कम और ज्यादा होने के कारण बताये जा चुके हैं ।
पल्स नोट करने के लिए दायें हाथ की उँगलियों को बाएं बाजु पर हथेली से ठीक ऊपर ventral aspect पर lateral side में रखें और एक मिनट तक काउंट करें । ( पढने से ज्यादा देखकर बेहतर समझ आएगा ) ।
वाह! गिन लिया। मेरी पल्स रेट 66 है। दो बार गिना एक बार 65 एक बार 66। आपने आज पल्स रेट देखना सिखा दिया।
ReplyDeleteएक बार फिर बहुत सुंदर जानकारी जो सबके लिये उपयोगी है. आपके लेख जन कल्याण के लिए निधि हैं.
ReplyDeleteहमने सुना है कि पर्दानशीन औरतों की नाडी तो धागा बांध कर भी दूर बैठे वैद्य उपचार करते थे और सफल भी होते थे!
ReplyDeleteप्रशाद जी , सुनी सुनाई बातें अक्सर गलत होती हैं । यह तो बिल्कुल ही गलत है ।
ReplyDeleteगाँव हो या शहर आज भी अगर कोई डॉक्टर मरीज का हाथ पकड़ कर नाड़ी नही देखता तो मरीज संतुष्ट नहीं होता इलाज से।
ReplyDeleteइस लिए सभी डॉक्टर आज भी मरीज की दुखती रग पर हाथ रखते है। :)
डॉक्टर साहिब, आपने ऐक्यूपंक्चर (ए) और एक्युप्रेशर (बी) का नाम सुना होगा...
ReplyDeleteपत्नी को बहुत खून की कमी हो गयी थी अर्थ्रायिटिस के कारण जब हम गुवाहाटी में '८० के दशक में पहुंचे थे और चार वर्ष ऐलोपैथी कम नहीं आ रही थी और अब होमियोपैथी की गोलियां ल्हिला रहे थे... जिससे सूजन तो कम हुई किन्तु एनीमिया हो गया था...
तब पता चला एक लोकल असमी पडोसी से कि (ए) बहुत प्रचलित था...
वहाँ कामाख्या स्टेशन के निकट रेलवे कार्यालय के कुछ बंगाली कर्मचारी शाम को बाज़ार में प्रैक्टिस करते थे...
पत्नी की एक सप्ताह पश्चात ही सूइयों के माध्यम से एनीमिया में सुधार हो गया, और वो आराम से फर्श पर बैठ आराम से खड़ी भी होने लग गयी... किन्तु फिर उसके बाद माह दो माह यद्यपि इलाज चला कुछ विशेष लाभ नहीं हो रहा था...
एक शाम में एक पुस्तक की दूकान में ग्रीटिंग कार्ड लेने गया तो 'संयोगवश' मेरी दृष्टि एक अमेरिकन डॉक्टर की (बी) से सम्बंधित केवल एक पुस्तक के स्पाइन पर लिखे शीर्षक पर पड़ी... मैंने वो पुस्तक भी खरीद ली कार्ड के साथ...
उस से मुझे पता चला कि इन प्राचीन पद्दति के पीछे कैसे आदमी को एक इलेक्ट्रो-कैमिकल पुतला माना गया था प्राचीन काल में... और हमारी उँगलियों से आरम्भ कर विभिन्न शारीरिक अंगों, ह्रदय, पेट, गौल ब्लैडर, ब्लैडर, फेफड़े, छोटी आंत, बड़ी आंत आदि से सम्बंधित १२ चैनल दोनों हाथों में जाल द्वारा दर्शाया गया है - जिनमें हरेक चैनल में बिंदु (खिड़की) के नंबर दिए हुए थे जिनसे वातावरण से विभिन्न बिन्दुओं से ऊर्जा शरीर के भीतर जा अंग विशेष को शक्ति देती हैं... किन्तु कोई खिड़की / खिड़कियाँ बंद हो जाने से किसी विशेष बीमारी के लक्षण दिखने लगते थे... और उस पुस्तक में दर्शाया गया है कि कैसे सिद्ध चिकित्सक बीमारी के अनुसार विभिन्न चैनलों में कुछेक बिन्दुओं में सुइयों अथवा अपने अंगूठे अथवा बीच कि ऊँगली आदि के दबाव से ऊर्जा भीतर पहुंचाते हैं... इत्यादि इत्यादि... किन्तु पुस्तकी ज्ञान तो हो सकता है किन्तु बिना वर्षों के अभ्यास कि आवश्यकता है...
पुनश्च - मैं कहना चाह रहा था कि बिना गुरु और अभ्यास के हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि हमारे पूर्वज हमारी तुलना में अत्यधिक गहराई में जा मोती पा लिए थे, और आज हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि, जैसे मुझे मेरे एक मित्र और सहकर्मी ने बताया था की धर्मशाला वाले तिब्बती डॉक्टर नाडी कलाई के अतिरिक्त सभी उँगलियों पर भी देखते थे... इस कारण अब, जैसे एक्यूपंक्चर की पुस्तकानुसार छोटी ऊँगली के भीतरी भाग में, उपर की लाइन के अंदरूनी किनारे में, ह्रदय का नौवां (९) और अंतिम बिंदु है, और बीच वाली ऊँगली में पैरिकार्डियम का बिंदु, अंगूठे में फेफड़े का,,, तो संभव है तीनों की नाड़ियों से ह्रदय (सीने) का कुल हाल पता चल सकता होगा...
ReplyDeleteकिन्तु काल के प्रभाव से हमारी बुद्धि और ज्ञान बौने रह गए हैं :(
आप तो नाडी विशारद हैं! ये जे सी भाई की बातों की व्याख्या /भाष्य कृपा कर मेरे लिए करेगें -नहीं समझ पा रहा हूँ !
ReplyDeleteआपने टिप्पणी प्रकाशित की है तो जाहिर है आपको अर्थबोध भी हुआ होगा -तब बताईये न प्लीज मुझे भी !
डॉक्टर साहिब, मिश्रा जी,मुझे सिविल इंजीनियर होने के नाते कभी किसी ने कहा था मैं ईंट पत्थर से सम्बन्ध रखने वाला हिंदी साहित्य में जयदेव आदि की रचनाओं के बारे में क्या जान सकता हूँ?! हिंदी मैंने कम पढ़ी है, क्षमा प्रार्थी हूँ... "मैं शायर तो नहीं,,,"...
ReplyDeleteऔर मेरी बेटी नाराज़ होती थी कि मैं किसी भी विषय को भगवान् से क्यूँ जोड़ देता हूँ?!
आज जब उसकी बेटी कुछ दामी वस्तुओं की मांग करती है, उसे तब पता चलता है 'मैं ऐसा क्यूँ हूँ ::)
'भारत' में जन्म ले, बचपन से कथा-कहानियों के माध्यम से, कम से कम मुझे, सभी में रहस्यवाद की झलक ही दिखाई देती है... "यशोदा ने बाल-कृष्ण के मुंह में सम्पूर्ण भण्डार देखा" ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी थी...
उदाहरणतया, कृष्ण की बांसुरी कहने से (जो फेफड़ों में सांस भर मुंह से फूंक मार बजायी जाती है, जैसे पंडित हरी प्रसाद चौरसिया जी अथवा उस्ताद बिस्मिल्ला खान शहनाई वाले, आदि आदि), मुझे हर व्यक्ति, (जैसा योगियों ने 'अष्ट-चक्र' कह मेरु दंड पर बिंदु दर्शाए), मुझे कृष्ण की बांसुरी दिखाई देता है,,, विभिन्न रस में कोई गीत गाते / गीता का पाठ करते, आदि...
वैसे तो हमारे सौर-मंडल में अनंत सदस्य हैं, और धरा ने गगन-चुम्बी इमारतों को भ८इ धरा है, 'अष्ट चक्र और नवग्रह' को ध्यान में रख, आठ मंजिली इमारत और उसमें अलग अलग तल पर रहते व्यक्ति मुझे मूलाधार में मंगल ग्रह (लाल और पीले रंग के योग से सिंदूरी गणेश) से आठवें तल में सबसे ऊपर चन्द्रमा (पीताम्बर कृष्ण/ पार्वती) का सार दिखते हैं, चौथे तल में पेट में सूर्य का (सफ़ेद रंग वाली किरणों का स्रोत, जिस रंग में सभी रंग समाये हैं, राहू (पांचवे तल में)-केतु (तीसरे तल में) भी, और कंठ में, छठे तल में विषैले शुक्र ग्रह का सार, आदि आदि... और, अंत में सातवें तल में मेरे प्रिय बनारसी शिव (गंगाधर / चन्द्रशेखर, अर्थात पृथ्वी) - तीसरे नेत्र वाले अर्थात वास्तविक दृष्टा (और उसके पशु जगत के अनंत आँखें, किन्तु बाहरी ही खुली, भीतरी बंद अथवा अध खुली, ऐन्तार्क्तिका के आकाश में थोड़े से खुले छिद्र समान :) !...
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ReplyDeleteजो 'झोला-छाप' हैं , वे चिकित्सक नहीं हैं। अतः झोला-छाप को आयुर्वेद के चिकित्सकों के साथ जोड़ा जाना अनुचित है। अलोपथी वाले भी झोला-छाप होते हैं । इंजिनियर , आईएस और राजनीतिग्य भी झोला-छाप होते हैं।
जिनके पास समुचित ज्ञान की कमी है , वे सभी झोला-छाप हैं , अतः किसी एक पैथी को झोलाछाप करार देना अनुचित है।
आज ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है की हम अपने वेदों का सम्मान नहीं करते और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को खोते जा रहे हैं , जिस पर दुसरे देश के लोग शोध करके , अपने नाम से "पेटेंट" ले ले रहे हैं। अथर्ववेद के उपवेद 'आयुर्वेद' में वे रोग और व्याधि भी वर्णित हैं , जिनको १९ वीं शाताबियो में आया अलोपैथ अभी ढूंढ भी नहीं सका है।
एलोपैथी , होमिओपैथी , आयुर्वेद तीनों का अपना विशिष्ट स्थान है। तीनों पद्धातोयों का पूरा सम्मान होना चाहिए। किसी पद्धति को कमतर आंकना हमारी भूल और अहंकार का द्योत्तक है।
पाठकों की जानकारी के लिए --
AFMC (आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज ) ने अपने चिकित्सा पाठ्यक्रम में आयुर्वेद की 'चरक संहिता' पिछले १० वर्षों से शामिल कर ली है। आज जिन असाध्य रोगों की चिकित्सा आयुर्वेद में संभव है , वह एलोपैथ द्वारा संभव नहीं है।
किसी को सही नाडी परिक्षण ही न आये तो इसमें चिकित्सक की अज्ञानता है , लेकिन नाडी -परीक्षण द्वारा एक से एक असाध्य रोगों को पहचाना और उनकी चिकित्सा करना संभव है । अफ़सोस तो यही है की , इतनी बड़ी विधा और ज्ञान विलुप्त हो रहा है।
ज़रुरत है इसे विकसित करने की , इसपर शोध की। इसे जानने की और इसके द्वारा लाभ लेने की।
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yah sahi hai ki ayurved mein nadi pariksha ke dvara samast rogon ka nidan kiya ja sakata hai, vashrte vaidya ko nadi ka sahi gyan ho. Nadi Pariksha pustak ko avashya padhna chahiye. Allopathy vale doctor isase anbhigya hain kyon ki unhaen yeh padhaya hi nahin gaya hai. vastav mein ve jitana janate hain gyan ko utana hi manate hain. usase adhik ko ve galat manate hain.
DeleteVastavukata`hai ayurved ke gyan ko adhik se adhik arjan karke prasar karane ki.
yah sahi hai ki ayurved mein nadi pariksha ke dvara samast rogon ka nidan kiya ja sakata hai, vashrte vaidya ko nadi ka sahi gyan ho. Nadi Pariksha pustak ko avashya padhna chahiye. Allopathy vale doctor isase anbhigya hain kyon ki unhaen yeh padhaya hi nahin gaya hai. vastav mein ve jitana janate hain gyan ko utana hi manate hain. usase adhik ko ve galat manate hain.
DeleteVastavukata`hai ayurved ke gyan ko adhik se adhik arjan karke prasar karane ki.
let us not get confused between Ayurveda and Allopathy. both are recognized pathies. but if an Ayurveda doctor practices Allopathy, then as per definition it is called Quackery.moreover, any non qualified person practicing medicine is also a quack.
Delete.
ReplyDeleteTo know about "Nadi-pariksha' in detail, kindly go though the link give below.
http://www.ayushveda.com/astha-vidh-pariksha/nadi-pariksha.htm
thanks and regards,
.
बढ़िया जानकारी मिली.
ReplyDeleteधन्यवाद दिव्या!
ReplyDeleteऐसा प्रतीत होता है कि किसी काल में, पूर्व हो अथवा पश्चिम, मानव को किसी शक्ति रुपी जीव, अनंत शून्य, 'ब्रह्माण्ड का मॉडेल', अथवा भगवांन का प्रिबिम्ब (इमेज) जाना गया...
किन्तु क्यूंकि मानव कार्यक्षमता काल के साथ घटती है जाना गया है, जिस कारण मानव की मान्यताएं युग के साथ बदल जाती हैं...
वर्तमान में आदमी को प्रकृति से भिन्न माना जाता आ रहा है...और हाल ही, '८० के दशक से, परिवर्तन तो आया है पश्चिम की सोच में भी...अब प्रकृति / मानव आदि प्राणी को एक ग्रैंड डिजाइन का भाग माना तो जा रहा है, किन्तु इसे किसी परम ज्ञानी, निराकार प्राणी, द्वारा रचित मानने में वैज्ञानिक हिचक रहे हैं...
आयुर्वेद मैं २४ नाडी समान १२-१२ चैनल हाथों में ऐक्युपुन्क्चर में भी माना जाता है... और ऊर्जा शरीर में सीधे पहुंचाने का प्रयास किया गया है, धातु से बनी सुइयों के माध्यम से, स्पिरिट से साफ़ कर, कभी कभी जले सिगारनुमा मोक्षा से भी गर्मी पहुंचा...
और क्यूंकि प्रकृति में उपलब्ध ऊर्जा का बीज ध्वनि (ॐ) को माना गया है, 'हिन्दुओं' ने शक्ति को पहुंचाने हेतु मन्त्र, तंत्र, और यंत्र, सभी अथवा एक किसी माध्यम का उपयोग भी सुझाया है... जिस कारन आज भी इस प्रकार के उपाय में रत, परम्परानुसार कहीं कहीं आज भी दिखाई पड़ सकते हैं...
जो पुस्तक मैंने पढ़ी उस की सूचना मैं नीचे दे रहा हूँ -
Acupuncture Without Needles
by JV Cerney, A.B,. D.M., D.P.M., D.C.
D.B. Taraporewala Sons & Co. Pvt., Ltd.
(First Indian Reprint 1977)
जे सी जी , एकुपंक्चर पर एलोपेथी में भी शोध हुआ है और इसे प्रभावकारी भी पाया गया है । लेकिन इससे क्रोनिक रोगों का उपचार करने में सहायक पाया गया है और सभी दवाएं साथ साथ लेनी पड़ती हैं ।
ReplyDeleteअरविन्द जी , जे सी जी की सारी बातें तो तभी समझ आएँगी जब हम भी इनके जितने बड़े हो जायेंगे ।
किसी पद्धति को कमतर आंकना हमारी भूल और अहंकार का द्योत्तक है---पद्धतियों के बारे में कौन कह रहा है ।
यहाँ तो बात झोला छाप वैद्ध हकीमों की हो रही है ।
आयुष के अंतर्गत सरकारी अस्पतालोंमें भी तीनों पद्धतियों द्वारा इलाज किया जा रहा है ।
लेकिन सिर्फ नाड़ी देखकर इलाज तो अनाड़ी ही कर सकते हैं ।
बहुत उपयोगी जानकारी दी है डाक्टर साहब अपने ... सीधी भाषा में अगर समझ हो तो कई बातें और जीवन आसान हो जाता है ... इंसान घबराता नहीं है ...
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी, जो फुटबाल हजारों को आनंद देती है, उसको कितनी लातें पड़ती हैं वो कोई नहीं देखता (और हमारी पृथ्वी भी गेंद समान ही है :)
ReplyDeleteहॉकी की गेंद पुलिस की लाठी समान पिटती है, और पंजाब में इस खेल के खिलाड़ी अधिकतर पुलिस की सेवा में कार्यरत लगते हैं?
ReplyDeleteक्रिकेट का खेल तो मानव जीवन का सबसे निकट का प्रतिबिम्ब है...
टेबल टेनिस की गेंद छोटी होती है, पृथ्वी की तुलना में चाँद समान छोटी, और मेज पर खेली जाती है जिसमें छः छिद्र, छः जेबें होती हैं, वैसे ही जैसे अष्ट चक्र में से मूलाधार और सहस्रार के बीच में ६ 'राक्षस' माने जाते हैं जो दोनों को मिलने नहीं देते...(और कार्तिकेय को ६ मुंह वाला माना जाता है, और उसका वाहन नीला मोर)... और ब्रह्मा के चार (कैरम बोर्ड की चार जेबों जैसे, जिसमें नवग्रह समान ९ काली - और ९ सफ़ेद गोटी होती हैं, (-) / (+) ऊर्जा को दर्शाते ... और केंद्र में एक लाल, रानी, काली की जिव्हा, आरम्भिक ऊर्जा :)... ityaadi
एक साथ कई सारे खेल मन में उठ त्रुटी करा दिए नक़ल कर चिपकाते समय :) मैंने अभी पढ़ा कि मैंने लिखा है, "...टेबल टेनिस की गेंद छोटी होती है, पृथ्वी की तुलना में चाँद समान छोटी और हलकी होती है, और मेज पर खेली जाती है...उसमें चिपकाना छूट गया कि "दो विपरीत प्रकृति के गुट समान, गेंद पिटती है 'देवता' और 'राक्षशों' के बीच (चन्द्रमा पर मार खा गढ़े पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करने हेतु" :) .... और इसके अतिरिक्त, जिस मेज़ में छह छिद्र (जेबें) होते हैं उस खेल को बिलियर्ड कहते हैं जिसमें अष्ट ग्रहों में से मंगल के सार को चन्द्रमा के सर तक न पहुँचने देने हेतु छह अन्य ग्रहों के सार शक्ति हर लेते हैं...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
जानकारी पूर्ण,सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नवरात्री की बहुत शुभकामनाएं /आपने अपनी पोस्ट मैं दिल की धड़कन और बीमारियों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी डॉ.साहब /पहले के हाकिम पता नहीं कैसे नब्ज देखकर इलाज करते थे//सब भगवान् भरोसे ही चलता था /इतनी अच्छी पोस्ट के लिए बधाई आपको /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया /आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /
ReplyDeleteबेहतरीन गुफ्तु गू सार्थक चर्चा .आभार .नीमहकीम ख़तरा -ए -जान ,मान मत मान .और सही बात यह भी है डायग्नोसिस मीन्स हाल्फ्क्युर्द बिफोर ट्रीट मेंट कमेंसिज़ .
ReplyDeleteदिव्या जी , इस लिंक में नाड़ी का अर्थ नर्व बताया गया है . फिर उसे पल्स कहा गया है . बड़ा कन्फ्यूजन है .
ReplyDeleteयह भी कहा गया है की इस विद्या में निपुण होने के लिए समाधी में जाना पड़ेगा . जो अभी तक संभव भी नहीं हुआ है .
एलोपेथी में इन बातों का क्या मतलब !
VERY INFORMATIVE POST.......USE FULL.....
ReplyDelete"NEE-HAKIM KHATRA E-JAAN
LEKIN IS-SE BHI BACHTE JAAN"
PRANAM.
डॉक्टर दराल जी, जैसा मैं समझ पाया हूँ, मूलाधार (सीट) से सहस्रार (मस्तिष्क) को जोड़ते मुख्यतः सेंट्रल नर्वस सिस्टम और सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम्स को सुषुम्ना, इंगला, और पिंगला नाडी कहा गया... जल-प्रवाह के माध्यम हेतु मुख्य चैनेल्स, अथवा नहर समान, निरंतर मानसरोवर से बहने वाली मुख्य भारतीय गंगा-यमुना -ब्रह्मपुत्र नदी, और उसके असंख्य अन्य छोटी बड़ी नदियों के जाल के स्थान पर पशु / मानव शरीर में, उसके प्रतिरूप को, नाडी कहा गया... जो ऊर्जा / सूचना को मूलाधार और सहस्रार के बीच सोडियम-पोटैसियम साल्ट्स के माध्यम से शक्ति प्राप्त कर लेजाई जाती हैं, ऊपर अथवा नीचे, (अर्थात रेलवे स्टेशन के बीच चलती गाड़ियाँ और उनके पृथ्वी पर रेल नेटवर्क समान, जो सवारियों को ले जाती है दो मुख्य स्टेशन के बीच जैसे सारे भारत / शरीर के बीच सूचना के प्रसार के लिए)...
ReplyDeleteआठ ग्रहों के माध्यम से 'अष्ट-चक्र' को ८ x ८ शक्ति पुंज, अर्थात ६४ 'योगिनियों' द्वारा एक योगी के भीतर दर्शा (और शक्ति को दर्शाने नारी रूप को द्योतक के रूप में माना गया, ६४ शक्ति-पुंजों का भण्डार, काली / गौरी माँ...
और धर्म-पत्नी / अर्धांगिनी को (पार्वती / दुर्गा, चंद्रमा के प्रतिरूप) को भोलानाथ शिव (पृथ्वी के प्रतिरूप) को अंतरिक्ष अर्थात शून्य में आधारित, भव-सागर पार कराने का माध्यम माना गया, अर्थात, आत्मा समान. अनादि और अनंत... जिस तक अन्य शरीरों में विभिन्न आत्माओं के लिए मन को साधना, अर्थात शून्य विचार स्तिथि में लाना मूल आवश्यकता है...
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ReplyDeleteडॉ दराल ,
जो आपने उल्लेख किया है आलेख में , मुझे भी उतना ही आता है नाड़ी ज्ञान ( pulse feel करना )। लेकिन हमेशा एक कौतूहल रहा है Asht-vidh नाडी-परिक्षण को समझने का। जो ग्रंथों में वर्णित है। जिससे बहुत से रोगों को जाना जा सकता है , जिसके द्वारा रोगों का निदान और चिकित्सा संभव है। संभवतः इसका उल्लेख यूनानी चिकित्सा विधि में भी किया गया है।
मुझे जब भी समय मिलेगा इस दुर्लभ नाड़ी-परिक्षण को समझने का प्रयास करुँगी । यदि सीख सकी तो निसंदेह एक बहुत बड़ी उपलब्धि समझूंगी। बहुत कौतूहल है इस विषय में जानने का ,शुरू से ही ।
ऐसा कहीं पढ़ा है की 'रावण' नाड़ी -विज्ञान का सबसे बड़ा ज्ञाता माना गया है। मेरे पास इससे related literature नहीं है। लेकिन तलाश में हूँ। यदि कोई अष्ट-विध परिक्षण में वर्णित नाडी-विज्ञान पर किताब अथवा literature बताये तो महती कृपा होगी।
JC जी द्वारा बताई गयी पुस्तक की तलाश में हूँ।
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दिव्या जी , आजकल एविडेंस बेस्ड मेडिसिन का ज़माना है । इसलिए हमें तो बाकि सारी पद्धतियों से एलोपेथी ही बेस्ट लगती है । इसी में रोज नए आविष्कार होते रहते हैं । १९८२ से पहले भारत में बच्चों में डायरिया का इलाज सिर्फ आई वी फ्लुइड होता था । ओ आर एस पर रिसर्च होने से जो क्रांति आई वह मेडिसिन में बीसवीं सदी की सबसे बड़ी उलब्धि मानी जाती है । मुझे ख़ुशी है इस बात की कि इस शोध कार्य में अपना योगदान भी कम नहीं था ।
ReplyDeleteमानव शरीर में वैद्य कलाई में नाडी अथवा शक्ति के बहाव को ह्रदय के धक्-धक् के द्वारा शरीर को जीवित जान पाते हैं...
ReplyDeleteयदि किसी की पल्स कमज़ोर प्रतीत होती है तो, वर्तमान में कंठ में 'आदम के सेव' से बाहरी और उंगलियाँ ले जा महसूस करते हैं... वहाँ भी न महसूस हो तो 'सीपीआर टेक्नीक' द्वारा रुके हुए हृदय को चलाने का प्रयास किया जाता है, क्यूंकि यह मान्यता है की हार्ट अटैक के पश्चात केवल ४५ सैकिंड मिलते हैं फर्स्ट एड के लिये उनके द्वारा जो भी वहाँ उपस्थित हो, भले ही वो कोई 'चिकित्सक' न हो, और फिर अस्पताल ले जाने का प्रबंध करने के लिए...
मुझे भी 'संयोगवश' एक दिन ऐसा ज्ञान प्राप्त करने का सौभाग्य मिला, और मेरे एक सहकर्मी और मित्र को, जिन्हें भी प्रशिक्षण मिला था, उनको अपने जम्मू स्थित कार्यालय में एक स्टाफ को 'पुनर्जीवित' करने का अवसर / सौभाग्य भी प्राप्त हुआ...
जैसे संकेत हैं, प्राचीन युग में हमारे पूर्वज, पूर्व में हो अथवा पछिम में, (निराकार ब्रह्म की इसे कृपा कहलो) हमसे बहुत अधिक ज्ञानी थे...
किन्तु चूंकि काल और स्थान के साथ भाषा भी बदल जाती है, जिस कारण वर्तमान, कलियुग में, आवश्यकता है लाइनों के बीच सामान्य ज्ञान द्वारा पढने की...
किन्तु अपने 'वैज्ञानिक' पृष्ठभूमि और अनुभव से इतना अवश्य कह सकता हूँ कि परमात्मा (शिव) अनादि / अनंत होने कि मान्यता के कारण शून्य काल और स्थान से सम्बंधित जाने गए है, जिस कारण उन्हें समझने के लिए 'पूजा', यानि मन को शून्य अथवा लगभग विचार स्थिति में लाना आवश्यक है... जो वर्तमान में कठिन अवश्य है, किन्तु असंभव नहीं...
नाडी वैद्य पुराने ज़माने में कैसे होते थे , पता नहीं मगर ऐसे एक दो वैद्य से मिल चुकी हूँ जिन्हें अपनी तकलीफ बतानी नहीं पड़ती , वे नाडी देख कर स्वयं प्रश्न करते हैं ...
ReplyDeleteआयुर्वेद अपनाने के बाद चमत्कारी परिवर्तन भी देखे गये हैं ...
झोला छाप सिर्फ वही हो सकता है , जिसे अपने विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं , वह चाहे एलोपैथी हो , होम्योपैथी अथवा आयुर्वेद !
डॉक्टर दराल जी, मुझे कल आपकी टिप्पणी नहीं दिखाई दी थी, अभी देखी...
ReplyDeleteप्रत्येक व्यक्ति जन्म के समय 'शून्य' ज्ञान लिए पैदा हुआ समझा जाता है... जो सत्य माना जाता है...
जबकि हिन्दू सिद्धों आदि ज्ञानी -ध्यानी व्यक्तियों की खोज पर आधारित मान्यतानुसार, परम ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति में उसके आठ चक्रों में ('8" अर्थात एक घट के ऊपर एक अन्य घट रखे समान दो शून्य, जिनसे आरम्भ कर किसी भी पशु-पक्षी का चित्र, अर्थात इमागे, बनाया जा सकता है ) भंडारित हैं, किन्तु जो धीरे धीरे (शनै शनै, 'सूर्य-पुत्र' शनि की चाल समान) शैशवकाल से आरम्भ कर युवावस्था, अर्थात भौतिक चरम सीमा तक, और उसके पश्चात वृद्धावस्था, अर्थात आध्यात्मिक चरम सीमा तक मतिश्क में पहुंचती रहती है, व्यक्ति विशेष की प्राकृतिक क्षमता, मानसिक रुझान, और प्रत्येक के विभिन्न क्षेत्र में प्राप्त अनुभव आदि पर निर्भर करता है... जिसके आधार पर विभिन्न परीक्षा आदि (जैसे आई क्यु / ई क्यु भी) द्वारा प्रत्येक के अर्जित ज्ञान का आंकलन संभव हो सकता है ...
और ऐसी परीक्षाओं के आधार पर कोई भी भाग्यशाली पुरूस्कार / केबीके समान, सही प्रश्नोत्तर दे करोडपति भी बन सकता है... किन्तु हम यह भी जानते हैं कि आर्थिक मान दंड सही नहीं है, क्यूंकि वर्तमान में तो कोई भी, अनपढ़ 'नेता', डाकू आदि भी, केवल इस जीवन में करोडपति बन सकता है ("राम जाने क्या होगा आगे"!)...
और हिन्दू मान्यतानुसार सबसे भाग्यवान तो केवल एक ही हो सकता है, 'त्रेयम्बकेश्वरी', महा काली-महा सरस्वती-महा लक्ष्मी / शिव / कृष्ण जो इस ब्रह्माण्ड का मालिक कहलाता है... साईं बाबा ने भी कहा, "सबका मालिक एक"!
"ध्यान हटा नहीं कि दुर्घटना घटी"!
ReplyDelete'इमागे' के स्थान पर कृपया 'इमेज', और 'मस्तिष्क' पढ़े ('मतिश्क' के स्थान पर)...
हमारा तो आपके जानकारीपूर्ण आलेख पढ़कर ही दिल धड़कने लगता है...:)
ReplyDeleteडॉक्टर, पीटर सैलर्स और सोफिया लौरेन का दिल की धड़कन पर "बूम पुटी बूम", समान "धूम पिचक धूम" डॉक्टर पलाश सेन, दन्त चिकित्सक का गाना सुनिए... लिंक हैं -
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=P3A7B6qtUpU
http://www.youtube.com/watch?v=UHRlQyH-XFY
असहमत। यह ठीक है कि अब वैसे वैद्य नहीं रहे और वैद्यगिरि के नाम पर बहुत धांधली हो रही है,मगर मैं स्वयं एकाध ऐसे वैद्यों के सम्पर्क में वर्षों रहा हूं,नाड़ी देखकर जिनके फलकथन से स्वयं रोगी भी कभी चकित हुए हैं,तो कभी शर्मिंदा।
ReplyDeleteI'm 30 yrs female. Pairon (talvon mein aur heels ke paas) mein kafi dard rehta hai (flat sleepers pehnane ki wajah se). My feet are very weak. I'm a bit scared to visit orthopedist (one orthopedist suggested me for a course of 5-6 injections). Any suggestions please? Homeopathy or Ayurvedic line of treatment is helpful in such situation ? If yes, please suggest me a good Doctor in Delhi-NCR.
ReplyDeleteDo you get more pain on rising from the bed in the morning ? If yes , then it is called planter fasceitis / bursitis. The treatment is simple -- soak your feet in warm water two three times a day for hot fomentation, apply some analgesic cream. Reduce your weight , if overweight. Shoes / chappals should be smooth and well padded. It will take some time but will be alright . There is no need for any injections.
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