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Sunday, June 12, 2022

एक लेखक की व्यथा --


फेसबुक पर फेसबुकी 

कवितायेँ लिखते लिखते

रामलाल को हो गया गुमान। 

कि अपुन तो लेखक बन गए महान।   

फिर एक दिन हिम्मत करके 

पत्नी के गुल्लक से पैसे निकाले

और कर दिए हिम्मत लाल प्रकाशक के हवाले।  

 

सीना २४ इंच से बढ़कर २५ इंच का हो गया

जब छपकर हाथ में आ गई किताब। 

सोचा अब तो साहित्य रत्न का 

लेकर रहेंगे खिताब।    

फिर जितने भी मिले बाल लाल पाल,

सबको बाँट कर सोचा

लो जी हम भी साहित्य में हो गए मालामाल।   

 

एक रात 

साहित्यकार श्यामलाल से हो गई मुलाकात

बात बात में रामलाल ने कहा

श्यामलाल

कैसा है हाल चाल ?  

पढ़ी

वो बोला क्या

रामलाल ने कहा, किताब।  

वो बोला ज़नाब अभी कहाँ पढ़ी है

अभी तो जो पुस्तकें मेले में खरीदी थी

वही अलमारी में बंद पड़ी हैं।  

आजकल पढ़ने लिखने का 

वक्त ही कहाँ मिल पाता है।  

फिर कॉम्प्लिमेंट्री का नंबर तो

बड़ी मुश्किल से  ही आता है।    

 

 फिर एक दिन 

मिल गए प्रॉफेसर प्यारेलाल,

बिन पूछे ही हाल चाल

कर दिया वही सवाल

कि पढ़ी

सुनते ही प्रॉफेसर ने लगा दी बहानों की झड़ी। 

बोले अभी लेक्चर कई लेने हैं,   

दो साल से पड़े पेपर्स जर्नल्स में देने हैं।  

एग्जाम पास आ रहे हैं

अब आप ही बताइये ज़नाब

कि पी जी की थीसिस पढ़ें या आपकी किताब।   

 

चार महीने बाद भी 

किताब तो मोहन लाल ने भी नहीं पढ़ी थी

पता चला कि 

उन पर एक अजीब मुसीबत आन पड़ी थी।  

बड़े सरकारी अफ़सर हैं पुरजोर

पर आजकल हाज़मा बिगड़ा हुआ है, 

टॉयलेट में घंटों लगाना पड़ता है जोर।  

रामलाल बोले, भाई साहब

ज़रा कम खाया करो

भला इतना पेट क्यों भरते हैं ।  

वैसे बड़े अफ़सर तो अक़्सर ,

टॉइलेट में बैठकर ही पढ़ा करते हैं।    

 

किताब तो नेता नत्थूलाल

ने भी बड़े शौक से ली थी। 

फिर संभाल कर घर पर रख दी थी। 

लेकिन आज तक भी नहीं पढ़ी थी।

याद दिलाया तो बोले,

भैया आजकल वक्त ही नहीं निकल पाता है। 

जब भी पढ़ने की सोचते हैं,

कोई न कोई चुनाव निकल आता है। 

 

 

काका किशनलाल तो काम में 

इस कदर रहते हैं मशगूल।  

कि किताब का नाम ही गए भूल । 

आलसी तो ऐसे कि 

सारे काम पड़े रहते हैं अधूरे

उस पर भुलक्कड़ हैं पूरे। 

एक दिन सारी किताबें कबाड़ी को दे आये,

फिर बड़े घबराए

क्योंकि बहुत बड़ा कबाड़ा कर आए थे।  

रामलाल की किताब के साथ साथ 

अपनी पत्नी की किताबें भी कबाड़ी को दे आये थे।  

 

 

दोस्तो

लेखन लेखक का जुनून होता है

वह जब भी खाता पीता 

जागता सोता है। 

मन में विचारों का ताँता लगा रहता है

लेकिन दिल में बस 

यही कामना रखता है।  

कि लोग उन्हें पढें

तारीफ़ करें या गलतियां निकालें

पर उसकी धरोहर को संभालें 

क्योंकि एक दिन लेखक तो चला जाता है

पर उसका वज़ूद उसकी किताब में रह जाता है।      

 

 

 

 

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 13 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. मेरा कमेन्ट ?????

    ज़बरदस्त व्यंग्य ....... यूँ तो हम सब ही रामलाल बने हुए हैं ......... बस इतना चाहते हैं कि लोग हमें पढ़ें ....

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  3. बहुत खूब ,अंतिम पंक्तियाँ शानदार !!

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१३-०६-२०२२ ) को
    'एक लेखक की व्यथा ' (चर्चा अंक-४४६०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. सही सुंदर रचना लास्ट वाली पंक्तियां बहुत बढ़िया

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  6. किताबें छपवाने का प्रचलन जोर है,
    किताबों की मंडी में भीड़ लेखकों के शोर है।
    लिखने वाले,पढ़ने वाले सारे लेखक,
    ऊपरी दिखावा सब कृत्रिम मेकअप,
    कीमत किताबों की रद्दी से भी कमज़ोर है।
    -----
    बढिया रचना।
    सादर।

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  7. क्योंकि एक दिन लेखक तो चला जाता है,
    पर उसका वज़ूद उसकी किताब में रह जाता है।

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  8. पसंद करने के लिए आप सभी का शुक्रिया। 😊🙏🙏

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  9. ये तो लग रहा है हर रचनाकार की व्यथा है।
    सही कहा आपने ये सच के साथ हृदय स्पर्शी भी है।

    लेखन लेखक का जुनून होता है,
    वह जब भी खाता पीता
    जागता सोता है।
    मन में विचारों का ताँता लगा रहता है,
    लेकिन दिल में बस
    यही कामना रखता है।
    कि लोग उन्हें पढें,
    तारीफ़ करें या गलतियां निकालें,
    पर आपकी धरोहर को संभालें ।
    क्योंकि एक दिन लेखक तो चला जाता है,
    पर उसका वज़ूद उसकी किताब में रह जाता है।

    लगता है हर साहित्य कार का दर्द उकेर दिया आपने बहुत सटीक प्रस्तुति।


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  10. अपनी किताब छपवाने के और उसकी प्रतियाँ ख़ास-उल-ख़ास दोस्तों में बांटने बाद ही पता चला कि उन्हें 'सप्रेम भेंट' पुस्तक की ज़रुरत तो नमक-मिर्च की पुड़िया बनाने के समय ही पड़ती है.

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  11. अति सुन्दर व्यंग्योक्ति

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  12. बहुत सुंदर व्यंग। लेखक की मनोव्यथा बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त की है।

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  13. हर रचनाकार की व्यथा कथा...
    सही में किताबें पढ़ने का अब ना तो किसी को शौक है ना किसी के पास समय...किताबों की जगह मोबाइल और अन्य गैजेट्स ने ली...
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  14. सटीक व्यंग्य ।

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