कुल मिलाकर यही लगता है -- आधुनिक मानव तभी तक सुख का आनंद ले पाता है जब तक बच्चे छोटे होते हैं . फिर एक ऐसा दौर भी आता है जब परिवार और निकट सम्बन्धियों में आने का कम और जाने का सिलसिला ज्यादा होने लगता है . हमारे देश में जहाँ अभी भी पारिवारिक सम्बन्ध बने हुए हैं , लोग एक दूसरे से जुड़े हैं -- वहां किसी भी परिवार में कोई संकट आने पर सभी का प्रभावित होना स्वाभाविक है . विशेषकर किसी की मृत्यु होने पर १३ दिन का शोक आपकी सारी सामान्य दैनिक प्रक्रिया को अस्त व्यस्त कर देता है . यदि आप ५० को पार कर गए हैं तो निश्चित ही यह अवसर अनचाहे ही यदा कदा आता ही रहता है और आप कुछ नहीं कर सकते .
अक्सर लोगों को यह कहते सुना है - अमुक काम हो जाए तो गंगा नहा आऊँ . यानि हम सोचते हैं , एक विशेष अवस्था के बाद सुख चैन की जिंदगी बिता पाएंगे . लेकिन यह एक भ्रम ही होता हैं . सच तो यह है -- इन्सान की जिंदगी में ऐसा कोई मोड़ या पड़ाव हो ही नहीं सकता जिसके बाद आपका हमेशा सुखी रहना अवश्यम्भावी हो . इसलिए यह कथन --- and they lived happily ever after --- मात्र कहानियों में ही फिट बैठ सकता है .
इसीलिए इस सन्दर्भ में यह कहना कदाचित अनुचित नहीं होगा -- जो आज है , वही सर्वोपरि है . वर्तमान के हर पल का जी भर कर आनंद लेना चाहिए . क्योंकि कल कभी नहीं आता . और कोई नहीं जानता , कल क्या होने वाला है . यदि खुशियों को कल पर छोड़ा तो शायद यह अवसर कभी हाथ न आए .
सुख को वर्तमान के सन्दर्भ में देखना ही उचित है लेकिन काम हम सभी भविष्य की चिंता को लेकर ही करते हैं. मरने के बाद भी मोक्ष की चिंता. तो बात तो ठीक ही है, "And they lived happily ever after" कथन सुखांत कहानियों तक ही ठीक है.
ReplyDeleteअगर इंसान आज और सिर्फ आज को जीने का इरादा कर ले तो बहुत सारी चिंताओं का साया भी नहीं पड़ेगा लेकिन भविष्य की चिंता ही उनको परेशान करके रखता है और चिंता मुक्त होकर जीने का कोई पल नहीं होता है. इसलिए आज जियो और कल न कभी आया है और न कभी आएगा.
ReplyDeleteसच कहा आपने...आज के लिए जीना चाहिए...
ReplyDeleteजिम्मेदारियां बढ़ती जातीं हैं और उसी अनुपात से दुःख और तकलीफें...
आपकी संजीदा पोस्ट के जवाब में मेरी कल ही लिखीं कुछ पंक्तियाँ.....जी हल्का करेंगी.(गुस्ताखी माफ.)
"रिवर्स गेयर..."
एक थी राजकुमारी...
एक था सुन्दर सा राजकुमार.
दोनों में प्रेम हुआ..
वे करीब आये..
राजकुमारी ने राजकुमार को चूमा.....
चूमते ही वो मेंडक बन गया.
और कूएँ में कूद गया...
and they lived happily ever after...
अनु :-)
:))))
Delete:)
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteगणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
पढते हुए एक सेड सा एहसास होने लगा.सच्चाई कड़वी जो होती है.परन्तु फिर आखिर में आपने सुकून की सांस दिला ही दी.
ReplyDeleteसच है खुशियों के इंतज़ार में वर्तमान को इग्नोर करना ठीक नहीं.जो आज है उसी को पूरी तरह जिया जाना चाहिए.
जो भी है बस एक यही पल है .कल किसने देखा है ,कल किसने जाना है .......ये जो: "है" ,बस यही है ,इसे निचोड़ लेना है पूरा ,दोहन करो अब का आज का ,अनियोजित तरीके से रहना भी एक नियोजन है .हम ने तो सारा जीवन ऐसे ही जी लिया अब तो रिहर्सल है .दोबारा जी रहें हैं .
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 18 सितम्बर 2012
कमर के बीच वाले भाग और पसली की हड्डियों (पर्शुका )की तकलीफें :काइरोप्रेक्टिक समाधान
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बिलकुल सही ,कल तो हम और भी थके मांदे चिथड़े हुए होंगे सो जो काल करे सो आज !
ReplyDeleteअरविन्द जी , कल की चिंता क्यों करनी है . अभी तो आज को जीना चाहिए . लेकिन इस आज में भी सांसारिक विघ्न पड़ते ही रहते हैं .
Deleteजो आज है , वही सर्वोपरि है . वर्तमान के हर पल का जी भर कर आनंद लेना चाहिए . क्योंकि कल कभी नहीं आता . और कोई नहीं जानता , कल क्या होने वाला है . यदि खुशियों को कल पर छोड़ा तो शायद यह अवसर कभी हाथ न आए .
ReplyDeleteआपका कथन बहुत हद तक सही है लेकिन जीवन का उतार चढ़ाव सुख दुःख भी उतने ही शाश्वत हैं
जी , यही उतार चढाव जीवन को एक जैसा नहीं रहने देते .
Deleteकसम से डॉक्टर साहब कई बार लगता है कि काहे की भागदौड़ करते हैं हम....मगर फिर ये सोच कर सब चीजों को करने लगते हैं कि ये जीवन है जिसको चलते रहना है ..जब तक हम हैं तब तक जैसे कई चीजें की वैसे ही हर चीज को करते चलें. पर हर बार तयस्थ हो नहीं पाते।
ReplyDeleteJCSeptember 20, 2012 6:39 AM
ReplyDeleteडॉक्टर तारीफ जी, बिलकुल सही वर्णन!
संभव है इस से हम यह निष्कर्ष में पहुँच सकते हैं कि यदि कोई भगवान अर्थार्त सृष्टिकर्ता है तो उस ने विभिन्न क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की कहानी एक सी ही लिखी है!!!
किन्तु, पशु जगत में उस ने मानव को ही सबसे बड़ा मस्तिष्क रुपी सुपर कंप्यूटर दे मनुष्य के, हर व्यक्ति के, ऊपर छोड़ दिया है कि वो इसे कैसे उपयोग में लाता है - वैसे ही जैसे हर कोई मनोरंजन अथवा अनेकों अन्य उद्देश्य हेतु डिजिटल कंप्यूटर को उपयोग में ला रहा है, जो हम जानते हैं हमारे मस्तिष्क का ही एक प्रतिरूप है, भले ही घटिया ही क्यूँ न हो... ... ...
जहां तक जीवन के सार का प्रश्न है, किसी कवि ने भी कहा, "जो कल करना है, आज करले/ जो आज करना है, वो अब// पल में परलय होउगि/ बहुरि करोगे कब"???
यानि प्राचीन ज्ञानी/ सिद्ध आदि क्षणभंगुर मानव जीवन का उद्देश्य कुछ जान पाए थे और उस का सन्दर्भ मैंने सन '८४ में पहली बार गीता में पढ़ा - और कहावत भी है कि मानव का सबसे अच्छा मित्र (अच्छी) पुस्तकें होती हैं!!!
जी , सही कहा .
Delete...हर पल जियो,हँस के जियो !
ReplyDeleteसुख और दुख दोनों एक दूसरे के पूरक है, सुख ही सुख से भी जीवन नीरस या एकरस हो जाता है। यह तो सच है कि अब ऐसी उम्र आ गयी है कि रोज ही शोकनिवारण के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसलिए कहते हैं कि अनावश्यक दुखों को नहीं न्यौतना चाहिए, जितना हो सके खुश रहना चाहिए।
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ReplyDeleteसुबह तन कर सोया था तो बीबी की झिडकी सुनाई दी, कल शाम को ही मैंने कहा था कि सुबह जल्दी उठना और जल्दी तैयार हो जाना ! आज भारत बंद है फिर कहीं जाम में फंसे रहोगे ! दुखी मन से मीठी नींद को त्याग अनमना सा उठा, तैयार हुआ और दफ्तर के लिए निकल पडा अभी २० मिनट की ही ड्राइव कर पाया था कि आगे देखा कि एक लंबा ट्रैफिक जाम लगा है , शायद बंद समर्थकों ने रास्ता जाम कर दिया था! गाडी बैक की... १५ किलोमीटर फालतू चलके ऑफिस पहुंचा तो टेबल पर बैगलोर से इनकम टैक्स वालों का नोटिस पडा था कि आपने टैक्स कम भरा ! फलां-फलां दिन हमारे दिल्ली ऑफिस में हाजिर हों ! मैंने तो टैक्स पूरा भरा था अत : accountant से पुछा कि क्या माजरा है ? उसने बताया कि जो ऑन लाइन रिटर्न फ़ाइल की जाती है उसमे इनकम टैक्स वालों ने आख़िरी क्वाटर यानी जनवरी से मार्च क्वाटर का मेरा टैक्स कंसीडर नहीं किया ! मैं माथा पकड़ कर बैठ गया कि टैक्स भरू मैं, गलती करें इनकम टैक्स वाले , और उलटे हाजिर होने का हुक्म भी मुझे ही सूना रहे, यानी मेरा एक दिन बर्बाद और petrol का खर्चा लग ! ऐसे में अब आप ही बताइए डाक्टर साहब, कि वर्तमान क्या ख़ाक जियें ? ;)
ReplyDeleteवर्तमान पर भी कभी कभी ग्रहण लग जाता है . :)
Deleteइसीलिए इस सन्दर्भ में यह कहना कदाचित अनुचित नहीं होगा -- जो आज है , वही सर्वोपरि है . वर्तमान के हर पल का जी भर कर आनंद लेना चाहिए . क्योंकि कल कभी नहीं आता . और कोई नहीं जानता , कल क्या होने वाला है . यदि खुशियों को कल पर छोड़ा तो शायद यह अवसर कभी हाथ न आए .
ReplyDeleteआज मे जीना ही सही है कल को बदला नही जा सकता आने वाले कल का पता नही तो क्यो ना आज को खुशगवार बनाया जाये।
ReplyDeleteआप अपने उददेश्य की पूर्ति में लगे रहें । हम आपके कार्य के प्रशंसक हैं
ReplyDeleteसही कह रहे हैं दराल सर,
ReplyDeleteमैंने खुद पिछले एक साल में, खास तौर पर बीमारी के तीन महीने में बहुत कुछ सीखा है, अपने बारे में, दूसरों के बारे में, रिश्तों के बारे में, दिल से लिए फैसलों और दिमाग से लिए फैसलों के बारे में...
जय हिंद...
विपरीत परिस्थितियों में ही जिंदगी के असली मायने समझ में आते हैं .
Deleteजो भी है, आज है, बस वही ढंग से जी लें हम।
ReplyDeletekal ke liye aaj ko na khona aaj ye na kal aayegaa ....yahi sach hai
ReplyDeleteभाई साहब जब हर हर गंगे होना ही नहीं है "ये हो जाए तो गंगा नहाऊं ...."फिर अनागत से क्या डरना .जब जब जो जो होना है ,तब तब सो सो होता है .तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय ,अनहोनी होनी नहीं ,होनी होय सो होय .
ReplyDeleteपल को जियो ,
पलांश को जियो ,
ज़िन्दगी के नखलिस्तान (ओएसिस )को जियो ,
ज़िन्दगी ज़िंदा दिली का नाम है ,
मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियेंगे .
गिरतें हैं शह सवार ही मैदाने जंग में ,
वो तिफ़्ल(जीव आत्मा ) क्या जो रेंग के घुटनों के बल चले .
बहुत सार्थक और प्रेरक चिंतन पोस्ट
काल (काल्ह )करे सौ आज कर ,आज करे सौ अब ,
ReplyDeleteपल में परलय होयगी ,बहुरि (फेर )करेगा कब .
पानी ,केरा, बुदबुदा; अस मानस की जात ,
देखत ही बूझ जाएगा ,ज्यों तारा परभात .
माली आवत देख के ,कलियाँ करें पुकार ,
फूली फूली चुन लै ,काल (कल )हमारी बार .
आयेंगे सो जायेंगे ,राजा रंक फ़कीर ,
एक सिंह- आसन चढ़ी चले,एक बंधे ज़ंजीर .
तू ने रात गंवाई सोय के ,
दिवस गंवाया खाय ,हीरा जन्म अमोल था ,
कौड़ी बदले जाय .
पल की शाश्वत परिवर्तन शीलता की ओर हर पल कहीं न कहीं से इशारा है . कल का भरोसा न कर ,जो करना है आज और अब कर .जी इस पल को जी भरके जी .
सही है आजकी खुशियों को मुल्तवी नहीं रखना चाहिए !!
ReplyDeleteek gaana yaad aa raha hai- "aanewala pal--janewala hai
ReplyDeleteho sake to isme jindagi bita lo , pal jo ye janewala hai--"
सहमत आपकी बात से ... पर आज को निश्चिन्त होके जीने की कला भी आनी चाहिए ... जो भारतीय समाज में पूरी तरह नहीं है .,.. हर पल हम आने वाले समय की ज्यादा सोचते हैं ... अपने को मिटा के भी बच्चों की बारे में करते हैं ...
ReplyDeleteपर अब समय कुछ कुछ बदल रहा है ...
सही कह रहे हैं आप . हम हिन्दुस्तानी अपनी सारी जिंदगी बच्चों का भविष्य बनाने में गुजार देते हैं , अपने वर्तमान की कीमत पर .
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