पिछली पोस्ट में हमने आपसे एक सवाल पूछा था --
एक काली अँधेरी बरसाती रात में आप अपनी कार में कहीं जा रहे हैं . तूफ़ान जोरों पर है . अचानक एक बस स्टॉप पर आप देखते हैं -- वहां बस तीन लोग खड़े हैं .
१. एक बूढी औरत जो इतनी बीमार दिख रही है जैसे अभी दम निकल जायेगा .
२. एक पुराना दोस्त जिसने कभी एक हादसे में आपकी जान बचाई थी .
३. एक खूबसूरत लड़की --आपके ख्वाबों की मल्लिका , जिससे आप शादी करना चाहते हैं .
ऐसे में आप किसे लिफ्ट देंगे ? आपकी गाड़ी में बस एक ही व्यक्ति बैठ सकता है .
दरअसल यह सवाल एक बार एक पोस्ट को भरने के लिए सभी आवेदकों से पूछा गया था . 200 लोगों में से जिसका चयन किया गया , उसका ज़वाब था --
मैं अपनी गाड़ी की चाबी अपने दोस्त को दे दूंगा और उसे बूढी महिला को अस्पताल ले जाने के लिए कहूँगा . मैं स्वयं अपनी महबूबा के साथ रूककर बस का इंतजार करूँगा .
अब देखा जाए तो इस सवाल में ज़वाब देने के लिए सिर्फ तीन ही विकल्प दिए गए थे जबकि आम तौर पर चार विकल्प दिए जाते हैं . यहाँ चौथा विकल्प छुपा हुआ था जिसका उपयोग सिर्फ एक ही उम्मीदवार ने किया .
पिछली पोस्ट में सबसे पहले सही ज़वाब दिया -- देवेन्द्र पाण्डेय जी ने . शाहनवाज़ और प्रवीण पाण्डेय ने भी इसी ज़वाब से अपनी सहमति जताई . महिला ब्लॉगर्स ने तो अपना पल्लू झाड लिया यह कह कर कि उन्हें इस विषय से क्या लेना देना . हमेशा की तरह अरविन्द जी और अली जी ने खूब मस्ती दिखाई .
सोच का दायरा :
अक्सर देखने में आता है कि हम अपनी सोच का दायरा बड़ा सीमित रखते हैं . इसलिए जो नज़र आता है , बस उसे ही देख पाते हैं और सही निर्णय तक नहीं पहुँच पाते . आवश्यकता है , सीमित दायरे से निकल कर सोच को विस्तार देने की . जो अदृश्य है , उसे देख पाने की क्षमता ही हमें एक अच्छा मैनेज़र बना सकती है . आखिर , अच्छी जिंदगी जीने के लिए एक अच्छा मैनेज़र बनना भी आवश्यक है .
आजकल हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं .
अब कुछ और बातें जो पोस्ट से निकल कर आई :
* कहते हैं -- अपनी घडी , गाड़ी और बीबी दूसरे के हाथ में नहीं सौंपनी चाहिए क्योंकि दूसरे के हाथ में गई और बिगड़ी . कहावत पुरानी है . आजकल घडी और गाड़ी सब के पास होती है , इसलिए मांगने की ज़रुरत ही नहीं होती . लेकिन बीबी तो नॉन ट्रांस्फेरेबल ही ठीक है .
* सड़क पर एक अकेली हसीना को लिफ्ट मांगते देख कर शायद ही कोई निष्ठुर होगा जो लिफ्ट देने से मना करेगा . लेकिन ज़रा संभल के भाई -- दिल्ली में इस तरह लिफ्ट देना बहुत महंगा पड़ सकता है . आपके दिलफेंक शौक की वज़ह से आपको अपनी खून पसीने की कमाई से हाथ धोना पड़ सकता है . मुफ्त में पाया काला धन भी लुट जाए तो भी दुःख तो होगा ही .
* दिल्ली जैसे शहर में अकेली महिला का सुनसान अँधेरी जगह पर खड़ा होना एक गुनाह जैसा है . ऐसे में शरीफ़ से शरीफ़ आदमी भी अपनी शराफ़त छोड़ने को लालायित हो जाता है . सच सचमुच बड़ा भयानक होता है .
* भगवान से प्रार्थना कीजिये कि दिल्ली की सडकों पर कभी असहाय स्थिति में न आना पड़े . वर्ना दिल्लीवालों से तो किसी सहायता की उम्मीद मत रखियेगा . तमाशा देखने वाले एक मिनट में इक्कट्ठे हो जायेंगे , मदद करने वाला कोई नहीं मिलेगा .
* काश कि दिल्ली भी दुबई जैसी हो सकती -- इस बारे में अगली पोस्ट का इंतजार कीजिये .
पर अब यह उत्तर न दे पाऊँ, पता नहीं कहाँ से श्रीमतीजी के पता चल गया।
ReplyDeleteकर कर्म ऐसे
Deleteबीबी स्वयं पूछे .
जी थक गए हो
तो पैर दबाऊं !
यह इंटरचेंजियेबल है . :)
...हमसे तो कभी किसी ने लिफ्ट माँगा ही नहीं,इसकी दो वजहें हो सकती हैं:
ReplyDelete१)मैं सुदर्शन नहीं हूँ !
२)मेरे पास कोई गाड़ी नहीं है !
सुदर्शन या सुलक्षण , कभी लिफ्ट नहीं देते .
Deleteलिफ्ट देने वालों की जात ही कुछ और है . :)
काश,,,, कोई हमसे भी लिफ्ट माँगता,,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
दिल्ली आकर देखो .
Deleteसार्थक चेतावनी देती पोस्ट ... बाकी सबकी अपनी सोच ।
ReplyDeleteThink out of the box.
ReplyDeleteचलिए अगली पोस्ट का इंतज़ार करते हैं हम.
!! :) :)
Deleteअच्छी ठिठोली है,डॉ.साहिब.
ReplyDeleteबेचारे प्रवीण जी.
लगता है उनकी श्रीमती जी को आपने ही बताया होगा.
बड़े लोगो की बड़ी बातें . क्या अपेक्षित उत्तर कही सेव था ?
ReplyDeleteJCSeptember 24, 2012 5:30 PM
ReplyDeleteडॉक्टर साहब, इंटरव्यू आदि के लिए आजकल गैस-पेपर बनते हैं, और बाकायदा कोचिंग क्लासेस भी होती हैं ...
पदों के चुनाव करने वाले भी ऐसी ही पुस्तकों से प्रश्न-उत्तर आदि पढ़ के आते होंगे...:)
जहां तक अच्छा मैनेजर बनने का प्रश्न है, सफलता सबसे अधिक निर्भर करती है आपकी टीम पर, कि उसमें सभी आपकी तरह सोचने वाले हों... वर्ना 'एक मछली ही सारे तालाब को गंदा कर सकती है'... "यथा राजा/ तथा प्रजा", और आज तो समय ही खराब चल रहा है शायद जहां राजनीति में 'मछलियों ' की संख्या अधिक दिखाई पड़ रही है???
यदि राजा सही हो तो प्रजा भी सही ही होगी .
Deleteआम तौर पर सरकारी काम में टीम के सदस्यों के चुनाव में मैनेजर का हाथ नहीं होता... इस लिए 'भाग्य ' पर बहुत निर्भर करता है... फिर भी 'उम्मीद पर दुनिया कायम है'... सफलता के लिए अनेक शुभ कामनाएं!
Delete:-)
ReplyDeleteआप बेशक अच्छे मैनेजेर सिद्ध होंगे.
सादर
अनु
अभी तो इम्तिहान चल रहा है . :)
Deleteवाह! वक्त पर दिमाग चल गया और हम बुद्धिमान हो गये! मिठाई खानी पड़ेगी।:)
ReplyDeleteबधाई . :)
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteकुछ काम में व्यस्तता के कारण ब्लोग्स पर जाना कम हो रहा था आज आपकी पिछली पोस्ट भी पढ़ी बहुत इंट्रेस्टिंग थी मिस कर दी
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ReplyDeleteसोच का विस्तृत दायरा स्पष्ट दृष्टि देता है .
ReplyDeleteसत्य वचन !
तो आपने सबको दिमाग खुजाने पर विवश कर दिया. बधाई.
ReplyDeleteहमें तो दिल्ली अच्छी लगती है। थोड़ी सावधानी तो हर जगह ही रखनी होती है। अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में हमारा भी पर्स किसी ने मार लिया लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं की दिल्ली चोर-उचक्कों की ही है। मैंने जब रिपोट दर्ज करायी तब एस एच ओ ने भी यही कहा कि सारे शहर देखे लेकिन दिल्ली जितने अपराध कहीं नहीं देखे। लेकिन मजेदार बात यह रही कि अपराधी क्यों आजाद हैं, इसलिए कि पुलिस वाला दिल्ली का रोना तो रो गया लेकिन मुझे झूठ बोल गया कि आपकी रिपोर्ट दर्ज हो गयी है आपको पत्र शीघ्र भेज देंगे। इसलिए पुलिस स्वयं चोर है तो चोर उचक्के तो बढ़ेंगे ही ना। इसलिए ही आम जनता को सावधानी रखने की जरूरत है। पुलिस के भरोसे नहीं रहें।
ReplyDeleteदिल्ली के कुछ हिस्से बेहद खूबसूरत हैं . विशेषकर सेन्ट्रल और साउथ डेल्ही . वी आई पी एरिया से गुजरते हुए नेताओं से जलन सी होने लगती हैं . लेकिन वहां पर ड्राइव करके हमें भी आनंद तो आता ही है .
Deleteदूसरी तरफ ऐसे भी क्षेत्र हैं जो सबसे बदसूरत हैं . लेकिन कानून व्यवस्था में काफी कमी है . इसकी वज़ह है , दुनिया भर से आए सभी तरह के लोग जिनमे अपराधी भरे पड़े हैं . महंगाई और बेरोजगारी से भी अपराध को बढ़ावा मिलता है . फिर भी दिल्ली हमें बहुत पसंद है .
लिफ्ट देने वालों की जात हो कुछ और है ..
ReplyDelete:)
"कहते हैं -- अपनी घडी , गाड़ी और बीबी दूसरे के हाथ में नहीं सौंपनी चाहिए" :):)
ReplyDeleteRochak post abhivyakti ...abhaar
ReplyDeleteयही तो है डॉ .साहब आउट आफ बोक्स थिंकिंग जो दिख रहा है उसका अतिक्रमण कर उसके पार देख पाना .समबुद्धि का साथ देना ,सीखना ,समबुद्धि से .
ReplyDeleteram ram bhai
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मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
आधे सच का आधा झूठ
मैंने तो बस एक लाईना मस्ती की थी खूब मस्ती तो अली सैयद साहब की ही रही होगी :-)
ReplyDeleteअब ज्यादा भूमिका मत बांधिए डाक्टर साहब वो असली वाली पोस्ट लाईये!