वोटिंग के लिए सेन्ट्रल दिल्ली के अलावा चारों कोनो में मतदान केंद्र बनाये जाते हैं । पूर्वी दिल्ली का मतदान केंद्र यह है --
हमारी ब्रांच ने बहुत मेहनत कर चार मंजिला अपना भवन बनाया है । यहीं पर सब आते हैं वोट डालने ।
भवन के द्वार पर दोनों ओर दोनों पार्टियों के उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं अपने सहयोगियों के साथ । दोपहर तक एक एक कर वोटर आते हैं । लेकिन दोपहर के बाद क्लिनिक बंद होने पर भीड़ लग जाती है ।
डॉक्टर्स के जीवन में चुनाव एक ऐसा समय होता है जब सब मिलकर उम्मीदवार के खर्चे पर पार्टियों में मौज उड़ाते हैं । अक्सर अधिकतर डॉक्टर्स दो खेमों में बंटे होते हैं । लेकिन काफी ऐसे भी होते हैं जो न इधर होते हैं , न उधर । बल्कि जहाँ मिला अवसर, बे पेंदे के लोटे की तरह लुढ़क जाते हैं ।
सच पूछा जाए तो सर्दियों का सीजन चुनाव का सीजन यानि पार्टियों का सीजन होता है।
इसीलिए अक्सर सर्दियों में हमारा भी वज़न ३-४ किलो बढ़ जाता है ।
मतदान शिविर का नज़ारा भी बड़ा मनोरंजक होता है ।
एक मोटे ताज़े बन्दे को देखकर एक बोलता है --आ गई । वोट आ गई । बॉस ये तो पक्की हमारी है ।
इस पर दूसरा बोलता है --छोड़ यार , साला दारू तो हमारी पीता है , वोट उन्हें दे जाता है ।
लेकिन दिल के अन्दर कुछ भी हो , वोट मांगने में डॉक्टर्स भी किसी नेता से कम नहीं होते । हाथ जोड़कर इतना मीठा बोलते हैं कि एक दिन ही सही , आम आदमी को भी खास होने का अहसास होता है ।
९९ % लोग निर्णय लेकर ही आते हैं कि किसे वोट देनी है । फिर भी मतदान स्थल पर वोटर पर सब ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे उनकी जिंदगी उसी के हाथ में हो ।
लेकिन वोटिंग के मामले में यारी दोस्ती काम नहीं आती । अक्सर व्यक्तिगत जीवन में जो मित्र होते हैं , वोट दूसरी पार्टी को देते हैं । ऐसे लोग आँख बचाकर निकलने की कोशिश करते हैं । कुछ तो ऐसे मूंह फेरकर निकल जाते हैं जैसे पहचानते ही न हों ।
खाने का इंतज़ाम चुनाव वाले दिन भी किया जाता है । यह सुविधा शायद डॉक्टर्स के चुनाव में ही देखने को मिलती है ।
पिछले दस साल से हम भी चुनावों में सक्रीय रूप से भाग लेते रहे हैं । पूर्वी दिल्ली में अपनी पार्टी की कोर कमिटी में आते हैं । हालाँकि बड़े नेताओं की तरह स्वयं कभी चुनाव नहीं जीता , लेकिन सर्वसम्मति से ब्रांच के वाइस प्रेजिडेंट ज़रूर रह चुके हैं ।
अब हम भी किंग मेकर का ही काम करते हैं । यानि दूसरों को लड़ाते हैं ।
एक ख़ुशी की बात यह रही कि १२ फ़रवरी को हुए चुनाव में हमारी पार्टी का उम्मीदवार प्रेजिडेंट का चुनाव जीत गया और एक वाइस प्रेसिडेंट का ।
फिर अगले दिन पार्टी तो होनी ही थी ।
पूरे जोर शोर से जश्न मनाया गया ।
इस फोटो में हम इसलिए नहीं है कि फोटो तो हमीं ने खिंचा है मोबाईल से ।
और विजयी उम्मीदवारों का विधिवत स्वागत किया गया ।
ढोल और नगाड़ों की ताल पर सब झूम कर नाचे । सेबरस , सोमरस-- सब का सेवन करते हुए जश्न चलता रहा ।
और इस तरह एक और साल के लिए डॉक्टर्स के हितों के लिए संघर्ष करने के लिए टीम तैयार हो गई ।
किसी भी संस्था के लिए एक एसोसिएशन का होना अत्यंत आवश्यक होता है । इसका काम होता है संस्था के सदस्यों के हितों की रक्षा करना ।
मेडिकल प्रोफेशन में भी बहुत सी समस्याएँ हैं जिन्हें आम आदमी नहीं समझ सकता ।
नर्सिंग होम का पंजीकरण , पी एन डी टी एक्ट , निवासीय कॉलोनियों में क्लिनिक्स की वैधता , कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में डॉक्टर्स का प्रोटेक्शन आदि अनेक समस्याएँ हैं जिनसे हर प्राइवेट प्रेक्टिशनर को जूझना पड़ता है ।
साथ ही मेडिकल नॉलेज में निरंतर हो रहे परिवर्तन से सब को सूचित रखने के लिए सी एम् इ , सेमिनार्स , कॉन्फेरेन्स आदि का आयोजन , सभी पर्वों और राष्ट्रीय दिवसों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करना और अवसर मिलने पर सदस्यों के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन एसोसिअशन द्वारा किया जाता है ।
आशा है कि इस वर्ष भी हम चिकित्सा समाज के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करने में सफल होंगे ।
वाह!!! सही है सर जी आपकी पार्टी का उम्मीदवार प्रेजिडेंट का चुनाव जीत गया और एक वाइस प्रेसिडेंट का मुबारक हो ...अब मज़े लीजिये पार्टी के शुभकामनायें.... :)
ReplyDeleteचलिए बहुद-बहुत बधाई डा० साहब , अब कहने को आपकी पार्टी भी सत्ता में है !:)
ReplyDeleteजो सुख नेतागिरी में है वो डॉक्टरी में कहाँ...
ReplyDelete:-)
सर आपको बधाई..
सही कहा विद्या जी । इसी रास्ते से होकर कई डॉक्टर्स आज निगम पार्षद , विधायक और मंत्री भी बने हैं । डॉ हर्षवर्धन ने स्वास्थ्य मंत्री बनकर पोलिओ उन्मूलन का बहुत बड़ा कार्य शुरू किया जो अब समापन की ओर अग्रसर है । अब डॉ ए के वालिया भी बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं । एक डॉक्टर तो दिल्ली के महापौर भी रह चुके हैं ।
Deleteआजकल किंगमेकर ही ज्यादा मजे में है. वैसे अच्छा है डॉक्टरों को भी अपनी समस्याओं का समाधान तो चाहिये और सरकार के कान बहुत कमजोर होते जा रहे हैं सामूहिक स्वर शायद सुनाई पद जाएँ.
ReplyDelete'किंग मेकर' होने पर बधाई!
ReplyDeleteआपने कहा, "... अधिकतर डॉक्टर्स दो खेमों में बंटे होते हैं । लेकिन काफी ऐसे भी होते हैं जो न इधर होते हैं , न उधर ।"...
यह तो मानव जीवन का सत्य है कि समाज किसी छोटे से छोटे विषय पर भी, अधिकतर, तीन भाग में बंट जाता है, सिक्के के अधिकतर माने जाने वाले दो पहलू और बीच के मोटे खाली चेहरे समान (पशु जगत में, सर और पूँछ के बीच में शरीर), जो न हो तो सिक्का बन ही नहीं सकता - साकार रूप पा ही नहीं सकता!
पुनश्च -
Delete'किंग मेकर' को बुद्ध समान 'मध्य-मार्गी' कहा जा सकता है !?
वोटर है तो नेता है (आदमी है तो भगवान् है - या नहीं है - और कुछ के लिए फर्क नहीं पड़ता, हो या नहीं :)
दराल साहब,...बहुत२ बधाई,..किंग मेकर का जलवा ही अलग होता है,...क्योकि मैंने भी जीवन में 9-चुनाव लड़े और भारी मतों
ReplyDeleteके अंतर से सभी राजनीतिक चुनाव जीते,अब सिर्फ किंगमेकर का
काम करता हूँ,चनाव जीतने और जिताने के बाद जलवा बरकार रहता है
अच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...कामयाबी...
वाह! तो अब आपकी सरकार है... :-)
ReplyDeleteवाह जी वाह ! जीत की ख़ुशी में सोमरस का उपहार यह तो होना ही था ....बधाई जी
ReplyDeleteचलिए आपके द्वारा ये मंजर भी देख लिया.बधाई बधाई बधाई.
ReplyDeleteसब जानते हैं कि मोटापा घातक है,मगर अधिकतर डाक्टर मोटे मिलेंगे। सरकार खूब विज्ञापन देती है कि धूम्रपान जानलेवा है। औरों को हो न हो,डाक्टरों को तो यह सबसे अच्छी तरह पता होता है,मगर प्रायः डाक्टर धूम्रपान करते मिलेंगे। आखिर,क़िताबी ज्ञान क्यों डाक्टरों के काम नहीं आ रही,कोई सेमिनार इस पर भी हो!
ReplyDeleteराधारमण जी , डॉक्टर्स में स्मोकर्स अब बहुत कम बचे हैं । लेकिन मोटे पेट वाले बहुत मिल जायेंगे । इसका कारण शायद उनका सुबह शाम क्लिनिक पर बैठे रहना ही हो सकता है । फिर भी ध्यान तो उनको भी रखना ही चाहिए ।
DeleteJCFeb 15, 2012 09:32 AM
Deleteएक जमाने में जब मेरा वजन ८० के लगभग था (अब साठ है) तब पत्नी ने तोंद की ओर इशारा कर उसे कम करने की सलाह दी... इत्तिफाक से (अथवा डिजाइन से!), मैं उस समय अपने छोटे से मंदिर के सामने खडा था, जिसमें गणेश जी भी रखे रहते हैं, और मेरे मुंह से निकल गया, "इन के लिए तो घंटी बजाती हो!!!"
वैसे मेरा अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर मानना है कि यदि आप जिस समय किसी चिंता में हैं तो सिगरेट, शराब आदि का सेवन न करें... जब मैं सिगरेट कई वर्षों से पीता था ओर एक दिन दबाव के कारण अचानक छोड़ दी तो उसके कई एक दिनों पश्चात मेरी पत्नी ने एक दिन स्वीकारा कि मैं जब सिगरेट पीता था तो मेरे चेहरे पर प्रसन्नता झलकती थी (जिस कारण मुझे देख कर कुछेक अन्य लोगों ने भी पीनी शुरू कर दी थी!)...
यह प्रसन्नता मिथ्या होती है जे सी जी . स्मोकिंग से जितना नुकसान होता है उतना तो शराब से भी नहीं होता क्योंकि शराब आप कभी कभी पीते हैं जबकि एक बार सिग्रेट पीना शुरू किया तो छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है . .
DeleteJCFeb 15, 2012 10:25 PM
Deleteडॉक्टर साहिब, 'जगत मिथ्या' तो कहा ही, किन्तु 'द्वैतवाद' के कारण प्रतीत होते 'बुरा' तो योगियों ने (पहुंची हुई आमाओं ने) भोजन को भी 'विष' कह समझाया है, किन्तु उदर-पूर्ती साकार पशु जीवन की मजबूरी है :(...
किसी ज्ञानी ने मानव जीवन के अनुभव के आधार पर सही कहा कि आप चाहे दूध पियो या दारु, कुछ भी आपका खान-पान, 'रहन-सहन' आदि, आदि हो, मरना तो सभी का निश्चित है १०० +/- वर्ष जीवन किसी एक रूप में व्यतीत कर!...
और, संसार में आदमी ही नहीं अपितु कोई भी प्राणी अपनी मर्जी से तो नहीं आया है, या आता है... और आज सब जानते हैं कि मानव को ही बड़ा मस्तिष्क और बुद्धि दी गयी है (प्रकृति द्वारा?), प्राचीन सिद्धों के अनुसार ज्ञान उपार्जन कर 'माया-जाल' में फंसे रहते भी, जब भी समय मिले - धीरे धीरे ही सही (जैसे 'जीवन दाई' जल क़ी बूँद-बूँद से घट भरता है) - जीवन का सत्य समझने, और जब किसी काल में समझ आजाये तो दूसरों को भी बताने के लिए (जैसे सौभाग्यवश सिद्धों आदि द्वारा हिन्दू कथा-कहानियों, पुराण अदि में भी पाया जाता है) ... क्यूंकि यह कर पाना केवल मानव जीवन में ही संभव जाना गया है... इत्यादि इत्यादि...
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteकिंगमेकर होने का बहुत सुख है ...किसी का भला हुआ तो हमने किया , बुरा हुआ तो उम्मीदवार ने :)
ReplyDeleteबधाई !
हा हा हा ! यह बात भी सही है जी . इसे कहते हैं, हींग लगे ना फिटकरी ---
Deleteकिंगमेकर जी .३० एम् एल सोमरस तो अपना भी बनता है ...हा हा हा बस इतना ही !खैर आप के ऊपर उधार रहा !ये हमारा शौक है ......
ReplyDeleteफ़िलहाल तो बहुत-बहुत मुबारक स्वीकारें!
किसी दिन ये उधर भी चुकायेंगे सलूजा जी ।
Deleteअस्सी के दशक में एक दिल के डॉक्टर मनचंदा हुवा करते थे... एक 'सी.पी.आर टेक्नीक' प्रशिक्षण के दौरान उन से किसी ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे समाचार, कि रोज़ दो पैग सोमरस पीने से ह्रदय आघात नहीं होता, उन से किसी ने पूछा कि क्या यह सही है? तो उन्होंने कहा कि यह अंग्रेजों के लिए सही है, किन्तु भारतीय को गिमती दो तक ही आती है - चौथा भी हो तो कहते हैं दूसरा ही है' :) "...
Deleteजी हम तो दो से कम कभी लेते ही नहीं । क्योंकि पूरी बोतल एक में आ ही नहीं सकती । :)
Deleteइस कला में तो रुसी प्रसिद्द माने जाते थे, जो वोदका के एक के बाद एक, टोस्ट पर टोस्ट ले, ऊंची इमारत की खिड़की पर खड़े हो पीछे की ओर झुक के दिखाते थे कि उन्होंने अपना होश नहीं खोया होता था :) ...
Deleteजौनी वॉकर ने भी एक फिल्म में कुछ ऐसा कहा था, "पीते तो हमारे पूर्वज थे - हम तो खाली बोतल सूंघ कर ही झूम लेते हैं, आनंद ले लेते हैं", अर्थात मतलब तो आनंद से है...:)
JCFeb 17, 2012 05:55 PM
Deleteइस कला में तो रुसी प्रसिद्द माने जाते थे, जो वोदका के एक के बाद एक, टोस्ट पर टोस्ट ले, ऊंची इमारत की खिड़की पर खड़े हो पीछे की ओर झुक के दिखाते थे कि उन्होंने अपना होश नहीं खोया होता था :) ...
जौनी वॉकर ने भी एक फिल्म में कुछ ऐसा कहा था, "पीते तो हमारे पूर्वज थे - हम तो खाली बोतल सूंघ कर ही झूम लेते हैं, आनंद ले लेते हैं", अर्थात मतलब तो आनंद से है...:)
बल्ले बल्ले जी, संगठन में शक्ति है!
ReplyDeleteबहुत-बहुत मुबारक.......
ReplyDeleteअगर चुनाव लड़ते तो पेट नहीं बड़ता, चुनाव लडायेंगे तो सभी अपनी ओर खींचेंगे और मुंह में निवाला ठोंसेंगे ही :)
ReplyDeleteये वाला तो असली चुनाव लगता है -काश यही माडल बड़ा लोकतंत्र भी अपना लेता !
ReplyDeleteकाश !
Deleteउम्मीद है आप प्रेसिडेंट जल्दी बनेंगे ...
ReplyDeleteपार्टी चाहिए !
सतीश जी , अपनी तृप्ति तो वाइस प्रेजिडेंट बनकर पूरी हो गई । :)
Deleteअब हम भी किंग मेकर का ही काम करते हैं । यानि दूसरों को लड़ाते हैं । Bahut khoob.
ReplyDeleteइस वर्ष के पदाधिकारियों के नाम बतलाइये .
ReplyDeleteडॉ .के .के .अग्रवाल ?
जी नहीं , वो तो हो चुके । डॉ अनिल अगरवाल प्रेजिडेंट चुने गए हैं ।
Deleteचुनाव के दृश्य को सटीक दर्शाया ... अब आपके प्रेसिडेंट बनाने का इंतज़ार है ॥
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
कई महत्त्वपूर्ण 'तकनिकी जानकारियों' सहेजे आज के ब्लॉग बुलेटिन पर आपकी इस पोस्ट को भी लिंक किया गया है, आपसे अनुरोध है कि आप ब्लॉग बुलेटिन पर आए और ब्लॉग जगत पर हमारे प्रयास का विश्लेषण करें...
ReplyDeleteआज के दौर में जानकारी ही बचाव है - ब्लॉग बुलेटिन
सर दुसरों की छोड़िए ये बताइए पार्षद या विधायकी की तरफ आपके कदम बढ़ रहे हैं....। वैसे सोमरस की पार्टी तो अपन मांगेगे नहीं क्योंकि बिन पिए ही नशा चढ़ता रहता है....हां पार्टी करेंगे तो जरुर चुपचाप आकर चुस्की लगा जाएंगे...हीहीहीहीह
ReplyDeleteरोहित जी , अपना सपना यह नहीं है । इससे भी ऊपर है । :)
Deleteजब चुनाव की बातें हों तो राजनीति गरमा ही जाती है.
ReplyDeleteडॉक्टरस भी वोट के लिए खीसे निपोरे..वाह! क्या बात है.
उनकी वे तस्वीरें भी अजब ही होंगीं.
डॉक्टरस के चुनावी माहौल को जानकार अच्छा लगा.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
यह भी खूब रही।
ReplyDeleteआपकी सक्रियता की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।
बहुत बधाई।
आप उस एनर्जी चाइल्ड की तरह हैं जिसकी खूब सूरती सर्दियों में और भी बढ़ जाती है .आप ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं अपनी तस्वीरों से व्यक्तित्व से कैमरे की आँख से जो बायोनिक आई है .
ReplyDeleteआप तो सर्व गुण संपन्न हैं डॉ साहब ....
ReplyDeleteहमें तो गर्व है आप पर ......
कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर दी वीरुभाई जी । हटा दूँ क्या !
ReplyDeleteहीर जी , जैक ऑफ़ ऑल कह सकते हैं (यानि मास्टर ऑफ़ नन ) । :)
वाह जी वाह .. सत्ता में आने की बधाई ... बल्ले बल्ले ...
ReplyDeleteबहुत खूब ..बधाई
ReplyDelete