पिछली पोस्ट में भ्रष्टाचार पर लिखी ग़ज़ल को आपने पसंद किया । दरअसल यह एक ऐसा ज़टिल मुद्दा है जिसका निकट भविष्य में कोई निश्चित समाधान नज़र नहीं आता । भ्रष्ट लोग अपने भ्रष्ट आचरण में मग्न रहते हुए निश्चिन्त रहते हैं जबकि सदाचारी व्यक्ति को भ्रष्ट प्रणाली में कदम कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । यह पानी में रहकर मगरमच्छ से वैर जैसी स्थिति हो जाती है ।
कहते हैं भगवान के घर में देर है लेकिन अंधेर नहीं । यानि बुरे कर्म करने वालों को सज़ा तो मिलती है लेकिन देर से । हालाँकि देर से न्याय मिलना तो न्याय से वंचित रहने जैसा है ।
अब देखिये , एक व्यक्ति जो जीवन भर शराफ़त के रास्ते पर चलता रहा, कभी भी कोई बुरा काम नहीं किया , उसे तरह तरह की मुसीबतों में घिरा देखकर यही लगता है कि इसके साथ ऐसा क्यों हुआ । अक्सर ऐसी स्थिति में यही कहा जाता है कि ज़रूर पिछले जन्म में बुरे कर्म किये होंगे । या फिर पिछले बुरे कर्मों का फल भुगतना पड़ रहा है । यानि जो बुरे कर्म इतने पहले किये थे कि किसी को भी याद नहीं , उनका फल अब भुगत रहे हैं जबकि अब वह सत्य मार्ग पर चल रहा है ।
दूसरी ओर हर तरह से पापी , दुराचारी और भ्रष्ट लोग मौज उड़ाते नज़र आते हैं । ज़ाहिर है , उनके पिछले कर्म अच्छे रहे होंगे जिनका फल अभी मिल रहा है । आजकल ऐसे ही लोगों की संख्या बढती जा रही है ।
लेकिन इस विरोधाभास की स्थिति से एक भ्रामक सन्देश उत्पन्न होता है । और वो यह कि आप कुछ भी करिए , कोई फर्क नहीं पड़ता । यदि गलत तरीके से पैसा बनाया जा सकता है तो बनाइये । वैसे भी पैसे का महत्त्व दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है । यदि आपके पास पैसा है तो डरना कैसा । पैसे की ताकत से आप जिसे चाहे खरीद सकते हैं ।
यही कारण है कि भ्रष्टाचार को ख़त्म करना आसान नहीं है । हमारी सामाजिक , राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली ऐसी है कि भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध करना और भ्रष्टाचारी को सज़ा दिलाना लगभग असंभव सा लगता है ।
ऐसे में आशा की एक ही किरण दिखाई देती है, ईश्वर का न्याय । लेकिन उसमे भी देर होने से न्याय के साथ न्याय नहीं हो पाता। यदि पापी को सज़ा नहीं मिली तो पाप करने से कौन डरेगा ! और जब सज़ा मिली , तब तक वह पापी ही नहीं रहा । फिर सज़ा तो पापी को मिली ही नहीं।
ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या भगवान को भी हमारे न्यायालयों की तरह फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाना चाहिए ?
शायद लगता तो ऐसा ही है ।
इस बारे में आपका क्या कहना है ?
इस बारे में आपका क्या कहना है ?
डॉक्टर साब ,जिस तरह आपके गज़ल लिखे से भ्रष्टाचार खतम होइ गवा,वैसे ही ई पोस्ट लिखे से भगवान जी के यहाँ फास्ट-ट्रैक खुल जायेगी !
ReplyDeleteसंतोष जी , इस पर एक हरियाणवी जोक याद आ गया । लेकिन वो फिर कभी । :)
Deleteभगवान के पास इतनी फुर्सत नहीं है। भगवान के रूप हमने ही गढ़े हैं। भगवान हमारे ही भीतर, हमारे कर्मों में, अस्तित्व में हर वक्त विद्यमान रहता है। वह फल देता-लेता नहीं है। हमारे कर्म ही हमारी सोच, हमारी राहें तय करती हैं। अपने हिस्से की इमानदारी ही अपने हिस्से का आनंद है। कोई देखे या न देखे मौला देख रहा है का भाव हमे गलत आचरण से दूर और सत्कर्मो के प्रति सजग करता हैं। अति का परिणाम अब दिखने भी लगा है।
ReplyDeleteपाण्डे जी , सवाल का ज़वाब तो नहीं मिला । हालाँकि इतना आसान भी नहीं है । हमारे कर्मों का फल जल्दी क्यों नहीं मिलता ताकि दूसरों के लिए भी उदाहरण बन सके ।
Deleteतमाम तरीकों को सम्मिलित तौर पर अमल में लान होगा -फार्स्ट कोर्ट एक प्रभावी जरिया है !
ReplyDelete"ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या भगवान को भी हमारे न्यायालयों की तरह फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाना चाहिए ?"
ReplyDeleteफायदा नहीं है , क्योंकि उसके यहाँ हमारी तरह इन अदालतों को रिमोट से चलाने के लिए बड़े-बड़े...........नहीं है ! हाँ, कोई माने या न माने मगर उसके फैसलों में थोड़ा देरी जरूर होती है क्योंकि उसे इतने बड़े जगत का हिसाब-किताब सम्हालना पड़ता है, मगर उसके फैसले हमारी अदालतों की तरह गोलमाल नहीं होते !
गोदियाल जी , देरी होने से तो न्याय ही गोल हो जाता है ।
Deleteगीता मे कृष्ण बार-बार यह स्थापित करते हैं कि तू (अर्जुन), अर्जुन यानी कोई भी मनुष्य, तो मात्र निमित्त है। शेष सब कृष्ण (यानी भगवान) ही है। वही कर्म करवाता है, वही फल देता है, वही पाप-पुण्य निर्धारित करता है।
ReplyDeleteसब कुछ उन्ही के हाथों मे है तो क्या पाप क्या पुण्य ?
यदि सृष्टि का सब कुछ उनके हाथों मे नही तो क्या वह "सर्वशक्तिमान" भगवान है ?
"सर्वशक्तिमान" भगवान के होते हुये पाप क्यो ? अनाचार क्यों ?
या तो वह "सर्वशक्तिमान" नही या सब कुछ उसकी इच्छा से हो रहा है!
कृष्ण जी ने यह भी कहा है की कर्म करना आपका फ़र्ज़ है । और अच्छे कर्म का फल अच्छा , और बुरे का फल बुरा होता है । यानि गलती तो फ़र्ज़ पूरा करने में ही होती है ।
Deleteतो फिर फ़ास्ट ट्रैक का "कर्म" भी हमें ही करना पड़ेगा, प्रभु की राह देखे बिना।
Deleteभगवान की फास्ट ट्रेक कोर्ट कई बार दिखाई देती है। अभी मनुष्य सारे रहस्यों को जान ही कहां पाया है।
ReplyDeleteयह बात तो सही है अजित जी ।
Deleteकाश समझ में आ जाए तो आधी समस्याएं ख़त्म हो जाएँ ।
न्याय के आगे भगवान् के भी कितने असुर होते हैं
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक, आभार.
DeleteJCFeb 23, 2012 10:04 PM
ReplyDeleteप्रश्न का उत्तर काफी खाली समय माँगता है जो, अफ़सोस, आज तो नर्सरी के बच्चे तक के पास नहीं हैं... और स्कूलों आदि में पढाई की क्या हालत है और उस के कारण कितना शोर है वो किसी 'आम आदमी' से छुपा नहीं है :(...
और उस पर 'आप की कमीज़ मेरी कमीज़ से इतनी अधिक सफ़ेद क्यूँ लगती है"?!
इन कारणों से 'मैं' भटक जाता हूँ, वैसे ही जैसे 'भगवान्' राम चन्द्र जी तक भी सीता/ रावण / मारीच (मृग-मारीचिका) द्वारा भटका दिए गए थे! उनका क्या हाल हुआ वो भी सभी जानते हैं... न तो मेरे पास धनुष है, न मैं 'शिव का धनुष' तोड़ सकता हूँ, और न 'मैं' राजकुमार हूँ (जो कहलाता भी है आज, वो गाली भी खाता है, जानते हैं 'हम' सभी)...
मैं पूछने कगता हूँ, "मैं ऐसा क्यूँ हूँ" ?:( प्राचीन ज्ञानी -ध्यानी सब से यह पता करने के लिए कह गए कि वो उत्तर ढूंढे कि हर अस्थायी प्राणी / व्यक्ति भला है कौन???)...
थोड़े शब्दों में कहूं तो इतना तो समझ आ गया है कि 'मैं' छलावा हूँ, मिथ्या हूँ, और जैसा आशीष जी ने भी कहा 'हम' मॉडल हैं ब्रह्माण्ड के, मात्र एक मशीन... किन्तु एक अद्भुत मशीन, एक सुपर कंप्यूटर, जिस का हमें पूरा इस्तेमाल पता ही नहीं है...:(
मानव द्वारा निर्मित मशीनों, टेलिविज़न / कंप्यूटर आदि, आदि , के साथ निर्देश पुस्तिकाएं भी मिलती है, जिसे पढ़ किसी मशीन को कैसे उपयोग में लाना है, पता कर ही हम, अधिकतर मशीन का लाभ कुछ हद तक उठा सकते हैं...किन्तु पशु जगत में मानव जाति पर भी अनेक पुस्तिकाएं हैं तो सही, पर वे भी अज्ञानी मानव, अथवा अपूर्ण ज्ञानियों, द्वारा ही होती हैं...:(
वो तब न्याय करता है जब चारों तरफ़ से इंसान लाचार होजाता है और उसके न्याय का फिर कोई तोड कहीं नही होता दराल साहब ………बस इसिलिये कह दिया जाता है कि उसके यहाँ देर है अंधेर नही और कई बार तो बहुत जल्द न्याय होता है ………उसके खेल निराले ही देखे हमने तो ………वो यदि देर भी करता है तो सिर्फ़ इसलिये कि इंसान को सुधरने के मौके देता है और कहता है अब तो मान जा मगर जब इंसान खुद को ही भगवान समझने लगता है तब एक ही बार मे सारा अगला पिछला इंसाफ़ कर देता है।
ReplyDeleteसही कहा वंदना जी । लेकिन यह बात जब तक पापियों को समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।
Deleteसार्थक आलेख ...इस विषय में मैं यहाँ (अजीत गुप्ता जी) की बात से सहमत हूँ।
ReplyDeleteबहुत बार मन में ये बात आती है .... जो पापी है वो सुखी है और जो भगवान से डर कर जीवन गुजारता है वो दुखी ... असल में हम लोग अभी इतने ज्ञानी नहीं हुये जो भगवान की न्याय व्यवस्था को समझ पाएँ ...
ReplyDeleteअभी हम इतने ज्ञानी नहीं हुये कि भगवान की न्याय व्यवस्था को समझ सकें ... विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteजी , ज्ञान की खोज में तो लगे रहना चाहिए ।
DeleteJCFeb 24, 2012 03:09 AM
ReplyDeleteहमारे ज्ञानी-ध्यानी पूर्वज जब 'साधना' (चंचल मन को साध) / कठिन 'तपस्या' कर शून्य विचार में पहुँच, 'परम सत्य' को जाने, कि 'भगवान्' (साकार जगत का सृष्टि कर्ता/ / पालन हार / संहार कर्ता तीनों गुणों वाला 'त्रिपुरारी') शून्य काल और स्थान से सम्बंधित है, अर्थात निराकार है, शक्ति रुपी है, आदि - जिस कारण उसे अजन्मा और अनंत माना गया...
किन्तु, परमज्ञानी होने के कारण 'हम' अज्ञानियों / अल्प ज्ञानियों को रहस्मय भी प्रतीत होता है (पांचवी कक्षा के छात्र को पीएचडी समान!)...
इस कारण जो ज्ञान 'पहुंची हुई आत्माओं' ने, हिमालय आदि शांत स्थान पर बैठ, प्रकृति का अध्ययन और साधना कर, अर्जित किया उसे कथा कहानी आदि सांकेतिक भाषा में लिख गए हम अल्प-ज्ञानियों के लिए, हम जैसे कलियुगी निम्न-स्तर पर स्थित आत्माओं के लिए, यद्यपि परमात्मा के ही अनंत अंश, अर्थात आत्मा जिसका योग विभिन्न स्तर पर दिखते विभिन्न प्राणियों में 'माया' के कारण दिखाई पड़ता है...
इस लिए श्रद्धा, सब्र, और सब प्राणीयों से प्रेम आवश्यक माना जाता है 'सत्य तक पहुँचने हेतु - अंततोगत्वा परम सत्य के प्रकाश को अपने भीतर ही महसूस करने को... (जिसमें देर है मगर अंधेर नहीं है, क्यूंकि हर आत्मा काल-चक्र में महायुग के प्रथम भाग में सतयुग में पा तो लेता है किन्तु चक्र के साथ कलियुग आते आते भूल जाता है... और उसे सब उल्टा-पुल्टा प्रतीत ओता है अविश्वास के कारण... ...
कुछ तो गूढ़ अर्थ है भगवान् की न्याय व्यवस्था में , जो शायद हम देख ही नहीं पाते . या फिर खुशियों की ऊध्नी हमें देखने नहीं देती. आदरणीय सगीता जी ने ठीक कहा
ReplyDeleteइश्वर न्याय तो करता है ..पर मनुष्य उसे समझ नहीं पाता..और नीयती का खेल कहकर चुप हो जाता है.
ReplyDeleteकोई तो ऐसा फंडा हो कि समझ भी आ जाए ताकि मनुष्य फिर कभी पाप करने की कोशिश न करे ।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
बहुत विचारणीय पोस्ट डॉ,दराल कई बार हमारे मन में भी यही आता था आपने मन की कही बहुत अच्छा लगा|सतयुग में भी पापियों का नाश करने में भगवान् को काफी वक़्त लग जाता था उनके फेसले का ट्रेक तो पहले से ही स्लो है परन्तु यह बात तो तय है की वो फेंसला जरूर करता है इसलिए मनुष्य का भी फ़र्ज़ है की सारा काम भगवान् पर न छोड़े उसका काम इंसान जल्दी कर देगा तो भगवान् भी खुश हो जायेगा की उसका काम हल्का हो गया और इंसान को न्याय भी मिल जाएगा.
ReplyDeletemaine apne blog se vo cartoon hata diya sach me vyvdhaan paida kar raha tha aapka shukriya,aapki tippni mujhe mil gai thi ek to spam ki giraft se nikali.
ReplyDeleteकर्म की डोर से तो डॉ साहब हम सभी बंधें हैं .पूर्वजन्म के कर्मों का फल हम आज भुगत रहें हैं जो अब कर रहें हैं वह आगे (अगले जन्म में )सामने आयेगा .इसका मतलब यह नहीं है ,कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है ,अर्जित कर्म है आपका आपने शिक्षा प्राप्त की डॉ बने ,पूर्वजन्मों का कर्म फल इसके समानांतर कार्य रत रहता है .कोई आत्मा आपको इस जन्म में बे -साख्ता सताती है जबकि आप सदैव ही उसके लिए अच्छा करते हैं यही पूर्व जन्म का रिश्ता है जिसे मैं और आप भोगतें हैं .बहरसूरत यह सब आस्थाओं से जुडी बातें हैं .विश्वास हैं .जिन्हें मानने से कुछ अव्याखेय व्याख्यायित हो जाता है .जीवन का भेद फिर भी हाथ नहीं आता .हाँ फास्ट ट्रेक कोर्ट वहां भी होना चाहिए कथित पर -लोक में .हो सकता है ,हो ,भी लेकिन उसे जानने के लिए वहां तक जाना पडेगा .चलें ?
ReplyDeleteऐसा फास्ट ट्रैक कोर्ट तो होना ही चाहिए ताकि अपने सद्कर्मो या बुरे कर्मों का फल तुरंत ही मिल जाए...जन्मो का इंतज़ार ना करना पड़े.
ReplyDeleteवैसे आपने अनजाने में शायद 'परम सत्य' का बखान कर दिया है (वेदान्तियों के दृष्टिकोण से)...:
Deleteसनातन धर्म की मान्यतानुसार, परमात्मा अर्थात भगवान् शून्य काल और स्थान से सम्बंधित नादबिन्दू हैं, और इस कारण श्रृष्टि की रचना और संहार दोनों शून्य काल में ही हो गए :)
(और पालनहार विष्णु भगवान्, शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेट, वर्तमान के 'एक्शन रीप्ले' समान नाटक/ फिल्म का आनंद अनंत काल से लिए चले आ रहे प्रतीत होते है... और हम अस्थायी प्राणी, उन के ही प्रतिबिम्ब, उस अनंत नाटक के पात्र भी, उस अनंत नाटक का मधु की एक बूँद समान क्षणिक आनंद उठाने दिए जाते हैं -भगवान् तक अपने मन में भी पहुँचने का प्रयास करने हेतु :)
JCFeb 24, 2012 04:51 PM
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब आप तो 'वैज्ञानिक' हैं मेरे समान, इस लिए 'भगवन' के बारे में थोड़ा सा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर यदि देखें...
जैसे जैसे ज्ञान बढ़ता जाता है, 'भगवान्' पर विश्वास बढ़ता पाया जा सकता है...
अस्सी के दशक तक - जो 'सत्य' की खोज में पिछले कुछेक सदी से ही मूल से आरम्भ कर श्रंकला बढ तरीके से जुड़ते चले गए थे हर भौतिक तथ्यों को अच्छी तरह से ठोक-पीट कर - ऐसा मानना था कि 'वैज्ञानिक' भगवान् पर विश्वास नहीं करते थे...
किन्तु सोच में कुछ बदलाव दिखा सन '८२ में जब विज्ञान के क्षेत्र में विश्व-प्रसिद्द सर फ्रैड हौयल ने सबसे पहले माना कि 'पृथ्वी पर जीवन' के क्लिस्ट रासायनिक संरचना को देख मानना पडेगा कि इस में, भूत में, किसी अत्यंत बुद्धिमान जीव का ही हाथ होना चाहिए, भले ही वो पृथ्वी में हो अथवा ब्रह्माण्ड में कहीं अन्यत्र... किन्तु सारी सृष्टि की रचना में मात्र एक 'भगवान्' ( ) का हाथ होने से उन्होंने इंकार किया मानने को... (उस समय मैंने भी उन से हिन्दू पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में पंगा लिया था, और पूछा भी था कि उस परम बुद्धिमान जीव के बनाने वाले को भी किसी अत्यंत बुद्धिमान जीव ने बनाया हो सकता है मानने में क्या कठिनाई है??? किन्तु उनकी सैक्रेटरी से उत्तर मिला था कि अपनी व्यस्थता के कारण वो पत्राचार करने में असमर्थ थे :)...
किन्तु इस सदी के आरम्भ में, जब एक और विश्व प्रसिद्द वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग दिल्ली आये, तो समाचार पत्रों में पढने को मिला कि उन से जब पूश्हा गया कि वो भगवान् को मानते हैं या नहीं तो उनका उत्तर था कि वो उसके मन में प्रवेश पाना चाहते हैं!!!
(भगवान् यूँ धीरे धीरे, शनै शनै, रहस्योद्घाटन करते प्रतीत होते है - शैतान अर्थात नटखट नंदलाल ???..:)
JCFeb 24, 2012 05:04 PM
Deleteपुनश्च - टंकण की त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ...
और ( ) के भीतर कृपया 'डिवाइन पर्सन' (Divine Person) पढ़ें...
जे सी जी , अफ़सोस आजकल हमारे जैसे ऊंचे कद के वैज्ञानिक ही ज्यादा भ्रष्ट होते जा रहे हैं .
DeleteJCFeb 24, 2012 11:16 PM
Deleteडॉक्टर साहिब, 'पूर्व' और 'पश्चिम' साइकिल के दो पैडल समान हैं - जब एक ऊपर होता है तो दूसरा नीचे (पहले जब 'भारत' में वैदिक काल में सिद्ध पुरुष की भरमार थी तो कहते हैं यूरोप में जंगली रहते थे :)...
(नाटक में जैसा रोल मिलता है, अर्थात कोई पात्र उसे करने में सहमत हो जाता है, तो तारीफ़ जी तारीफ तब होती है जब कोई डाकू के रोल को भी श्रद्धा भाव से निभाता है :)
आपकी मांग जायज है डा साहब :) , वी मष्ट डू फास्ट फार सेम :) ,
ReplyDeleteसादर
'प्राचीन भारत' में व्रत रखने की (फास्ट की) प्रथा ऐसे ही तो आरम्भ हुई थी :)
Deleteकिन्तु अज्ञानता वश, वर्तमान में कलियुग के प्रभाव से वजन घटाना इस का उद्देश्य मान लिए गया...:)
और बेताल के पेड़ पर बार बार लटक जाने समान, भगवान् विष्णु भी फिर से मस्त हो शेष शैय्या पर जा पहुँचते हैं :)
नारायण! नारायण!
जब एक मामूली घडी भी किसी निश्चित व्यवस्था के तहत ही चलती है, तो निश्चय ही,यह दुनिया आपने आप नहीं चल रही होगी. लेकिन,यह सोचने के साथ ये समझना ज़रूरी है कि दुनिया को कोई व्यक्ति नहीं चला रहा है.जिन लोगों ने ये बात समझ ली है,उन्हें बुरा काम करने में कोई टेंशन नहीं है.
ReplyDeleteमैं भी सोचती हूँ कई बार कि जब पापी का पूरा जीवन अच्छी तरह बीत गया , फिर भगवान सजा देता भी है तो क्या !! आखिरकार संगीता जी की टिप्पणी से संतुष्ट होना पड़ता है !
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपकी उपस्थिति पार्थनीय है । धन्यवाद ।
ReplyDeletevichaarneey post hai
ReplyDeleteभारतीय अदालतों की तरह भगवान के यहां भी न्यायाधीशों का टोटा होगा।
ReplyDeleteफिर तो उन्हें ओवर टाइम करने की सख्त ज़रुरत है ।
Deleteमानव अर्थात 'मिटटी के पुतलों' के राज में समस्या संख्या की (अर्थात काल के साथ साथ बढ़ती, पहले से ही असंख्य पर असंख्य और जुड़ते जाने की) ही मानी जा सकती है...
ReplyDelete'सर्वगुण संपन्न', 'भगवान्', के राज में, जैसी समस्या पुतलों, अथवा प्रतिरूप/ प्रतिबिम्बों की है वैसी समस्या नहीं है... और यदि समस्या है तो वो अकेलेपन की और बोरियत की है, क्यूंकि वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक अकेले निराकार किन्तु एक ही परम ज्ञानी जीव माने गए है - 'सनातन धर्म' को मानने वालों द्वारा :)
['हिन्दू' कथा कहानियों में परम्परानुसार इसे आरम्भ में (जिससे मुनि शब्द की उत्पत्ति हुई) 'मौन', निशब्द नादबिन्दू विष्णु द्वारा ब्रह्मनाद से सृष्टि की उत्पत्ति की आरम्भिक स्तिथि को उन के नाभि से चतुर्मुखी ब्रह्मा की उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा जी को आकाश में कमल पुष्प पर बैठे दर्शाया जाता आ रहा है (और उन की समस्या के स्रोत का कारण स्वयं विष्णु जी के कान की मैल से बने दो राक्षसों की उत्पत्ति होना, और काल के साथ राक्षसों का भी बढ़ते जाना!), और सांकेतिक चित्रों में स्वास्तिक के चिन्ह द्वारा भी... जिसे इतिहासकार यूरोप में हिटलर के समय में भी यूरो-आर्यों द्वारा भी अपनाया गया मानते हैं... और इस प्रकार 'भारत' और जर्मनी के बीच प्राचीन सम्बन्ध होना भी]......
अभी तो कोर्ट भगवान से प्रेरणा ले रहे हैं; अगर भगवान ने फ़ास्ट ट्रेक का रास्ता अपना लिया तो वकीलों की तो रेड लग जाएगी ☺
ReplyDeleteभगवान भी बेचारे क्या क्या करें....हमारे धरती के भगवानों से एक देश तो संभल नहीं रहा...वो उपर से कितने देश संभाले है...फिर भी...
ReplyDeleteकलियुग, और उस पर 'घोर कलियुग', वो भूतकाल का आरंभिक समय है जब 'अमृत' पाने के उद्देश्य से 'भगवान' (निराकार ,नादबिन्दू विष्णु) ने गुरु बृहस्पति, [आधुनिक खगोलशास्त्रियों के अनुसार भी रिंग-प्लैनैट जुपिटर) हमारे सौर-मंडल के रिंग प्लैनेट में सुन्दरतम शनि ग्रह के निकटतम, भारी भरकम ग्रह - ('प्राचीन किन्तु ज्ञानी हिन्दुओं के नौ 'वी आई पी' में से उत्पत्ति के पश्चात वर्तमान में एक 'अमृत' सदस्य) - जो ('एल पी जी' सिलिंडर समान) - अत्यधिक वायुमंडल दबाव में तरल रूप में हाईड्रोजन गैस से बना पाया गया है], की देख-रेख में 'देवताओं' और 'राक्षसों' के माध्यम से 'अमृत' पाने के उद्देश्य से 'क्षीर-सागर मंथन' आरम्भ किया ही था!!!
ReplyDeleteऔर, आरम्भ में हलाहल आदि विष उत्पन्न हो जाने के कारण, दोनों ने विष्णु ('विष+अणु' :) के पास पहुँच 'त्राहिमाम', 'त्राहि माम' कर विष से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की तो विष्णु जी बोले कि केवल शिव (पृथ्वी) ही हलाहल अपने कंठ में अपनी अमृत-दायिनी अर्धांगिनी पार्वती (सोमरस प्रदान करने वाली चन्द्रमा :) की कृपा से धारण कर सकते हैं... उनके पास जाओ और उनकी प्रार्थना करो...:)
आधुनिक हिन्दू सोमरस पान तो कर रहे हैं, किन्तु साथ साथ मस्तक पर चंद्रमा के सार कि बोतल नहीं खोल पा रहे हैं, क्यूंकि उसकी चाभी योगेश्वर, मोहिनी रुपी विष्णु/ गंगाधर शिव के पास है :)...
JCFeb 26, 2012 09:55 PM
Deleteपुनश्च - नवग्रह की पूजा कई 'आधुनिक हिन्दू' भी परम्परानुसार करते चले आ रहे हैं... अस्सी के दशक के आरम्भ में में भी पत्नी के निरंतर पांच माह दबाव के पश्चात गुवाहाटी असम में कामाख्या मंदिर हो आने, (और उस दौरान घटे कुछ विचित्र घटनाओं के कारण), एक अन्य पहाड़ी की चोटी पर स्थित नवग्रह मंदिर भी अपने मन से पहली बार हो आया...
वहां गुम्बद वाली इमारत के भीतर आठों दिशाओं में एक आकार के आठ ('8') शिवलिंग, और उनके केंद्र में एक बड़ा शिवलिंग था... इन्हें देख मुझे तो कम से कम इनकी पूजा और पहले सुने हुवे 'अष्ट-चक्र' शब्द के सन्दर्भ में अष्टभुजाधारी दुर्गा, और शेष शैय्या पर लेटे अनंत विष्णु के अष्टम अवतार कृष्ण का अर्थ कुछ कुछ समझ आ गया (संख्या '8' को लिटा दें तो तो यह गणितज्ञों द्वारा अनंत को दर्शाने वाला चिन्ह माना जाता है!!! ...
अब इतने नेता ऊपर पहुँच गए हैं क्या ये बनाने देंगे फास्ट ट्रेक ऊपर वाले को .... या अगर फिर से जनतंत्र की दुहाई देने वाली बात आ गयी तो क्या ऊपर वाला फेंसला ले पायगा अकेले ही ...
ReplyDeleteया क्या पता वो फास्ट ट्रेक बना चूका हो ... तभी तो इतनी हत्याएं, मार धाड़ हो रही है आजकल ...
नासवा जी दुनिया को फास्ट ट्रेक नहीं फास्ट ट्रेक कोर्ट चाहिए . :)
DeleteJCFeb 27, 2012 05:41 AM
ReplyDeleteJCFeb 27, 2012 05:35 AM
किन्तु वर्तमान में, जनसंख्या निरंतर बढ़ने के साथ, समस्याएं भी निरंतर काल के साथ साथ बढती जा रही हैं - सभी क्षेत्र में - और मानव की कठिनाइयां और, और, बढाते क्षेत्र भी बढ़ते जा रहे हैं 'भौतिक विकास' के कारण और संसार छोटा होता जा रहा है, खाली स्थान बचे ही नहीं रह गए हैं, जंगल कट गए हैं, सडकों में वहां ही वहां है, आदि आदि, और जिस कारण 'कोलावारी डी' भी है!!!...
कोर्ट, वकील, और जज हैं तो सही, किन्तु समय के साथ, "एक तो करेला / उस पर नीम चढा" कहावत को चरितार्थ करते मानव चरित्र और उस के कार्य कलापों में भी बुराइयां बढ़ने के कारण (काल के स्वाभाव के कारण?) पीड़ितों की संख्या तो बढ़ ही रही है, किन्तु उनके अनुपात में कोर्ट-कचहरी और अच्छे जजों की संख्या नहीं बढ़ रही है... जिस कारण, उदाहरणतया, देश की राजधानी दिल्ली शहर के कूड़ेदान (शायद मानव व्यवस्था को प्रतिबिंबित करते) विभिन्न माध्यमों से कूड़ा सडकों में गिरा, उसे इधर उधर बिखेर रहे हैं... और 'हम' नाक में रुमाल रख निकलने का प्रयास कर रहे हैं :)
[उल्टी रील चलने का रहस्य सिद्धों को पता चल गया था, जो 'भगवान्' को तो मालूम होगा है... तभी तो वो शेष शैय्या में पड़ा भूत की फिल्म देख रहा है और आनंद उठा रहा है...:)
पुनश्च - "ज़रा सी नज़र बंटी / दुर्घटना घटी" , 'वाहन' को गूगल उन्कल ने 'वहाँ' बना दिया :)