एक समय था जब डायबिटीज ( मधुमेह ) जैसी बीमारी को विकसित देशों की समस्या समझा जाता था । लेकिन आधुनिक विकास के साथ अब यह समस्या भारत जैसे विकासशील देश में भी पनपने लगी है । हमारे देश में यह रोग दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । इस समय देश में लगभग ५ करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं । इसीलिए भारत को डायबिटिक केपिटल ऑफ़ वर्ल्ड कहा जाने लगा है ।
क्या होता है मधुमेह ?
आम तौर पर खाने में मौजूद कार्बोहाइड्रेट के पाचन से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित स्तर पर बनी रहती है । यह संभव होता है इंसुलिन नाम के हॉर्मोन से जो ग्लूकोज के मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है । जब यह नियंत्रण सामान्य नहीं रहता तब ब्लड सुगर बढ़ जाती है । ऐसी स्थिति को मधुमेह कहते हैं ।
डायबिटीज / मधुमेह के प्रकार :
१) टाइप १ -- इसमें शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम होने से ग्लूकोज का उपयोग नहीं हो पाता । इसलिए रक्त में सुगर की मात्रा बढ़ी रहती है । आम तौर यह अनुवांशिक होता है और कम उम्र में ही रोग हो जाता है ।
२) टाइप २ -- इसमें इंसुलिन की मात्रा तो सामान्य होती है लेकिन ग्लूकोज पर इंसुलिन का प्रभाव कम हो जाता है जिससे टिश्यूज को ग्लूकोज नहीं मिल पाती और रक्त में सुगर का स्तर बढ़ा रहता है ।
३) गेसटेसनल डायबिटीज --यह सिर्फ गर्भवती महिला को गर्भ के दौरान ही होती है जो डिलीवरी के बाद ठीक हो जाती है । हालाँकि बाद में डायबिटीज होने की सम्भावना बनी रहती है ।
डायबिटीज का इलाज क्यों ज़रूरी है ?
टिश्यूज में ग्लूकोज की निरंतर अत्यधिक मात्रा से कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं जिससे शरीर के विभिन्न अंगों की कार्य क्षमता घटने लगती है । अंतत: ऑर्गन फेलियर होने लगता है ।
कौन से अंग प्रभावित होते हैं ?
बिना उपचार मधुमेह से हृदय रोग , बी पी , नसों में रुकावट , गुर्दे की बीमारी , नपुंसकता और शारीरिक कमजोरी होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है । लम्बे अन्तराल तक डायबिटीज रहने से मुख्यतय: निम्न विकार पैदा हो जाते हैं --
१) डायबिटिक रेटिनोपेथी : आँखों में रेटिना पर प्रभाव पड़ने से दृष्टि पूर्ण रूप से ख़त्म हो सकती है ।
२) डायबिटिक न्युरोपेथी --नर्व्ज के डेमेज होने से पैरों में दर्द रहने लगता है जो आम दर्द निवारक दवा से ठीक भी नहीं होता ।
३) डायबिटिक नेफ्रोपेथी -- किडनी डेमेज होने से किडनी फेलियर हो सकता है जिसे एंड स्टेज रीनल डिसीज कहते हैं ।
४) डायबिटिक फुट --- कभी कभी पैरों में घाव हो जाते हैं जो ठीक नहीं हो पाते । इसलिए मधुमेह के रोगी के लिए पैरों की देखभाल बहुत ज़रूरी होती है ।
उपचार :
डायबिटीज एक लाइफ स्टाइल डिसीज है यानि अक्सर हमारी जीवन शैली से यह रोग उपजता है । निष्क्रियता , खाने में अत्यधिक केल्रिज और वसा और धूम्रपान व मदिरापान , मोटापा तथा अनुवांशिकता इस रोग के मुख्य कारक हैं ।
इसलिए सबसे पहले हमें अपने रहन सहन में बदलाव करना होगा ।
नियमित व्यायाम और सैर , और खाने में संयम बरतने से आरम्भ में मधुमेह को नियंत्रित रखा जा सकता है ।
सफलता न मिलने पर दवा का सेवन आवश्यक हो जाता है . अक्सर एक दवा से इलाज करते हैं . लेकिन दो या तीन भी देनी पड़ सकती हैं ।
टाइप १ और लम्बे समय के बाद टाइप २ में इंसुलिन के टीके लगाने पड़ते हैं ।
दिल्ली में मधुमेह के रोगियों की बढती संख्या को देखते हुए , दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में दिल्ली सरकार की ओर से डायबिटीज , एन्डोक्राइन और मेटाबोलिक केयर सेंटर खोलने की योजना बनाई गई है जिसका शिलान्यास दिल्ली की माननीय मुख्मंत्री श्रीमती शीला दीक्षित द्वारा ८ फ़रवरी को किया गया ।
इस अवसर पर बाएं से : डॉ एस वी मधु ( विभाग अध्यक्ष ) , प्रधान सचिव श्री अंशु प्रकाश , निगम पार्षद श्री अजित सिंह , विधायक श्री वीर सिंह धिंगान , माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित , माननीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ ऐ के वालिया , चिकित्सा अधीक्षक डॉ राजपाल ।
मंच संचालन का भार एक बार फिर हमारे ऊपर ही आ पड़ा ।
किसी भी कार्यक्रम में कम्पीयरिंग ( मंच संचालन ) एक बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य है । बढ़िया साज सज्जा के बावजूद , कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक पर बहुत निर्भर करती है । एक अच्छे संचालक के लिए आवश्यक है :
* प्रोटोकोल का ध्यान रखना , विशेषकर ऐसे कार्यक्रम में जहाँ सरकार के उच्च पदाधिकारी मंच पर आसीन हों ।
* संचालक का आत्म विश्वास , उच्चारण , शैली , भाषा और विषय का ज्ञान ।
* टाइम मेनेजमेंट -अक्सर इस तरह के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के पास समय का आभाव रहता है । ऐसे में पूरे कार्यक्रम को सीमित समय में समाप्त करना एक चेलेंज होता है । कभी कभी इसका विपरीत भी हो सकता है , विशेषकर जब कार्यक्रम के बाद खाने का भी प्रबंध हो और खाने में देर हो जाए ।
इसीलिए मंच संचालन भी एक कला है ।
लेकिन एक बात और । मंच संचालक की हालत उस एक्स्ट्रा फ़िल्मी कलाकार जैसी होती है जो डांस तो हीरो या हिरोइन के साथ करता है लेकिन कैमरा उस पर कभी फोकस नहीं होता ।
बस फर्क इतना है कि मंच संचालक पर कैमरा तो फोकस रहता है , लोग देखते भी उन्हें ही हैं , लेकिन कोई उसके लिए तालियाँ नहीं बजाता ! इसीलिए अक्सर यह एक थेंक्लेस जॉब होता है।
किसी भी कार्यक्रम में कम्पीयरिंग ( मंच संचालन ) एक बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य है । बढ़िया साज सज्जा के बावजूद , कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक पर बहुत निर्भर करती है । एक अच्छे संचालक के लिए आवश्यक है :
* प्रोटोकोल का ध्यान रखना , विशेषकर ऐसे कार्यक्रम में जहाँ सरकार के उच्च पदाधिकारी मंच पर आसीन हों ।
* संचालक का आत्म विश्वास , उच्चारण , शैली , भाषा और विषय का ज्ञान ।
* टाइम मेनेजमेंट -अक्सर इस तरह के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के पास समय का आभाव रहता है । ऐसे में पूरे कार्यक्रम को सीमित समय में समाप्त करना एक चेलेंज होता है । कभी कभी इसका विपरीत भी हो सकता है , विशेषकर जब कार्यक्रम के बाद खाने का भी प्रबंध हो और खाने में देर हो जाए ।
इसीलिए मंच संचालन भी एक कला है ।
लेकिन एक बात और । मंच संचालक की हालत उस एक्स्ट्रा फ़िल्मी कलाकार जैसी होती है जो डांस तो हीरो या हिरोइन के साथ करता है लेकिन कैमरा उस पर कभी फोकस नहीं होता ।
बस फर्क इतना है कि मंच संचालक पर कैमरा तो फोकस रहता है , लोग देखते भी उन्हें ही हैं , लेकिन कोई उसके लिए तालियाँ नहीं बजाता ! इसीलिए अक्सर यह एक थेंक्लेस जॉब होता है।
लेकिन कहते हैं करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।
इसलिए हमने भी तालियाँ बजवाना सीख लिया है । वैसे अपने लिए तालियाँ बजवाना हमने कवियों से ही सीखा है।
मधु से मधुमेह बनता है, पर
मधु से मधुमेह नहीं होता !
और ग़र मधुमेह हो जाए, तो
मधु से नाता तोड़ना पड़ता है !
फिर भी ग़र बात ना बने , तो
मधु से नाता जोड़ना पड़ता है !
नोट : डॉ एस वी मधु डायबिटीज केयर सेंटर के इंचार्ज हैं।
दराल सर,
ReplyDeleteहरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला में कौन सी मधु थी...
वैसे कहां रहे अब वो पीने वाले, कहां रही वो मधुशाला...
सूत्रधार ही किसी समारोह की जान होता है...
जय हिंद...
वो मधु तो कड़वी होती है भाई ।
Deleteमंच-सञ्चालन की बधाई !
ReplyDeleteमधुमेह अब नैदानिक होता जा रहा है.इस तरह की जागरूकता ज़रूरी है. और हाँ,मधु सेहत के लिए फायदेमंद है.(मधुशाला वाला नहीं )
लेकिन मधुमेह में वर्जित है ।
Deletebahut achhi jankari kavita ke sath man gaye apko
ReplyDeleteमंच संचालन के लिए बल्ले बल्ले जी ☺
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी डा० साहब , अभी हाल में एक खबर पढ़ रहा था जिसके अनुसार अन्तराष्ट्रीय मानको में अब मदुमेह की सामान्य स्थिति जो पहले डोक्टर लोग १४० मानते थे उसे घटाकर शायद १०० या फिर ८० कर दिया गया है !
ReplyDeleteगोदियाल जी , ब्लड सुगर को दो बार चेक करते हैं --पहले खाली पेट फिर खाने के बाद । फास्टिंग ब्लड सुगर १०० से और खाने के बाद १४० से नीचे होनी चाहिए ।
Deleteआप ठीक कह रहे है डा० साहब, मगर मैं जिस हालिया खबर की बात कर रहा था वह अमेरिकन डैबेट्स अस्सोसियेशन की खबर थी जिसमे उन्होंने इस नॉर्मल ब्लड सूगर के मानक(लेबल) को १४०-१०० से कम करके शायद १३० और ९० कर दिया है ! (ठीक से याद नहीं आ रहा )!
DeleteBTW: Your this new photograph is quite impressive.
Thanks .
Deleteजानकारी के लिए धन्यवाद्!
ReplyDeleteकिन्तु मधुमेह और कैंसर (यूवी समान), और न जाने क्या क्या तकलीफें और समस्याएं तो अब तीव्रतर गति से बढती ही जा रही हैं... और सोचने वाली बात, जो अपन को लगी, वो यह है कि जैसे सीनियर बच्चन ने भी कहा "राह पकड़ तो एक चला चल / पा जाएगा मधुशाला", हमारे पूर्वज भी कह गए कि 'प्रभु की माया' के कारण (काल की उल्टी चाल, सतयुग से कलियुग और अंततोगत्वा 'घोर कलियुग' प्रतीत होने के कारण) मानव 'परम सत्य', एक मात्र निराकार परमेश्वर तक पहुँचने में अपने को असमर्थ पाता है...
और, केवल जब 'गीता' पढ़ी ('८४) में तो वहाँ निमंत्रण भी मिला पाया 'कृष्ण' से कि यदि 'अज्ञान का अँधेरा' दूर करना है तो जो कोई उनकी ऊँगली पकड़ लेगा वो उसे अपने सर्वोच्च रूप विष्णु तक ले चलेंगे, जैसे अर्जुन को भी उन के दर्शन करा दिए थे :)... मुंबई में रहते शिर्डी ले जाये जाने के कारण, साईं बाबा के दर्शन कर, सुनने को मिला कि श्रद्धा और सबूरी आवश्यक हैं... और साथ साथ नाशिक में गोदावरी नदी के स्रोत, 'त्रेयम्बकेश्वर' के दर्शन, और प्रसाद समान अंगूर का रस मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ :)...
अंगूर के रस का प्रसाद ! हा हा हा ! जे सी जी , तभी तो कहा है --पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए । :)
DeleteJCFeb 11, 2012 01:56 AM
Deleteमंदिर में तो प्रसाद आम मंदिरों जैसा मिलता है, लेकिन नाशिक में काले और पीले, दोनों प्रकार के, अंगूरों की खेती होती है... कुछ खेतों के बाहर थोड़े,और बाज़ार में अंगूर का फल आम मिलता है... और - फ़्रांस के लियों शहर में बनी जग-प्रसिद्द वाइन समान (जो मुझे भी चखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था कुछ वर्ष पहले जब एक युवक वहाँ से आया था) - अब अंगूरों के रस से नाशिक में बनी वाइन भी मशहूर होती जा रही है... वैसे भारत में (दिल्ली में भी) कुछेक शिव मंदिर हैं जहां शराब चढ़ाई जाती है और प्रसाद रूप में मिलती है - ' सोमरस -प्रिय' शिव भक्तों को (जिसे केवल देवता, अर्थात परोपकारी व्यक्तियों के लिए ही सही माना गया है :)...
पुनश्च - पार्वती पुत्र गणेश को तो मोदक-प्रिय कहा जाता है...
achhi jankari
ReplyDeleteमंच संचालन भी एक कला है ..और आप एक कलाकार भी है ..उसके लिए तालियाँ कबूलें !
ReplyDeleteबहुत बढिया और अच्छी जानकारी के लिए ...
आपका आभार !
bahut labhkari post.photo bhi bahut aakarshak hain madhu ki kashanika to kamaal ki hai.
ReplyDeleteबड़ी मीठी पोस्ट है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर की जाएगी!
सूचनार्थ!
उद्घोषक और मंच संचालक की भूमिका में बड़ा फर्क है.
ReplyDeleteराहुल जी , अक्सर हमें दोनों का काम करना पड़ता है । :)
Delete* संचालक का आत्म विश्वास , उच्चारण , शैली , भाषा और विषय का ज्ञान ।....
ReplyDeleteहम्म्म्म........
:-)
thanks sir..
for all the important informations...
nice pic too...
regards.
ठीक कहा जी ' लेकिन मधुमेह पर स्पष्ट नहीं हुआ
ReplyDeleteपूछिए आर्य जी , क्या पूछना चाहते हैं ?
Deleteकहते हैं भारत में हर चौथा आदमी मधुमेह का मरीज है...लोगो को अपनी लाइफस्टाइल बदलनी ही पड़ेगी...
ReplyDeleteमंच सञ्चालन का तो आपको अच्छा अनुभव है...कार्यक्रम सफल रहा होगा.
अच्छी जानकारी मधुमेह पर। अच्छा हुआ हमें कभी संचालन का मौका नहीं मिला... पूरा फ़ेलियर साबित होते:)
ReplyDeleteदूर ही रहना चाहिए । बड़ा टेंशन का काम है प्रसाद जी ।
Deleteमंच संचालन एक कला है,और आप तो उसमें निपुण हैं.बहुत बधाई.मधुमेह तो अब कॉमन बीमारी हो गई है.राज रोग.
ReplyDeleteजब दराल जी मधु पर मेह से बरस गये
ReplyDeleteतब श्रोतागण उनके संचालन से हरष गये
उन्होंने सब अपने मन की कर ली यारो
हालांकि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी तरस गये :)
अली जी, असली मंच और मंच-संचालक तो स्वयं वसुधा, अर्थात धरा, अर्थात धरती माता ही है (और 'हम' मात्र कठपुतलियाँ, - दर्शक अथवा एक्टर, जिनकी डोर चन्द्रमा के हाथ में हैं - उनकी उन्र्लियों का काम करते सौर-मंडल के सदस्य) !!!
ReplyDeleteद्वैतवाद के कारण, 'भारत' में, 'धरती माता' पृथ्वी के उपग्रह चन्द्र को या तो 'चन्द्रमा' कहा जाता है अथवा 'चन्दा मामा'... अर्थात पृथ्वी की माँ, या भाई!!!
आधुनिक वैज्ञानिक भी पहले दुविधा में थे कि चन्द्रमा पृथ्वी से ही उत्पन्न हो - और फिर अपने निम्नतर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण - इस का उपग्रह बन कर रह गया... अथवा वो कहीं बाहर से आ कर इस का उपग्रह बना ???
किन्तु अब वो भी मानने लगे हैं कि उसकी उत्पत्ति पृथ्वी से ही हुई, अर्थात पृथ्वी-चन्द्र से ...
जबकि प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री इस निष्कर्ष पर कभी के पहुँच चुके थे - जैसा उन्होंने सांकेतिक भाषा में गंगाधर, शिव को अर्धनारीश्वर (शिव-सती) और काल के साथ प्राकृतिक उत्पत्ति कर सोमेश्वर , शिव-पार्वती हो जाना दर्शाया...
कठपुतलियों अथवा 'माटी के पुतलों' द्वारा बनाए गए मंच कभी कभी टूटते देखे जा सकते हैं (और उस कारण बड़े बड़े नेता धूल चाटते भी!)...
पुनश्च -
Delete@ "नोट : डॉ एस वी मधु डायबिटीज केयर सेंटर के इंचार्ज हैं।"
यह तो 'मैच फिक्सिंग' सा प्रतीत हो रहा है :)
जे.सी.जी ,
Deleteमैच फिक्सिंग तो लग रही है :)
आपकी मंच संचालन वाली टिप्पणी के 'आलोक' में डाक्टर एस वी मधु और डाक्टर दराल जी को 'सांकेतिक रूप' से मधुमेह जागरूकता कार्यक्रम वाले मंच की धरती और चंद्रमा माना जा सकता है :)
यह कैसा संयोग है कि आपकी टिप्पणी के अंतिम पैरे में शिव / गंगाधर / अर्धनारीश्वर / सोमेश्वर का उल्लेख हुआ है और हमारी टिप्पणी के अंतिम पैरे में उन्हें चन्द्रमौलेश्वर कहा गया है :)
जे सी जी , आपकी टिपण्णी पढ़कर आनंद की अनुभूति के साथ आनंद ( फिल्म ) याद आ गई ।
Deleteहालाँकि हम तो चकोर की ही भूमिका निभा रहे हैं ।
फ़िलहाल आप दोनों की जुगलबंदी ग़ज़ब ढा रही है । :)
@ डॉक्टर साहिब, मंच (ब्लॉग) तो आपका ही है, 'हम' तो जुगनू समान हैं ( "सूर सूर/ तुलसी शशि/ उद्गुन केशव दास / अबके कवि खद्योतसम / जंह तंह करें प्रकाश" - स्कूल में पढ़ा था!)...
Deleteवर्तमान, 'स्वतंत्र' भारत का राष्ट्रीय पक्षी नीले रंग वाला 'मोर' है ("मोर मचाये शोर", शिव-पार्वती ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय का वाहन), जबकि इसके विभाजित अंश पाकिस्तान का चकोर!...
और गले में विष धारण करने के कारण शिव स्वयं 'नीलकंठ' कहलाये गए (गले से / कृष्ण, नीलाम्बर / नीला आसमान (पंचभूतों में से एक, अर्थात 'आकाश')...
@ अली जी, "चार दिनों की चाँदनी / फिर अंधियारी रात" कहावत है... और शिव जी के मस्तक पर पूर्ण चन्द्र नहीं दर्शाया जाता, उसकी केवल चार (?) कलाएं ('रक्षा बंधन' के दिन कलाई में बांधे जाने वाली कच्चे धागों की मौली समान)... आपके 'चन्द्रमौलेश्वर' से ही मैं प्रेरित हुआ था! धन्यवाद!
JCFeb 11, 2012 09:34 PM
Deleteपुनश्च -
छूट गया था, कृपया पढ़ें - "गले से" सांप लटकाया दर्शाया जाता है...
मधुमेह की जानकारी और एक अच्छे संचालक के गुणों को एक ही जगह पाने से अपने लिये तो इस पोस्ट ने एक पंथ दो काज कर दिये।
ReplyDeleteडॉ. मधु, मधुमेह केन्द्र के इंचार्ज? 'मैच फिक्सिंग'? नो कमेंट्स!
बहुत उपयोगी पोस्ट! आभार!
चिंता न करें अनुराग जी । यह रोग बिना मैच फिक्सिंग के ठीक नहीं हो सकता । :)
Deleteमधु से मधुमेह बनता है, पर
ReplyDeleteमधु से मधुमेह नहीं होता !
और ग़र मधुमेह हो जाए, तो
मधु से नाता तोड़ना पड़ता है !
फिर भी ग़र बात ना बने , तो
मधु से नाता जोड़ना पड़ता है !
सहज सरल शब्दों में समझा दिया आपने यह मेटाबोलिक डिसऑर्डर .पूरे परिवार का रोग बन जाता है डायबितीज़ आखिरी चरण में .न जाने कण क्या होजाए लापरवाही से 'डायबेतिक फुट 'से लेकर गैंग्रीन तक .वंश दाय तो है ही यह रोग बच्चा जो मधुमेह ग्रस्त माँ बाप को पैदा होता है कमज़ोर अग्नाशय (पेंक्रियाज़ )लिए आता है .शुक्रिया इस पोस्ट के लिए .
JCFeb 11, 2012 10:55 PM
ReplyDeleteवीरू भाई जी, सत्य वचन!... प्रलय भी तो हो सकती है (?)...
हमारे पूर्वज कह गए, "जो कल करना है, आज करले/ जो आज करना है, अब // पल में परलय होउगी / बहुरी करोगे कब???"...
@ डॉक्टर साहिब, कृपया उस पर भी प्रकाश डालिए की ऐसा क्या करना है??? ...
हमारे पूर्वज ज्ञान बढाने के प्रयास का उपदेश दे, स्वयं मुर्दे को भी ज़िंदा करना कर गए!...
ऐसा पुराण आदि से संकेत मिलते हैं, जैसे शनि के शिशु गणेश के दर्शन मात्र से उसका गला ही कट गया :(
और पार्वती के आग्रह करने पर शिव जी ने उसकी गर्दन पर सर्वोच्च स्मरण-शक्ति वाले पशु, (वर्तमान में अंतरजाल पर किये जाने वाली 'मौर्फिंग' समान, वास्तविक जीवन में हाथी का सर चिपका दिया...:) .
क्यंकि अधिकतर युवाओं के पास समय ही नहीं है दैनिक जीवन में तथाकथित मूल आवश्यकता पूर्ती, ('रोटी , कपड़ा, और मकान'), में उलझे रहने के कारण (अपने समान ही!), जिस कारण हम उन्हें दोष नहीं दे सकते...
Delete'मैं' भी, भारत में क्रीम माने जाने वालों में, 'इंजिनियर', होने के नाते 'सत्य' से अवगत तब हुआ जब पत्नी के आर्थ्राईटिस के कारण एक डोक्टरसे दूसरे, एक चिकित्सा पद्दति से दूसरी तक भटकता फिरा... और अपने को 'ज्ञानी' होने को एक भ्रम-मात्र जान :)...
किन्तु कालान्तर में, काले बादल की रुपहली किनारी समान, पाया कि दूसरी ओर 'मेरा' 'ज्ञान-वर्धन' तो हुवा ही :)
और कम से कम अब जब समय मिला है तो अपने पूर्वजों के कथन आदि से सत्य जानने का प्रयास तो करने में बिताना चाहता हूँ... ...
जे सी जी , सत्य जानने की इच्छा युवाओं की बजाय बुजुर्गों को ज्यादा होती है . यह स्वाभाविक भी है .
Deleteबार बार सुंदर मंच सञ्चालन का जौहर दिखाने के लिये आपका अभिनन्दन.
ReplyDeleteमधु का मधुमेह से जो रिश्ता स्थापित किया वह तो अद्भुत लगा.
जी शुक्रिया .
Deleteतालियों की दरकार तो हर एक को होती है..
ReplyDeleteसफल सञ्चालन के लिए बधाई
जानकारी युक्त आलेख
महत्त्वपूर्ण जानकारी...
ReplyDeleteसादर.
मधुमय संचालन की बधाईयाँ
ReplyDeleteबेहतरीन ज्ञानवर्द्धक जानकारी दी है ... मंच संचालन के लिए बधाई...
ReplyDeleteआज की ज़िंदगी में,केवल ध्यान और योग के बूते ही मधुमेह से बचा जा सकता है।
ReplyDeleteजी हाँ , जीवन शैली का बहुत प्रभाव पड़ता है ।
Deleteसही कह रहे हैं कुमार राधारमण जी!
Deleteइस दिशा में गहराई में जाने पर प्राचीन सिद्धों के मन में झाँकने का अवसर मिल सकता है, अर्थात सौभाग्य प्राप्त हो सकता है...
और तब समझ में आ सकता है क्यूँ तुलसी दास जी कह गए, "जा की रही भावना जैसी/ 'प्रभु' मूरत तिन पायी तैसी"! यानि 'भू' (वसुधा) से पहले भी जो विद्यमान था, उस 'प्रभु' (नादबिन्दू विष्णु) अर्थात निराकार परमात्मा और उसके साकार रूप (ब्रह्मा-विष्णु-महेश, सौर-मंडल के प्रमुख सदस्यों सूर्य, पृथ्वी और उन सभी नौ के केंद्र में संचित विभिन्न शक्तियों) के माध्यम से रची गयी 'लीला' का पार पाना कठिन अवश्य है किन्तु नामुमकिन नहीं है - निरंतर प्रयास से, 'ध्यान' लगा उस शून्य के साथ अंततोगत्वा 'योग' कर पाना, अर्थात जुड़ना !!!
मेरे पापा को भी यह बीमारी है इसलिए इस विषय में मुझे काफी जानकारी है।
ReplyDeleteकिन्तु मंच संचालन भी एक कला है ..और आप एक कलाकार भी है।
बहुत बढिया और अच्छी जानकारी के लिए ...आपका आभार !
Madhumeh se peedit logon ke din-b-din sankhya badhti hi jaa rahi hai....
ReplyDeletebahut badiya jaankari prastuti ke liye aabhar!
विचार कणिकाओं के भाव सागर में एक के बाद एक डुबकी लगाते रहिये .
ReplyDeleteलोगों को भ्रम है -'महज़ मिथ है यथार्थ नहीं :चीनी खाने या ज्यादा खाने से शक्कर की बीमारी हो जाती है .'अलबत्ता मधु मेह हो जाने पर चीनी प्रतिबंधित हो जाती है .लेकिन सीमित मात्रा में सुपाच्य कार्बोहाइड्रेट ख़ास कर फलों से प्राप्त कार्बोहाइड्रेट वर्जित नहीं है .
'ज्ञान' का आभाव, अर्थात 'अज्ञान' के कारण उत्पन्न 'भय' (प्राचीन ज्ञानियों के अनुसार नरक का एक द्वार) ही मुख्य कारण है सभी बीमारियों का ही नहीं अपितु मानव जीवन में सभी दुखों, प्रतीत होती कठिनायों आदि का... ऐसे संकेत 'हिन्दुओं' के कथा-पुरानों आदि से मिलते हैं...
ReplyDelete'वर्तमान भारत' में भी शिव नटराज, विष्णु समान चतुर्भुज, का एक हाथ 'अभय' मुद्रा में आशीर्वाद देते, दर्शाया जाता चला आया है, और उनके पैर के नीचे आदमी को 'अपस्मरा पुरुष', यानी भुलक्कड़ :)... प्राचीन भारत में तो संकेत मिलते हैं दूर से ही 'पहुंची हुई' आत्माओं के मन्त्रों आदि द्वारा किसी बीमार की व्याधि हर लेने के... और इस के विपरीत अल्प-ज्ञानियों, दुष्ट आत्माओं, के दूर से ही 'बाण' चला के किसी व्यक्ति को 'बीमार' कर देने के...
(बंगाल- आसाम का काला जादू' - लाल जीभ वाली 'माँ' काली को शक्ति रुपी संहार-कर्ता दर्शाया जाता आ रहा है अनादि काल से, और दूसरी ओर गौरी, अष्टभुजाधारी सिंह-वाहिनी दुर्गा माता का 'अमृत का स्रोत' होना... और उनके कवच प्रदान करना, 'देवताओं', परोपकारी सुरों को, शुद्ध स्वार्थी 'असुरों' को नहीं... और कल्लियुग में तो स्वार्थियों की ही भरमार होना लाजमी है :)...
सफल मंच सञ्चालन के लिए बधाई !
ReplyDeleteमधुमेह लाईफ स्टाईल की बीमारी है , मगर इधर बच्चों में भी पाई जा रही है !
पहले अमेरिका से ही स्कूली बच्चों के बन्दूक चलाने के समाचार पढ़ते थे (और अभी भी)... किन्तु अब 'भारत' में भी बड़ी संख्या में उदहारण मिलने लगे हैं... इसे शायद 'प्राकृतिक' ही कहेंगे ('वैज्ञानिक' तो कम से कम?)... और प्राचीन ज्ञानी हिन्दू सांकेतिक भाषा में कह गए कि 'घोर कलियुग में आदमी छोटा हो जाएगा'... मेरा साढ़े चार वर्षीय नाती ही मुझे दो-तिन दिन पहले मुंबई से फोन में बोला, "If you have any problem, call me!. I will come!"... और मजा यह है कि 'बालकृष्ण' कहते हैं कि वो सबके भीतर विद्यमान हैं!!!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी मिली ॥आभार
ReplyDeleteकहते हैं
ReplyDeleteगुड़ न दे ,गुड़ की सी बात दे दे.
सच में आप गुड़ देते तो मधुमेह का डर बना रहता,
पर आपने गुड़ की सी बात देकर 'मधुमेह'से बचने का सुन्दर तरीका बता दिया है.
आपकी जानकारीपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार जी.
तप,यज्ञ दान ही जीवन का मूल मन्त्र हैं.
'मेरी बात..' पर अपनी कुछ कहियेगा,डॉ.साहिब.
दाराल साहब बहुत उपयोगी प्रस्तुति आप के ब्लॉग पर मिली ...मै खुद भी मधुमेह पीड़ित हूँ | ब्लॉग जगत में आपका ब्लॉग काफी लोकप्रिय है | इस उपयोगी पोस्ट के लिए सादर आभार.
ReplyDeleteआपको सफल मंच सञ्चालन के लिए खड़े होकर तालियाँ .....
ReplyDeleteशुक्रिया त्रिपाठी जी ।
ReplyDeleteऔर हीर जी , आपकी वापसी का ।
bahut achchi jankari sabke liye upyogi.
ReplyDeleteमधु मधु का अंतर स्पष्ट कर दिया आपने ... और संचालन वाली फोटो में तो कमाल लग रहे हैं डाक्टर साहब ...
ReplyDeleteअच्छी लानकारी दी है आपने ...
अच्छी लानकारी दी है आपने ...
ReplyDeleteaabhar sir..