कुछ महीने पहले ऐसा समां बन गया था कि जिसे देखो खुद को अन्ना कहता नज़र आता था । सोचता हूँ अन्ना के समर्थकों में कितने लोग ऐसे होंगे जो वास्तव में भ्रष्टाचार से दूर होंगे ।
हमें तो चारों ओर सफेदपोश ही नज़र आते हैं । बाहर से कुछ और , अन्दर से कुछ और ।
प्रस्तुत है , ऐसे ही माहौल में लिखी एक ग़ज़ल :
प्रस्तुत है , ऐसे ही माहौल में लिखी एक ग़ज़ल :
जो जीवन भर डर डर कर जिया ।
क्या कहिये उसको जिसने भला
ज़ुल्मों के आगे होठों को सिया ।
वो मर्द भी क्या जिसका ना कभी
औरों के दर्द में रोये जिया ।
हमसे था ये शिकवा सा उन्हें
जीवन भर हमने कुछ ना किया ।
हम तो कलमाड़ी हो ना सके
अणणा हमको होने ना दिया ।
हम भी थे ऐसे चिकने घड़े
ना खुद लेते, ना लेने दिया ।
रब की मरज़ी से 'तारीफ', हैं
जिंदगी में फ़ाका ही मस्त मियां ।
पिया = प्रियतम
जिया = अंतर्मन
जिया = अंतर्मन
नोट : मात्रिक क्रम है -- २२ २२ २२ २१२ -- कितना सही है , यह ग़ज़ल के जानकार ही बता सकते हैं ।
मुझे मात्राओं की जानकारी तो नहीं है, पर आपकी ग़ज़ल अच्छी लगी पढने में, शुभकामनाएं!
ReplyDeleteरंग लायेगी यही फाका मस्ती एक दिन !
ReplyDeleteहम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।
हम भी थे ऐसे चिकने घड़े
ना खुद लेते, ना लेने दिया ।
वाह-वाह-वाह... डा० साहब, वाकई शानदार और जानदार लगी ये लाइने , आपने एकदम दुरस्त फरमाया कि सफेदपोशों के अन्दर कितने काले चेहरे है कोई नहीं जानता, मुख में तो राम-राम सभी भजते है ! खैर ,
आप सभी को महापर्व शिवरात्रि की मंगलमय कामनाये !
इस फाका मस्ती के क्या कहने
ReplyDeleteबहुत खूब
आज तो वैसे ही शिवरात्रि है फाका मस्ती भी चलेगी. गज़ल के भाव अच्छे हैं मात्राएँ तो गुणीजन गिनेगे.
ReplyDeleteशिवरात्रि की शुभकामनाएँ.
डॉ. साहब ,छोटा मुहं और बड़ी बात ...अगर सफेदपोशो का चेहरा बेनकाब करना है तो ...
ReplyDeleteफिर इस बारे में आप की क्या राय है ..?
अन्ना हम हो न सके
कलमाड़ी हमें होने न दिया ||:-):-))))
ऐसे ही खुशियाँ बांटते रहें !
आभार!
यही तो प्रोब्लम है अशोक जी । आजकल कलमाड़ी बनाने वाले बहुत मिल जायेंगे । लेकिन अन्ना बनाने वाला कोई नहीं ।
Deleteहाथी के दांत हैं लोगों के. कुछ दिखाने के कुछ खाने के. अण्णा की तो उम्र बीत गई सच्चाई की लड़ाई में. हां इस बीच कल कुछ कुकुरमुत्ते ज़रूर उग आए थे अण्णा की पैदावार में खर-पतवार की तरह. बरसात बीती तो ढह गए वो. अब उनका कुछ पता नहीं. अण्णा का क्या है, बैरागी है वो तो अपनी धुन का, कोई साथ चले न चले...
ReplyDeleteकाश कि ऐसे अन्ना लाखों करोड़ों कि संख्या में मिल जाएँ ।
Deleteएकदम सही कहा! अपनी-अपनी कमज़ोरियाँ!
Deleteभ्रष्टाचार ऐसी छूत की बीमारी है जिससे बचना मुश्किल है... हम भ्रष्ट नहीं पर काम निकालने के लिए भ्रष्ट को संतुष्ट करने में भ्रष्ट होना ही पड़ता है!!!!!!
ReplyDeleteकाफ़ी हद तक यही हो रहा है। अपने कपड़े धो भी लें, पर आसमान से बरसती कीचड़ से कैसे बचें, हर किसी के पास तो छतरी भी नहीं।
Deleteहम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।
बहुतों का यही हाल है...बढ़िया गज़ल.
mast ghazal likhi hai daral ji.
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल है...
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की अनेकानेक शुभ कामनाएं!!! सत्यम शिवम् सुन्दरम! सत्यमेव जयते!
ReplyDelete'सत्य' - जब दीपक जल उठता है तो स्वभाविक है कि परवाने खिंचे चले आते हैं!
और जब मदारी / नट, शिव (नटराज) के तथाकथित डमरू समान डुगडुगी बजाता है, उसी प्रकार 'खेल देखने', बच्चे और बड़े भी, कौतुहल वश, एकत्रित हो ही जाते हैं...
और बाती बुझी / खेल ख़तम तो "पैसा हजम"!
कसब और अफजल गुरु जैसे तक फांसी नहीं चढ़ते तो उनके पीछे कोई न कोई शक्ति होगी ही???
काली अथवा गौरी अम्मा???
कहावत है "भगवान् के राज में देर है, अंधेर नहीं"! (जैसा माटी के पुतलों के राज में है???)
JCFeb 20, 2012 03:16 AM
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की अनेकानेक शुभ कामनाएं!!! सत्यम शिवम् सुन्दरम! सत्यमेव जयते!
'सत्य' - जब दीपक जल उठता है तो स्वभाविक है कि परवाने खिंचे चले आते हैं!
और जब मदारी / नट, शिव (नटराज) के तथाकथित डमरू समान डुगडुगी बजाता है, उसी प्रकार 'खेल देखने', बच्चे और बड़े भी, कौतुहल वश, एकत्रित हो ही जाते हैं...
और बाती बुझी / खेल ख़तम तो "पैसा हजम"!
कसब और अफजल गुरु जैसे तक फांसी नहीं चढ़ते तो उनके पीछे कोई न कोई शक्ति होगी ही???
काली अथवा गौरी अम्मा???
कहावत है "भगवान् के राज में देर है, अंधेर नहीं"! (जैसा माटी के पुतलों के राज में है???)
पुनश्च - 'जय भोलेंनाथ'!
जे.सी.जी आपको इस महापर्व की अशेष शुभकामनायें !
Deleteसिर्फ भ्रष्ट और देशद्रोही ही 'अन्ना' का महिमा मंडन कर सकते हैं। वह विदेशी एजेंट के रूप मे जनता के हक को कुचल कर शोषकों के हित मे काम करने वाले लोग हैं।
ReplyDeleteविजय माथुर जी ,
Deleteअन्ना जी से हम भी सहमत नहीं है,ये बात आप तब जानेंगे जब दराल साहब हमारी टीप को स्पैम की कैद से बाहर निकालेंगे !
बावज़ूद इसके आपके इस कथन पर कृपया हमारी आपत्ति दर्ज करें कि अन्ना का महिमा मंडन करने वाले लोग भ्रष्ट और देशद्रोही हैं ! अन्ना से असहमत होने का मतलब यह नहीं है कि हम उनके चाहने वालों को भ्रष्ट या देशद्रोही कहें ! इसी तरह से उन लोगों को विदेशी एजेंट कहना भी उचित नहीं है ! लोकतंत्र में उन्हें सत्ता से असहमत होने और अपनी तरह से आन्दोलन करने का अधिकार था सो उन्होंने उसका प्रयोग किया ! आप उनके समानांतर या उनके विरुद्ध कोई आन्दोलन खड़ा कर सकते थे जोकि आपने नहीं किया तो इसे क्या कहा जाये ? आशा है आप संवाद को अन्यथा नहीं लेंगे !
सधन्यवाद !
अली सा , आपकी बात से हम भी सहमत हैं . माथुर जी हमारे सम्मानीय ब्लोगर मित्र हैं लेकिन उनकी इस बात से हम भी इत्तेफाक नहीं रखते . अन्ना का तरीका गलत हो सकता है लेकिन मकसद गलत नहीं है . भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाला देशद्रोही कैसे हो सकता है !
Deleteविजय माथुर जी कौन हैं भाई ?
Deleteहम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।
हम भी थे ऐसे चिकने घड़े
ना खुद लेते, ना लेने दिया ।
वाह!!!बहुत खूब आपकी गजल का यह अंदाज़ भी बढ़िया लगा सर... :)
मात्राएँ कौन गिन रहा है सर ...
ReplyDeleteबढ़िया गज़ल...
सादर.
सोचता हूँ अन्ना के समर्थकों में कितने लोग ऐसे होंगे जो वास्तव में भ्रष्टाचार से दूर होंगे ।...हा हा हा सही कहा सर ,मगर कुछ तो हैं ही यकीनन ।
ReplyDeleteपंक्तियों का क्या कहूं एक से बढकर एक लाजवाब हैं , । सीधा , डायरेक्ट दिल से
दिक्कत ये है कि बहुत कम हैं ।
Deleteमगर हमें झा जी पर पूरा भरोसा है !
Deleteयूं तो सभी शेर अच्छे हैं पर पांचवें शेर के बारे में आपसे खास शिकायत है ! वहां एक भ्रष्टतम और दूसरा भयंकर जिद्दी , अलोकतांत्रिक , हिंसक और वैचारिक रूप से असहिष्णु बंदा , सो बेहतर है जो आप आप ही हैं इन दोनों में से कोई नहीं ! आपने आज की राजनीति में फैशन की तर्ज़ पर प्रचलित अच्छे और बुरे का चुनाव किया है ! जिसकी ज़रूरत ना थी !
ReplyDeleteसातवें शेर वाले तारीफ जी को महाशिवरात्रि पर्व की अशेष शुभकामनायें !...और हां आपने जे.सी जी की शुभकामनाओं का जबाब अब तक नहीं दिया है :)
जिद्दी भ्रष्ट और जिद्दी पाक साफ़ में से आप किसे चुनेंगे ?
Deleteअज़ी क्या करें , अपना धार्मिक ज्ञान ज़रा कम है .
हमने कहा कि अच्छे वाले तो आप खुद हैं :)
Deleteतौबा तौबा ! काहे हमें सुपर अन्ना बना रहे हैं ! :)
DeleteJCFeb 21, 2012 01:08 AM
Delete"...अज़ी क्या करें , अपना धार्मिक ज्ञान ज़रा कम है ..." के सन्दर्भ में...
डॉक्टर साहिब, अली जी, हरेक का गंतव्य काल, अनुभव, और स्थान, आदि, आदि पर निर्भर कर भिन्न भिन्न होना स्वाभाविक है... कहावत है, "पसंद अपनी अपनी / ख्याल अपना अपना".
और इसी कारण 'जनरेशन गैप' संभव हैं...
और अपन तो 'सन्यास आश्रम' की स्तिथि में कभी के पहुँच चुके हैं..
यदि टिप्पणी पसंद न आये, कोई नाराज़गी हो, तो ब्लॉग मालिक को अधिकार है टिप्पणी डिलीट करने का...
शुभकामनाओं सहित...
जे सी जी , आपकी टिप्पणियां सिर्फ हमारे लिए नहीं , बल्कि हमारे अन्य पाठकों के भी काम आती हैं .
Deleteधार्मिक ज्ञान से हमारा तात्पर्य हमारी आस्था से था . अब क्या करें , बहुत सी बातो में विश्वास नहीं रखते .
कल लिफ्ट में एक पड़ोसी युगल मिले . श्रीमती जी ने पूछा --मंदिर जा रहे हैं क्या ? पड़ोसन ने श्रीमती जी से कहा --हाँ . आप हो आए क्या ? अब मेडम चुप , क्या बोलती , समझ नहीं आया . तब हमें ही कहना पड़ा की मंदिर तो घर में ही है . ( और भगवान भी :)
जे.सी.जी ,
Deleteआप अपनी टिप्पणियों से आलेख को एक नया आयाम देते है यह बात क्या कम महत्वपूर्ण है !
हमसे था ये शिकवा सा उन्हें
ReplyDeleteजीवन भर हमने कुछ ना किया ...
वाह डाक्टर साहब ... लाजवाब गज़ल है .. रोज मर्रा के शब्दों से लिखी ... अनुभव का निचोड़ प्रस्तुत करती कमाल की गज़ल ...
स्पैम स्पैम स्पैम :)
ReplyDeleteआई मौज फ़कीर की, दिया झोंपड़ा फूंक...
ReplyDeleteशायद ब्लॉगरी का भी आखिरी अंजाम यही हो...
जय हिंद...
खुशदीप भाई , सच पूछिए तो ब्लोगिंग में अब उतना मज़ा नहीं आ रहा . बस खींचे जा रहे हैं .
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच
ReplyDeleteपर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
हम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।
वाह.... ज़बरदस्त
वाह बहुत सुन्दर ...हम तो चिकने घड़े है ..न खुद लेते ना लेने दिया ..कलमाड़ी और अन्ना वाली पंक्ति भी बहुत अच्छी लगी...सादर
ReplyDeleteमशाल बनने की बात तो दूर,
ReplyDeleteहमें दिया भी न बनने दिया !
ना दीया ना बाती ही सही
Deleteतुमने शब्दों से रौशन किया .
कलमाड़ी हो न सके , अन्ना होने ना दिया ...
ReplyDeleteआपने बेचैन दिलों की कसमसाहट को बड़ी ख़ूबसूरती से पेश किया है ....
अली जी, धन्यवाद! 'माया जगत' में भी प्रसिद्द है, "लाईट, कैमरा, एक्शन"!
ReplyDeleteडॉक्टर तारीफ जी ने भी इन्द्रप्रस्थ के रिज के जंगल वाले स्टेज के स्थान पर, 'बौलीवुड के हीरो समान', अपना नया फोटो लगा दिया है... द्वैतवाद को प्रतिबिंबित करते पृष्ठभूमि में पुरातन काल की ही कोई इमारत - सिक्के के दो नए प्रतीत होते पहलू समान :)
नोट - 'Reply' पर क्लिक काम न आया...
जे सी जी , वो बासी हो गया था . :)
Deleteयहाँ पुरातन की प्रष्ठभूमि से आधुनिकता का मिलाप शायद यही समझा रहा है की अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखते हुए विकास की ओर अग्रसर रहना चाहिए .
हम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।
सुन्दर भाव की ग़ज़ल .अजी क्या रखा है मात्राओं के गणित में .
हम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।
हम भी थे ऐसे चिकने घड़े
ना खुद लेते, ना लेने दिया ।
सटीक कटाक्ष करती गजल ॥
सही कहा... "परिवर्तन प्रकृति का नियम है"... वैसे सामान्य ज्ञान वर्धन के लिए जानना चाहूँगा कौनसी जगह है?
ReplyDeleteजी पुरातन ही है --पुराना किला !
DeleteJCFeb 21, 2012 05:49 PM
Deleteधन्यवाद!
वैसे आपकी सूचना हेतु 'आधुनिक वैज्ञानिकों' द्वारा भी यह जाना गया है कि पृथ्वी आदि हर पिंड के केंद्र में एक संचित गुरुवाकर्षण शक्ति (आत्मा) होती है... जो उनको विभिन्न आकार और अपने विशेष गुण सहित बनाये रखने में सक्षम है...
जैसे हमारी माई-बाप, सुन्दर प्रतीत होती पृथ्वी पर प्रकाश और शक्ति का स्रोत अग्नि रुपी सूर्य (हिन्दुओं का 'आदित्य' अथवा 'अदिति') हमें हमारी सुन्दर पृथ्वी ('गंगाधर शिव') से भिन्न दिखाई पड़ता है...
किन्तु यह भी सत्य है कि सभी पिंड 'बिग बैंग' (हिन्दुओं के नादबिन्दू के 'ब्रह्मनाद') के कारण छोटे आकार से आरम्भ कर, उत्पत्ति हो, पृथ्वी समान एक अग्नि के गोले से आरम्भ कर, ठंडी हो ४ अरब वर्षों से अंतरिक्ष में घूमते चली आ रही है माना जाता है ...
और माना गया है कि हर प्राणी की भी भिन्न भिन्न आत्मा नहीं होती है, अपितु प्रत्येक इमारत की भी अपनी अपनी आत्मा होती है... मिस्र के 'पिरामिड' को भी यह नाम उस इमारत के बीच में 'अग्नि' अर्थात ऊर्जा पाए जाने के कारण दिया गया है,,, और उसी प्रकार भारत के मंदिरों में ऊपरी भाग को 'विमान' अर्थात हवाई जहाज कहा जाता है अनादि काल से (जमीन अर्थात शिव भूतनाथ के एक भूत 'पृथ्वी' से तथाकथित 'विष्णु के वाहन पक्षी-राज गरुड़' समान एक अन्य भूत 'आकाश' पर ऊपर उठने हेतु) ...
शुक्रिया जे सी जी . कई नई बातें पता चलीं .
Deleteबहुत ही बढि़या प्रस्तुति
ReplyDeleteकल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
'' तेरी गाथा तेरा नाम ''
सार्थक सुंदर गजल सर...
ReplyDeleteसादर बधाई..
रब की मरज़ी से 'तारीफ', हैं
ReplyDeleteजिंदगी में फ़ाका ही मस्त मियां ।
वाह क्या बात है ?लाज़वाब कर दिया आपने
लाजबाब
ReplyDeletelajbab prastuti.
ReplyDeleteहम तो कलमाड़ी हो ना सके
ReplyDeleteअणणा हमको होने ना दिया ।........
मजा आ गया
बहुत सही कटाक्ष !
ReplyDelete