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Wednesday, June 8, 2011

जब हमने मंदी और भ्रष्टाचार पर मूंछें कुर्बान कर दीं----

दो साल पहले आर्थिक स्थिति में आई मंदी की मार से सारा विश्व त्रस्त हो गया था ।
उसी समय हम हिम्मत करके अपनी मूंछें साफ कर क्लीन शेवन हो गए थे ।
इसी अवसर पर यह रचना लिखी थी जो आज भी तर्कसंगत लगती है ।



एक मित्र हमारे
नेता सबसे न्यारे
मूंछें रखते भारी
सदा सजी संवारी ।

कोई छेड़ दे मूंछों की बात
तुरंत लगा मूछों पर तांव
फरमाते
मूंछें होती है मर्द की आन
और मूंछ्धारी , देश की शान ।
जिसकी जितनी मूंछें भारी
समझो उतना बड़ा ब्रह्मचारी ।

फिर एक दिन
मूंछें कटवा डाली
डेढ़ इंच थी लम्बी
डेढ़ मिलीमीटर करवा डाली ।

मैंने पूछा मित्र ,
अब क्या विचार बदल गए हैं
निरूपा राय के प्रशंसक
क्या मल्लिका सहरावत के
उपासक बन गए हैं ?

वो बोला दोस्त ,
मेरी और मल्लिका की प्रोब्लम
बढती महंगाई है ।
इसलिए मल्लिका ने ड्रेस
और मैंने मूंछें , डाउनसाइज़ करवाई हैं ।

फिर एक सुहाने सन्डे
जोश में आकर
मूंछ मुंडवाकर
बन गए मुंछमुंडे ।

मैंने कहा मित्र , अब क्या है टेंशन
माना कि साइज़ जीरो का है फैशन
और फैशन भी है नेनो टेक्नोलोजी का शिकार
तो क्या मल्लिका को छोड़
अब मेडोना के भक्त हो गए हो यार ?

वो बोला दोस्त , ये फैशन नहीं
रिसेशन की मार है ।
जिससे पीड़ित सारा संसार है ।
और मैंने भी मूंछें नहीं कटवाई हैं
ये तो कोस्ट कटिंग करवाई है ।



अरे ये तो घर की है खेती
फिर निकल आएगी ।
पर सोचो जिसकी नौकरी छूटी
क्या फिर मिल पाएगी ?

वो देखो जो सामने बेंच पर बैठा है
अभी ऑफिस से पिंक स्लिप लेकर लौटा है ।

और ये जो फुटपाथ पर लेटा है
शायद किसी किसान का बेटा है ।

दो दिन हुए सौराष्ट्र से आया है
तब से एक टूक भी नहीं खाया है ।

कृषि प्रधान देश में ये जो नौबत आई है
हमने अपने ही हाथों बनाई है ।
अन्न के भरे पड़े हैं भंडार
फिर भी देश में भुखमरी छाई है !

ग़र देश के नेता करें विचार
और मिटे भ्रष्टाचार
तो कोई न जग में भूखा हो
फुटपाथ पर न सोता हो ।
सर्वत्र सम्पन्नता हो , न हो कोई कमी
फिर किसी भूखे बच्चे की मां की
आँखों में ,बेबसी की न हो नमी ।

माना कि मूंछें मर्द की आन हैं
मूंछ्धारी देश की शान हैं ।
मगर इस ग्लोबल रिसेशन से
समाज में फैले करप्शन से
ग़र मिले मुक्ति ,
तो ये मूंछें , एक नहीं
बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।

53 comments:

  1. ha ha ha ..........

    dhnya ho !

    jai ho !

    waah moonchh par itti badhiya post !

    kamaal hai

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  2. डा साहब, क्लीन शेव होने से ब्लेड का खर्चा बढ़ जाता है। महंगाई से त्रस्त आकर हमने मुछें रखना शुरू कर दी थी !

    ऐसे भी दाढी़ मुछें बड़ी होने पर हम बुद्धिजीवी लगते है॒

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  3. माना कि मूंछें मर्द की आन हैं
    मूंछ्धारी देश की शान हैं ।
    मगर इस ग्लोबल रिसेशन से
    समाज में फैले करप्शन से
    ग़र मिले मुक्ति ,
    तो ये मूंछें , एक नहीं
    बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।

    आप धन्य है. आपकी कुर्बानी मंदी के इतिहास में सदैब याद रखी जायेगी.

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  4. मजा भी आया और विचार भी आया
    पहले यूरोप में मक्खी-छाप मुंडा डिक्टेटर हुवा
    अब मूंछ-मुंडे भी डिक्टेटर बन गए लगते हैं
    सब गोल माल लगता है...
    अब कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
    कमाल मूंछ का हैं या काल का
    जिसके साथ प्रकृति का नियम जुड़ा है ?

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  5. यह रचना हमेशा ही ताज़ा रहने वाली है ... अपने देश के हालत इतनी जल्दी बदलते नहीं दिखते !!

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  6. बहुत मजेदार कविता.


    वैसे मैं तो मन में नेता बनाने की इच्छा रख रहे हर व्यक्ति को यही सलाह दूंगा की अगर उसके दाढ़ी मुछ है तो उसे तुरंत कटवा दें. देखो दाढ़ी मुछों ने बाबा राम देव जी को स्त्रियों के बीच भी सुरक्षित नहीं रहने दिया वहीँ उनके मुछमुंडे सहयोगी बालकृष्ण जी तीन दिनों तक रामलीला मैंदान के गुमनामी में चक्कर काटते रहे पर किसी भी प्रशंसक या विरोधी ने उन्हें पहचाना ही नहीं. कभी कभी ये दाढ़ी और मुछे जी का जंजाल हो जाती हैं.

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  7. :-) वाह! क्या खूबसूरत तरीके से आपने सारी बात कह दी...

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  8. इतनी बडी विश्वव्यापी मंदी की मार इतनी छोटी सी मूंछों पर । ये तो कमाल हो गया...

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  9. वाह साहब मान गए आर्थिक मंदी को लेकर मूंछों पर बढ़िया रचना लिखी है ... आभार

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  10. कम से कम एक मूंछ वाला फोटू भी लगा देते तो हम भी देखते कि इस क़ुरबानी से पहले सरकार कैसे लगते थे ! शुभकामनायें
    :-))

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  11. दराल साहब , आपकी मूंछ महिमा में छिपी व्यंगात्मक सोच पहचान ली गयी गई है बधाई हाँ गहरे तक समाई मल्लिका सहरावत भी

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  12. अरे बाप रे इतनी बडी कुर्बानी? मस्त रचना। डा. दराल आपने पूछ था कि मुझे शूगर ऋएस्ट करवाना चाहिये। मैने तो सुगर से ले कर कैंसर तक सारे टेस्ट पी जी आई अपोलो और डी एम सी म लाखों रुपये खर्च कर करवाये हैं सब ने कहा कि ये समाल वेस्सेल वेस्कोलाइटिस है। जिसके लिय्रे वो सटीरायड देते थे जो मैने अब बन्द कर दिये हैं उससे और बीमारियाँ लगाने से अच्छा है कुछ परहेज कर के और अधिक सर्दी गर्मी से बच कर ऐसे ही चलने दूँ। बहुत लम्बी हिस्ट्री है मेरी बीमारी की मगर आश्चर्य की बात है कि न शूगर न बी पी और न कोई और बीमारी है। बस वेसेल्ज फ्रेज़ाइल हैं\ धन्यवाद हाँ smaal vessel vescolitis ke baare me kuch aur bataa saken to kirpa hoge| dhanyavaad|

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  13. मूंछों के माध्यम से सारे विषय रच डाले .. बढ़िया प्रस्तुति

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  14. बड़ी बड़ी मूंछा वाले एक हरियाणवी छोरा साइकिल की सवारी कर रहा था...बैलेंस न बना पाने की वजह से सामने जा रही एक ताई के टक्कर मार दी...

    ताई बोली...तेरिया इतनी बड़ी बड़ी मूछां, तणे शर्म न आवे से...ब्रेक न लगा सके से...

    छोरा...ताई एक बात दस, मेरिया मूछां में का ब्रेक लाग रे से...

    जय हिंद...

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  15. अब फिर से भ्रष्‍टाचार के विरोध में मूंछे उगाने का विचार कैसा है।

    ---------
    बाबूजी, न लो इतने मज़े...
    चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

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  16. बहुत बढिया व्यंग्य रचना, धन्यवाद

    वैसे हमने तो रिसेशन में दाढी मूंछ बढा ली थी जी
    क्लीन शेव से खर्चा बढ जाता है
    प्रणाम

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  17. हमने अपने ही हाथों बनाई है ।
    अन्न के भरे पड़े हैं भंडार
    फिर भी देश में भुखमरी छाई है !

    मजाक में भी बात आपने गहरी कह दी..

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  18. माना कि मूंछें मर्द की आन हैं
    मूंछ्धारी देश की शान हैं ।
    मगर इस ग्लोबल रिसेशन से
    समाज में फैले करप्शन से
    ग़र मिले मुक्ति ,
    तो ये मूंछें , एक नहीं
    बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।
    Bahut sundar Dr. Sahaab !

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  19. you will look gorgeous in mustache.

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  20. .अहाहा हा.... बाज़ार गरम है..
    फिर छिड़ी यार…बात ऽ ऽ मूँछों की ..ऽ …ऽ
    भाई डॉ.दराल साहब मूँछों का ही तो ज़माल है.. इसे मँदी में कहाँ लपेट लिया ।
    अपने यहाँ मूँछों के दम पर ही तो अपने देश में मँदी उतना नहीं फैल पायी । नेताओं को क्या फ़र्क पड़ता है.. उनकी मूँछ ज़रूरत के हिसाब पार्टी बदला करती है ।
    अब सुनिये एक बेसिर की...
    एक भाईजान बातों बातों में कहीं इन्हीं नामुराद मुद्दों पर मूँछों की शर्त लगा बैठे, बेचारे हार गये और मूँछ गँवा बैठे ! बड़ी शोहरत थी ज़माने में उनकी हलब्बी मूँछों की, बड़ी मुश्किल आन पड़ी, घर जाऊँ कैसे ? अपनी निज़ी ज़नानी को मुँह दिखाऊँ कैसे ? चुनाँचे अपने सफ़ाचट मैदान को हाथों से ढाँपे, छुपते छुपाते, रात के अंधेरे में, पिछले दरवाज़े से किसी तरह घर में दाखिल हुये । चोरों की तरह आहिस्ते आहिस्ते अपने बिस्तर में सरक लिये , बगल में लेटी बेग़म पति के ग़म से बेख़बर खर्राटे भर रही थीं । भाईजान को तसल्ली हुयी, चलो शोर न हुआ, इनको सोने दो, सुबह संभाल लेंगे । बेग़म ने खर्राटों को टापगियर में डालने की ग़रज़ से करवट बदली । कुनमुनाते हुये पूरे बिस्तर पर हाथ फिरा कर ज़ायज़ा लिया । हाथ जा पड़ा, भाईजान के ऎन सफ़ाचट मैदान पर ! यह क्या हो सकता है, इसकी उनींदे मिज़ाज़ से तस्दीक़ करनी चाही । भाईजान ने घबड़ा कर उनका हाथ झटक दिया , लाहौल बिला कूव्वत, यहीं ग़लती हो गयी । मोहतरमा एक ब एक हड़बड़ा कर उठ बैठीं, चिल्लाने लग पड़ीं, अबे मुये अब तक यहीं पड़ा है ? चल फूट ले यहाँ से, फ़ौरन दफ़ा हो जा, मेरा वाला मुच्छड़ बस आता ही होगा..
    लगता है, गुस्ताखी हो गयी... अब हम भी फूटें !

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  21. lovely.... pointed out the serious problem in a very light and funny way !!

    Nice read.

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  22. आपकी हास्य व्यंग्य कविता अंत तक पहुँचते-पहुँचते करुण रस की हो जाती है , यह हास्य रचना की सफलता का चरम है |

    देश और आमजन की जिन्दगी से जुड़ी मर्मश्पर्सी रचना

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  23. सदा बनी रहती है मूँछों की शान
    चाहे चली जाए आदमी की जान्।

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  24. आशीष जी , दाढ़ी मूंछों का रख रखाव ( मान मर्यादा रख पाना ) इतना आसान नहीं होता । इसलिए मंदी के दौर में एक ब्लेड एफोर्ड करना फायदेमंद है । यकीन न आए तो विचार शून्य जी की टिप्पणी पढ़ें । :)

    सुशिल जी रचना का अगला भाग भी तो पढ़ें ।
    पिंक स्लिप , किसान आत्म-हत्या , भुखमरी आदि के सामने भला मूंछें क्या चीज़ हैं ।

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  25. हा हा हा ! सतीश जी , ये फिर कभी । अभी तो मुंडे ही सही ।

    कुश्वंश जी , रचना में मज़ा तभी आता है जब उसके मर्म को समझा जाए । मल्लिका सहरावत पर जोक लिखना भी एक फैशन सा ओ गया है । वर्ना आज ही कहीं पढ़ा कि वह लोगों के बीच काफी रिजर्व्ड रहती है ।

    जाकिर अली जी , हम तो भ्रष्टाचार का विरोध हमेशा करते आए हैं , स्वयं भ्रष्ट न होकर ।

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  26. शुक्रिया दिव्या जी ,। लेकिन अब रंगने का विचार नहीं है । बाल जितने बचे हैं , नेचुरली काले हैं ।

    डॉ अमर कुमार जी , मूंछ के झगडे में हम नहीं पड़ते । हा हा हा ! पहली बार जब हमने मूंछें काटी तो घर वालों ने पहचानने से मना कर दिया । इसके बाद हमने रिसर्च की कि कैसे मूंछें काटी जाएँ और इज्ज़त भी बची रहे। लेकिन यह राज़ मुफ्त में नहीं बताएँगे ।

    सुरेन्द्र सिंह जी , सही कहा आपने । हास्य का मतलब ही यही होता है कि बात भी कह जाओ और बुरा भी न लगे । निरर्थक हास्य बेहूदा लगता है ।

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  27. बहुत बढिया आप धन्य है.....

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  28. मजाक मजाक में गहरी बात कर गए आप.

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  29. निर्मला जी , vasculitis एक ऑटो इम्यून रोग है जिसमे नसों में इन्फ्लामेशन हो जाता है । अक्सर इसका कोई कारण नहीं होता या इन्फेक्शन से हो सकता है ।
    इलाज में तो prednison ही देते हैं । इससे भी फायदा न हो तो और भारी दवा देनी पड़ सकती है ।
    डॉक्टर से परामर्श लेते रहना चाहिए ।

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  30. कभी मूंछों पर निम्बू खडा करने की बात भी होती थी :)

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  31. मैं इस रचना पर कुर्बान !

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  32. स्मार्ट भी तो बन जाते है, मूछों वाले भयंकर से दिखते है।

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  33. वाह वाह! क्या बात है! बहुत बढ़िया, शानदार और ज़बरदस्त व्यंग्य रचना! मूछों पर उम्दा रचना लिखा है आपने!

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  34. शानदार प्रस्तुति ... बहुत अच्छा लगा आपको पढकर ... धन्यवाद !

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  35. wahwa....bhai ji, mazaa aa gaya....ye rachna to aapse sakshaat sun ne ka man hai....badiya vishay-chitran..badiya kataksh ke saath....sadhuwaad

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  36. मस्त है।
    मैने भी मूँछें कटवा ली हैं। भ्रष्टाचार या महंगाई से त्रस्त होकर नहीं बल्कि नाऊ के पास जाने के झंझट से बचने के लिए। हेयर डाई लगवा भी लो तो मूँछें 4-5 दिन में बता देती हैं कि रंगा सियार है। न रहेगी मूँछ न दिखेंगे खिचड़ी बाल।

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  37. बहुत ही बहतरीन रचना ...
    इतना गहरा दर्द छुपा है रचना में ...
    अद्भुत अंदाज़ से कह गए आप ...!!
    उज्जवल रचना ..

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  38. समाज में फैले करप्शन से
    ग़र मिले मुक्ति ,
    तो ये मूंछें , एक नहीं
    बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।


    -हम तो सर जी दाढी भी कुर्बान करने को तैयार हैं. सेफ वादा है..शायद ही कभी यह कुर्बानी देनी पड़े. :)

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  39. गंभीर विषयों को भी बड़े आराम से आप लोगों से स्वीकार करा लेते हैं.

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  40. अभी भी एसएमएस और मिस काल से ही क्रांति होने वाली है.

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  41. bahut sundar . vyang se shuroo hokar sanjeedaa baat kah gaye sir

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  42. व्यंग भी ,सन्देश भी ...

    बुढ़ापे से छुपने का सबसे पहला असफल नुस्खा ..:-):-):-)
    शुभकामनाएँ !

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  43. मूछ भारी तो है ब्रहमचारी क्या बात है। डृेस की साइज की मूछे । भक्ति अपना रंग दिखा गई और मैडोना उन्हे भागई । सारा दर्द उडेल दिया डाक्टर साहब आपने बैच पर बैठा है फुटपाथ पर लेटा है, एक टुकडा भी नहीं खाया है। अजीब बात है अन्न के भंडार है और भुखमरी है कितना बिरोधाभास है । दो साल पहले जब आपने कविता लिखी थी वाकई आज भी तर्कसंगत

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  44. डॉक्टर भाईसाहब

    बचपन में मैं रेडियो पर जब हमराज फिल्म का यह गीत "न मुंह छुपा के जियो , और न सर झुका के जियो " सुनता था , तो सोचा करता था कि यह गायक ( स्वर्गीय महेन्द्र कपूर साहब )यह क्या गा रहे हैं -
    न मूंछ पाके जी ओ …

    औरन सरजू काकेजी ओ …


    :))
    माना कि मूंछें मर्द की आन हैं
    मूंछ्धारी देश की शान हैं ।
    मगर इस ग्लोबल रिसेशन से
    समाज में फैले करप्शन से
    ग़र मिले मुक्ति ,
    तो ये मूंछें , एक नहीं
    बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।




    कुर्बान आपकी कुर्बानी पर !!

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  45. एक पहल हुई है। पूरा देश आज जिस उबाल में है,अगर वह मत में तब्दील हुआ,तो हमारी लोकतंत्रीय व्यवस्था मूंछों पर ताव देने लायक होगी।

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  46. वाह वाह डाक्टर साहब ... ये मूँछ मुंडवाना पुराण बहुत ही मजेदार है ... देश के वर्तमान माहॉल से जोड़ कर आपने आनंद दुगना कर दिया है ...

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  47. हा हा हा अच्छा हास्य व्यंग है।

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  48. कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
    आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .

    धन्यवाद!
    नयी-पुरानी हलचल

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  49. पोस्ट लिखने के बाद दिल्ली से बाहर रहा । इसलिए गैर हाज़िरी रही ।
    कुछ लोग जाने से पहले घोषणा कर देते हैं जाने की । मैं इसे उचित नहीं समझता ।
    बेहतर है कि आने के बाद बताया जाये और अपने अनुभव को सब के साथ बांटा जाये ।
    अगली पोस्ट में सुनायेंगे सफ़र का हाल ।
    इस बीच इस पोस्ट पर आप सब के विचार पढ़कर अच्छा लगा । आभार ।

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  50. योगेन्द्र जी , हमें भी इंतजार है उस पल का ।

    सही किया देवेन्द्र जी , अब कुछ समय तक तो दूसरों को धोखे में रख जा सकता है । :)

    हा हा हा ! समीर जी , आप को तो राजनीति में आ ही जाना चाहिए ।

    राहुल जी क्या कहना चाहते हैं , अक्सर समझ नहीं आता ।

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  51. बुढ़ापे से छुपने का सबसे पहला असफल नुस्खा ॥:-):-):-)

    हा हा हा ! अशोक जी , शायद दूसरा है --पहला है बाल रंगने का ।
    लेकिन कुछ समय तक तो सफल रहते भी हैं ।
    वैसे मेरा मानना है कि बुढ़ापा सबसे पहले घुटनों में आता है । जब तक घुटनों में जान है और दिल में अरमान है , तब तक सारा जहाँ जवान है ।

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  52. राजेन्द्र जी , महिंद्र कपूर अपने भी पसंद दीदा गायक थे और अक्सर मुझे भी इसी तरह का कन्फ्यूजन होता था ।

    राधारमण जी , लोकतंत्र बना रहे और सफल भी हो , यही तमन्ना है ।

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