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Thursday, June 23, 2011

ऊटी की ब्यूटी --भाग -२

उत्तर में शिमला , सराहन, मसूरी , चंबा, नैनीताल, रानीखेत , कसौनी , कसौली, डलहौजी , धरमशाला , और मनाली --पूर्व में दार्जिलिंग और गैंगटॉक --दक्षिण में कोडाईकनाल और ऊटी -ये हैं भारत के मुख्य हिल स्टेशन इनमे बस ऊटी ही था जहाँ अब तक नहीं जा पाए थे लेकिन हमने ऊटी को इनमे सबसे सुन्दर जगह पाया

मुदुमलाई से करीब ५० किलोमीटर दूर ,एक तो साफ सुन्दर पहाड़ी सड़क जिसके दोनों ओर बड़े बड़े पेड़ सुरक्षा का अहसास देते हुए घनी हरियाली के बीच मनमोहक घाटी के द्रश्य मन को लुभाते हुए नज़र आयेंगे

ऊटी की एक खासियत यह भी लगी कि यह शहर एक वैली में बसा है कि पहाड़ की ढलान पर इसलिए २२५० मीटर की ऊँचाई पर भी समतल ज्यादा नज़र आता है

पता चला यहाँ पानी की बहुतायत होने की वज़ह से अंग्रेजों ने यहाँ यूकेलिप्टस के पेड़ बहुत लगाये थे जो आज भी सारी पहाड़ियों और चोटियों पर घने जंगल के रूप में मौजूद हैं

एक और विशेष बात यह लगी कि जहाँ १० साल पहले तक दक्षिण में उत्तर भारतियों को अज़ीब सी निगाह से देखा जाता था , वहीँ अब ऐसा कुछ नज़र नहीं आया अब तो ज्यादातर लोग भी हिंदी बोलने लगे हैं और भाषा की कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई

यह अलग बात है कि वहां छोटे छोटे बच्चे भी अंग्रेजी बोलते हैं

ऊटी जाने के लिए जून का महीना सर्वोत्तम है क्योंकि इस समय यहाँ ऑफ़ सीजन शुरू हो जाता है इसकी वज़ह यह है कि एक तो यहाँ स्कूल जून में जल्दी खुल जाते हैं दूसरे मिड जून में बारिस जाती है इसलिए लोकल टूरिस्ट कम हो जाते हैं जिससे भीड़ भाड़ कम लगती है

मिड जून तक ज्यादा बारिस मिलेगी धूप बस होगा तो सुहाना मौसम और गर्मी से राहत देती ठण्ड

ऊटी शहर तो पैदल ही घूमा जा सकता है लेकिन बाहर के इलाके घूमने के लिए टैक्सी या प्राइवेट कार बड़ी उपयोगी रहेगी रेट सबके एक जैसे ही हैं और कोई लूट पाट नहीं है

आइये सैर करते हैं ऊटी शहर की



ऊटी पहुँचने से पहले ढलान पर बने ये मकान बड़े अद्भुत लग रहे थे पीला रंग एक मोबाईल कंपनी ने किया हुआ है


जिस दिन पहुंचे , बस उसी दिन धूप खिली थी लेकिन बिना धूप के भी आपका गोरा रंग काला पड़ सकता है यदि आपने एंटी सन लोशन नहीं लगाया तो यहाँ के साफ वातावरण में अल्ट्रा वोय्लेट रेज़ अपना असर दिखाएंगी ही


ऊटी के मेन चौराहे पर बना है रेलवे स्टेशन यहीं पास में बस स्टेशन है और ऊटी लेक --बोट क्लब यहाँ पैडल बोट और मोटर बोट दोनों मिलती हैं बोटिंग के लिए



बोट क्लब के प्रवेश द्वार के सामने बना है यह थ्रेड गार्डन इसकी विशेषता यह है कि यहाँ प्रदर्षित सभी फूल पौधे रेशम के धागों से बने हैं इतने खूबसूरत कि यदि बताया जाए तो पहचान ही पायें इसीलिए इसका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकोर्ड्स में शामिल है



खुद ही पढ़ लें


शहर के दूसरे सिरे पर बना है यह अत्यंत सुन्दर बाग --बोटेनिकल गार्डन

प्रवेश द्वार



महा वृक्ष



बाग का एक दृश्य



हरियाली और रंगों की बहार देखकर गर्मी तो वैसे ही उड़नछू हो गई ऊपर से झीनी झीनी पड़ती फुहार वातावरण को और रंगीन बना रही थी


शहर से १२ किलोमीटर दूर घने जंगल से होकर रास्ता जाता है ऊटी के सबसे ज्यादा ऊंचे स्थल पर --डोडाबेट्टा
२६०० मीटर की ऊँचाई पर बने इस व्यूइंग गैलरी से एक तरफ ऊटी शहर , दूसरी तरफ कुन्नूर शहर नज़र आता है


व्यूइंग गैलरी यहाँ एक दूरबीन भी रखी है



व्यूइंग गैलरी से ऊटी की तरफ का एक नज़ारा


शहर के एक किनारे यह रोज गार्डन भी बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है

बहुत खूबसूरत ढंग से बना या गया यह गुलाब पार्क गुलाबों की अलग अलग किस्मों से भरा है




इसे बनाया भी बहुत आकर्षक ढंग से है


ऊटी के बस स्टेशन के सामने ही है यहाँ का रेस कोर्स मैदान जहाँ हर शनिवार और रविवार में घुडदौड़ होती हैं

क्या यह अरबी घोड़ा है ?



दिल्ली में रहते हुए हमने कभी होर्स रेस नहीं देखी लेकिन यहाँ पहली बार देखी और लोगों को दांव लगाते हुए भी एक बार तो किसी बात पर लड़ाई हो गई और लोग भड़क गए तब हमने वहां से खिसकना ही बेहतर समझा



ऊटी का मेन बाज़ार उत्तर भारत के हिल स्टेशंस के मॉल जैसा ग्लेमरस तो नहीं है लेकिन यहाँ पहुँच कर श्रीमती जी को यह आभूषण की दुकान नज़र गई फिर क्या था घुस गई और हम आधे घंटे तक पोस्टर में बनी तस्वीर को ही देखते रहे यह सोचते हुए कि यह तस्वीर किस हिरोइन या मोडल की है

वो तो शुक्र रहा कि मेडम ने आधे घंटे में सवा लाख के कड़े पसंद ही किये , खरीदे नहीं



पैदल घूमते हुए भूख लगने पर बीच बाज़ार में स्थित है यह --नाहर होटल -- जहाँ सभी तरह का स्वादिष्ट खाना उचित दाम पर मिलता है

आज के लिए बस इतना ही क्योंकि घूम घूम कर अब तक आपके भी घुटनों में दर्द होने लग गया होगा
अब अगली पोस्ट में पहले घुटनों के दर्द से छुटकारा पाएंगे , फिर आगे सैर पर बढ़ेंगे



16 comments:

  1. ऊटी की सैर कराने के लिए धन्यवाद|

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  2. वाह! दाराल जी मज़ा आ गया सुंदर चित्रों के साथ सुंदर वर्णन पढ़ कर!
    शिमला में जब २००६ में गया था, तब घुटने का दर्द महसूस होता था जब ढलान के बाद सीढ़ियों से उतरते थे!

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  3. ख़ूबसूरत चित्रों से सुसज्जित आपका ये पोस्ट मुझे बेहद पसंद आया! ऐसा लगा जैसे हम भी ऊटी घूमकर आए! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  4. जे सी जी , अगली पोस्ट खास आपके लिए है ।

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  5. ऊटी के बारे में सुना तो बहुत बार था मगर आज पहली बार आपकी नज़र से देख लिया ! वाकई मनोहारी है !
    आपका आभार भाई जी !!

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  6. बेहतरीन यात्रा संस्मरण ..

    वाकई ऊटी घूमने का मन करने लगा है

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  7. हिल स्टेशन की यात्रा का आपने तो सजीव चित्रण कर डाला..गर्मी के मौसम में घूमने और प्रकृति के मनमोहकता का आनन्द लेने के लिए एक उपयुक्त स्थान...आपके इस प्रस्तुति से तो मन यही कह रहा जल्दी ही घूम आओ...

    बढ़िया विवरण....सचित्र प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  8. आकर्षक चित्र, रोचक विवरण

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  9. दराल साहब,
    ये ऊटी अभी तक अपुन से तो बची हुई है, खैर आप घूम आये, हमारा जाना पता नहीं कब तक होगा, लेकिन जब भी जायेंगे आपकी ये पोस्ट मददगार रहेगी। मुबारक हो जी सवा लाख की बचत के लिये।

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  10. आपकी नज़रों से ऊटी को दुबारा देखा है आज ... मज़ा आ गया डाक्टर साहब ... आप दोनों की फोटो तो लाजवाब है ... पर इतनी दूद दूर क्यों खड़े हैं आप दोनों ...

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  11. पास पास वाली लगाई नहीं नासवा जी । :)

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  12. यह कहते हुए क्षमा चाहूंगा कि इस बार की तस्वीरें ज़ोरदार नहीं हैं। कुछेक तस्वीरें धुंधलेपन के कारण पुरानी होने का अहसास कराती हैं। फिर भी,विवरण उपयोगी हैं और कभी घूमने के काम आएंगे।

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  13. राधारमण जी , अधिकांश तस्वीरों में बादल और धुंध ही है । इसीलिए ज्यादा शार्प नहीं हैं ।

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  14. सुंदर चित्रों के साथ सुंदर वर्णन पढ़ कर!येसा लग रहा है मानो हम भी ऊटी घूम रहे हों । बेहद सुन्दर प्रस्तुति और आकर्षक चित्रों के लिए धन्यवाद...आभार...

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  15. लाजवाब -वर्णन और चित्र देख तो वह गाना याद आया कि दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं ...
    जब मैं ऊंटी जाऊँगा तो यह मार्गदर्शक होगा ..
    मगर यह तो आपने बताया ही नहीं कि ऊंटी नाम क्यों पड़ा ?
    नाम ऊंटी और ऊँट एक भी नहीं...या इलाही ये माजरा क्या है ?

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