टोरंटो कनाडा के एक बड़े मॉल में घूमते हुए अचानक एक स्टाल पर नज़र पड़ी । लिखा था --डॉग्स मीट । हम हैरान हो गए यह सोचकर कि यहाँ भी लोग कुत्तों का मीट खाते हैं । यह आदत तो पूर्वी एसिया के लोगों में पाई जाती है । फिर पता चला कि वह कुत्ते का मीट नहीं बल्कि कुत्तों के खाने के लिए मीट था जो बेचने के लिए रखा था ।
दरअसल कुत्तों में गुण ही ऐसे हैं कि मनुष्य भी उनके सामने काफ़िर सा नज़र आने लगता है । लेकिन हम मनुष्य हैं कि कुत्तों से कुछ भी नहीं सीखते ।
जनसँख्या में आदमी और कुत्तों में बस एक समानता है
दोनों में मादाएं कम , और नरों की संख्या ज्यादा है ।
लेकिन आदमी और कुत्ते में एक अंतर है बहुत भारी
और वो है कुत्ते की मालिक के प्रति वफ़ादारी ।
कुत्ता अपने मालिक के लिए जान भी दे देता है
आदमी जिस थाली में खाता है , उसी में छेद कर देता है ।
कुत्ता गली में कभी दुसरे कुत्ते को नहीं काटता
आदमी है कि रोड रेज़ में सीधा गोली मारता ।
कुत्ता नींद में भी जागता है , भरोसेमंद है
आदमी नशे में ही भागता है , भरोसा बंद है ।
रोटी के इक टुकड़े से कुत्ते को मिलता संतोष
पैसे के पीछे आदमी अक्सर खो देता है होश ।
एक बार एक आदमी और कुत्ते में बहस हो गई कहीं
कुत्ता बोला कभी मैं भी इंसान था , मगर तेरी तरह कुत्ता नहीं ।
मैं भी सोचता हूँ कि काश कितना अच्छा होता
यदि आदमी आदमी न होकर एक कुत्ता होता ।
तब न होती काम , क्रोध , मद , लोभ की बीमारी
और आदमी भी होता कुत्ते की तरह सदाचारी ।
नोट : अब ज़रा आप ही बताएं कि आदमी को कुत्ता कमीना कहकर गाली देना क्या सही है।
साथ ही कोशिश करें और चित्र में दिखाए कुत्ते की नस्ल बताने का प्रयास करें ।
नमस्कार जी,
ReplyDeleteआज के इंसानों को इन प्राणियों से प्रेरणा लेनी चाहिए,
ताकि ये दुनिया कुछ सुधर जाये,
नस्ल में हमेशा असमंजस रहता है मेरे साथ,
आपने बहुत अच्छी व सच्ची बाते बतायी है,
अगर फ़ोटो वाला मनमौजी आपका है, तो बहुत अच्छा है,
मेरे पास भी एक मनमौजी है, जिसका नाम शेरु है, जो लगता भी शेर के जैसा है,
ReplyDeleteवाकई हम अपनी इंसानियत भूल गए हैं , कुत्ते हमसे कई बातों में आगे हैं ! इस विषय पर रिसर्च होनी चाहिए उम्मीद करता हूँ कि आप हम दोनों के गुण अवगुण, श्रंखलाबद्ध तरीके से समझाते रहेंगे !
शायद हम आपके प्रयासों द्वारा, कुत्तों से कुछ सीख सकें !
शुभकामनायें कुत्तों को !!
वाह.. दराल साहब खुबसूरत व्यंग किया है कुत्तों को हक है वो न्यायालय जाएँ और आदमी के खिलाफ्फ़ मुकदमा करें , धर्मेन्द्र जी को सजा तो होती ही चाहिए.
ReplyDeleteयह इंसानी फितरत है कि वह किसी के नाम पर भी गाली ईजाद कर लेता है। माँ, बहन, गाँव, जंगल, पशु-पक्षी सभी पर। लेकिन स्वयं का चरित्र नहीं देखता।
ReplyDeleteओह आज समझ आया कि देश की गलियों के सभी कुत्ते मरगिल्ले क्यों होते हैं...
ReplyDeleteसब का खून धर्मेंद्र पाजी जो पी गए हैं...
जय हिंद...
गजब का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
ReplyDelete---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
इंसान तुम कुत्ते तो न हुए
ReplyDeleteवाफादारी भी तुममे न आई
एक बात पूछू उत्तर दोगे
कहाँ से सीखा भौंकना
और कहाँ से हाड चबाई
अज्ञेय से क्षमा याचना सहित !
कुत्ता तो जाट नस्ल का लग रहा है।
ReplyDelete"सास भी कभी बहू थी ", और वैसे ही "कुत्ता भी कभी भेड़िया था"... सब चक्कर प्राकृतिक उत्पति का है :)
ReplyDeleteऔर हिन्दू मान्यतानुसार शुद्ध शक्ति से आरम्भ कर उत्पति के पश्चात, ८४ लाख प्राणी रूपों से गुजरने के बाद, मानव रूप मिलता है, परम शक्ति का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब ! किन्तु, हर कोई खिसिया कर दूसरे में किसी 'निम्न श्रेणी' के प्राणी की झलक ही देखता है, परम शक्ति का नहीं, जो कुछ बिरले ही देख पाते हैं जिनकी 'ई एस पी' जगी होती है... दोष हमारी 'बहिर्मुखी' भौतिक इन्द्रियों का माना गया...
nihsandeh kutte ka apmaan hai
ReplyDeleteडॉ.दराल भाई साहब ,
ReplyDeleteआज फिर नये रंग में …
शानदार है आज की पोस्ट भी !
हास्य भी व्यंग्य भी , संदेश भी जानकारी भी …और कविताई भी :)
क्या बात है सर !
मान सकते हैं आपके आस-पास बीमार लोग हो ही नहीं सकते …
सबका स्वास्थ्य तो आपने अपने ब्लॉग के जरिए ही सही किया हुआ है । :)
वरना डॉक्टर लोगों को कहां वक़्त मिलता है :)
बधाई आज की निराली पोस्ट के लिए भी !!
कृपया ,
ReplyDeleteशस्वरं
पर आप सब अवश्य visit करें … और मेरे ब्लॉग के लिए दुआ भी … :)
शस्वरं कल दोपहर बाद से गायब था …
अभी सवेरे पुनः नज़र आने लगा है ।
कोई इस समस्या का उपाय बता सकें तो आभारी रहूंगा ।
कुत्ते वफादारी में तो कम से कम हमसे आगे हैं... हालाँकि सारी की सारी इंसान बिरादरी बेवफा नहीं है, लेकिन वफादार ना के बराबर हैं...
ReplyDeleteहालाँकि मैं भी मानता हूँ कि इंसानों को कुत्ता कहना कुत्तों की शान में गुस्ताखी है... :-)
तुलना सटीक है ... इंसान से ज्यादा कुत्ते में अच्छाई दिख रही है ..
ReplyDelete.
ReplyDeleteएक पौराणिक आख्यान भले ही कोरी गप्प हो, पर वार्तालाप का सार कुत्ते की महत्ता को सादर स्वीकार करता है ।
यदि किसी को स्मरण हो तो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ एक श्वान को ही सशरीर स्वर्ग जाने की आज्ञा मिली ।
धरमिन्दर पाजी को बाइज़्ज़त बरी किया जाता है, उनके द्वारा खून पिये जाने के साक्ष्य उपल्ब्ध नहीं हैं ।
वैसे भी उन्होंने इन्सान का खून पीने की बजाय कुत्तों का शुद्ध पवित्र रक्त पीना चाहा, क्या हर्ज़ है ?
कारण चाहे जो भी हो, मैं स्वयँ मनुष्यों से अधिक कुत्तों के बीच अधिक सहज रह पाता हूँ ।
कुत्तों के प्रति समर्पित इस आलेख के लिये डॉ. दराल धन्यवाद के पात्र हैं ।
मैं तो उनके सात्विक सहिष्णु गुणों के कारण गधों का भी अनन्य भक्त हूँ ।
और हाँ.. यह ब्रीड ( नस्ल ) देशी कुत्तों की सात मुख्य नस्लों में सबसे प्रमुख कॉम्बाई ( Combai ) है, इसे स्ट्रे-डॉग कहने का भी फ़ैशन है ।
क्या शीर्षक चुना है सर । समानता एक अन्तर पांच । कुत्ते ने सही कहा कि मै तेरी तरह कुत्ता न था। आपने लिखा है कि आदमी आदमी न होकर कुत्ता होता । होता क्या मतलब ?
ReplyDeleteतुलना इतनी बढिया की है कि ईर्ष्या होने लगी है कि मुझे इंसान के बजाय कुत्ता क्यों नहीं बनाया परमात्मा ने
ReplyDeleteयह कुत्ता लैब Lab नस्ल का दिखता है जी
पोस्ट बहुत पसन्द आयी, आभार
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Lab
ReplyDeleteLabrador Retriever
Canada, England की प्रजाति
प्रणाम
मुझे कुत्ते बहुत अच्छे लगते हैं... इनफैक्ट मैं कुत्तों के बगैर नहीं रह सकता.... मुझे अपने डॉग्स कलेक्शन में सबसे प्यारा जैंगो था.... वो मेरे साथ ही खाता था... मेरे साथ ही सोता था... वो और मैं एक ही थाली में खाते थे... कई बार वो खाना छोड़ देता था तो उसका खाना मैं खा लेता था... मुझे कुत्ते कभी कुत्ते जैसे लगते ही नहीं... कुत्ते पूरे इंसान सरीखे ही बिहेव करते हैं... अभी मैंने एक नया घर खरीदा है... उस घर का नाम मैंने जैंगो विला ही रखा है... अब मेरे पास जितने भी कुत्ते हैं... सबका मेडिकल लाइफ इंश्युरेंस है... आपने एक बात सही कही है... कि इंसान भी कुत्तों के आगे काफिर नज़र आता है... मैं अपने जैंगो को कभी नहीं भूल सकता... उसके हर खिलोने ... बर्तन... बिस्तर... ऐ.सी. ..... कूलर.... पेडिग्री... और भी बहुत सारी चीज़ें मैंने उसकी संभल कर रखी हैं... पोस्ट मुझे बहुत अच्छी लगी... कुत्तों के ऊपर मुझे हर चीज़ बहुत अच्छी लगती है...
ReplyDeleteऊपर दिखाए गए फोटो में ... लैब्राडोर ब्रीड का गोल्डेन रिट्रीवर कुत्ता है....
और धर्मेन्द्र के घर के आगे अब कुत्तों ने जाना छोड़ दिया है...
हो सकता है कि कुत्ते भी आपस में एक दूसरे इंसान-इंसान कहते हों...
ReplyDeleteचित्र का कुत्ता तो एकदम असली नस्ल वाला कुत्ता लगता है.
ReplyDeleteसटीक व्यंग !
ReplyDeleteकुत्ते के माध्यम से आपने मनुष्य जाती को वांछित नसीहत दी है. इस पर विचार किया जाना और सुधार किया जाना चाहिए.
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत अच्छी है ..!!
ReplyDeleteसच में कुछ मामलों में इन्सान कुत्ते की बराबरी नहीं कर सकता .
ये फोटो labrador की है .क्यंकि इसके बाल नहीं हैं |Golden ritriever is a different breed with more of hairs.
बहुत उपयोगी पोस्ट है!
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य!
@ डॉक्टर अमर कुमार ने कहा, " ... यदि किसी को स्मरण हो तो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ एक श्वान को ही सशरीर स्वर्ग जाने की आज्ञा मिली ।..."
ReplyDeleteविभिन्न काल और स्थान में भेड़िये अथवा कुत्ते को उच्च स्थान दिए जाने के बारे में इन्टरनेट पर इच्छुक व्यक्ति कृपया देखें -
http://asiapacificuniverse.com/pkm/dogstory.htm
मैं केवल यह कहना चाहूँगा कि जहाँ तक 'प्राचीन हिन्दुओं' का प्रश्न है, कहानियाँ सांकेतिक भाषा में लिखी गयीं हैं इसलिए यदि 'सत्य' तक पहुंचना हो तो उन्हें पढ़ते समय ध्यान रखना चाहिए कि प्राचीन 'हिन्दू' पहुंचे हुए खगोलशास्त्री, 'सिद्ध पुरुष' थे, जो हमारी गैलेक्सी और उसके भीतर उपस्थित सौर-मंडल की उत्पत्ति को सरल कहानियों द्वारा दर्शा गए... 'देवताओं के राजा इन्द्र' वास्तव में सूर्य ही हैं और युधिष्टिर द्वापर युग में हमारी पृथ्वी, जो उत्पत्ति के पश्चात सतयुग में अमृत, गंगाधर शिव, कहलाई गयी :)
संदीप पंवार जी , नीरज जाट जी , डॉ अमर कुमार जी , इस कुत्ते की शक्ल बिलकुल उस कुतिया ( कहना अज़ीब सा लग रहा है ) से मिलती जुलती है जिसे कभी मैंने बचपन में पाला था । घर की रखवाली बहुत खूब करती थी । क्या मज़ाल कि कोई ऐरा गैरा या अन्जान आदमी घर में आ जाए । काट डालती थी । लेकिन घर के लोगों को सबको पहचानती थी ।
ReplyDeleteअन्तर सोहिल और महफूज़ ने सही बताया है । यह लाब्राडोर नस्ल का कुत्ता है । फोटो नेट से लिया गया है , वर्ना भाई हमें तो नस्लों की पहचान नहीं । आप दोनों का शुक्रिया ।
कुश्वंश जी , खुशदीप भाई --धर्मेन्द्र पाजी ( पा जी ) अपने तो चहेते हीरो रहे हैं । उन पर भी एक पोस्ट लिखने का इरादा है ।
ReplyDeleteआपकी बात का ज़वाब डॉ अमर कुमार ने बहुत सही दिया है ।
@ JC
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी,
मैंनें वह लिंक देखा.. बेहतर होता कि आप वहाँ से उद्धरण भी दे देते.. क्योंकि यह डॉ. दराल की इस पोस्ट की आत्मा को अपना समर्थन देती है ।
"One of the most memorable dog stories from Indian literature involves the heroic Pandava brothers of the Mahabharata. When King Dharmaraja, his brothers and all their families set off on their final journey up the Himalayas, each one fell until only Dharmaraja and his companion dog were left.
As they neared the top of the mountain, they were greeted by the god Indra in his chariot. The god lauded Dharmaraja and said that he had earned a place in heaven. He bidded that the king board the chariot and has he did Dharmaraja beckoned for his canine friend. However, Indra protested saying that dogs were not allowed in his heaven.
Upon hearing this Dharmaraja said that he could not abandon such a faithful companion who depended on him. He declared he would rather stay on earth than abandon his dog. Finally Indra relented and both were taken to heaven. Upon arriving the dog transformed into the god Dharma, the lord of the correct way of living. "
अन्य स्रोतों से सँस्कृत सँदर्भ देना यहाँ अप्रासँगिक होगा ।
अजित जी , सही कहा आपने । आदमी ने अपने मात पिता , भाई बहनों को नहीं छोड़ा तो भला कुत्ता क्या चीज़ है ।
ReplyDeleteअरविन्द मिश्रा जी ने बड़ी फिलोसोफिकल बात कही है । दरअसल हम बुरी बातों को तो पकड़ लेते हैं लेकिन अच्छाइयों की तरफ ध्यान नहीं देते । हर मनुष्य में भी अच्छे और बुरे दोनों गुण होते हैं । अच्छा है कि अच्छे गुणों को ही अपनाया जाए ।
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ReplyDeleteबृजमोहन जी , --आदमी आदमी न होकर कुत्ता होता--यहाँ इसका तात्पर्य यह है कि आदमी में भी ये सारे गुण होते तो --आदमी भी सदाचारी कहलाता ।
ReplyDeleteहा हा हा ! काजल कुमार जी , इस बात का पूरा अंदेशा है ।
अनुपमा जी --लाब्राडोर ही है । जानकारी के लिए आभार ।
जे सी जी , डॉ अमर कुमार जी --आप दोनों के अनुभव और ज्ञान ने पोस्ट में वास्तव में जान सी डाल दी है ।
ReplyDeleteफेथफुल के साथ फेथफुल होना भी सदाचार है ।
राजेन्द्र भाई , आपका स्नेह तो अपरम्पार है । बस यूँ ही मुस्कराते रहें , हम भी यही चाहते हैं ।
डाक्टर साहब मुझे तो आप सिर्फ ये बता दें की स्वान जनसँख्या में नर ज्यादा हैं और मादाएं कम हैं ये बात आपको कैसे पता चली. क्या इनकी भी गणना होती है?
ReplyDeleteJC साहब से जानना चाहुगा की आम लोगों में कुत्तों के विषय में महाभारत से सम्बंधित एक और कथा प्रचालन में है की कोई कुकुर धर्मराज युधिष्टिर की चप्पल लेकर भाग गया था. इस कथा में कथा का कितना अंश है.
ReplyDeleteएकदम अलग सी पोस्ट...और उसपर रोचक टिप्पणियाँ...
ReplyDeleteदेर से आने का फायदा...:)
@ VICHAAR SHOONYA
ReplyDeleteभैया जी , यह राज़ सार्वजानिक रूप से नहीं बताया जा सकता । इसलिए मैंने अपनी कविता को सेंसर करके छापा है । :)
सटीक विश्लेषण किया है :) वाकई कुत्ता ज्यादा इंसान नजर आ रहा है :).
ReplyDeleteइस सारे बहस में गधा कहां बैठता है डॉक्टर साहब :)
ReplyDeleteडॉ टी एस दराल जी, बहुत सुंदर बात लिखी आप ने इस लेख मे, मैने अपनी जिन्दगी मे तीन चार बार कुत्तो को पाला हे,वैसे तो मै कभी गाली देता नही अगर कभी देनी पडे तो किसी को कुत्ता नही कहता, क्यो कि कुत्ते का एक भी गुण इंसान मे नही, मेरा आखरी कुत्ता हमारा हेरी था, जिसे मै अपने बच्चे की तरह से प्यार करता था, ओर वो घर पर सब की बात बिन कहे समझ जाता था, ओर हेरी भी अपने आप को इस घर का मेम्बर समझता था, बच्चो के लिये कोई नयी चीज लाने पर उसे भी चाहिये थी नयी चीज, वर्ना मोका मिलते ही वो उस चीज को छीन लेता था, फ़िर प्यार करने पर या बिस्किट देने पर ही वापिस करता था, एक वफ़ा दार हे यह जानवर, जिस की जितनी तारीफ़ की जाये कम हे, धन्यवाद
ReplyDeleteकुत्ता आदमी नहीं है
ReplyDeleteपर कुछ आदमी कुत्ते हैं
@ VICHAAR SHOONYA
ReplyDeleteबचपन में किसी कहानी में पढने को मिला, "माँ यशोदा ने बाल कृष्ण के मुंह में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड देखा"! आश्चर्य हुआ और जिज्ञासा भी हुई थी... विज्ञान के विद्यार्थी तो रहे ही थे और अस्सी के दशक में पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुछेक अनहोनी घटनाओं से ऐसे संकेत मिले जिन्होंने मुझे किसी अदृश्य शक्ति की उपस्थिति का आभास सा कराया... उनमें से मुख्य था ८ दिसंबर '८१ को, जब में तैयार हो बैठा था गौहाटी से इम्फाल जाने के लिए घर से निकलने के लिए और मेरी पत्नी ने मुझे देर से पूरी-आलू खिलाने की सोची थी जिससे लंच की आवश्यकता न हो वहाँ पहुँच... मेरी तब १० वर्षीया तीसरी पुत्री द्वारा अचानक पूछा जाना, "पापा, आपकी फ्लाईट कैंसल होगई?" उत्तर में मैंने कहा "नहीं" ! "अंकल मुझे एअरपोर्ट छोड़ते जाएंगे... मैं ब्रेकफास्ट कर और उनके साथ चाय पी निकल जाऊँगा"... दिल्ली से जहाज आया भी, किन्तु टेक्निकल खराबी होने के कारण देरी से, और गौहाटी से ही दिल्ली लौट गया ! और यूं मेरी फ्लाईट केंसल हो गयी !
मस्तिष्क पर जोर देने के बाद याद आया कि उसी तारीख को तीन वर्ष पहले हमारी माँ का स्वर्गवास हुआ था ! तो क्या मेरी बेटी और उसकी दादी या किसी अदृश्य शक्ति के बीच कुछ कनेक्शन जुड़ गया था ?
'८४ में दिल्ली वापिस आने के बाद मैंने भागवदगीता पढ़ी, और सोचा मैंने पहले क्यूँ न पढ़ी थी जबकि उसकी एक प्रति मेरे पास पड़ी थी, किन्तु पढने का समय नहीं मिला था :)
उसमें मैंने 'कृष्ण' का यह कथन भी पढ़ा कि 'वास्तव में सपूर्ण ब्रह्माण्ड उनके भीतर ही है ! और केवल माया से ही सब उन्हें अपने भीतर देखते हैं' ! ओह! यानि यशोदा को परम सत्य का ज्ञान हुआ, वैसे ही जैसे महाभारत की कथा में 'धनुर्धर' अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में उनके 'सारथी, कृष्ण' से दिव्य चक्षु' पा हुआ था ! यानि द्वापर में कृष्ण यदि हमारी गैलेक्सी केंद्र में उपस्थित 'ब्लैक होल' के प्रतिरूप हैं तो अर्जुन सूर्य का जिससे किरणें हर दिशा में तीर समान निकलती हैं ! और त्रेता में राम भी धनुर्धर दर्शाए गए, जबकि भरत उनकी चरण पादुकाएं उधार ले उन्हें राजगद्दी पर रख राज्य किये (चप्पल सूर्य की प्राण दायक किरणों की द्योतक हैं !) अर्थात कहानियाँ गैलेक्सी और सौर-मंडल की विभिन्न युग में उत्पत्ति दर्शाती हैं...
कुत्ते की तुलना आदमी से, कुत्ता माइंड ना कर जाये.
ReplyDeleteप्रसाद जी , यह डॉ अमर कुमार जी का लिखा हुआ गधों पर एक लेख है , इसी से मिलता जुलता । लिंक भी डॉ साहब की टिप्पणी में है । पढियेगा , बड़ा दिलचस्प लेख है ।
ReplyDeleteभाटिया जी , सचमुच कुते होते ही ऐसे हैं कि वे घर के मेम्बर से लगने लगते हैं ।
रचना जी , शुक्र है कि उनको पढना नहीं आता । :)
जब हम दिल्ली में सरकारी मकान में चालीस के दशक से थे, तो हमारे घर में एक स्पेनिएल कुत्ता था, और जैसा तब चलन था उसका नाम अंग्रेजी नाम 'किम' रखा गया था... वो इतना सभ्य आदमी था कि वो केवल भिखारियों और पोस्ट मैंन पर ही भूंकता था, और हमारे मित्रगण कहते थे कि यदि कोई चोर अच्छे कपडे पहन के आये तो आराम से चोरी कर पायेगा ! किन्तु उसकी मृत्यु जब हुई, और जिस तरह से हुई, हमारे घर में खाना नहीं बना उस दिन !
ReplyDeleteवो थोडा बीमार चल रहा था और संयोगवश मैं ही केवल घर में था और कॉलेज से लौट हमारे भाई साहिब उसे डॉक्टर के पास ले जाने वाले थे... मैं पढ़ रहा था और वो मेरी कुर्सी के साथ चेन से बंधा सो रहा था कि अचानक वो जंजीर जोर से खींचने लगा... मैंने उसे खोल दिया और वो भीतर आँगन में चला गया... मैंने सोचा उसे पेशाब लगी होगी... किन्तु जब भाई उसे ले जाने के इरादे से वहां गए तो तुरन्त लौट उन्होंने मुझे उसे देखने को कहा... वो पारिजात (हर श्रृंगार) पेड़ की ओर शाष्टांग प्रणाम की मुद्रा में पैर आगे फैला कर मृत पड़ा था ! किसे प्रणाम किया था उसने पेड़ के माध्यम से ?
@ VICHAAR SHOONYA
ReplyDeleteमहाभारत की कहानी के अनुसार जब अर्जुन ने स्वयंबर में द्रौपदी का हाथ जीता तो माँ कुंती ने बिना 'सत्य' को जाने (अज्ञानता वश) जीत में प्राप्त 'वस्तु' को आपस में बाँट लेने की सलाह दी ! इस प्रकार द्रौपदी पाँचों भाइयों की पत्नी बन गयी ! और उनके बीच समझौता हो गया कि जब कोई भी भाई द्रौपदी के कक्ष में होगा वो अपनी चप्पल बाहर छोड़ देगा… किन्तु युधिष्ठिर की चप्पलें कुत्ते के ले जाने के कारण अर्जुन के प्रवेश करने पर धर्मराज ने कुत्तों को श्राप दे दिया !
उपरोक्त कहानी को लाइन के बीच पढने वाला 'ज्ञानी योगी’ ही इस कहानी में छुपे 'कुण्डलिनी जागरण' की विधि जान सकता है, यानि एक बन्ध अथवा चक्र को खोल शक्ति अथवा सूचना उस से ऊपर वाले में बन्ध में मिला, आठों चक्रों में बंद शक्ति और सूचना को अंततोगत्वा माथे तक उठा सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना...
कुछ और बातें हैं कुत्तों से सिखने लायक डॉ साहब .....
ReplyDeleteइनका अगर पेट खराब हो तो ये खाना छोड़ देते हैं ....
पर हम खाना नहीं छोड़ते चाहे जन्दगी छूट जाये ......
बाकि तो राजेन्द्र जी ने कह ही दिया .....
.
ReplyDeleteमनुष्य को पशुओं से श्रेष्ठ ही माना गया है। अतः इंसान , कुत्तों से श्रेष्ठ ही है। जब किसी मनुष्य में पशुता आ जाती है तब ही उसे कुत्ता अथवा गधा की संज्ञा मिलती है।
कुत्ता केवल अपने मालिक के लिए वफादार होता है , समस्त मानव जाती के लिए नहीं। जबकि मनुष्य में मानवता और संवेदनशीलता होती है , जो समस्त मानव जाती एवं पशुओं , दोनों के लिए है।
.
मनुष्य में मानवता और संवेदनशीलता--दिव्या जी अब बची ही कहाँ है । आपने भी तो अभी अभी यही लिखा है अपनी पोस्ट में । किसी कारणवश टिप्पणी नहीं दे पा रहा ।
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण किया है आपने आदमी और कुत्ते का .....लेकिन कुत्ता कहीं बेहतर है आदमी से ..कुछ मामलों में ..हा..हा..हा..!
ReplyDelete
ReplyDelete@ ZEAL
# मनुष्य को पशुओं से श्रेष्ठ ही माना गया है।
@ किसने माना है... स्वयँ मनुष्य ने, कोई उससे बड़ा धूर्त इस ऋष्टि में कोई अन्य है ही नहीं !
# जब किसी मनुष्य में पशुता आ जाती है.... ठीक है,
@ पर यदि वीरता आ जाती है तो वह शेर सिंह इत्यादि पशुओं के नाम धारण कर लेता है, क्यों..
क्योंकि उससे बड़ा खुदगर्ज़ और धूर्त इस ऋष्टि में कोई अन्य है ही नहीं !
# जबकि मनुष्य में मानवता और संवेदनशीलता होती है , जो समस्त मानव जाती एवं पशुओं , दोनों के लिए है ।
@ शायद इसीलिये युद्ध और आखेट उसके प्राचीनतम मनोरँजन हैं :-)
( कृपया फ़तवे उछालने से पहले मनन कर लिया करें )
fantastic sarcasm....
ReplyDeletethoughtful and well summed up.
कुत्तों ने मनुष्य के भीतर सुरक्षा का विश्वास पैदा किया है। मनुष्य इसके एवज में कुछ भी कर ले,कमतर ही रहेगा।
ReplyDeleteहरकीरत जी ने सही कहा --आदमी के खाने की कोई सीमा नहीं होती । उसका पेट कभी भरता ही नहीं ।
ReplyDeleteबेशक आदमी खुदगर्ज़ भी बहुत बड़ा है ।
और चालबाज़ भी ।
डॉक्टर साहिब, ख़ास तौर पर पागल कुत्ते के काटे से भय आदमी को सदैव रहता है... बचपन में देखा था १४ इंजेक्शन लगते थे, किन्तु लड़की को काटा तो उसे केवल तीन ही लगे (काल के साथ तरक्की के कारण)...
ReplyDeleteएक अंग्रेजी कविता स्कूल में पढने को मिली थी जिसमें एक स्वार्थी और नापसंद आदमी को पागल कुत्ते ने काट लिया तो सब सोचे वो मर जायेगा, किन्तु वो कुत्ता ही मर गया :) (स्वार्थी आदमी कुत्ते से ज़हरील होता है) - QED
पंजाबी में प्रस्तुत एक कविता कभी सुनी थी (पंजाबी थोड़ी सी सुन सुन के आती है) -
"सनम दी गलीच न जा हजारा सिंगा / सनम दी गली दा कुत्ता वड़दा है" ! (वड़दा = काटता)
और, हमारी भतीजी जब छोटी थी तो जब एक कुत्ता उसको चाट लिया तो वो जोर जोर से रोने लगी... सब दौड़ कर उसके पास पहुंचे और पूछा कि काटा तो नहीं ? उसका जवाब था, "नहीं, काटा नहीं/ केवल चखा" !
Daral saheb,
ReplyDeleteapka shodh sarahneey hai. Badhai!!
बहुत अच्छा
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
thoughtful poem
ReplyDeleteबहुत उपयोगी पोस्ट है!
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण किया है आपने आदमी और कुत्ते का...
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDelete