कॉलिज के दिनों में एक जोक बहुत सुना जाता था -- दो सहेलियां आपस में बातें कर रही थी . एक ने कहा -- ये लड़के आपस में कैसी बातें करते हैं ? दूसरी बोली -- जैसी हम करते हैं . पहली सहेली बोली -- हा ! इतने बदमाश होते हैं !
आज तीस साल बाद वे सब लड़के लड़कियां पुरुष और महिलाएं बन चुके होंगे . लेकिन अब ऐसा महसूस होता है कि शायद पुरुष महिलाओं से कहीं ज्यादा बदमाशी करते हैं . फिर जाने महिलाएं क्यों बराबरी का दम भरती हैं .
इत्तेफाक से पुरुष सबसे ज्यादा बदमाशी महिलाओं के मामले में ही करते हैं . यही कारण है कि वेश्यावर्ती जैसा घिनौना व्यवसाय आदि काल से चला आ रहा है . राजा महाराजाओं का रनिवास हो , या अरब शेखों के हरम , मुग़लों के अत्याचार या फिर अंग्रेजों के ज़ुल्म . सदियों से औरत पुरुषों की हवस की शिकार रही हैं . आज भी सभी शहरों में मौजूद रेड लाईट एरिया , कोठे आदि मनुष्य के इसी शौक के अड्डे हैं .
कुछ ऐसे ही पुरुषों के मनोरंजन के अड्डे होते हैं -- डांस बार्स . कुछ वर्ष पहले मुंबई में सभी डांस बार्स को बंद कर दिया गया था . तब बड़ी संख्या में डांस गर्ल्स बेरोजगार हो गई थी . यहाँ दिल्ली में यह कल्चर या तो रहा नहीं या बस छुप छुप कर होता होगा . आज भी दिल्ली में शायद ही कहीं कोई डांस बार हो . हालाँकि यह भी हो सकता है कि हम ही अनभिज्ञ हों .
अपनी विदेश यात्रा के दौरान एक रात 10 बजे डिनर के बाद सभी महिलाएं शौपिंग मोड में आ गईं। वैसे भी मॉल्स 11 बजे तक खुले होने के कारण महिलाओं के लिए इस प्रलोभन से बचना मुश्किल था। जैसा कि आम तौर पर होता है, मानव प्रजाति हो या कोई अन्य , बच्चे भी अक्सर मां के पीछे पीछे हो लेते हैं . अब रह गए अकेले हम तीन दोस्त। और लगे सोचने कि हम क्या करें, कहाँ जाएँ .
आखिर प्रोग्राम बना कि चलो बार में बैठा जाये . वैसे भी डिनर कर ही चुके थे , एक आध बियर ही पी जा सकती थी। किसी ने बताया -- यहाँ डांस बार्स भी होते हैं जहाँ ड्रिंक्स के साथ डांस देखने का लुत्फ़ उठाया जा सकता है . हमारे लिए तो यह बिल्कुल नया अनुभव था . इसलिए टैक्सी वाले को कहा, चलो ले चलो किसी ऐसे ही बार में .
ज़ाहिर था, वहां ऐसी जगहों की कोई कमी नहीं थी , इसलिए पांच मिनट में ही पहुँच गए एक डांस बार में . प्रवेश करते ही लगा जैसे किसी अंधेर नगरी में आ गए। पहले तो डिम लाईट में देखना ही मुश्किल हो रहा था . किसी तरह वेटर ने ही टेबल दिखाई और हम बैठ गए जम कर . सामने एक स्टेज बनी थी जिस पर तेज रौशनी में एक लड़की डांस कर रही थी। पीछे बैठने की जगह बनाई गई थी जहाँ 7-8 लड़कियां और बैठी थीं। देखने में सभी 20-25 वर्ष की लग रही थी , हालाँकि चेहरे की भव्य साज सजावट के पीछे असली उम्र का पता लगाना मुश्किल था। देखने में सभी भारतीय लग रही थी और हिंदी फिल्मों के गानों पर थिरक रही थी .
बैठते ही एक के बाद एक मेनेजर और वेटर्स की लाइन लग गई . सबने आकर सबसे हाथ मिलाकर हमारा अभिवादन किया. सच पूछिए तो यह अप्रत्यासित स्वागत हमें अस्वाभाविक और असहज सा लगा . वैसे भी एक वेटर से हाथ मिलाने का कोई औचित्य समझ नहीं आ रहा था। उधर स्टेज पर एक लड़की डांस कर बैठ जाती और दूसरी शुरू हो जाती। यह क्रम लगातार चल रहा था।
इसी असमंजस के बीच हमने बियर का ऑर्डर दिया और मेज पर रखे ड्राई फ्रूट्स चबाने लगे जिनमे काजू या बादाम कम और सख्त खोल वाले पिस्ता ज्यादा थे जिन्हें तोड़ने में बड़ी दिक्कत हो रही थी . थोड़ी देर तक कई वेटर्स हमारे इर्द गिर्द सावधान की मुद्रा में खड़े रहे। फिर हमें खाने और पीने में आत्मीयता से व्यस्त देखकर चुपचाप खिसक लिए . अब तक हमें भी कुछ कुछ समझ आने लगा था उनका व्यवहार और डांस बार का कारोबार।
वहां का माहौल देखकर हमें मुंबई के सुप्रसिद्ध कवि आसकरण अटल जी की एक कविता के कुछ अंश याद आ गए :
लोग आ रहे हैं , जा रहे हैं
और वापस जा रहे हैं .
( हम तो बस पी खा रहे हैं )
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
वैसे तो हर जगह लड़ाई ,
पर हाइवे पर ( बार में ) भाई भाई .
वहां शायद खाने पीने वाले तो बस हम ही थे . बाकि सब तो देखने वाले थे . इस बीच दो स्थानीय निवासी सेठ लोग स्टेज के बिल्कुल सामने आकर बैठ गए . उनमे से एक विधिवत रूप से स्थानीय वेष भूषा में था जबकि दूसरा आम कपड़ों में . सुसज्जित सेठ ने हुक्का मंगवाया और कश लेने लगा . लेकिन दूसरा खुदा का बंदा अपनी नज़रें स्टेज पर ही गडाए था . स्टेज पर बैठी एक लड़की का सारा ध्यान अब इस सेठ पर ही था . मूक बधिरों की भाषा में खुलेआम बातचीत चल रही थी . उधर थोड़े थोड़े अन्तराल पर एक दो लड़कियां गायब हो जाती और फिर कुछ समय बाद लौट आती .
वहां क्या गोरखधंधा चल रहा था , हमारे लिए तो यह अटकलबाज़ी का ही विषय था .
आखिर, दो बियर लेने के बाद दिल में कई सवाल लिए हमने प्रस्थान करना ही उचित समझा और टैक्सी पकड़ वापस लौट आए अपने आशियाने की ओर . होटल पहुंचकर पहला झटका तब लगा जब देखा कि जिस नाम के बार में हम होकर आए थे उसी नाम का बार तो हमारे ही होटल में था . यानि खामख्वाह टैक्सी का भाड़ा दिया . उत्सुकतावश अन्दर जाकर देखा तो यहाँ भी ठीक वही दृश्य पाया .
लेकिन दूसरा झटका तब लगा जब बच्चों ने आकर बताया कि उन्होंने हमें बहुत ढूँढा , यहाँ तक कि बार में भी देखा लेकिन हम नहीं मिले . अब हम उन्हें कैसे समझाते कि हम थे तो उसी बार में लेकिन वह बार ही वहां नहीं था , कहीं और था।
अंत में , आखिरी झटके के लिए हम चल दिए अपने अपने कमरे की ओर . अन्य दोस्तों का क्या हस्र हुआ , यह तो हम नहीं जानते लेकिन जब हमने श्रीमती जी को सारी बात बताई तो हमने मिलकर जमकर ठहाका लगाया .
यह अलग बात है कि जो सवाल मन में उठे , उनका ज़वाब शायद कभी न मिल पाए।
नोट :यह पोस्ट कुछ लोगों की संवेदनाओं को आहत कर सकती है . कृपया इसे इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म ही समझें .
...सोलह-सत्रह साल की लड़कियों को खुलेआम सिगरेट पीते देखकर मन को ठंडक पहुँचती है कि वाकई आज की नारी पुरुष से किसी मामले में कम नहीं है.इसका कुछ श्रेय नारीवादी आन्दोलन को भी दिया जाना चाहिए !
ReplyDeleteनारी कम तो है त्रिवेदी जी . बार में एक भी नारी नहीं थी .
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteराजस्थान की राजपूत महिलाएँ पुराने युग में मदिरा का सेवन करती थीं। लेकिन यह छूट केवल सधवा स्त्रियों को ही प्राप्त थी। यहाँ तक कि वे ईश्वर से अपने सुहाग की उम्र के लिए प्रार्थना करती थीं तो कहती थीं तो कहती थीं 'म्हारो दारू माँस अमर करज्यो'।
Deleteआज भी कुछ बूढी औरतें बीड़ी पीती हैं . लेकिन इसे अनैतिक नहीं कहा जा सकता .
Delete"जैसा कि आम तौर पर होता है, मानव प्रजाति हो या कोई अन्य , बच्चे भी अक्सर मां के पीछे पीछे हो लेते हैं ."
ReplyDeleteयानि कुदरत भी पुरुषों की ही पैरवी करती है ! :)
कुछ हाथ कुदरत का लगता तो है . :)
Deleteवैसे भी एक वेटर से हाथ मिलाने का कोई औचित्य समझ नहीं आ रहा था
ReplyDeleteआशा है बाद में समझ आ गया होगा .... किस्म किस्म के अनुभव ।
कवि आसकरण अटल जी की रचना और भ्रमण के तारतम्य में बढ़िया जानकारी दी है ... आभार
ReplyDelete"लेकिन जब हमने श्रीमती जी को सारी बात बताई तो हमने मिलकर जमकर ठहाका लगाया"
ReplyDeletewhat a relief....
god bless the kind lady :-)
regards
anu
हा हा हा ! इतने भी बुरे नहीं हैं हम . :)
Delete@ "कृपया इसे इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म ही समझें" जी आपके आपके कहने से पहले यानि आपने तो अंत में लिखा है हम पूरी पोस्ट के दौरान ही उसे वही समझ रहे थे.अगर यह रिपोर्ट भारत में कहीं की होती तो बेशक एक खोजी रिपोर्ट ही होती.
ReplyDeleteबरहाल ठहाकों के लिए बधाई :).
जी शुक्रिया. लेकिन इनके पीछे ज़ेहन में उठे सवाल अभी भी ज़वाब खोज रहे हैं .
Deleteजिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ, मैं बैरी बुडन डरा, रहा किनारे बैंठ.
ReplyDeleteअब इस ट्रिप में बहुत से सवाल अनुत्तरित रह गए. अब ?
"लेकिन जब हमने श्रीमती जी को सारी बात बताई तो हमने मिलकर जमकर ठहाका लगाया"---क्या सच में ???
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी
चालिए ऐसे भी अनुभव होते रहना चाहिए ज़िंदगी में कुछ तो आपको भी नया जानने को मिला :)
ReplyDeleteवाह डांस बार भी देख आये...
ReplyDeleteबधाई !
सब हाथ की सफाई है यह हाथ बड़ा करामाती है यहाँ भी वहां भी .
ReplyDeleteram ram bhai
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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012
प्रौद्योगिकी का सेहत के मामलों में बढ़ता दखल (समापन किस्त )
जिज्ञासा जो न करा ले...रोचक विवरण...
ReplyDeleteबड़े-बड़े धोखे हैं !
ReplyDeleteजी यह तो ओपन सीक्रेट है.
Deleteयह और खोजी पत्रकारिता -यहाँ तो कुछ भी नहीं है :-(
ReplyDeleteहाँ जो जानकारी मिली उसके लिए आभार !
अब आप जैसी पैनी धार कहाँ से लायें . :)
Deleteआपकी ऐसी (खोजी) प्रवृत्तियों के बारे में मुझे पहले एक ब्लॉगर ने जब बताया था,तब मैंने उन्हें फटकार दिया था। मगर आपने स्वयं उसकी पुष्टि कर मेरी संवेदनाओं को आहत कर दिया!
ReplyDeleteचलिए इस प्रकरण से कोई तो आहत हुआ , भले ही गलत बात पर .
Deleteऔर ब्लॉगजगत में कोई ऐसा भी है जिससे हास्य भी सहन नहीं होता .
वेश्यावृत्ति करने वाली महिला सभी की नजर में बुरी होती है किन्तु उससे ये करवाने वाले और वहा जाने वाले पुरुषो को कभी कुछ नहीं कहा जाता है वो लोगो की नजर में बुरे नहीं होते है , आप ने साफ लिखा है की "पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की हेरा फेरी -- बार बार, लगातार !" उसके बाद भी कुछ लोग यहाँ भी महिलाओ पर ही उंगली उठा रहे है , समाज की सोच क्या है इसी से पता चलाती है |
ReplyDeleteऔर रही पहले वाली जोक की तो यदि कोई स्त्री अपने बारे में अपने शरीर के बारे में बात करे तो वो बदमाशी या गलत नहीं होता है कीन्तु वही बात यानि स्त्री के बारे में उसके शरीर के बारे में पुरुष बाते करे तो वो "बदमाशी " ही कहलायेगी !
और अंत में एक बात और जिस हिम्मत से आप ने ये सारी बात अपने ब्लॉग पर लिखी या आपनी पत्नी को बताई क्या कोई भी स्त्री ऐसा कर सकती है यदि करेगी तो लोग उसे क्या कहेंगे आप स्वयं भी जानते है
अंशुमाला जी , आपने इस हलके फुल्के अंदाज़ में कही गई गंभीर बात को सही रूप में समझा है . पुरुष और स्त्री में मूलभूत अंतर तो है ही . इसलिए ऐसी जगह सिर्फ पुरुष ही जाते हैं . लेकिन पुरुष पुरुष की मानसिकता में भी अंतर होता है . जो सवाल मन में उठे थे , अभी मैंने उन पर प्रकाश नहीं डाला है . बार / डांस बार / कैबरे / बेली डांस आदि में वो बुराई नहीं है जो इनकी आड़ में देखने और दिखाने वाले/ वालियों की मानसिकता में होती है .
Deleteइस घटना से हमें इसी मानसिकता को करीब से देखने और समझने का अवसर मिला .
वैसे कमल तो कीचड़ में रहकर भी कमल ही रहता है . :)
बड़े लोगो की बड़ी बातें
ReplyDelete@ नोट: अगली और समापन किस्त में अरबी रातें भाग 2 में पढ़िए जो पहले कभी नहीं लिखा गया .
ReplyDelete???????????????????
जीवन में हर तरह का अनुभव होना चाहिए और ये भी एक अनुभव ही था ....
ऐसी जगहों में जायेंगे नहीं तो पता कैसे लगेगा वहां क्या होता है .....
इस तरह के बारों में शायद पुरुषों को इसी तरह लुटा जाता हो ...पर आप बच निकले ....:))
जी , सही परिपेक्ष में समझने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
Deleteवर्ना कुछ लोग तो पुरुष होकर भी सही को सही नहीं समझते .
नाच ही देखना है तो टीवी खोलकर देख लो, वहाँ कौन से कम नाच है। हाँ बीयर स्वयं की होगी।
ReplyDeleteJCOctober 10, 2012 6:01 PM
ReplyDeleteमानव जीवन क्षण-भंगुर कहा जाता हैं जानते हैं सभी, किन्तु इसका भी कुछ न कुछ उद्देश्य रहा होगा, कम से कम बनाने वाले की दृष्टि में, क्यूंकि इस साढ़े चार अरब वर्षीय संसार में - उस का जीवन काल छोटा हो या बड़ा - हर वस्तु अथवा प्राणी कुछ न कुछ आवश्यक कार्य कर रहा देखा जा सकता है... इस लिए सत्य जानने के लिए सबसे पहले हमें, किसी भी इच्छुक को, यह जानना आवश्यक होगा कि क्या पृथ्वी पर जीवन किसी अत्यंत बुद्धिमान जीव द्वारा भूत में किये गए डिजाइन का नतीज़ा है - अस्सी के दशक तक तो वैज्ञानिक भी इस नतीजे तक पहुँच गए थे किन्तु वे इसे केवल एक ही परमात्मा द्वारा किया गया मानने के लिए तैयार नहीं थे... दूसरी ओर किन्तु हमारे पूर्वज मानव जीवन को, एक अनंत फिल्म समान, एक ३- डी प्रोजेक्शन जान/ मान गए थे!!! इस लिए 'जगत मिथ्या'/ 'माया' आदि शब्द उपयोग में लाये पाए जाते हैं...
पुरुषों के मनोरंजन व जिज्ञासा मिटाने के लिए पूरी पृथ्वी हाजिर है. कोई स्थान, कार्य वर्जित नहीं. विदेशों में डांस बार जैसे ही स्थान स्त्रियों के लिए भी खुल रहे हैं जहाँ पुरुष नृत्य कर स्त्रियों का मनोरंजन करते हैं. हो सकता है कभी भारतीय पत्नी वहाँ जिज्ञासा मिटाने जाएँ और पति मिलकर जमकर ठहाका लगाएँ.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
wonderful writeup.
ReplyDeleteThanks for sharing your experience.
Regareds
RP
रोचक वर्णन...वैसे ऐसे बार दुनिया भर में हैं...सब पैसे का खेल है...उस से चाहे जो खरीद लो
ReplyDeleteनीरज
बैंकोक में हम जिस बार में गए वहां जापानी पुरुष कम थे और महिलाएं ज्यादा...और तो और भारतीय महिलाएं भी खूब थीं जब की वहां डांस के आलावा भी ऐसा बहुत कुछ काम सरे आम हो रहा था जिसे लोग बंद कमरों में किया करते हैं...
ReplyDeleteज़माना बदल रहा है धीरे धीरे नीरज भाई .
Deleteयहाँ प्रथम आगमन पर स्वागत है .
छूटी तीनो पोस्ट पढ़ी। खूब आनंद आया। पिछले पोस्ट की तरह यहाँ बार डांस के भीडियो नहीं बना पाये? होता है..होता है..मूड में कुम मिलता है तो कुछ छूट जाता है।:) घूमते वक्त जो देखा, जैसा महसूस किया, सब आपने बेबाकी से लिख दिया। यह हिम्मत सभी नहीं दिखा पाते, शायद इसीलिए सभी को ठहाके भी नसीब नहीं हो पाते।
ReplyDeleteफिल्म तो हम बना लेते पाण्डेय जी ,
Deleteपर बाउंसर्स से डर लग रहा था . :)
कहते हैं , सांच को आंच नहीं .
अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 03 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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