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Wednesday, June 6, 2012

ठहाकों के बीच बहती अश्रु धारा और एक मधुर मिलन -- यादें गुजरे ज़माने की .


इंसान के जीवन में दो मुख्य दौर आते हैं एक शादी से पहले जो वो अपने मात पिता और भाई बहन आदि सम्बन्धियों के साथ गुजारता हैदूसरा दौर शादी के बाद आता है जब उसका स्वयं का परिवार होता है जिसमे पत्नी और बच्चे होते हैंअक्सर मनुष्य जो अपने अभिभावकों से सीखता है , वही अपनी संतान को सिखाने का प्रयास करता हैइसी सफल प्रयास के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी मनुष्य जाति निरंतर विकास की सीढ़ी चढ़ती रही है

जीवन के ३६ वर्ष गुजर जाने पर जब अपने अतीत की याद आई तो लगा कि बच्चों को भी इसका अहसास होना चाहिए कि हम किस दौर से निकल कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं जहाँ वो संसार की सभी सुख सुविधाओं का लाभ उठा पा रहे हैंलेकिन बच्चे अब बच्चे नहीं रहे , बड़े हो चुके हैं , अपने पैरों पर खड़े होने के संघर्ष में जुटे हैंअत: पत्नी को ही मनाया अपने पुराने घर के दर्शन करने के लिएवो घर जहाँ रहते हुए हमने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करते हुए , मेडिकल कॉलेज में प्रवेश प्राप्त कियाऔर इस तरह हमारे भावी जीवन की सुदृढ़ नींव रखी गई

पहली किस्त में आपने पढ़ा कि बच्चे हमें कमरे में बिठाकर पापा को बुलाने चले गएकरीब मिनट के इस इंतजार में हमने ३६ साल पहले की पूरी जिंदगी फास्ट फॉरवर्ड में जी लीहम श्रीमती जी को बताते जा रहे थे घर की एक एक दीवार के बारे में , और उन लम्हों के बारे में जिसे आप दूसरी किस्त में पढ़ चुके हैंऔर श्रीमती जी अत्यंत भावुक होकर अश्रु धारा बहाए जा रही थीअतीत की यादों से जिनसे उनका पहली बार सामना हुआ था , वातावरण अत्यंत भावुक हो गया थाहमारी भी पलकों के किसी कोने में अश्क का एक कतरा फंसा स्वतंत्र होने को छटपटा रहा था जिसे बड़ी मुश्किल से हम कैद किए हुए थे

समय के साथ काफी सुधार हुआ थाफर्श पर अब ग्लेज्ड टाइल्स लगी थींआँगन भी पक्का बना हुआ थालेकिन वह खिड़की अभी भी वैसी की वैसी थीइसी खिड़की से बाहर झांकते हुए पूरी जिंदगी रिवाइंड हो रही थी कि तभी ध्यान भंग हुआ --- मकान मालिक के प्रवेश के साथ
जी नमस्कार
नमस्कार जी , आइये आइयेक्या शुभ नाम जी आपका ?
जी गोपाल थोडा आश्चर्यचकित होकर उन्होंने बताया
कहाँ काम करते हैं ?
जी डी आर डी में
यहाँ कब से रह रहे हैं ?
जी यही कोई - साल सेअब उनकी उत्सुकता और हैरानी काफी बढ़ गई थी
हमें पहचानते हैं ? नहीं पहचानते होंगेकभी मिले ही नहींफिर हमने अपना परिचय देते हुए बताया कि हम दोनों डॉक्टर हैं , ये हमारा नाम है और यहाँ काम करते हैंअब तक गोपाल जी की उत्सुकता चरम सीमा पर पहुँच चकी थी
हमने भी अब रहस्य से पर्दा उठाते हुए कहा --गोपाल जी , ३६ साल पहले हम इसी मकान में रहते थेआज यही हम अपनी श्रीमती जी को दिखाने के लिए लेकर आए हैं

यह सुनकर उनके चेहरे पर जो भाव आए उन्हें देख कर हमें वो दिन याद गया जब एक दिन सवेरे सवेरे दिल्ली के भूतपूर्व मुख्य मंत्री स्वर्गीय साहब सिंह वर्मा जी का फोन आया और उन्होंने कहा -मैं साहब सिंह वर्मा बोल रहा हूँउस समय जो थ्रिल हमें महसूस हुई थी , ठीक वैसी ही गोपाल जी के चेहरे पर देखकर हमें भी अति प्रसन्नता हुई

बहुत देर तक हम सब मिलकर ठहाका लगाते रहेकभी आसूं पोंछते , कभी सर्दी में भी आया पसीना जो उत्तेजनावश गया थाइस बीच बच्चों ने चाय बना ली३६ साल बाद उस कमरे में मेहमान की तरह बैठकर चाय पीना एक अद्भुत अनुभव था जिसका शब्दों में वर्णन करना शायद संभव नहीं

हमने सरकारी स्कूल में पढ़कर यहीं से अपनी जिंदगी की एक अच्छी शुरुआत की थीबच्चों से पूछा तो पता चला कि वो एक एडेड स्कूल में पढ़ते थेज़ाहिर है , अब सरकारी कॉलोनी में रहने वाले बच्चे भी सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ते हमें हमेशा अपने बड़ों से आशीर्वाद मिलता था , जिंदगी में सफल होने के लिएजाने क्यों , दिल भर आया और हमने भी एक बुजुर्ग की भूमिका निभाते हुए दोनों बच्चों को दिल से आशीर्वाद दिया
दिल ने फिर एक तमन्ना की कि फिर कोई बच्चा इस घर से डॉक्टर या इंजीनियर बनकर निकले

अंत में हमने अपनी सांस्कृतिक परम्परा का निर्वाह करते हुए बच्ची के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और १०१ रूपये भेंट कर अपना कर्तव्य निभायागोपला जी ने भी भाव विभोर होते हुए अपने ऑफिस की एक सुन्दर डायरी उपहार स्वरुप हमें भेंट की

और इस तरह पूर्ण हुआ हमारा सामयिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एक ऐतिहासिक मिलन , मकान नंबर ३४५ से

Thursday, December 1, 2011

बुजुर्गों का आशीर्वाद और हमारी थर्ड आई का महत्त्व ---

अपने बड़ों का सम्मान करना हमारी सांस्कृतिक परंपरा रही है। सम्मान करने के तरीके भी अनेक हैं ।
सबसे आसान और लोकप्रिय तरीका है , हाथ जोड़कर संबोधन करना जैसे --नमस्ते , नमस्कार , गुड मोर्निंग , राम राम या जय राम जी की साथ में यदि सम्बन्ध का विशेषण भी लगा दें जैसे --दादाजी , पिताजी , चाचा जी , या फिर आंटी जी --तो सोने पे सुहागा हो जाता है ।

लेकिन एक और भी तरीका है --पैर छूना । बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करना न सिर्फ एक अच्छा आचरण माना जाता है बल्कि पारस्परिक पारिवारिक प्यार बनाये रखने में भी सहायक सिद्ध होता है ।

पैर छूने के भी अनेक तरीके हैं ।

आम तौर पर झुककर पैरों या जूतों को हाथ लगाकर सम्मान दिया जाता है । लेकिन बस थोडा सा झुककर हाथ नीचे ले जाकर भी यह रस्म पूरी हो जाती है । विशेष रूप से पंजाबी परिवारों में यह नज़ारा अक्सर देखा जाता है कि मुंडा ज़रा सा झुककर बोलता है --पैयाँ पैना । और हो गया काम । लेकिन यह भी न किया जाए तो बुजुर्ग अवश्य बुरा मान जाते हैं ।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह रिवाज़ हरियाणा में नहीं है । यानि वहां कोई किसी के पैर नहीं छूता । हालाँकि नमस्ते या राम राम कह कर सम्मान ज़रूर दिया जाता है। इस पर बुजुर्ग भी कहता है --राम राम भाई

लेकिन पुराने ज़माने में जब हम बच्चे थे , तब की बात याद आती है । उन दिनों में जब कोई नई नवेली दुल्हन आती तो घर की सभी बड़ी औरतों जैसे दादी , ताई , चाची आदि के पैर दबाकर आशीर्वाद प्राप्त करती ।

यहाँ गौर करने की बात यह है कि बहु पैर नहीं छूती थी बल्कि कई मिनट तक पैर दबाती थी जैसे मेसाज करते हैं । साथ ही बुजुर्ग महिला एक लम्बा सा आशीर्वाद देती यह कहकर --सदा सुहागन रहो , दूधों नहाओ , पूतों फलो, और न जाने क्या क्या । यह आशीर्वाद हमें तो एक कविता सी लगती थी जिसे मैं बड़े शौक और तन्मयता से सुनता था । अक्सर महिलाएं हमारी हरकत पर हंसती भी , लेकिन हम कोई मौका नहीं छोड़ते ।

अब शायद ये रिवाजें वहां भी ख़त्म हो चुकी हैं । लेकिन अभी भी गाँव में बुजुर्ग महिलाएं सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद ज़रूर देती हैं । और सच मानिये , यह अनुभव मन को बहुत शांति प्रदान करता है । ठीक उसी तरह जैसे किसी धार्मिक समारोह में पंडित जी जब हमारे माथे पर टीका लगाते हैं तो एक परम आनंद की अनुभूति होती है ।

इसका कारण है माथे पर जहाँ टीका लगाया जाता है , वह हमारी चेतना का केंद्र बिंदु होता है । इसी बिंदु के पीछे मष्तिष्क में पीनियल बॉडी नाम का एक छोटा सा अंग होता है । यह एक एंडोकराइन ग्लैंड होती है जिससे मेलाटोनिन नाम का हॉर्मोन उत्पन्न होता है । मेलाटोनिन का रोल मनुष्य में ज्यादा नहीं है लेकिन पशुओं में यह सिर्कार्दियन रिदम को कंट्रोल करता है जो प्रजनन से सम्बंधित होता है ।

पीनियल ग्लैंड हमारे मष्तिष्क के ठीक मध्य में ब्रेन के दोनों हिस्सों के बीच मौजूद होती है । यह ब्रेन का अकेला ही ऐसा हिस्सा है जो एक ही होता है जबकि बाकि सारे हिस्से डबल होते हैं ।

पीनियल बॉडी को थर्ड आई ( तीसरी आँख ) भी कहा जाता हैधार्मिक रूप से यह विश्वास माना जाता है कि हमारे शरीर में हमारी आत्मा का निवास पीनियल बॉडी में ही होता है

इसीलिए केरल के आयुर्वेदिक मेसाज में तेल की धार माथे के मध्य छोड़ी जाती है

मेडिटेशन करने के लिए भी हमें अपना ध्यान इसी बिंदु पर केन्द्रित करना होता है

पंडित लोग भी इसी बिंदु पर टीका लगाते हैं

महिलाएं भी बिंदी इसीलिए इसी बिंदु पर लगाती हैं !