लेडी चालक देख के, फौरन संभला जाय,
ना जाने किस मोड़ पे,बिना बात मुड़ जाय।
पर्वत तो यूं बिखर रहे, ज्यों ताश के पत्ते,
पेड़ काटकर बन रहे ,रिजॉर्ट्स बहुमंजिले।
जब पाप बढ़े जगत में, कुदरत करती न्याय,
आजकल तो सावन में, शेर भी घास ख़ाय।
उन्नत शहर की नालियां, बारिश में भर जाय,
क्या करें हर सावन में, बारिश आ ही जाय।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!