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Tuesday, July 21, 2020

मूंछों पर कोरोना की मार --



एक मित्र हमारे ,
बन्दे सबसे न्यारे।

मूंछें रखते भारी   ,
सदा सजी संवारी ।

कोई छेड़ दे मूंछों की बात ,
फरमाते लगा कर मूछों पर तांव।

भई मूंछें होती है मर्द की आन ,
और मूंछ्धारी , देश की शान ।

जिसकी जितनी मूंछें भारी ,
समझो उतना बड़ा ब्रह्मचारी ।



फिर एक सुहाने सन्डे ,
जोश में आकर , मूंछ मुंडवाकर ,
बन गए मुंछ मुंडे।


मैंने कहा मित्र , अब क्या है टेंशन ,
माना कि साइज़ जीरो का है फैशन।

और फैशन भी है नेनो टेक्नोलोजी का शिकार ,
तो क्या ब्रह्मचर्य को छोड़ इस उम्र में ,
अब बसाने निकले हो घर संसार ।


वो बोला दोस्त , ये फैशन नहीं ,
रिसेशन की मार है ।
जिससे पीड़ित सारा संसार है ।

और मैंने भी मूंछें नहीं कटवाई हैं ,
ये तो खाली कॉस्ट कटिंग करवाई है ।

अरे ये तो घर की है खेती ,
फिर निकल आएगी ।

पर सोचो जिसकी नौकरी छूटी ,
क्या फिर मिल पाएगी ?

वो देखो जो सामने बेंच पर बैठा है ,
अभी अभी पिंक स्लिप लेकर लौटा है ।

और ये जो फुटपाथ पर लेटा है ,
शायद किसी मज़दूर का बेटा है ।

दो दिन हुए शहर से गांव आया है ,
तब से एक टूक भी नहीं खाया है ।

कृषि प्रधान देश में ये जो नौबत आई है,
हमने अपने ही हाथों बनाई है ।

अरे अन्न के भरे पड़े हैं भंडार ,
फिर क्यों मची खाने की दुहाई है !


ग़र देश की जनता में हो अनुशासन ,
लॉक डाउन के नियमों का करें पालन।

हाथ धोते रहें बार  बार ,
बाहर जाएँ तो मास्क पहने हर बार। 

लक्ष्मण रेखा का ना अतिक्रमण हो ,
फिर कभी ना कोरोना का संक्रमण हो।

देश जब कोरोना मुक्त हो जायेगा ,
खुशहली का वो दौर फिर आएगा।

जनता जब भय मुक्त हो जाएगी,
तो भैया ये मूंछें भी तब लम्बी हो जाएँगी ।


माना कि मूंछें मर्द की आन हैं ,
मूंछ्धारी देश की शान हैं ।

मगर इस मंदी की मार से ,
कोरोना से मचे हाहाकार से ,
ग़र सबको मिले मुक्ति ,
तो ये मूंछें , एक नहीं ,
बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।


2 comments:

  1. यह रचना एक पूर्व प्रकाशित रचना का कोरोना रूपांतरण है।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 03 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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