जिंदगी के सागर में,
उम्र की पनडुब्बी पर खड़े ,
हम देख रहे हैं, दूर क्षितिज में ,
भीषण तूफ़ान के काले बादलों तले ,
समुद्र में उठती ऊँची लहरों में ,
गोता लगाते, डूबते उभरते एक जहाज को।
खारे पानी की हर उफनती लहर के साथ,
जहाज में सवार कुछ नाविक,
समा जाते और खो जाते समुद्र की गहराइयों में।
जिन्होंने बात ना मानी, ना पहनी
लाइफ जैकेट, कैप्टेन के आदेश पर।
पनडुब्बी चल दी जहाज की ओर ,
उसे इस घोर संकट से उबारने के लिए।
किन्तु हम जानते हैं कि ,
जहाज का बहादुर कप्तान ,
निकाल ही लेगा अपनी सूझ बूझ से,
जहाज को इस तूफान के बीच ,
किनारे की ओर ।
आशा ही नहीं,
विश्वास है हमें कि ,
कुशल नेतृत्व के आधीन ,
देश का जहाज पा ही लेगा ,
साहिल को एक दिन ,
हराकर इस ''कोरोना'' तूफ़ान को।
आशा है तो जिंदगी है
ReplyDeleteएक दिन जहाज किनारा लग ही जाएगा
जी बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी शुक्रिया।
Deleteसकारात्मकता की मिसाल बन गई है ये पंक्तियां...किन्तु हम जानते हैं कि ,
ReplyDeleteजहाज का बहादुर कप्तान ,
निकाल ही लेगा अपनी सूझ बूझ से,
जहाज को इस तूफान के बीच ,
किनारे की और।...वाह
सकारात्मक भाओं के साथ लाज़बाब रचना
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
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