और लोग घरों में बंद रहे
और पुस्तकें पढ़ते सुनते रहे
आराम किया कसरत की
कभी खेले कभी कला का लिया सहारा
और जीने के नए तरीके सीखे।
फिर ठहरे
और अंदर की आवाज़ सुनी
कुछ ने ध्यान लगाया
किसी ने की इबादत
किसी ने नृत्य किया
कोई अपने साये से मिला
और लोगों का नजरिया बदला।
लोग स्वस्थ होने लगे
उनके बिना जो थे नासमझ
ख़तरनाक़, अर्थहीन, बेरहम
और समाज के लिए खतरा।
फिर ज़मीं के जख्म भी भरने लगे
और जब खतरा खत्म हुआ
लोगों ने एक दूसरे को ढूँढा
मिलकर मृत लोगों का शोक मनाया अंग्रेज़ी
और नया विकल्प अपनाया
एक नयी दृष्टि का स्वप्न बुना
जीवन के नए रास्ते निकाले
और पृथ्वी को पूर्ण स्वस्थ बनाया
जिस तरह स्वयं को स्वस्थ बनाया।
* एक मित्र से प्राप्त कैथलीन ओ मीरा (Kathleen O'Meara) द्वारा १८६९ में अंग्रेजी में लिखित कविता का हिंदी रूपांतरण।
वाह ! बहुत सुंदर कविता !
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteमाँ जगदम्बा की कृपा आप पर बनी रहे।।
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घर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें
वैचारिक मंथन आज की परिस्थितियों पर ।
ReplyDeleteसार्थक चिंतन।
वाह!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (27-03-2020) को नियमों को निभाओगे कब ( चर्चाअंक - 3653) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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आँचल पाण्डेय
जी आभार।
Deleteबहुत सुन्दर विचारणीय प्रस्तुति।
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन ,ये मंथन का ही समय हैं ,सादर नमन आपको
सुन्दर रचना
ReplyDeleteडज्ञ. दराल नमस्कार, Kathleen O'Meara, का penname Grace Ramsay है, इनकी कवितायें समय से बहुत आगे की बात कहती हैं...
ReplyDeleteएक नयी दृष्टि का स्वप्न बुना
जीवन के नए रास्ते निकाले
और पृथ्वी को पूर्ण स्वस्थ बनाया
जिस तरह स्वयं को स्वस्थ बनाया। ...बहुत ही आशावादी कविता है
जी शुक्रिया। बहुत आगे की सोच रही होगी। हालाँकि उस समय महामारी अक्सर होती रहती होंगीं।
Deleteआभार।
ReplyDeleteवाह ! कितनी सामयिक !
ReplyDeleteजैसे आज लिखी गई हो !
शायद यही शाश्वत सत्य है ।