दो सत्य लघु कथाएं :
१ )
कॉलेज के दिनों में हमें भी धूम्रपान की आदत लग गई थी। दिसंबर १९८३ में मारुती गाड़ियां आने के बाद दिल्ली में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। १९९० में जब हमारी पहली गाड़ी मारुती ८०० आई तब तक दिल्ली में लगभग दस लाख वाहन हो चुके थे और उत्सर्जन पर कोई भी नियंत्रण न होने के कारण दिल्ली में लगातार बढ़ता हुआ वायु प्रदुषण चरम सीमा पर पहुँच गया था। तब न PUC होते थे और न ही गाड़ियों में उत्सर्जन मानक। ऐसे में अक्सर शाम के समय दिल्ली के मुख्य चौराहों पर धुंए का बादल सा छा जाता था। ऐसे ही एक दिन जब हमने दिल्ली के सबसे ज्यादा व्यस्त चौराहों में से एक ITO पर रैड लाइट होने पर स्कूटर रोका तो देखा कि धुआं इतना ज्यादा था कि अपनी ही साँस कड़वी सी लग रही थी। तभी हमने देखा कि एक और स्कूटरवाला आकर रुका और रुकते ही उसने तुरंत जेब से निकाल कर सिगरेट जलाई। यह देखकर हमें लगा कि यह कैसा बंदा है , बाहर का धुआं कम था जो यह सिगरेट का धुआं भी फेफड़ों में भर रहा है ! तभी हमें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और उसके बाद हमने फिर कभी धूम्रपान नहीं किया। अभी इतवार को जब हमने अपना PFT कराया तो बिलकुल नॉर्मल निकला।
२ )
एक बार गौतम बुद्ध कहीं जा रहे थे थे। रास्ते में डाकू उंगलीमाल आ गया। वह लोगों को लूट कर उनकी एक उंगली काट कर अपने गले में माला बनाकर पहनता था। जैसे ही उसने बुद्ध को देखा तो जोर से बोला -- ठहर जा। बुद्ध ने कहा -- मैं तो ठहर गया , तू कब ठहरेगा ! अंत में जब गौतम बुद्ध ने उसे बात का मर्म समझाया तो वह सदा के लिए लूटपाट को छोड़कर शरीफ इंसान बन कर रहने लगा ।
आज दिल्ली में उस समय की दस गुना यानि करीब एक करोड़ गाड़ियाँ हैं। कई कारणों से दिल्ली में प्रदुषण दशहरे के बाद ही बढ़ने लगता है। इस भयंकर वायु प्रदुषण से बदलते मौसम में लाखों लोगों को स्वास रोग होने लगते हैं। कृपया सिर्फ एक मिनट साँस रोककर देखिये कि आपको कैसा लगता है। हम जीवन भर साँस लेते रहते हैं लेकिन कभी उसका पता नहीं चलता। जिसे दमा जैसी साँस की बीमारी होती है , उसे एक एक साँस के लिए न सिर्फ अथक प्रयास करना पड़ता है बल्कि घोर कष्ट भी उठाना पड़ता है। स्वास रोग न जात पात देखता है , न धर्म। आपकी क्षणिक मिथ्या ख़ुशी दूसरों के लिए जीवन भर का रोग न बने , इतना प्रयास तो हम कर ही सकते हैं। अभी से सचेत जाइये , वरना फिर आप ही कहेंगे , ये डॉक्टर बहुत लूटते हैं।
१ )
कॉलेज के दिनों में हमें भी धूम्रपान की आदत लग गई थी। दिसंबर १९८३ में मारुती गाड़ियां आने के बाद दिल्ली में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। १९९० में जब हमारी पहली गाड़ी मारुती ८०० आई तब तक दिल्ली में लगभग दस लाख वाहन हो चुके थे और उत्सर्जन पर कोई भी नियंत्रण न होने के कारण दिल्ली में लगातार बढ़ता हुआ वायु प्रदुषण चरम सीमा पर पहुँच गया था। तब न PUC होते थे और न ही गाड़ियों में उत्सर्जन मानक। ऐसे में अक्सर शाम के समय दिल्ली के मुख्य चौराहों पर धुंए का बादल सा छा जाता था। ऐसे ही एक दिन जब हमने दिल्ली के सबसे ज्यादा व्यस्त चौराहों में से एक ITO पर रैड लाइट होने पर स्कूटर रोका तो देखा कि धुआं इतना ज्यादा था कि अपनी ही साँस कड़वी सी लग रही थी। तभी हमने देखा कि एक और स्कूटरवाला आकर रुका और रुकते ही उसने तुरंत जेब से निकाल कर सिगरेट जलाई। यह देखकर हमें लगा कि यह कैसा बंदा है , बाहर का धुआं कम था जो यह सिगरेट का धुआं भी फेफड़ों में भर रहा है ! तभी हमें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और उसके बाद हमने फिर कभी धूम्रपान नहीं किया। अभी इतवार को जब हमने अपना PFT कराया तो बिलकुल नॉर्मल निकला।
२ )
एक बार गौतम बुद्ध कहीं जा रहे थे थे। रास्ते में डाकू उंगलीमाल आ गया। वह लोगों को लूट कर उनकी एक उंगली काट कर अपने गले में माला बनाकर पहनता था। जैसे ही उसने बुद्ध को देखा तो जोर से बोला -- ठहर जा। बुद्ध ने कहा -- मैं तो ठहर गया , तू कब ठहरेगा ! अंत में जब गौतम बुद्ध ने उसे बात का मर्म समझाया तो वह सदा के लिए लूटपाट को छोड़कर शरीफ इंसान बन कर रहने लगा ।
आज दिल्ली में उस समय की दस गुना यानि करीब एक करोड़ गाड़ियाँ हैं। कई कारणों से दिल्ली में प्रदुषण दशहरे के बाद ही बढ़ने लगता है। इस भयंकर वायु प्रदुषण से बदलते मौसम में लाखों लोगों को स्वास रोग होने लगते हैं। कृपया सिर्फ एक मिनट साँस रोककर देखिये कि आपको कैसा लगता है। हम जीवन भर साँस लेते रहते हैं लेकिन कभी उसका पता नहीं चलता। जिसे दमा जैसी साँस की बीमारी होती है , उसे एक एक साँस के लिए न सिर्फ अथक प्रयास करना पड़ता है बल्कि घोर कष्ट भी उठाना पड़ता है। स्वास रोग न जात पात देखता है , न धर्म। आपकी क्षणिक मिथ्या ख़ुशी दूसरों के लिए जीवन भर का रोग न बने , इतना प्रयास तो हम कर ही सकते हैं। अभी से सचेत जाइये , वरना फिर आप ही कहेंगे , ये डॉक्टर बहुत लूटते हैं।
कुछ नई हो सक्ता
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