देश भ्रमण में पर्वतीय भ्रमण सर्वोत्तम होता है क्योंकि पहाड़ों की शुद्ध और ताज़ा हवा हमारे तन और मन को तरो ताज़गी से भर देती है। दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर में रहने वालों के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वर्ष में एक या दो बार पहाड़ों की सैर पर निकल जाएँ ताकि फेफड़ों को कुछ राहत मिल सके। हमारे देश में जहाँ सभी पर्वतीय भ्रमण स्थल लगभग एक जैसे हरे भरे लेकिन कम ऊँचाई पर हैं , वहीँ एकमात्र लद्दाख क्षेत्र ऐसा पर्वतीय स्थल है जहाँ पहाड़ एकदम सूखे , नंगे , वृक्षरहित और ऊंचे हैं। इसीलिए लद्दाख के दुर्गम लेह शहर में हर वर्ष लाखों सैलानी यात्रा करने जाते हैं और कई तरह की कठिनाइयां उठाते हुए भी आनंदित महसूस करते हैं।
लेह जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम मई जून से लेकर मध्य अक्टूबर तक रहता है। इसके बाद बर्फ़बारी और सर्दियाँ बहुत बढ़ जाती हैं और लगभग सभी होटल्स और अन्य सुविधाएँ बंद हो जाती हैं। यहाँ जाने के लिए दो रास्ते हैं -- हवाई यात्रा या सड़क द्वारा। सड़क से दो जगहों से जाया जा सकता है -- एक मनाली से और दूसरा श्रीनगर से। दोनों ही दशाओं में एक रात रास्ते में रुकना पड़ता है। लेकिन हवाई ज़हाज़ से मात्र सवा घंटे में लेह पहुँच जाते हैं। सड़क द्वारा यात्रा का एक लाभ यह रहता है कि आप रास्ते भर एक से एक सुन्दर पहाड़ और घाटियां देख पाते हैं जबकि हवाई यात्रा में आपको आसमान से बर्फ से ढके पहाड़ अपनी पूरी सुंदरता में दिखाई देते हैं। इसलिए सबसे बढ़िया है कि आप सड़क द्वारा जाएँ और हवाई ज़हाज़ से वापस आएं। इससे आपको जलवायु-अनुकूलन में भी सहायता मिलेगी और पर्वत दर्शन भी बेहतर होगा।
लेह शहर की ऊँचाई ११००० -१२००० फुट के करीब है। यानि यह आम हिल स्टेशंस की अपेक्षा दुगनी ऊँचाई पर है। इसलिए यहाँ जाने से पहले कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। यहाँ सबसे ज्यादा कठिनाई होती है ऊँचाई के कारण होने वाली ऑक्सीजन की कमी। ऑक्सीजन की कमी के कारण आप भयंकर रूप से बीमार पड़ सकते हैं और कभी कभी तो यह जानलेवा भी हो सकता है। इसे हाई ऑल्टीट्यूड सिकनेस कहते हैं। यह तीन प्रकार से हो सकती है :
१ ) हाई ऑल्टीट्यूड सिकनेस -- यह आम तौर पर बहुत से लोगों को पहाड़ों पर जाने से हो जाता है। इसमें लक्षण हलके ही होते हैं जैसे सर दर्द होना , जी मिचलाना , उलटी , भूख न लगना और नींद न आना। अक्सर यह एक दिन में ठीक भी हो जाता है।
२ ) पल्मोनेरी इडीमा ( pulmonary edema ) -- इसमें ऑक्सीजन की कमी के कारण साँस फूलने लगता है और साँस लेने में कठिनाई भी हो सकती है। यह फेफड़ों में पानी भरने के कारण होता है। इसलिए ऑक्सीजन की कमी होते ही तुरंत कृत्रिम ऑक्सीजन साँस के साथ लेना आवशयक हो जाता है। इसके लिए सभी होटलों में ऑक्सीजन सिलेंडर मिलते हैं। लेकिन ज्यादा होने पर अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ सकता है जहाँ हाइपरबारिक ऑक्सीजन से इलाज किया जाता है। कभी कभी आराम न होने पर हेलीकॉप्टर द्वारा ऐसे रोगी को निचले क्षेत्र में भी भेजना पड़ जाता है। इसके लिए सेना की सहायता लेनी पड़ती है लेकिन कम ऊँचाई पर आते ही यह रोग स्वत: ठीक हो जाता है। हालाँकि आपका घूमने का प्रोग्राम तो खराब हो ही जाता है।
३ ) सेरिब्रल इडिमा ( cerebral edema ) -- यह सबसे खतरनाक हालात होती है। इसमें व्यक्ति को दिमाग में सूजन आने से बेहोशी होने लगती है और एक बार बेहोश हुए तो करीब ५० % लोगों को दोबरा होश नहीं आता। इसलिए तुरंत चिकित्सीय सहायता से दिमाग की सूजन को ठीक करने का प्रयास करना पड़ता है।
ऑक्सीजन की कमी से बचने के उपाय :
* यदि संभव हो तो आप सड़क यात्रा करते हुए लेह जाएँ। इससे आपको जलवायु का अभ्यस्त होने में सहायता मिलेगी।
* diamox २५० mg की एक गोली सुबह शाम यात्रा से दो दिन पहले शुरू कर दें और २-३ दिन बाद तक और खाएं। इससे इस रोग के लक्षण काफी हद तक नियंत्रण में रहते हैं। हालाँकि यह कैसे काम करती है , यह साफ़ नहीं है। लेकिन निश्चित ही प्रभावशाली है।
* लेह पहुँच कर पहले दिन सिर्फ आराम करें और कोई भी थकाने वाला काम न करें।
* पानी पीते रहें लेकिन बहुत ज्यादा भी न पीयें।
* उचित मात्रा में खाना भी अवश्य खाएं , हालाँकि आपको भूख का अहसास नहीं होगा।
* सिगरेट , शराब आदि का सेवन बिलकुल न करें।
ऐसा करने से आने वाले दिनों में आप स्वस्थ रहेंगे और लेह दर्शन का भरपूर आनंद उठा पाएंगे।
लेह में सुविधाएँ :
लेह पहुंचकर भले भी आपको सब कुछ सूखा सूखा सा लगे लेकिन यहाँ शहर में सब सुख सुविधाएँ उचित दाम पर उपलब्ध हैं। अच्छे साफ सुथरे होटल्स , उत्तर भारतीय स्वादिष्ट खाना , नहाने के लिए प्रचुर मात्रा में गर्म पानी और मार्किट में सभी वस्तुएं मिल जाती हैं। यहाँ के लोग मूलत: बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और बहुत शांतिप्रिय हैं। प्रसन्नचित्त , सहयतापरक और ईमानदार लोगों से आपको कोई कठिनाई महसूस नहीं होगी। अधिकांश अच्छे होटल्स पुराने लेह रोड पर बने हैं जो मेन बाजार के बहुत करीब हैं जहाँ आप शाम के समय अच्छा समय बिता सकते हैं।
लेह लद्दाख दर्शन अगली पोस्ट्स में।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-010-2017) को
ReplyDelete"भक्तों के अधिकार में" (चर्चा अंक 2749)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चिकित्सक जानकारी से परिपूर्ण लेख।
ReplyDeleteअपनी बाइक यात्रा याद आ गयी। आपको भी याद होगी,
लगा कि किसी डॉक्टर ने यात्रा पर जाने की तैयारी करा दी हो..सार्थक आलेख :)
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और जानकारीपरक आलेख, बधाई और धन्यवाद
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