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Sunday, December 20, 2015

ऑटोग्राफ प्लीज़ ---



कल एक कवि सम्मेलन में हमने, कविता जैसा कुछ सुनाया ,
श्रोताओं का तो पता नहीं भैया, पर अपुन को बड़ा मज़ा आया।
हम बन गए प्रोफेशनल कवि , कुछ ऐसा होने लगा अहसास ,
जब आयोजक ने हमारे हाथ में, एक मोटा लिफाफा थमाया।

हमने सोचा अच्छा है , चलो इस गरीब का भला हो जायेगा ,
कुछ नहीं तो लिफाफा ही ,किसी शादी में काम आ जायेगा।
लेकिन नोट दिखे तो ये सोच कर फ़ौरन जेब के किये हवाले ,
कुछ हाथ नहीं लगेगा, ग़र श्रीमती जी को पता चल जायेगा।


उधर कवि सम्मेलन के बाद कुछ युवाओं ने कर दिया घेराव ,
किसी ने लेखन के टिप्स मांगे, किसी को था ऑटोग्राफ का चाव।  
अभी तक तो साइन और सिग्नेचर ही सदा करते आये थे हम ,
अब ऑटोग्राफ कहाँ से लाएं , ये सोचकर ही होने लगा तनाव।

एक युवक बोला ,
सर बहुत ठण्ड लगती है ,सर्दी में नहाने का कोई उपाय बतायें ,
हमने कहा इतनी मज़बूरी है तो आप स्वेटर पहन कर नहायें।
वो बोला सर कमाल है , यह कैसा दिया अज़ीबो ग़रीब ज़वाब है ,
हमने कहा जब सवाल ही ग़रीब है तो अमीर ज़वाब कहाँ से लायें।

अरे नर्म नौनिहालो तुम्हे गर्म पानी से भी नहाने में लगता है डर ,
ज़रा उनकी तो सोचो जो सियाचिन की ऊंचाइयों पर रहते हैं बेघर।
माइनस २० डिग्री में भी डटे रहते है प्रहरी बर्फ की चादर ओढ़कर ,
गोलियों की बरसात में भी सीमाओं की रक्षा करते है होकर निडर।

माना कि आज की युवा पीढ़ी के लोग हमें रूढ़िवादी समझते हैं ,
लेकिन जिन्हे जीवन का अनुभव है वो बात यथार्थवादी करते हैं।  
पथभ्रष्ट मत हो जाना पश्चिमी सभ्यता की नकल करते करते ,
हम भारतीय विपरीत परिस्थितयों में भी सदा आशावादी रहते हैं।



5 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति...

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  2. सुंदर प्रस्तुति...

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  3. अब आप तखल्लुस भी रख ही लें, आनंद आ गया, मंगलकामनाएं आपकी लेखनी को !!

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