रविवार को घर बैठना थोड़ा अखरता है। फिर सुहानी धूप का आनंद तो घर से बाहर निकल कर ही लिया जा सकता है। इसलिए इस रविवार को जाना हुआ एक ऐसी जगह जहाँ हम एक बार कॉलेज दिनों में ही गए थे । दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र में बना है हुमायूँ का मक़बरा जिसके नवीकरण के बाद १८ सितम्बर २०१३ को प्रधान मंत्री जी ने उद्घाटन किया था ।
प्रवेश द्वार से घुसते ही दायीं ओर एक द्वार नज़र आता है जिसके अंदर बना है यह इसा ख़ान का अष्टकोणीय मकबरा जिसे हुमायूँ के मकबरे से २० साल पहले उन्ही के जीवन काल में १५४७ में बनाया गया था।
इसके अहाते में कभी एक पूरा गांव बसा था।
इसके चारों ओर चारदीवारी बनी है जिससे चारों ओर का अंदर और बाहर का नज़ारा देखा जा सकता हैं।
चारदीवारी पर पैदल पथ पर चलने में बड़ा मज़ा आया।
बू हलीमा गेट से प्रवेश करते ही दायीं ओर यह द्वार नज़र आता है जिसे अरब की सराय गेट कहते हैं। इसके आगे अरब की सराय थी जहाँ हुमायूँ टोम्ब बनाने वाले पर्सियन कारीगरों को ठहराया गया था। अब यहाँ आई टी आई का कॉलेज है और यह रास्ता बंद है।
बू हलीमा गेट से दोनों ओर खूबसूरत लॉन्स से होकर सामने एक और गेट नज़र आता है जिसके अंदर म्यूजियम बनी हैं जहाँ मक़बरे से सम्बंधित सारी जानकारी और तस्वीरें दिखाई गई हैं।
इस तीसरे गेट से सामने नज़र आता है हुमायूँ का मक़बरा जिसे एक मंज़िले चबूतरे पर बनाया गया है।
सारे प्रांगण में पानी की धारायें बनाई गई हैं। सामने एक फव्वारा भी चल रहा था।
हुमायूँ का मकबरा।
ऊपर से उत्तर पूर्व की ओर दूर नज़र आता है एक गुरुद्वारा।
चारों तरफ हरे भरे लॉन हैं जिनमे फुटपाथ बने हैं।
मक़बरे के अंदर मध्य में बनी है हुमायूँ की कब्र। अन्य कमरों में तीन तीन कब्रें एक साथ बनी हैं जिनके बारे में पता नहीं चला। हम तो सोचते ही रह गए कि क्या वास्तव में हुमांयू जी यहाँ लेटे होंगे !
मक़बरे से पश्चिम की ओर का दृश्य जहाँ से होकर अंदर आते हैं।
हुमायूँ के मक़बरे का एरियल फोटो जो म्यूजियम में लगा है।
नोट : दक्षिण दिल्ली के पुराने और बहुत महंगे क्षेत्र में स्थित हुमायूँ का मक़बरा एक बहुत बड़े क्षेत्र में बना है। यहाँ जितने अपने देश के लोग नज़र आते हैं , उतने ही विदेशी भी इसे देखने के लिए आते हैं। मुग़लों की इस धरोहर को सरकार ने सुव्यवस्थित ढंग से संजो कर रखने का प्रयास किया है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-03-2014) को "पौधे से सीखो" (चर्चा मंच-1539) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रत्यक्ष में कभी देखा नहीं है पर स्थापत्य तो किसी महल का लग रहा है।
ReplyDeleteसिर्फ मुगलों की धरोहर ही मिली सरकार को सँजो कर रखने के लिए ...खैर "समथिंग इस बैटर देन नथिंग"...:) हमेशा की तस्वीरें भी बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी .... सुंदर चित्र
ReplyDeleteकभी गए थे ,कुछ स्मृतिया है ----
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को शनि अमावस्या और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteअब तो बहुत ही अच्छा लग रहा अहि ये मकबरा .. लगता है अच्छी द्ख्भाल हो रही है अब ...
ReplyDeleteवैसे भी आपके कमरे का एंगल खूबसूरती ढूंढ ही लेता है ... अच्छा है अपनी धरोहर को सहेज रहे हैं हम ...
कई बार देखा है आते जाते .. सुन्दर लगता है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र
ReplyDeleteक्या बात है !काया पलट हो गयी है जैसे .....
ReplyDeleteएसे लुटेरों के मकबरों पर कोई भी सच्चा हिन्दुस्तानी नही जाना चाहेगा, जरा इसे देखें - जब अकबर को पटका था एक राजपूतानी ने http://www.bharatyogi.net/2014/03/akbar-or-rajputani.html
ReplyDeleteआप इस तुर्क हुमायु लुटेरे को हुमायु जी केसे लिख सकते हो, जो भारत को लुटने आया था, और न जाने कितनी नारियों को विधवा किया, कितने बच्चों को अनाथ किया,
ReplyDeleteपहले तो ध्यान से पढ़ने के लिये धन्यवाद ! यदि ध्यान दें तो जी एक ही जगह लिखा है जहां व्यंग को भी पकड़ना चाहिये था !
ReplyDeleteवैसे इतिहास को मिटाया नहीं जा सकता !
सुन्दर चित्र...बहुत ही अच्छा लग रहा है ये मकबरा
ReplyDeleteहुमायूँ जी !!
ReplyDeleteहुमायूं होता तो आपको दरबार में हाज़िर होने का हुक्म अवश्य देता !!
Very beautiful , feels visiting this place again
ReplyDelete