top hindi blogs

Tuesday, June 22, 2010

वो बड़े खुशनसीब होते हैं , जिनके आप जैसे दोस्त होते हैं ---

सन १९७७ का जून महीना दिल्ली के सात भावी डॉक्टर शिमला घूमने गए । अपना तो यह पहला अवसर था जब हमने दिल्ली से बाहर कदम रखा था । यहीं पैदा हुए , पले बढे , पढ़े । कोई रिश्तेदार भी दिल्ली से बाहर नहीं । आखिर दोस्तों के साथ चल ही दिए ।

शिमला घूम घाम कर जब वापस लौटने का दिन आया तो सबने सोचा कि घरवालों के लिए शिमला की कोई अच्छी सी निशानी लेकर चलना चाहिए । कोई ऐसी वस्तु जो शिमला की विशेषता हो , जिसे देख सब वाह वाह कर उठें ।
सबने खूब दिमाग लगाया, खूब दिमाग लगाया और अंत में यही फैसला हुआ ।

सबने एक एक किलो शिमला मिर्च तुलवाई और ठूंस ठूंस कर बैग में भर ली

बड़ी शान से घर पहुंचे । बेटा पहली बार बाहर जाकर वापस आया था । हमने भी छूटते ही घोषणा कर दी कि एक बहुत खूबसूरत तोहफा लाये हैं शिमला से । लेकिन इसके बाद एक के बाद एक , हमें तीन शॉक लगे

पहला झटका तब लगा जब हमने बताया कि हम शिमला मिर्च लाए हैं और मां ने बताया कि ये तो दिल्ली में भी मिलती है ।
खैर इस झटके से उभरकर हमने कहा कि मिलती होगी लेकिन हम जितनी सस्ती लाए हैं उतनी सस्ती यहाँ नहीं मिल सकती ।
अब दूसरा झटका लगा । पता चला कि दिल्ली में तो इससे भी सस्ती मिलती है ।

लेकिन हमने भी बड़े साहस से काम लेते हुए कहा कि इतनी ताज़ा और बढ़िया किस्म यहाँ मिल ही नहीं सकती ।
लेकिन तीसरे झटके से तो हम आज तक भी नहीं उभर पाए हैं । क्योंकि जब बैग खोला , तो जून की गर्मी में २४ घंटे से बैग में ठूंसी हुई शिमला मिर्च का मलीदा बना हुआ था । आखिर, सारी की सारी फेंकनी पड़ी ।

अब इस कारनामे पर सब इतने हतोत्साहित थे कि आज तक किसी ने किसी से नहीं पूछा कि उसके घर पर क्या तमाशा हुआ ।
आज उनमे से कोई अमेरिका , कोई कनाडा , कोई ब्रिटेन में और बाकि यहीं , उच्च श्रेणी के डॉक्टर हैं

शिमला के माल रोड पर चार मित्रइनमे हम कौन से हैं ?

आज जब कभी सोचता हूँ तो लगता है , हमसे समझदार तो अपना साहबजादा ही रहा । बेटा पांच वर्ष की उम्र में स्कूल की ओर से मसूरी घूमने गया तो वहां से अपनी मां के लिए १५ रूपये खर्च कर एक हैण्ड पर्स लेकर आया । श्रीमती जी ने आज १५ साल बाद भी संभाल कर रखा है , बेटे की पहली गिफ्ट कोजब भी सोचता हूँ , हामिद का चिमटा याद जाता है


पिछले वर्ष आज ही के दिन हमें विदेश भ्रमण का पहला अवसर मिला । अपने उसी दोस्त की वज़ह से , जिसने हमें शिमला घुमाया था ।

डॉ विनोद वर्मा के साथ , घर के बाहरदोनों कैसे बच्चों की तरह खुश हो रहे हैं

तीन सप्ताह तक हम सपरिवार वर्मा परिवार के साथ रहे । साथ घूमे फिरे , खाया पीया , मौज मस्ती की ।
हमें अपनी कवितायेँ सुनाने का भी मौका मिला ।

स्कारबोरो , टोरोंटो , बोब्केजियोन , एल्गोन्क्विन , एजेक्स और क्यूबेक जैसे शहरों में अपना कविता पाठ हुआ ।

यह अलग बात है कि ज्यादातर कवि सम्मेलनों में श्रोता अपने मित्रगण और उनके बच्चे ही होते थे

डॉ वर्मा के घर पर मित्रगण-बाएं से हमारे साथ अनिल जी , संजय , डॉ वर्मा , पीछे खड़े प्रदीप और राज सिंह

एक कवि सम्मलेन में तो श्रोता सिर्फ दो ही थेहमारे मेज़बान पति -पत्नी

जी हाँ जुलाई को हमें श्री समीर लाल जी के दर्शनों का लाभ मिला , उनके निवास स्थान पर जो डॉ वर्मा के निवास के काफी करीब ही था

भले ही पहली बार मिले थे , लेकिन कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि पहली बार मिले हैं । साधना भाभी जी ने जो स्वादिष्ट खाना खिलाया , उसका स्वाद आज भी याद है ।

समीर लाल जी के निवास पर , डॉ वर्मा और हमलेकिन सबने अपना हाथ मजबूती से क्यों पकड़ा हुआ है ?

हम शिमला से तो शिमला मिर्च लेकर आये थे । कनाडा से लाये - Tim Hortons की कैपुचिनो फ्रेंच वनिला कॉफ़ी का एक डिब्बा जिसका स्वाद हमें वैसे ही भाया था जैसे मेरठ मेडिकल कॉलिज के बाहर ढल्लू के ढाबे की चाय पसंद आई थी ।


कहते हैं खाने के बगैर जिंदगी नहीं । गुजर बसर करने के लिए खाते पीते तो सभी हैं । लेकिन जो मज़ा दोस्तों के साथ बैठकर खाने पीने , सुनने सुनाने , सुख दुःख बांटने और बतियाने गपियाने में है , वह और किसी बात में नहीं है ।

खुशकिस्मत हैं वो लोग , जिनके दोस्त होते हैं
वो और भी खुशनसीब होते हैं , डॉ विनोद वर्मा और समीर लाल जी जैसे दोस्त जिनके करीब होते हैं

लेकिन ध्यान रहे कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजतीदूसरे हाथ को भी अपना फ़र्ज़ याद रखना पड़ता है

42 comments:

  1. बढ़िया संस्मरण ..... आभार

    ReplyDelete
  2. आपका यात्रा संस्मरण बहुत ही कामयाब रहा!
    --
    समीर लाल जी तो सभी के दोस्त हैं!
    --
    सभी ब्लॉगर्स को वो बहुत अच्छे लगते हैं!

    ReplyDelete
  3. फ़ोटो धुँधली है नहीं तो हम बता देते कि आप कौन से नंबर पर खड़े हैं :)

    पुरानी यादें ही तो जिंदगी में ताजगी रखती हैं, इसलिये घूमना फ़िरना जिंदगी में बहुत ही अहम होता है।

    डॉ.साब ऐसे दोस्त मिलना, धन्य हैं आप।

    और शिमला मिर्च वाला किस्सा तो पढ़कर लोट लगाये जा रहे हैं, पेट के बल खत्म ही नहीं हो रहे हैं।

    उड़नतश्तरी से मिलना अपने आप में एक बहुत ही असाधारण अनुभव रहा होगा, जो व्यक्ति भारत में रहता ही नहीं है फ़िर भी हिन्दी ब्लॉग जगत के हर घर के लोग उन्हें पहचानते हैं, अगर कभी वोटिंग की गई सांसद चुनने की तो समीरजी बिना कहे बाजी मार ले जायेंगे।

    ReplyDelete
  4. आपलोगों की जगह यदि लड़कियाँ होतीं तो उन्हें शिमलामिर्च की कीमत , जून की गरमी में बैग के भीतर उसका भविष्य और दिल्ली में उनका सुलभ होना सबकुछ मालूम होता .. ..बहुत अफसोस होता बुद्धि की इस तीक्ष्णता पर .बुरा न मानिए मेरे पतिदेव आज तक यही करते हैं .. आपने जग जाहिर किया .. इसके लिए शुक्रिया

    ReplyDelete
  5. वो और भी खुशनसीब होते हैं,डॉ विनोद वर्मा और समीर लाल जी और डॉ दराल जैसे दोस्त जिनके करीब होते हैं ।

    हां जी सच है।

    ReplyDelete
  6. sundar sansmaran ,doston se hi to zindagi hai.doston aur rishtedaron mein yehi fark hai ki ham dost chun sakte hain rishtedar nahin.likhte rahiye

    ReplyDelete
  7. डाक्टर दराल ,
    दोस्ती / यारी / खुशनसीबी पे क्या कहूं ! मुझे तो सिर्फ एक ही बात बताइये कि शिमला से लेकर अब तक के हर फोटो में आप एक ही दिशा ( एंगल ) में क्यों है ? वो तो भला हो शीला दीक्षित और हेडर के बांसों का जिन्होंने आपको दूसरी तरफ खड़े होकर फोटो खिंचवाने पर मजबूर किया :)

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छा संस्मरण है । मुझे दुख है कि समीर लाल जी की मेजबानी का लुत्फ मै नही उठा सकी--उनके बुलाने पर भी। धन्यवाद शुभकामनायें

    ReplyDelete
  9. यादें शेयर करने के लिए धन्यवाद भाई जी !
    जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है .....आप खूब निभा रहे हो ! शुभकामनायें

    ReplyDelete
  10. आपका यात्रा संस्मरण रोचक और प्रेरणा प्रद है ....अच्छे मित्र होना खुशकिस्मत होने की निशानी है ।

    ReplyDelete
  11. बायें से सबसे पहले नम्बर पर आप खडे हैं जी

    दोनों बच्चे बहुत प्यारे हैं, लेकिन इनके सिर पर बाल क्यों कम हैं। चश्मा तो खैर छोटी उम्र में चढ जाता है :-)

    समीर जी इतने प्यारे हैं कि उनको गुदगुदी करने का मन किया होगा, इसलिये आपने अपना बायां और वर्मा जी ने अपना दायां हाथ पकडा है। समीर जी ने आप लोगों को देखकर अपना हाथ पकड लिया कि शायद डाक्टर लोग ऐसे ही फोटो खिंचवाते हैं :-) हा-हा-हा
    या आप लोग अपनी-अपनी नब्ज चैक कर रहे हैं।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  12. आप बाएं रहकर खूब मजा लेते हैं.
    संस्मरण यादगार और रोचक है. चलिए कवि को श्रोता मिल रहे हैं ये क्या कम है.
    सब की कलाई में दर्द है, क्या गोल्फ खेलकर लौटे थे जो तीनो ने अपने हाथ पकड़ रक्खें हैं.

    "खुशकिस्मत हैं वो लोग , जिनके दोस्त होते हैं । " यही तो जिंदगी का असल मजा है. परम आनंद है.

    ReplyDelete
  13. रोचक संस्मरण...सबको साथ देखना अच्छा लगा..

    ReplyDelete
  14. रोचक संस्मरण,आभार|

    ReplyDelete
  15. I have many well wishers , but no friend yet. The search is on..

    अच्छे मित्र होना खुशकिस्मत होने की निशानी है । ...रोचक संस्मरण !

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर जी मित्र तो बहुत मिलते है अच्छे मित्र मिलना सच मै खुश किस्मती है, धन्यवाद, जी चित्र बहुत सुंदर है ऊपर शिमला वाले चित्र मै आप दोनो हाथ बगल मै डाले खडे है लेफ़ट साईड मै.

    ReplyDelete
  17. विवेक जी , सही कहा आपने । समीर जी तो अभी भी ऍम पी ही हैं --मेरे प्रिय ।
    प्रज्ञा जी , लेकिन हम तो अब आटे दाल का भाव जान गए हैं ।
    शुक्रिया ललित जी ।
    अली और अंतर सोहिल जी , ठीक पहचाना आप दोनों ने । लेकिन हमने भी अभी जाना कि हम सारी तस्वीरों में बायीं ओर खड़े हैं ।
    लेकिन यदि ध्यान दें तो दरअसल हम हर तस्वीर में दायीं ओर खड़े या बैठे हैं । और हमने दायें हाथ से बायाँ हाथ पकड़ रखा है । है तो ये इत्तेफाक ही । लेकिन ज्यादातर लोग दायें हाथ वाले होते हैं यानि दायाँ हाथ डोमिनेंट होता है । बस यूँ ही एक विचार है ।
    हा हा हा ! सुलभ जब ऐसे दोस्त हों तो श्रोताओं की क्या कमी रहेगी । सुनो भी और सुनाओ भी ।
    दिव्या जी , अवश्य मिलेंगे । हमें भी ब्लोगिंग द्वारा ही कई दोस्त मिल गए हैं ।

    ReplyDelete
  18. शिमला से शिमला मिर्च लाना ..मजेदार संस्मरण ...
    दोस्तों की ताली एक हाथ से नहीं बजती ...सही है ...!!

    ReplyDelete
  19. आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम



    हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!

    ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।

    http://hamarivani.blogspot.com

    ReplyDelete
  20. राज जी , सही पहचाना आपने ।
    अली साहब , हैडर का फोटो ललित भाई ने फिट किया है।
    निर्मला जी , समीर जी से मिलना एक सुखद अनुभव रहा । आप भी दिल्ली आयें तो एक बार फोन अवश्य करियेगा ९८६८३९९५२० पर ।

    ReplyDelete
  21. वाकई दोस्ती अमूल्य उपहार है ..बहुत सुन्दर रोचक संस्मरण .

    ReplyDelete
  22. रोचक और भावनात्मक संस्मरण ।

    ReplyDelete
  23. बहुत अच्‍छा संस्‍मरण।

    ReplyDelete
  24. रोचक संस्मरण...मजेदार पोस्ट.
    वाह!

    ReplyDelete
  25. लगता हैं कवि-हर्दय इंसान होने के साथ-साथ घुमक्कड़ भी हैं.
    (मुझे विदेशी मुद्रा (सिक्के और नोट दोनों) का शौंक हैं, क्या आप इस सम्बन्ध मैं मेरी कोई मदद कर सकते हैं???
    कृपया जवाब अवश्य देवें, मैं आपके जवाब की प्रतीक्षा में हूँ.)
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

    ReplyDelete
  26. वाह क्या बात है ....
    एक फोटो में आप अपने मित्र के साथ ऐसे लग रहे है जैसे दोनों भाई हो , कुछ फर्क समझ नहीं आ रहा , यहाँ तक कि दोनों ही शोर्टस में हो ...तो अब उस पुराने फोटो कि क्विज कैसे सोल्व करें.
    समीर जी के साथ सब इसलिए हाथ बांधकर हैं क्यूंकि एक दूसरे कि कविता सुन सुन कर हाथ उठाने का मन कर रहा होगा :) काजल का वो कार्टून ध्यान होगा जो पिछले हफ्ते उसने बनाया था ...

    कुल मिलाकार आपके इस पोस्ट ने भावुक और मस्त दोनों कर दिया :)
    दोस्त बिना सब सून !!

    ReplyDelete
  27. हां .हा...हा....हा......
    सही सही बताओ डॉ साहब ! यह तो किसी ने नहीं कहा...
    "सब तो लाये फूल ,बुड्ढा गोभी लेकर आ गया" !

    ReplyDelete
  28. आपका शिमला मिर्च का तोहफ़ा पढ़ कर टीवी पर आने वाला एक एड याद आ गया...जिसमें एक सरदारजी विदेश से आते हैं...उनका बेटा बड़े चाव से आता है कि डै़डी उसके लिए बाहर से क्या लेकर आए हैं...सरदारजी एक लॉलीपॉप निकाल कर बच्चे को देते हैं....अब बच्चा जो बुरा सा मुंह बनाकर वहां से जाता है वो देखने वाला ही होता है...

    चलिए डॉक्टर साहब, एक दिन मेरठ हो ही आते हैं...सरधना चर्च देखेंगे, साथ ही मेरठ की जितनी नेमतें हैं...सबका लुत्फ उठा लेंगे...ढल्लू की चाय, राधे की चाट, हरिया की लस्सी...आदि आदि...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  29. चन्द्र सोनी , भाई अफ़सोस कि हम आपकी मदद नहीं कर सकते क्योंकि हमें खाली घूमने का शौक है , सिक्के या नोट इकठ्ठा करने का नहीं । फिर भी कभी मौका मिला तो ---।

    त्यागी जी , पुराने फोटो का राज़ तो खुल चुका है ।
    सतीश जी , तब हम बुड्ढे नहीं थे । वैसे अभी भी कहाँ हैं ।
    ओह के डी सहगल , हमने तो कब का आपको के डी नाम दे चुके हैं । मेरठ में कुछ भी आनंद लो , यदि टिम होर्टोंस की कैप्युचिनो फ्रेंच वनिला का मज़ा लेना है , तो हमारे घर आना पड़ेगा, पप्गिप एक्सटेंशन ।

    ReplyDelete
  30. आपकी शिमला यात्रा व्रतांत और फिर सीधे टोरोंटो यात्रा .... समीर भाई जैसे मित्र बनना .... भाभी के हाथ का स्वादिष्ट भोजन ... वैसे हम भी कई बार आनंद ले चुके हैं कनाडा में समीर भाई और साधना भाभी के साथ का ... पुरानी यादों को डायरी के बाहर निकालना बहुत सुखद लगता है ...

    ReplyDelete
  31. बहुत अच्छा आलेख व आपका संस्मरण सच ही कहा अपने सच्चे और अच्छे मित्र मिलना अपने आप में एक उपलब्धि है

    ReplyDelete
  32. बहुत बढिया संस्‍मरण ..

    ReplyDelete
  33. सर आपको तो पहिचाना ही पर एक और बात ये कि डॉ. वर्मा जी भी हमेशा(चारों तस्वीरों में) आपके अपोजिट साइड में और बाईं तरफ खड़े होते हैं.. मैं सही हूँ क्या??? या फिर लालबुझक्कड़ हूँ???? :)

    ReplyDelete
  34. इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा "चर्चा मंच" पर भी है!
    --
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/06/193.html

    ReplyDelete
  35. "Failure is a step to success!"

    Nice description of your visit to the past!

    Shimla is my birthplace, for it was the Summer Capital of British India that is located at the same longitude as New Delhi!

    ReplyDelete
  36. बहुत ही बढ़िया, शानदार और रोचक संस्मरण रहा! तस्वीरें एक से बढ़कर एक हैं!

    ReplyDelete
  37. बहुत सुंदर डाक्टर साहब, मजा आ गया।
    ---------
    क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
    अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  38. बहुत खुशकिस्मत हैं आप कि पुराने दोस्तों से मिलने जुलने का लुत्फ़ अभी भी उठा रहें हैं....दोस्त तो हमें भी बहुत मिले पर उम्र के हर मोड़ पर नए दोस्त...शायद लड़कियों (महिलाओं:) ) के साथ ऐसा ही होता है..
    फोटो में पहचान तो हमने भी लिया था,पर तब तक सबने राज़ खोल ही दिए..
    ये तो बिलकुल सही कहा कि "दोस्ती की ताली एक हाथ से नहीं बजती"...और बजती भी है तो लम्बे अंतराल तक नहीं...:)
    बहुत ही अच्छी लगी ये संस्मरण यात्रा.

    ReplyDelete
  39. dosti jindabaad........:)

    ek achchha sansmaran........:)

    ReplyDelete
  40. सबसे पहले तो देरी से आने के लिया माफ़ी... चाहता हूँ.... यह पोस्ट बहत अच्छी लगी....

    ReplyDelete
  41. दरल जी,
    एक बेहतरीन सोच की परिचायक है आपकी पोस्ट.बधाई!!

    ReplyDelete
  42. हा...हा...हा...आपका शिमला मिर्च वाला किस्सा पढकर तो सचमुच ही मज़ा आ गया....
    आपने ये बिलकुल सही कहा कि कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ...दूसरे हाथ को भी अपना फ़र्ज़ याद रखना पड़ता है"...

    ReplyDelete