गर्मियों के दिन । दिल्ली की भीषण गर्मी । ऐसे में यदि बिजली भी गुल हो जाये तो फिर सब भगवान भरोसे ।
बचपन में जब गाँव में रहते थे तो उन दिनों बिजली भी नहीं होती थी । जेठ की तपती रातों में गरमागर्म लू के थपेड़े, घर के आँगन में बिछी चारपाई से टकराते , तो लगता जैसे किसी भट्टी के आगे लेटे हैं । लेकिन किसी दिन हवा भी चलनी बंद हो जाती थी तो मारे गर्मी के बुरा हाल हो जाता था । हाथ से पंखा झलते झलते कभी नींद आती भी तो कुछ ही पल में खुल जाती ।
ऐसे में सब उठ कर बैठ जाते और हमारे दादाजी कहते --चलो सब मिलकर बब्बे बोलना शुरू करते हैं । इससे हवा चलने लगेगी। अब आप सोच रहे होंगे कि ये बब्बे क्या बला है ।
बब्बे का मतलब होता है या यूँ कहिये कि होता था --बारह पेड़ पौधों के नाम लेना , जिनका नाम `ब` से शुरू होता हो । जैसे --बड़ , बरगद , बेर , बांस ---इत्यादि ।
यदि आपने बारह के बारह याद कर लिए तो हवा चलने लगेगी, ऐसा विश्वास होता था ।
अब यह तो याद नहीं कि हवा चलती थी भी या नहीं लेकिन सब बच्चे इस खेल में इतना खो जाते थे कि गर्मी के बारे में भूल ही जाते थे । फिर कभी न कभी तो हवा चलती ही थी ।
शायद यह उनका मेडिटेशन का ही एक तरीका था , गर्मी से ध्यान हटाने के लिए ।
आज जब बिजली चली जाती है , या वैसे भी गर्मी से त्रस्त होकर हम तो बब्बे ही पढने लगते हैं , लेकिन आधुनिक रूप में । जी हाँ , हमें जब गर्मी सताती है तो हम याद करने लगते हैं , पहाड़ों की हसीं वादियों को , जहाँ हम कभी हो कर आये थे ।
और सच मानिये , कुछ देर के लिए ही सही , गर्मी का अहसास ख़त्म सा हो जाता है ।
तो चलिए आज आपको ले चलते हैं --दार्जिलिंग , गंगटोक और मनाली की सैर पर ।
सिर्फ चित्र देखिये और ठंडक की अनुभूति कीजिये ----
दार्जिलिंग में स्टर्लिंग रिजोर्ट्स के बाहर अपने एक मित्र के साथ ।
दूर हिमालय की कंचनजंगा चोटियाँ नज़र आती हैं लेकिन बादलों ने सब ढक दिया है ।
दार्जिलिंग शहर में तो कुछ खास मज़ा नहीं आया लेकिन शहर के बाहर की हरियाली ने मन मोह लिया ।
चाय बागानों के बीच से होकर काफी नीचे उतरकर यह झरना बड़ा मनमोहक लग रहा था ।
नेपाल सीमा के पास यह झील इतनी खूबसूरत है कि बस यहीं बस जाने को जी चाहता है ।
इसी घोड़े पर बैठकर हमने झील का आधा चक्कर लगाया । लेकिन इसका मालिक क्या घास लेने गया है ?
और सिक्किम की यह झील शायद सबसे उंचाई पर बनी झीलों में से एक है । यह गैंगटोक से भारत चीन सीमा पर बने नाथुला पास जाने वाले रास्ते पर बिल्कुल सुनसान जगह पर है । इसकी छटा देखने लायक है ।
गैंगटोक में होटल के बाहर से सूर्योदय के समय कंचनजंगा का नज़ारा ।
मनाली
सोलंग वैली जहाँ अब पैराग्लाइडिंग कराई जाती है ।
एक बार आजमाने में क्या हर्ज़ है ? कैसा लगता होगा हवा में पक्षियों की तरह उड़ना ?
उम्मीद है कि अब तक आपकी गर्मी उड़नछू हो गई होगी ।
तो अब दीजिये एक सवाल का ज़वाब ---
यहाँ दिखाई गई इन दो झीलों के नाम क्या हैं ?
सही बताने वाले का इनाम --एक शाम हमारे टीचर्स के साथ CSOI में ।
नोट : पिछली पोस्ट में आधे सूखे आधे हरे पेड़ की लोकेशन --एलिफेंटा केवज, मुंबई --सही बताकर इनाम के हकदार बने हैं श्री गोदियाल जी और श्री समीर लाल जी ।
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बब्बे तो वाकई कमाल की चीज है
ReplyDeleteसुन्दर दृश्य
एक तो Tsomgo Lake है...सिक्किम की सबसे ऊँचाई वाली...और यह घोड़े वाली जगह तो मैं गया भी हूँ..नाम स्लिप कर रहा है..अभी बताता हूँ. :)
ReplyDeleteदूसरी Mirik lake अगर मुझे नाम सही याद आ रहा है तो...यहाँ पर उस दिन प्रवचन चल रहा था विस्वास जी महाराज का, जब मैं पहुँचा>
ReplyDeleteतो सही जबाब:
ReplyDeleteTsomgo Lake
Mirik Lake
बाकी आलेख मस्त रहा!!
Tsomgo Lake
ReplyDeleteMirik Lake
ये लो जी हमने भी बता दिया-अब इनाम पक्का
और बब्बे बोलने अभी से शुरु कर दिए। हा हा हा
उम्दा चित्र देखकर आनंद आ गया।
राम राम
टीचर्स का शब्दार्थ करने वाले हो सकता है झीलें पहचानने में ज्यादा रूचि न ले (भावार्थ वालों की बात और है). बहुत सुंदर चि़त्र हैं.
ReplyDeleteगर्मी में हो ठंडी का एहसास..बढ़िया प्रस्तुति डॉ. साहब..धन्यवाद
ReplyDeleteबब्बे फार्मूला अच्छा लगा गर्मी भगाने का ...
ReplyDeleteतस्वीरे बहुत ही खूबसूरत हैं ...विशेषकर झील की ...!!
सर, ये ललित बाबू ने हमारी कॉपी से चीटिंग की है..हम अपना टीचर्स वाला इनाम फिर भी उनके साथ बांट लेंगे..बांटना क्या..सांट लेंगे. :)
ReplyDeleteवास्तव में ध्यानयोग में बहुत शक्ति है!
ReplyDeleteडा० साहब., सही कहा इसी को कहते है अहसासों संग जीना !
ReplyDeleteहा हा हा ! समीर जी , आपने ढूंढ ही निकाला । लेकिन अभी एक कमी है --इनको हिंदी में लिख कर बताइये । बड़ा मुश्किल है ।
ReplyDeleteवैसे इनाम तो आप जीत ही चुके हैं और ललित भाई तो ग्रहण भी कर चुके हैं ।
डा. साहिब, बहुत बढ़िया रही पहाड़ों की सैर, कुछ क्षण तो दिल्ली की गर्मी को भूल गया :)
ReplyDeleteहम बचपन में कहते थे कि यदि नैनीताल से ताल यानि लेक को निकाल दें तो वहां कोई नहीं जाता!
"जल ही जीवन है."
सोम्गो लेक
ReplyDeleteमिरिक लेक
अब कहें.. :)
समीर जी , ये तो आपने ट्रांसलिट्रेशन कर दिया ।
ReplyDeleteअब तो सस्पेंस बढ़ गया है । वैसे मिरिक सही है लेकिन --
चलिए शाम को बताते हैं , यानि आपकी कल सुबह ।
चलो, at the most,, शुम्गो कर देते हैं...पूरा न सही..दो में एक पैग तो पिलाओगे न..बाकी हम पी कर आयेंगे ललित भाई के साथ ठेके से. :)
ReplyDeleteदार्जिलिंग में स्टर्लिंग रिजोर्ट्स के बाहर अपने एक मित्र के साथ । ... इस फ़ोटो में ... देव आनंद लग रहे हो डाक्टर साहब !!!!
ReplyDeleteहा हा हा
ReplyDeleteआज तो समीर भाई शाम एवं हमारी सुबह रंगीन हो गयी:)
लेकिन ठेका कहाँ है और किसका है? पर्ची चलेगी कि नहीं डिस्काउंट वाली? पता करना पड़ेगा।
:):):)
आपने इतने सुंदर दृश्य दिखा दिए की हमने १० दिनों के भीतर ही घूम आने का प्लान सोच लिया ..बब्बे मजेदार है
ReplyDeleteतस्वीरे बहुत ही खूबसूरत हैं ...विशेषकर झील की ...
ReplyDeleteडॉक्टर साहब आपके इनाम में कोई दिलचस्पी नहीं .....क्यों कि हामारे मतलब का ही नहीं है...:) :)
ReplyDeleteबब्बे बहुत मन भाया ....अच्छा तरीका बताया है आपने...
और चित्र बहुत खूबसूरत लगे...ठंडक दिलाते हुए
ख़ूबसूरत और मनमोहक तस्वीरों के साथ आपने सुसज्जित किया है और मन कर रहा है कि अभी दार्जीलिंग घूमने चली जाऊं और ठन्डे मौसम का लुत्फ़ उठाऊं ! बब्बे बहुत मज़ेदार है! आप तो फोटो में बिल्कुल "प्रदीप कुमार" पहले ज़माने के हीरो जैसे लग रहे हैं!
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट!
ReplyDeleteनेपाल और सिक्किम दोनों ही स्थल में कभी जाना नहीं हुआ फिर भी नेट में दोनों झीलों को खोजने की कोशिश की। पहले झील के बारे में तो नहीं खोज पाये किन्तु दूसरा याने कि सिक्किम वाला झील का नाम त्सोम्गो झील (Tsomgo lake) है।
शानदार पोस्ट..इसी बहाने कुछ साल पहले अपना सिक्किम-ट्रेक भी ताजा हो गया..मनभावन.
ReplyDeleteडा. साहिब, पहले कई बार हमने सिखों के 'पांच कक्के' सुने थे, जो रटे हुए हैं (हालांकि इस में किसी ने विभाजन के पश्चात दिल्ली आ उनके ३ कक्के और जुड़े होना भी बताया),,, और अब आपने १२ 'बब्बे' बताये, "बब्बे का मतलब होता है या यूँ कहिये कि होता था --बारह पेड़ पौधों के नामलेना , जिनका नाम `ब` से शुरू होता हो । जैसे --बड़ , बरगद , बेर , बांस ---इत्यादि । " केवल एक-तिहाई नाम ही,,, यह ऐसा ही लगा जैसे किसीको पांच पांडव के नाम बताने को कहा तो उसने जवाब दिया, "युधिस्थिर, अर्जुन, भीम, इत्यादि"...
ReplyDelete'दार्जीलिंग' कि सैर ने ने एक पुरानी सुनी-सुनाई बात याद दिलादी:
एक आदमी ने अपने एक 'स्ट्रीट स्मार्ट' दोस्त को कहा कि उसको अंग्रेजी नहीं आने के कारण हीनता कि भावना महसूस होती थी.
दोस्त बोला कि जरूरी नहीं है कि आपको भाषा का पूरा ज्ञान हो. बीच-बीच में अंग्रेजी के शब्द लगादो. जैसे भाभी जी को 'डार्लिंग' कह दिया करो...
कुछ दिन बाद जब दोनों फिर मिले तो मित्र ने पूछा कुछ फायदा हुआ कि नहीं?
दोस्त बोला, "एक फायदा तो हुआ कि मुझे चाय कई बार पीने को मिली!"
हैरान हो दोस्त ने पूछा, "तुम भाभीजी को क्या कहते थे?"
तो वो बोला, "जो तुमने सिखाया, यानी दार्जीलिंग!"
बहुत खूब ! खूब घुमवाया आपने !
ReplyDeleteआपकी मेहमान नवाजी के चित्र तो देख चुके थे .
ReplyDeleteप्रतियोगिता रखने का कोई कारण :)
सवाल-जवाब का तो मुझे पता नहीं, पर आपने भीषण गर्मी में ठण्ड का एहसास करा दिया हैं.
ReplyDeleteइसके लिए हार्दिक आभार.
(अब ये भी मत भूलना कि-"आपको भीषण ठण्ड में गर्मी का एहसास भी कराना होगा?? क्योंकि जब आपने गर्मी में ठण्ड का एहसास कराया हैं तो निश्चित तौर पर पाठक ठण्ड में गर्मी का एहसास करने कि आशा तो रखता ही होगा,......")
बहुत बढ़िया, धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
मस्त फोटो
ReplyDelete]
जय हो
अजी हम तो सोये रह गये सही नाम तो बता दिये सब ने... बहुत सुंदर लगा आप का यह खेल ओर लेख धन्यवाद
ReplyDeleteडा० साहब, सुबह तडके जिस समय टिपण्णी लिख रहा था उस समय पेट गुडगुड कर रहा था, इसलिए सुरुआती पढ़ा और फिर फोटो देख टिप्पणी लिखी और भाग खडा हुआ ! अब पूरा लेख पढ़ा एक झील का सही नाम तो समीर जी बता ही चुके है , सिक्किम वाली झील का नाम छांगु झील है !
ReplyDeleteहाँ , टीचर पार्टी ड्यू !!!!!!!! :)
haay garmee se waah garmee kahne par majboor kar diya aapne sir..
ReplyDeleteहम तो 12 काने (जिनकी एक आंख खराब होती है) गिनते थे जी
ReplyDeleteआजकल गाना गाते हैं "जब चली ठंडी हवा"
वैसे इन्वर्टर ने ये बातें लगभग भुलवा ही दी हैं।
फोटो बडे शानदार हैं।
आफिस के मेरे केबिन का 5 डिग्री तापमान कम हो गया है, आज की आपकी पोस्ट खुलते है :-) हा-हा
पहेली खेलने का आज मूढ नही हैं।
प्रणाम
लो जी सही ज़वाब आ गया । गोदियाल जी ने सही ज़वाब दिया है --छांगु झील । जी हाँ यही नाम है इसका । लेकिन Tsomgo lake
ReplyDeleteभी सही है , हालाँकि यह नाम भूटिया भाषा में बोला जाता है ।
तो इस तरह एक बार फिर गोदियाल जी और समीर जी ने जीता ये इनाम । साथ में अवधिया जी और ललित जी ने भी मेहनत कर पता कर ही लिया ।
यह झील गंगटौक से ४० किलोमीटर दूर १२४०० फुट की ऊंचाई पर बनी है और करीब १५ मीटर गहरी है , अंडाकार शक्ल में । सर्दियों में पूरी जम जाती है ।
जे सी जी , अभी तो चार बब्बे ही लिखे थे , तब भी सुबह से धूल भरी आंधी चल रही है । सोचिये यदि १२ के १२ लिख दिए होते तो यहाँ चक्रवात ही आ जाता । :)
ReplyDeleteडॉ सिन्हा , कभी आइये --साक्षात् दर्शन कराएँगे ।
सोनी जी , ठण्ड तो आने दो , उसका भी इंतजाम हो जायेगा । लेकिन अभी तो गर्मी से ही निपट लें ।
उदय जी , बबली जी , क्या कहूँ --सब आपकी नज़रों का कमाल है ।
डा साहिब, चक्रवात 'फेट' तो कल ही से अरब सागर से उठ निर्णय नहीं ले पा रहा था, "मैं इधर जाऊं कि उधर जाऊं?" आपके चार 'बब्बर शेरों' से डर पाकिस्तान की ओर मुड़ गया लगता है,,, टाटा को टाटा बाय-बाय कर गया!
ReplyDeleteसिक्किम की झील तो छंगू लेक है। सारे चित्र लगाकर पुरानी यादों का ताजा कर दिया, आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर तस्वीरें इस तपती गर्मी में ठंढी बयार सी...
ReplyDeleteयह बब्बे का खेल तो बहुत ही बढ़िया है...हमलोग भी बचपन एम अन्त्याक्षरी खेला करते थे और गर्मी को भूल जाते...अब तो बच्चे मोबाईल पे अकेले अकेले गेम्स खेलते हैं मिलकर कुछ नहीं.
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
ReplyDeleteआचार्य जी
डा साहिब, आपके १२ 'बब्बे' और आचार्य जी के 'मन एक मंदिर' से और याद आया कि एक वर्ष में १२ माह होते हैं, जन्म-कुंडली में १२ घर, 'जोडिएक' चिन्ह १२ माने जाते हैं क्यूंकि सूर्य को प्रत्येक वर्ष एक माह तक - एक पूर्व-निर्धारित चक्र समान - एक तारा मंडल (कोंस्टेलेशन) के सामने देखा जाता है,,, और सब जानते हैं कि सूर्य प्रकाश का स्रोत होने के अतिरिक्त शक्ति का प्रतिरूप भी है (हिन्दू मान्यता की गौरी, अथवा श्वेत-वस्त्र धारिणी, वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती), जो अपने सौर मंडल के अनगिनत अन्य सदस्यों को ४ अरब से अधिक वर्षों से अपनी-अपनी कक्षाओं में घुमाये जा रहा है,,, और पृथ्वी पर हम सब जीव को भी, जिसमें सूर्य के सामने पृथ्वी के घूमने के कारण समय का जन्म हुआ, जिसे मानव घडी द्वारा दर्शाता है... और उसमें १ से १२ तक संख्या लिखी जाती है या सांकेतिक भाषा में केवल १२ चिन्हों द्वारा दर्शाया जाता है, और इस संख्या के नीचे जेरो (०) छुपा रह जाता है...मन शायद सरस्वती का मंदिर ही नहीं बल्कि एक अंतरिक्ष यान भी है,,, और 'हिन्दू', मंदिर के ऊपरी भाग को 'विमान' कहते आये हैं अनादि काल से :)...
ReplyDeleteऔर हाँ, जैसे सूर्य सौर मंडल का राजा कहा जा सकता है और शेर (सिंह) जंगल का, वैसे ही बरगद को पेड़ों का राजा भी कह सकते हैं!
sari photo bahut acchhi hai...kash me bhi perashoot me ud pati par imagination me b possible nahi ho pa raha hai :(
ReplyDeleteअनामिका जी , आप अवश्य कर पाएंगी। कभी अवसर मिले तो कोशिश ज़रूर कीजियेगा ।
ReplyDeleteडा साहिब, क्षमा प्रार्थी हूँ कि इसके लिए अधिक गहराई में जाना होगा...जो शायद 'विज्ञान' के विद्यार्थी के लिए अधिक कठिन नहीं है...
ReplyDeleteमैंने घडी के माध्यम से केवल दिन के राजा सूर्य की ही बात की पहले जो १२ बजे सर के ऊपर होता है,,, '०' अथवा अन्धकार (सिनेमा हॉल के भीतर जैसे जब फिल्म चल रही होती है), अथवा 'कृष्ण' को दर्शाते काली रात के राजा चन्द्रमा की नहीं, जो वास्तव में अनंत का द्योतक है, और प्रकाश सीमित कालीन, जैसा कि 'हिन्दू' मान्यतानुसार ब्रह्मा की उसके ४ अरब से अधिक दिन जितनी लम्बी रात का भी सन्दर्भ यदा-कदा सुनने में आता हैं,,, और चन्द्रमा के सार को मानव मष्तिस्क में सांकेतिक भाषा में शिव के माथे में दिखाते आये हैं, या बिंदी द्वारा हिन्दू स्त्री या बालिका के मस्तक पर, और अंग्रेजी के 'आई' समान तिलक द्वारा (स्त्री कि तुलना में अधिक घमंडी) पुरुष के मस्तक पर!
बब्बे तो वाकई कमाल का लगा ऊपर से तस्वीरें.!!!!!!क्या गर्मी का मौसम ख़तम हो गया ????? मजा आ गया!!!!!!
ReplyDeleteawesome pics and unique contents :)
ReplyDeleteजब हम साकार जीव अँधेरे हॉल में हाथ पर हाथ धरे फिल्म (टीवी में सीरियल आदि भी) देख रहे होते हैं तो उसकी कहानी में ऐसे खो जाते हैं जैसे वो उसी क्षण घट रहा 'सत्य' हो,,, इसी कारण बॉलीवुड आदि को 'माया जगत' कहते हैं...
ReplyDeleteउपरोक्त के सन्दर्भ में जब बुढ़ापे में आपको समय मिले तो आप 'हिन्दू परिवार' में जन्म लिए सोचिये एक 'पहुंचे हुए' जीव के बारे में, जो शून्य काल से जुड़ा निराकार हो... जो अजन्मा और अनंत भी कहा गया है, और जिसके समान स्वयं आप और हम सभी मानव एवं पशु भी अनादिकाल से माया द्वारा अस्थायी रूप से साकार दीखते हुए अपने अंतर्मन में निद्रावस्था में फिल्म के समान डरावने या सुंदर स्वप्न देखते आ रहे हैं बचपन से - प्रकाश और गर्मी के स्रोत मायावी सूर्य और सौर मंडल के सदस्यों, चन्द्रमा आदि, की कृपा से!
फिर उत्तर सोचिये उस प्रश्न का: मैं कौन हूँ?
डा. साहिब, बचपन में मानव की प्रकृति (५ से १६ वर्ष तक? जब वो स्कूल में पढ़ रहा होता है) सूचना एकत्रित करने की अधिक होती है और विश्लेषण की कम,,, जबकि शरीर की परिपक्वता के साथ विश्लेषण की क्षमता बढ़ जाती है और सूचना ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है...
ReplyDeleteइससे याद आता है कि जिओग्राफी की क्लास में हम हिमालयी-श्रंखला के पहाड़ों को कई सारे एक के साथ एक जुड़े त्रिकोणों द्वारा दिखाते थे,,, जिस कारण जिन्होंने पहाड़ी क्षेत्र नहीं देखे हुए थे ऐसे ही एक लड़के ने मुझसे एक दिन कहा, "यार! तुम वहां खटिया कैसे बिछाते हो? सुबह तक फिसल कर वो पहाड़ के नीचे नहीं पहुँच जातीं?
आपके लाजवाब .. खूबसूरत हरे हरे फोटो देख कर गर्मी तो सच गायब ही हो गई .... आपने बचपन के खेल की याद करा दी .. हम भी ये खेल बहुत खेलते थे ...
ReplyDeleteचित्रावली ने तो ठंडा कर दिया...... दिल्ली की गरमी से कल साक्षात्कार होगा ही.....
ReplyDeleteचित्रों से आप लेख ज्यादा रोचक बन गया है।
ReplyDeleteफोटो देखकर तो मुझे ठण्ड लगने लग गई...
ReplyDeleteबढ़िया...चित्रमयी पोस्ट