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Thursday, September 10, 2009

कौन कमबख्त बीडी, पीने के लिए पीता है.....


हर साल मई का आखरी सप्ताह हम धूम्रपान विरोधी अभियान चलाते हैं. इसका आइडिया लगता है ट्रैफिक पुलिस से मिला है, क्योंकि ये सप्ताह मनाने का काम अक्सर पुलिस वाले ही किया करते हैं. लेकिन ये काम भी तो पुलिसियाई जैसा ही तो है. क्योंकि इस पूरे हफ्ते एक स्पेशल स्क्वाड गठित किया जाता है जिसका काम होता है , सार्वजानिक स्थानों पर धूम्रपान करने वालों का चालान काटना और जुरमाना करना जो कम से कम १०० रूपये होता है.

उस दिन भी हम हफ्ता वसूल करने....अररर..... माफ़ कीजिये, चालान काटने के लिए निकले थे, अस्पताल के परिसर में. दोपहर की गर्मी में पसीने पसीने हुए जा रहे थे. लेकिन बीडी सिगरेट पीने वालों की आदत छुडाने का ठेका लिया था. सो, एक के बाद एक चालान काटे जा रहे थे. लेकिन----
तभी हमारी नज़र पेड़ के नीचे बैठे एक ७० साल के बुजुर्ग पर पड़ी. बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहा था. देखने से ही लग रहा था की वो अस्थमा से पीड़ित था. फिर भी बड़े इत्मीनान से बैठा बीडी का सुट्टा लगाये जा रहा था.

उसकी हालत देखकर मुझसे रहा न गया और मैंने उससे पूछा, बाबा तुम्हे सांस तो आ भी नहीं रही है, ऊपर से बीडी पी रहे हो. बाबा शायद शाहरुख़ खान का दीवाना था, और लगता है देवदास कई बार देख चुका था. छूटते ही बोला --कौन कमबख्त बीडी पीने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूँ ताकि सांस ले सकूँ. उसकी बात सुनकर हम तो हैरान रह गए. हमारी परेशानी देखकर बाबा ने ही हम पर दया की और बोले ---


बेटा, डॉक्टर के पास गया था, वो बोला तुम्हे दमा है, दवाई खाओ और पार्क में बैठकर लम्बी लम्बी सांस लेकर सांस की एक्सेर्साइज़ करा करो. सो, वही कर रहा हूँ.

अब क्या करते, वाह वाह करते हुए वहां से खिसक लिए.


वैसे भी १०० रूपये की उघाई तो एक भी शिकार से नहीं हुई. किसी से १० मिले तो किसी से २० रूपये. कुछ के पास तो खाली छिल्लर ही निकली. एक के पास तो वापस जाने के लिए रिक्शा के लायक भी पैसे नहीं थे. उसका क्या चालान काटते. उल्टे जेब से निकलकर १० रूपये देने पड़े.

लेकिन इन सब लोगों में एक बात कॉमन थी. वो ये की सबकी जेब में बीडी का बण्डल और माचिस की डिबिया ज़रूर थी. यानि भले ही खाने के लिए न मिले लेकिन बीडी पीने के लिए पैसे ज़रूर होने चाहिए.

आज यहाँ ११७ करोड़ के देश में यही हो रहा है. बच्चों को रोटी मिले या न मिले, घर के मुखिया को पीने को ज़रूर मिलना चाहिए --फिर वो बीडी हो या दारु. दोनों ही इम्पोर्टेन्ट हैं. हैं ना ---


अब ज़रा इन तथ्यों पर भी गौर कीजिये :

१। जो दुकान सुबह सबसे पहले खुलती है और रात में सबसे बाद में बंद होती है, वो पान -बीडी -सिगरेट की दूकान होती है.

२। हमारे पड़ोस में दो साल से बनी मार्केट में सिर्फ दो ही दुकाने खुली हैं और चल भी रही हैं --एक अंग्रेजी शराब की, दूसरी पान की.

३. शराब की दुकान पर सबसे ज्यादा भीड़ होती है ड्राई डे से एक दिन पहले.

8 comments:

  1. शराब की दुकान की टी आर पी वाकई ऐसी है..सही आंका.

    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

    जय हिन्दी!

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  2. सर, मैंने ताजा पोस्ट पर एक टिप्पणी के ज़रिए आपके लिए जो मेरे दिल में विचार हैं, वो व्यक्त किए हैं. उसी टिप्पणी को यहां रिपीट कर रहा हूं...
    देखिए इस पोस्ट को लिखते समय फिर अपना भुलक्कड़पन दिखा दिया...उसी शख्सीयत को भूल गया जिसने मेरे ब्लॉगिंग के पहले दिन से ही आकर मेरा हौसला बढ़ाया...वो नाम है डॉ टी एस दराल का...दराल सर, क्षमा कीजिएगा...लेकिन वो कहते हैं न भूल में भी कोई न कोई अच्छी बात छिपी होती है...तो आपसे मैं आइकन का नहीं, कुछ अलग ही रिश्ता मानता हूं...ये रिश्ता है मेंटर, फिलॉस्फर, गाइड और इन सबसे बढ़कर दोस्त (उम्र में छोटा होने के बावजूद) का, जिनसे मैं दिल खोलकर अपने राज़ बांट सकता हूं...जो मैं अपने आइकन्स के साथ नहीं कर सकता...आशा है दराल सर, आप मेरा प्वाइंट ऑफ व्यू समझ गए होंगे...(वैसे आपको "टीचर्स" भी याद होगी, है न...)

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  3. बहुत सही कहा आपने पान दूकान एक ही जगह पर कई मिल जाएँगी | चलती है धड़ल्ले से इसीलिए तो खुलती |

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  4. सत्य वचन,
    मौज- मस्ती, आदत और आदत बीमारी.
    सरकार के इन गुर्गों से महिलाएं हारी.

    कहने का आशय की इन सबका सबसे बुरा खामियाजा महिलाओं को ही झेलना पड़ता है, बाकि सब तो बनाने के चक्कर में रहते हैं............

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  5. दरल सर, दैनिक हिंदुस्तान की ब्लॉग चर्चा में अंतर्मंथन पर रवीश कुमार जी की कमेंट्री के लिए बहुत बहुत बधाई...इसे कहते हैं सौ सुनार की, एक लोहार की...रवीश जी का पत्रकार के नाते मैं खुद भी बड़ा सम्मान करता हूं...और हां एक बात और अब तो टीचर्स पर सीरियसली डिस्कस करना बनता है...गुरुदेव (समीरजी) को भी न्योता भेजूं क्या...

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  6. भई दवा-दारू दोनो ही ज़रूरी है इस देश मे !!

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  7. aapke khule man aur khuli ankho se duniya dekhne ke swabhav ko badhai. desh mein imandar-deshbhakt log lanka mein vibhishan ki tarah se rah rhe hain.
    -surender singh

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  8. आज यहाँ ११७ करोड़ के देश में यही हो रहा है. बच्चों को रोटी मिले या न मिले, घर के मुखिया को पीने को ज़रूर मिलना चाहिए...

    ये एक चिंताजनक विषय ज़रूर है लेकिन पब्लिक बेचारी भी क्या करे...लाख चाहने के बावजूद भी इस पर चिंता नहीं कर पाती क्योंकि चिंता जो है...वो चिता की जननी है और मरना कौन कमबख्त चाहता है

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