नेनो यानि अति सूक्षम। पिछले कुछ अरसे से नेनो की धूम मची हुई है। जी नही, मैं टाटा निर्मित नेनो कार की बात नही कर रहा हूँ, हालांकि धूम तो उसने भी खूब मचा रखी है।
मैं बात कर रहा हूँ एक नेनोमीटर साइज़ के पार्टिकल यानि वाइरस की जिसकी वजह से आजकल मानव जाति की नींद उड़ गई है। कॉमन कोल्ड से लेकर, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और ऐड्स तक जैसी बीमारियाँ इन्ही नेनो साइज़ के दुश्मनों से फ़ैल रही है। अब भई, वाइरस तो कुदरत की देन है, कोई हम या आपने तो इन्हे संसार में बुलाया नही। इतेफाक से इंसान की नब्ज़ इनके हाथ में ऐसी आ गई है की, कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है की --
एक वाइरस इंसान को क्या से क्या बना देता है।
दूसरी तरफ़ देखें तो आज मानव भी नेनोटेकनोलोजी का इस्तेमाल जमकर कर रहा है। मैंने देखा है की इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल तो हमारी फैशन इंडस्ट्री कर रही है।
अब देखिये पिछले साल भारत में हुए आई पी एल के २०-२० मैचों के दौरान चीअर लीडर्स की ड्रेस को लेकर काफी हंगामा हुआ। क्योंकि उनकी ड्रेस में नेनोटेकनोलोजी का इस्तेमाल किया गया था। अब भइया, भज्जी थप्पड़ काण्ड के बाद भी अगर क्रिकेट को जेंटलमेंस गेम कह सकते हैं, तो इस विचार से चीअर लीडर्स को तो वेल ड्रेस्ड कहना चाहिए।
कम से कम आजकल के समाचार पत्रों में छपी तस्वीरों को देखकर तो यही लगता है।
एक बड़े अखबार के फ्रंट पेज पर बड़ा सा समाचार पढ़ा, कुछ साल पहले --लिखा था ,
***** मैगजीन के द्वारा *** ***बेस्ट ड्रेस्ड वूमेन घोषित की गई। नीचे उसका पूरा फोटो बना हुआ था।
मैं पूरे एक घंटे तक ढूँढता रहा, मगर मुझे वो ड्रेस नज़र नही आई। भई , ड्रेस होती तो नज़र आती।
वो तो बाद में पता चला की ड्रेस तो थी, पर उसमे भी नेनोटेकनोलोजी का इस्तेमाल किया गया था।
और दोस्तों, ये नेनोटेकनोलोजी का ही कमाल है की जहाँ पहले घरों में बड़े बूढों के सामने बहु बेटियाँ नज़रें नीची रखती थी, आजकल बेटियाँ ऐसे कपड़े पहनती हैं की बड़ों को नज़रें नीची रखनी पड़ती हैं।
मैं तो
जब भी
देखता हूँ ,
यही
सोचता हूँ .
की कहाँ
टिकी है ,
कैसे
टिकी है ,
ये
लो वेस्ट
की जींस .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपने सही मुद्दे को लेकर बड़े ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है! बहुत अच्छा लगा पढ़कर!
ReplyDeleteमैं तो
ReplyDeleteजब भी
देखता हूँ ,
यही
सोचता हूँ .
की कहाँ
टिकी है ,
कैसे
टिकी है ,
ये
लो वेस्ट
की जींस .
लो जी डाक्टर साहब आगये ताऊ अपने थोबडे के साथ आपके ब्लाग पर. बहुत लाजवाब व्यंग लिखा आपने. अब आना जाना लगा ही रहेगा. बहुत शुभकामनाएं और धन्यवाद.
रामराम.
नैनो महिमा अपरमपार ।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
भाई दराल जी,
ReplyDeleteआपने तो कमल कर दिया.
बहुत खूबसूरत ढंग से नैनो टेक्नोलॉजी समझाई है.
मैं इतना प्रभावित हुआ कि चाँद पंक्तियाँ लिखने से खुद को रोक न सका.......
नैनो की जो महिमा गाई,दिखाई,फिर भी नज़रें झुक आई
किसी माँ - बाप ने ही बेटी को लो वेस्ट जींस है पहनाई
नहीं शर्म उन्हें न पहनने वालों को, तभी तो नज़रें गड़ाई
कहाँ टिकी है, कैसे टिकी है, फिर भी कुछ समझ न आई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
और दोस्तों, ये नेनोटेकनोलोजी का ही कमाल है की जहाँ पहले घरों में बड़े बूढों के सामने बहु बेटियाँ नज़रें नीची रखती थी, आजकल बेटियाँ ऐसे कपड़े पहनती हैं की बड़ों को नज़रें नीची रखनी पड़ती हैं।
ReplyDeleteभाई दरल जी,
अच्छी प्रस्तुति.बहुत बहुत बधाई!
नेनोटेकनोलोजी par अच्छी प्रस्तुति.......!!
ReplyDeleteमगर मुझे वो ड्रेस नज़र नही आई। हा हा हा कमाल का लिखते हैं आप भी दराल साहब ।
ReplyDeleteशारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteहमारे नए ब्लॉग "उत्सव के रंग" पर आपका स्वागत है. अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा हौसला बढायें तो ख़ुशी होगी.
अरे दराल सर, आपको पता नहीं चला कि मल्लिका शेरावत ने अपना नाम बदल कर मल्लिका नैनो रख लिया है...
ReplyDeleteदूसरी बात, ये प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी से कहिए न...कभी भूल कर मेरे ब्लॉग पर आ जाएं, कमेंट्स का खजाना तो बढ़ेगा...
तीसरी बात, पत्नीश्री आपके नाम की माला जप रही है, गलती से उसने आपकी वो सलाह जो पढ़ ली जो आपने मुझे टाइम को लेकर दी थी...
चौथी और आखिरी बात वैसे मैं अपनी पिछली पोस्ट पर कमेंट के ज़रिए कह चुका हूं, लेकिन शायद अब पुरानी पोस्ट पर दोबारा नहीं गए होंगे, इसलिए उसे यहां रिपीट कर रहा हूं...
दराल सर, दराल को दरल करने की मेरी धृष्टता के लिए मैं नहीं पत्रकार भाई रवीश कुमार ज़िम्मेदार हैं...उन्होंने आपकी ट्रैफिक वाली पोस्ट को लेकर दैनिक हिंदुस्तान में जो कमेंट्री की उसमें आपको डॉ टी एस दरल ही बताया था...पहले तो मैं नाम को लेकर चकराया...फिर सोचा अनुभव में रवीश भाई मुझसे कहीं आगे हैं...वो गलती कोई कर सकते हैं...झट से मैंने मान लिया कि मैं डॉक्टर साहब के नाम का उच्चारण गलत कर रहा था...इसी के चलते मुझसे ये खता हुई...एक बात और, यकीन मानिए जब मैंने दरल टाइप किया था तो टीचर्स मेरे आसपास कहीं नहीं थी...
नैनो तकनीक पर आपकी ये पोस्ट मन को बहुत भाई
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete