अपनी १९ अगस्त , ४ और ७ सितम्बर की पोस्ट में मैंने दिल्ली के ट्रैफिक और दिल्ली वालों की रोड सेंस पर जो लेख लिखे थे , उन पर श्री रवीश कुमार जी ने १६ सितम्बर के दैनिक हिन्दुस्तान में ब्लॉग चर्चा के अर्न्तगत अपना विश्लेषणात्मक लेख प्रकाशित किया है। दिल्ली के ट्रैफिक जाम के डॉक्टर --शीर्षक से छपे इस लेख में श्री रवीश कुमार जी ने मेरी कही बातों का अनुमोदन किया है। इस सार्थक कार्य के लिए श्री रवीश कुमार बधाई के पात्र हैं।
कल के अखबार में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार , माननीय ग्रह मंत्री श्री पी चिदंबरम ने दिल्ली वालों के व्यवहार और आदतों पर गहरी चिंता जतायी है। भई, चिंता तो जायज़ है, क्योंकि अगले साल देश में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले हैं, और दिल्ली वाले हैं की देश की नाक कटाने पर तुले हैं।
अब हमारी सरकार तो भरपूर प्रयतन कर रही है, दिल्ली वालों को लाइन पर लाने की। लेकिन कहते हैं न की जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो फसल का क्या होगा। अब दिल्ली वालों ने तो ठान रखी है की देश की नाक कटा कर रहेंगे। इज्ज़त की वाट लगा कर रहेंगे।
अखबार में दिल्ली वालों के १० कुकर्मों की लिस्ट दी गई है। बिल्कु़ल सही बात कही है। मैंने तो दो साल पहले एक कविता लिखी थी, जिसमे इन ज्यादातर बातों का उल्लेख किया गया है। लेकिन कहते हैं न की सिक्के के दो पहलू होते हैं। तो आज पहला पहलू ---
मेरी दिल्ली , मेरी शान --भाग १
मेरी दिल्ली, मेरी शान
पर कैसी दिल्ली , कैसी शान
यहाँ पड़ोसी पड़ोसी अनजान
पर ऊपर सबकी जान पहचान ।
झूठी आन बान,
शान बने वी आई पी महमान ,
और तेरी गाड़ी मेरी गाड़ी से बड़ी कैसे
सब इस बात से परेशान ,
फ़िर भी मेरी दिल्ली मेरी शान।
साठ लाख गाड़ियों का शोर ,
कार्बन और नाइट्रोजन का बढ़ता जोर।
बिन मीटर के चलते ऑटोरिक्शा ,
उस पर ब्लूलाइन की खतरनाक सुरक्षा।
स्पीड लिमिट ५० की, पर सब ८० पर दोडें ,
सब्वेज को छोड़कर , पब्लिक रेलिंग तोडे।
और यहाँ कब किस मोड़ पर,
रोड रेज़ में जाये जान।
फ़िर भी मेरी दिल्ली, मेरी शान।
देखिये नगर निगम के ट्रकों की हालत
चौराहों पर सेल्समैन और भिखारियों की हिमाकत ।
सड़क पर गडे पुलिस के बैरिकेड ,
फुटपाथ पर पड़े चरसियों की ब्रिगेड।
ट्रैफिक जाम करता वी आई पीज का सफ़र,
उस पर ट्रैफिक पुलिस की पैनी नज़र।
और भइया, तिनतेड ग्लास के चक्कर में,
जाने कब कट जाये चालान.
फिर भी मेरी दिल्ली मेरी शान .
दूध में यूरिया, चर्बी का घी ,
और गाजीपुर के मुर्दा मुर्गे,
सड़कों पर आवारा घूमते गाय, भैंस और कुत्ते.
कूडेदान में मुहँ मारते सूअर के बच्चे.
पास खडा खोमचे वाला,
हाथ घोलकर खिलाये गोल गप्पे.
कैमिकल से पके फल और,
इंजेक्सन लगी सब्जियों के बढ़ते दाम.
ऐसे में भला क्या होगा सबका अंजाम.
लेकिन मेरी दिल्ली, मेरी शान.
बड़ा विस्तार से वर्णित कर दिया आपने दिल्ली को अपनी रचना में.
ReplyDeleteमुझे तो इस बात पर आश्चर्य लग रहा है आखिर मुझ पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम क्यूँ लगाया गया? मैं भला अपना नाम बदलकर किसी और नाम से क्यूँ टिपण्णी देने लगूं? खैर जब मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं तो फिर इस बारे में और बात न ही करूँ तो बेहतर है! आप लोगों का प्यार, विश्वास और आशीर्वाद सदा बना रहे यही चाहती हूँ!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! मैंने पहली नौकरी दिल्ली में किया और वहां के तरह तरह के खाने, इधर उधर घूमना इत्यादि सारी बातें याद आ गई आपका पोस्ट पढ़कर! बहुत अच्छा लगा!
बबली जी ये जानकार अच्छा लगा की आप दिल्ली में रह चुकी हैं. फिर तो भाग २ पढना मत भूलियेगा क्योंकि इसे पढ़कर तो सारी यादें और भी ताजा हो जाएँगी.
ReplyDeleteमिथ्या गप- शप का अपने ऊपर असर न पड़ने दें.
हम तो कभी दिल्ली गये नही सिर्फ सुना है पर क्या सचमुच
ReplyDeleteऐसी ही है दिली | आपने अच्छा वर्णन किया है दिल्ली का
अब अगली कड़ी का इंतजार
आभार
शोभना जी, दिल्ली दो रूपों में जानी जाती है, नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली. लेकिन दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो न नई दिल्ली कहा जा सकता है , न पुरानी दिल्ली.
ReplyDeleteये वो जगहें हैं, जहाँ ज्यादातर अनाधिकृत आवासीय कोलोनियाँ बसी हैं.
दिल्ली के सुनहरे रूप का वर्णन अगली पोस्ट में.
इतनी बार दिल्ली घूमने के बावजूद भी हम लोग दिल्ली के बारे में इतना नहीं जान पाए जितना कि आपकी इस पोस्ट के जरिए जानकारी मिल गई.....आज आपके ब्लाग पर पहली बार आने पर ही कुछ जानने को मिल गया।।
ReplyDeleteआगामी कडी की प्रतीक्षा रहेगी.......
क्या बकवास लिखते रहते हैं हुज़ूर.
ReplyDeleteगयी तो बहुत बार दिल्ली मगर अधिकतर जगह देख नहीं पाई आपकी पोस्ट से लगता है कि वाकै आपकी दिल्ली शानदार है बधाई इस अच्छी रचना के लिये
ReplyDeleteभले ही लाख बुराइयां सही दिल्ली में लेकिन फिर भी इसे छोड़ने का मन नहीं करता ... शायद यहाँ की हवा और पानी में ही ये असर है :-)
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