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Monday, September 21, 2009

आखिर ये ब्लॉग्गिंग है क्या बला ???

सबसे पहले तो आप सब को ईद मुबारक और नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं
वैसे अपने लिए तो हर दिन- रात नवरात्रे ही होते हैं। अगर ये बात समझ में आए तो अच्छा, नही आए तो कोई बात नही विस्तार से फ़िर कभी सही।

पिछले दिनों एक सक्रिय ब्लोग्गर की एक नेनो साइज़ की मासूम सी गलती पर एक मित्र की टिपण्णी पर दूसरे मित्र की प्रतिक्रिया और उस प्रतिक्रिया पर ढेरो चाहने वालों की प्रतिप्रतिक्रियाओं से ब्लॉग जगत में भूकंप का एक हल्का सा झटका महसूस होने पर मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया की आख़िर ये ब्लॉग्गिंग है क्या बला।

बहुत सोचा की ये मस्तिष्क के किस कोने की उपज है। जो थोड़ा बहुत समझ में आया , वो यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ :

ब्लॉग्गिंग एक ---

असाध्य रोग है, बीमारी है
अनंत इंतज़ार है, बेकरारी है

लेखन का विकट, भूत है
पहचान की अमिट, भूख है

टिप्पणिया पचास तो, खुशी है
रह्जायें पाँच तो, मायूशी है

सीनियर सिटिजन्स का , टाइमपास है
व्यवसायिक युवाओं का , समयह्रास है

मय सा अतुल्य , नशा है
इंसानी नसनस में , बसा है

लेकिन ब्लॉग्गिंग ये भी तो है ---

विचारों की मूक, अभिव्यक्ति है
हजारों की अचूक , शक्ति है

मानविक चेतना की, कड़ी है
सामाजिक एकता की, लड़ी है

सेवानिवृत बुजुर्गों का , सकून है
कार्यरत युवाओं का , जुनून है

प्रणाली पर उठता, सवाल है
बदहाली पर उछलता, बवाल है

मुहब्बत का फैलता, संसार है
सदी का श्रेष्ठतम , आविष्कार है

अब मस्तिष्क का कौनसा भाग हावी है, इसका फ़ैसला तो आपको स्वयम करना पड़ेगा।

और अब एक सवाल, एक ज़वाब :

सवाल: बहादुर इंसान कैसा होता है ?

ज़वाब: बहादुर इंसान उस धावक जैसा होता है, जो दौड़ में भाग लेने तो जाता है, लेकिन दौड़ शुरू होने के बाद भी , आरम्भ रेखा पर ही खड़ा रहता है। क्योंकि जिस समय बाकि सभी धावक मैदान में पीठ दिखा कर भाग रहे होते हैं, एक अकेला वही इंसान होता है, जो मैदान में डटा रहता है।

14 comments:

  1. सीनियर सिटिजन्स का , टाइमपास है
    व्यवसायिक युवाओं का , समयह्रास है
    सेवानिवृत बुजुर्गों का , सकून है
    कार्यरत युवाओं का , जुनून है
    बिलकुल सही कहा जी आपने हम सेवानिवृत और अब सीनियर सिटीजन हैं शुभकामनायें

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  2. ांउर हाँ सेवानिवृति से पहले आपका ORS खूब बाँटा है

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  3. बहादुर इंसान उस धावक जैसा होता है, जो दौड़ में भाग लेने तो जाता है, लेकिन दौड़ शुरू होने के बाद भी , आरम्भ रेखा पर ही खड़ा रहता है। क्योंकि जिस समय बाकि सभी धावक मैदान में पीठ दिखा कर भाग रहे होते हैं, एक अकेला वही इंसान होता है, जो मैदान में डटा रहता है।

    बस कुछ इसी तरह हम भी ब्लाग की इस दुनिया में डटे हुए हैं..............

    त्योहारों के इस मौसम में शुभकामनाओं की फुहार.....

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  4. क्या खूब पारिभाषित किया है आपने ब्लागिंग को -मधुराधिपति अखिलं मधुरं की स्टाईल में !

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  5. निर्मला जी,
    सेवानिवृत होकर सीनियर सिटिजन होना तो अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है. जो अनुभव आपने हासिल किया है, वो अब परिवार के और समाज के काम आयेगा.
    कार्यरत रहते हुए आपने ओ आर एस बांटकर हजारों मरीजों को जीवन दान दिया है. इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं.

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  6. बहुत सुंदर
    विचारों की मूक, अभिव्यक्ति है
    हजारों की अचूक , शक्ति है
    जो कहीं कुछ न कह सके कम से कम ब्लॉग पर तो अपने मन की बात कह सकता है मेरा ब्लॉग पढने व् उसे सराहने के लिए
    आभार

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  7. डॉक्टर साहब, ये 'किंगफिशर द ग्रेट' विजय माल्या से कोई जान-पहचान है क्या...ये टीचर्स, रॉयल सैल्यूट और आफिसर्स च्वाइस सारे पानी मांगने लगेंगे...अगर अब आ जाए अपनी... ब्लॉगर्स च्वाइस

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  8. खुशदीप भाई, विजय माल्या को छोडो, आपको जॉनी भाई से मिलवाते हैं ना.

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  9. सुन्दर विचार प्रस्तुति रचना रूप में आभार

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. ब्लॉग्गिंग की विस्तृत व्याख्या पढकर और आपका सैंस ऑफ ह्यूमर देखकर बढ़िया लग रहा है

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