सीखिए ,दिल्ली के सिल्ली ट्रैफिक में सेफ ड्राइविंग के दस नुस्खे ---
दिल्ली का ट्रैफिक, उफ्फ़ इतना कैओटिक कि सुबह घर से निकल कर शाम को आप या आप की गाड़ी सही सलामत वापस घर पहुँच जाए तो गनीमत समझें। लेकिन इसी ट्रैफिक में उलझकर हमने जो सेफ ड्राइविंग की रिसर्च की , वही आपकी खिदमत में प्रस्तुत कर रहे हैं। लीजिये पेश हैं दिल्ली के सिल्ली ट्रैफिक में सेफ ड्राइविंग के आजमाए हुए दस नुस्खे ---
नुस्खा नंबर -१:
धीरे चलें। वैसे भी दिल्ली के ट्रैफिक में आप तेज़ चल भी नही सकते। अब भले ही स्पीड लिमिट ५० की हो, लेकिन १५ से ऊपर चलने का मौका ही कहाँ मिलता है। अब जो हो नहीं सकता, उस के बारे में कोशिश करके परेशान क्यों हों। याद रखिये, जल्दी से देर भली ( ऑफिस को छोड़कर )
नुस्खा नंबर २:
दायीं लेन में चलें। यूँ तो दायीं लेन फास्ट मूविंग ट्रैफिक के लिए होती है, लेकिन धीरे चलने वालों के लिए इससे सेफ लेन और कोई नहीं हो सकती। सच मानिए, आपके पीछे आने वाले १०० में से ९० तो आपकी मनोदशा को समझते हुए ख़ुद ही बायीं ( रोंग ) साइड से ओवरटेक करते हुए आगे निकल जायेंगे। आठ लोग ऐसे होंगे जो दो तीन बार हार्न बजायेंगे और कोई रिस्पोंस न पाकर, आपको खडूस समझकर, बिना कुछ बोले एज यूजुअल रोंग साइड से निकल जायेंगे। सिर्फ़ १०० में से दो गाड़ी वाले ऐसे मिलेंगे जो बार बार हार्न बजाकर आपको परेशान करेंगे। ऐसे में आप रीअर व्यू मिरर में ज़रूर झांक कर देख लें और ज़रा सा भी चेहरा नापसंद आए, तो भैया सलामती इसी में है कि आप फ़ौरन उसे साइड दे दें। वर्ना कोई भरोसा नहीं कि वो नीचे उतर कर आपको सरे आम गोली मार दे। न भी मारे पर धमकी तो ज़रूर दे डालेगा और शरीफों के लिए तो इतना ही काफी है।
नुस्खा नंबर ३:
यदि आप रात में ड्राइव कर रहे है और आपके पीछे कोई गाडी वाला हाई बीम पर चला आ रहा है और आपकी आँखों में सीधी लाईट पड़ रही है। ऐसे में बस एक ही काम करें, उसे साइड देकर उसके पीछे आ जाएँ और खुद भी हाई बीम ऑन कर दें। अब आपको साफ़ दिखता रहेगा और जैसे को तैसा भी हो जायेगा।
नुस्खा नंबर ४:
ड्राइविंग सिखाने वाले सिखाते हैं कि ड्राइव करते समय दो गाड़ियों की दूरी यानि ३० फीट पर सड़क को देखते हुए चलना चाहिए। इसका एक फायदा तो यह है कि आप सड़क पर बने गड्ढों से बचे रहेंगे। लेकिन दिल्ली के बम्पर टू बम्पर ट्रैफिक में तो २ फीट से ज्यादा कभी दिखता ही नहीं। फिर भी किस्मत से सड़क खाली मिल जाये और आप गाड़ी दौड़ाने की तमन्ना पूरी करना चाहें तो भैया १०० गाड़ियों की दूरी यानि १५०० फीट पर देखते रहें क्योंकि यही वो डिस्टेंस है जहाँ पुलिस की गाड़ी स्पीड गन लगाये आप की ताक में बैठी होती है।
नुस्खा नंबर ५:
यदि अपनी धुन में मस्त आपको पुलिस वाहन नज़र न आये या देर से नज़र आये और आप पकडे जाएँ तो घबराइये नहीं। कोई जिरह मत करिए, चुपचाप जुर्माने की राशि निकालकर अपना रस्ता नापें। क्योंकि अगर बहस करने लगे या मिन्नतें करने लगे तो भी ४० मिनट की माथापच्ची के बाद भी पैसे तो उतने ही देने पड़ेंगे। सच मानिए, जुर्माना भरते ही दो मिनट बाद आप बिलकुल नॉर्मल हो जायेंगे और रिलीव्ड फील करेंगे। पैसे न सही, समय की तो बचत कीजिये। आखिर समय की ही कीमत होती है, पैसा तो हाथ का मैल है।
नुस्खा नंबर ६ :
यदि आप चौराहे पर पहुंचे है और बत्ती पीली हो गई है, तो रुकिये मत, निकल जाइये। क्योंकि यदि आपने अचानक रुकने की गलती की तो पीछे वाला ठोक देगा और धीरे धीरे रुके तो बीच चौराहे पर पहुँच जाओगे। फिर तो आपका चालान पक्का। यदि निकल गए तो काफी चांस है कि पीछे वाला भी आपके साथ निकलेगा और नंबर तो लास्ट वाली गाड़ी का ही नोट होता है। लेकिन खुदा ना खास्ता आपका नंबर नोट हो भी गया तो यूँ समझो कि रैड लाईट जम्पिंग और स्टॉप लाइन क्रॉस करने का जुर्माना तो एक जैसा ही है।
नुस्खा नंबर ७:
वैसे तो सड़क पर दुर्घटना हमेशा दूसरे की गलती से ही होती हैं, अपनी गलती तो कभी होती ही नहीं। फिर भी यदि कभी गलती से भी आप से गलती हो जाये और दुर्घटना होते होते बचे, तो ऐसे में आप भूल कर भी दूसरी गाड़ी वाले की आँखों में न झांकें, वर्ना आँखों और मुँह से इतनी गोलियां निकलेंगी कि आप छलनी हो जायेंगे। बस सीधे देखते हुए और मुस्कराते हुए आगे बढ़ जाएँ। आपको उसकी गालियाँ न सुनाई देंगी, न दिखाई देंगी।
नुस्खा नंबर ८:
यदि आप दुपहिया वाहन चला रहे हैं तो हेलमेट ज़रूर पहनिए। नहीं, जान बचाने के लिए नहीं, माल बचाने के लिए। अब जिंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ है, जब आनी होगी तो आ ही जायेगी। लेकिन पुलिस वाले से तो आपको हेलमेट ही बचा सकता है।
नुस्खा नंबर ९:
सीट बैल्ट लगाइए। दिल्ली के ट्रैफिक में इसका रोल बस इतना ही है कि हर चौराहे पर आपको १०० रूपये नहीं देने पड़ेंगे। अब सोचो अगर ऐसा हुआ तो जितना कमाते नहीं, उससे ज्यादा तो जुर्माना भरना पड़ सकता है।
नुस्खा नंबर १०:
यदि किसी कारणवश आप ऊपर लिखे नुस्खों का फायदा नहीं उठा सकते तो फिर आप घर से बाहर ही मत निकलिए। ड्राइविंग का शौक तो आप कंप्यूटर गेम्स पर भी पूरा कर सकते हैं।
तो भई, हैप्पी ड्राइविंग।
नोट : यह व्यंग लेख २००९ में रविश कुमार (एन डी टी वी ) के सौजन्य से अख़बार में प्रकाशित हुआ था।
दिल्ली का ट्रैफिक, उफ्फ़ इतना कैओटिक कि सुबह घर से निकल कर शाम को आप या आप की गाड़ी सही सलामत वापस घर पहुँच जाए तो गनीमत समझें। लेकिन इसी ट्रैफिक में उलझकर हमने जो सेफ ड्राइविंग की रिसर्च की , वही आपकी खिदमत में प्रस्तुत कर रहे हैं। लीजिये पेश हैं दिल्ली के सिल्ली ट्रैफिक में सेफ ड्राइविंग के आजमाए हुए दस नुस्खे ---
नुस्खा नंबर -१:
धीरे चलें। वैसे भी दिल्ली के ट्रैफिक में आप तेज़ चल भी नही सकते। अब भले ही स्पीड लिमिट ५० की हो, लेकिन १५ से ऊपर चलने का मौका ही कहाँ मिलता है। अब जो हो नहीं सकता, उस के बारे में कोशिश करके परेशान क्यों हों। याद रखिये, जल्दी से देर भली ( ऑफिस को छोड़कर )
नुस्खा नंबर २:
दायीं लेन में चलें। यूँ तो दायीं लेन फास्ट मूविंग ट्रैफिक के लिए होती है, लेकिन धीरे चलने वालों के लिए इससे सेफ लेन और कोई नहीं हो सकती। सच मानिए, आपके पीछे आने वाले १०० में से ९० तो आपकी मनोदशा को समझते हुए ख़ुद ही बायीं ( रोंग ) साइड से ओवरटेक करते हुए आगे निकल जायेंगे। आठ लोग ऐसे होंगे जो दो तीन बार हार्न बजायेंगे और कोई रिस्पोंस न पाकर, आपको खडूस समझकर, बिना कुछ बोले एज यूजुअल रोंग साइड से निकल जायेंगे। सिर्फ़ १०० में से दो गाड़ी वाले ऐसे मिलेंगे जो बार बार हार्न बजाकर आपको परेशान करेंगे। ऐसे में आप रीअर व्यू मिरर में ज़रूर झांक कर देख लें और ज़रा सा भी चेहरा नापसंद आए, तो भैया सलामती इसी में है कि आप फ़ौरन उसे साइड दे दें। वर्ना कोई भरोसा नहीं कि वो नीचे उतर कर आपको सरे आम गोली मार दे। न भी मारे पर धमकी तो ज़रूर दे डालेगा और शरीफों के लिए तो इतना ही काफी है।
नुस्खा नंबर ३:
यदि आप रात में ड्राइव कर रहे है और आपके पीछे कोई गाडी वाला हाई बीम पर चला आ रहा है और आपकी आँखों में सीधी लाईट पड़ रही है। ऐसे में बस एक ही काम करें, उसे साइड देकर उसके पीछे आ जाएँ और खुद भी हाई बीम ऑन कर दें। अब आपको साफ़ दिखता रहेगा और जैसे को तैसा भी हो जायेगा।
नुस्खा नंबर ४:
ड्राइविंग सिखाने वाले सिखाते हैं कि ड्राइव करते समय दो गाड़ियों की दूरी यानि ३० फीट पर सड़क को देखते हुए चलना चाहिए। इसका एक फायदा तो यह है कि आप सड़क पर बने गड्ढों से बचे रहेंगे। लेकिन दिल्ली के बम्पर टू बम्पर ट्रैफिक में तो २ फीट से ज्यादा कभी दिखता ही नहीं। फिर भी किस्मत से सड़क खाली मिल जाये और आप गाड़ी दौड़ाने की तमन्ना पूरी करना चाहें तो भैया १०० गाड़ियों की दूरी यानि १५०० फीट पर देखते रहें क्योंकि यही वो डिस्टेंस है जहाँ पुलिस की गाड़ी स्पीड गन लगाये आप की ताक में बैठी होती है।
नुस्खा नंबर ५:
यदि अपनी धुन में मस्त आपको पुलिस वाहन नज़र न आये या देर से नज़र आये और आप पकडे जाएँ तो घबराइये नहीं। कोई जिरह मत करिए, चुपचाप जुर्माने की राशि निकालकर अपना रस्ता नापें। क्योंकि अगर बहस करने लगे या मिन्नतें करने लगे तो भी ४० मिनट की माथापच्ची के बाद भी पैसे तो उतने ही देने पड़ेंगे। सच मानिए, जुर्माना भरते ही दो मिनट बाद आप बिलकुल नॉर्मल हो जायेंगे और रिलीव्ड फील करेंगे। पैसे न सही, समय की तो बचत कीजिये। आखिर समय की ही कीमत होती है, पैसा तो हाथ का मैल है।
नुस्खा नंबर ६ :
यदि आप चौराहे पर पहुंचे है और बत्ती पीली हो गई है, तो रुकिये मत, निकल जाइये। क्योंकि यदि आपने अचानक रुकने की गलती की तो पीछे वाला ठोक देगा और धीरे धीरे रुके तो बीच चौराहे पर पहुँच जाओगे। फिर तो आपका चालान पक्का। यदि निकल गए तो काफी चांस है कि पीछे वाला भी आपके साथ निकलेगा और नंबर तो लास्ट वाली गाड़ी का ही नोट होता है। लेकिन खुदा ना खास्ता आपका नंबर नोट हो भी गया तो यूँ समझो कि रैड लाईट जम्पिंग और स्टॉप लाइन क्रॉस करने का जुर्माना तो एक जैसा ही है।
नुस्खा नंबर ७:
वैसे तो सड़क पर दुर्घटना हमेशा दूसरे की गलती से ही होती हैं, अपनी गलती तो कभी होती ही नहीं। फिर भी यदि कभी गलती से भी आप से गलती हो जाये और दुर्घटना होते होते बचे, तो ऐसे में आप भूल कर भी दूसरी गाड़ी वाले की आँखों में न झांकें, वर्ना आँखों और मुँह से इतनी गोलियां निकलेंगी कि आप छलनी हो जायेंगे। बस सीधे देखते हुए और मुस्कराते हुए आगे बढ़ जाएँ। आपको उसकी गालियाँ न सुनाई देंगी, न दिखाई देंगी।
नुस्खा नंबर ८:
यदि आप दुपहिया वाहन चला रहे हैं तो हेलमेट ज़रूर पहनिए। नहीं, जान बचाने के लिए नहीं, माल बचाने के लिए। अब जिंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ है, जब आनी होगी तो आ ही जायेगी। लेकिन पुलिस वाले से तो आपको हेलमेट ही बचा सकता है।
नुस्खा नंबर ९:
सीट बैल्ट लगाइए। दिल्ली के ट्रैफिक में इसका रोल बस इतना ही है कि हर चौराहे पर आपको १०० रूपये नहीं देने पड़ेंगे। अब सोचो अगर ऐसा हुआ तो जितना कमाते नहीं, उससे ज्यादा तो जुर्माना भरना पड़ सकता है।
नुस्खा नंबर १०:
यदि किसी कारणवश आप ऊपर लिखे नुस्खों का फायदा नहीं उठा सकते तो फिर आप घर से बाहर ही मत निकलिए। ड्राइविंग का शौक तो आप कंप्यूटर गेम्स पर भी पूरा कर सकते हैं।
तो भई, हैप्पी ड्राइविंग।
नोट : यह व्यंग लेख २००९ में रविश कुमार (एन डी टी वी ) के सौजन्य से अख़बार में प्रकाशित हुआ था।
एक से बढ़ कर एक नुस्खे दिए हैं आपने डॉक्टर साहब!! मजेदार...हैप्पी ड्राइविंग.
ReplyDeletebahut jaruri chej likhi aapne.........badhai
ReplyDeletebahut jaruri jankari likhi apne.....badhai
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया और महत्वपूर्ण नुस्खे मिली आपके पोस्ट के दौरान! बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteदादी माँ के नुख्से तो बगुत बार पढ़े, सुने, गुने हैं, पर एक डाक्टर से पहली बार "ड्राइविंग के नुख्से"
ReplyDeleteनिश्चय ही आपके नुख्से बहुत ही बढ़िया, शानदार जन और माल के साथ परेशानी और समय बचाने वाल भी है.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
सच मे एक डाकटर की ही नुस्खे हैं इन्हें किसी भी शहर मे आजमाया जा सकता है धन्यवाद पहली बार आपका बलाग देखा बहुत अच्छा लगा शुभकामनायें ।वैसे भीअपना मेडिकल पेशे से कर्म और धर्म का सम्बन्ध रहा है।
ReplyDeletewaahji waah..bahut khoob NUSKHE he/ ab koun kitana amal kartaa he ye to raam jaane.//
ReplyDeleteजानकारी के साथ रोचकता भी है,लिखने का स्टाइल अच्छा है
ReplyDeleteसचमुच दिल्लीवासियों की जिन्दगी बहुत कठिन है जीने के लिए.......
अमिताभ जी ने सही कहा की कौन अमल करता है. शायद यही वज़ह है की एक समाचार के मुताबिक विश्व में १० से २४ साल के युवाओं में असामयिक मृत्यु का नंबर १ कारण है सड़क दुर्घटना. और इनमे से सबसे ज्यादा ये घटनाएँ गरीब देशों में होती है. अगर हम अपने युवाओं को नहीं संभालेंगे तो बेटा पैदा होने की ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं रह पायेगी.
ReplyDeleteये नुस्ख़े तो भोपाल के ट्रैफ़िक के लिए भी मुफ़ीद हैं. दिलो जान से पालन किया जायेगा :)
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के ट्राफिक जाम का वाकया आज के हिंदुस्तान में रवीश कुमार की जबानी पढ़ा.बहुत अच्छा लगा में भी आप की तरह ट्राफिक से परेशान हूँ और आप से पूरी तरह सहमत हूँ.मैंने ब्लॉग की दुनिया में नया-नया कदम ही रखा है या यूँ कहें की नया नया ब्लोगियाना शुरू किया है. सो बहुत कुछ तो जानती नहीं हूँ आज का अखबार देखा तो सोचा आप को इतना अच्छा आर्टिकल लिखने के लिए धन्यवाद तो दे ही सकती हूँ.हमने शुरुवात तो कविता से की पर थोडा साहस दिखा ही दिया और इसी आशय का एक लेख हिंदुस्तान का दर्द ब्लॉग पर कल ही प्रकाशित हुआ है.हम तो खबरिया चैनलों से भी त्रस्त हैं सो उन पर भी अपनी भड़ास दो दिन पहले निकाली है रचनाकार ब्लॉग पर . शायद आप को पसंद आएगा. मेरी कुछ कवितायेँ भी रचनाकार ब्लॉग पर प्रकाशित हैं. मेरा ब्लॉग rachanaravindra.blogspot.com है.
ReplyDeleteधन्यवाद आभार
रचना दीक्षित
बहुत ही बढ़िया...एक से एक अचूक नुस्खे
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