दिल्ली की गर्मी की मज़बूरी ,
ऐसे मे याद आ गई मसूरी !
मोदी प्रभाव कहें या यू पी सरकार की समझदारी ,
दो घंटे मे तय हो गई मुज़फ़्फरनगर तक की दूरी !
आठ बजे थे नाश्ते का क्या वक्त था,
ढाबे पर खाना भी कहाँ उपयुक्त था !
खटिया पर बैठ चाय पीना भला लगा ,
शायद ढाबे वाला भी मोदी भक्त था !
मसूरी मे सुबह का मौसम सुहाना था,
अपने हाथों मे वक्त का ख़ज़ाना था !
सुबह की सैर पर हमे हुआ ये अहसास,
धुंध से आए हैं इक धुंध मे जाना था !
यूं पहाड़ों की जिंदगी ज़रा सुस्त होती है ,
लेकिन पहाड़ियों की चाल चुस्त होती है !
हम दो किलोमीटर पैदल चले तो जाना,
कि खोखे की चाय भी बड़ी मस्त होती है !
दिन मे मस्ती का चाव छा गया ,
दिल मे साहस का भाव आ गया !
डरते डरते पहली बार हमने भी ,
कमर कसी और हवा मे समा गया !
शाम को जब सांझ होने को आई ,
आसमान मे थी काली बदली छाई !
रंग बिरंगे रंगों ने फिर आसमां मे ,
आधुनिक कला की कलाकृति बनाई !
सूरज ने जब पर्वतों पर अंतिम किरणें डाली ,
फैल गई किसी पहाडिन के गालों सी लाली !
दूर किसी चोटी पर बज उठी एक बांसुरिया ,
और चहकने लगी चिड़ियाँ भी डाली डाली !
मॉल की दुकान पर सजी थी मिठाईयां ,
रंगों की छटा लिये ज्यों पंजाबी लुगाईयां !
छोटे मोटे पतले लम्बे खाते पीते हंसते ,
मस्ती करते पकड़े बच्चों की कलाईयाँ !
हमारा नव विवाहित जोड़ी सा गर्म खून था ,
हम पर भी फोटो खिंचवाने का ज़ुनून था !
ना कजरा ना गजरा ना पायल ना सिन्दूर ,
भई आखिर ये हमारा पचासवां हनीमून था !
इन वादियों ने देखे होंगे जाने कितने सावन ,
इस मौसम मे गुजरे होंगे जाने कितने यौवन !
कहीं वक्त की मार ठूंठ न कर दे इस वादी को,
आओ हम मिलकर रखें पर्यावरण को पावन !
वाह ... पचासवें हनीमून पर हवा में यूँ तैरना गज़ब ढा गया :) . ये ज़ज्बा ये जूनून यूँ ही बना रहे. बहुत अच्छी पोस्ट एवं तस्वीरें.
ReplyDeleteमस्त
ReplyDeleteबेहद रोचक ......
ReplyDeleteशब्द, चित्र दोनों प्रभावी.... शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुन्दर कविता, लाज़वाब चित्र और सार्थक सन्देश का अद्भुत संगम … शुभकामनाएं
ReplyDeleteइस बुढ़ापे को आपका सलाम ---तुस्सी तो छा गए पापे ---
ReplyDeleteदर्शन जी , बुढ़ापा बस एक सोच है ! आप उतने ही ज़वान होते हैं , जितना आप खुद को मानते हैं !
ReplyDeleteवा वाह, वा वाह
ReplyDeleteआज तो धमाका कर दिया , नज़र न लगे सरकार को ! मंगलकामनाएं आपको !
सुन्दर कवितामंगलकामनाएं आपको
ReplyDeleteआपकी कविता ने चित्र और भी सुन्दर बना दिए है। पचासवाँ हनीमून मुबारक हो। दूसरा नव यौवन लौट आया है :)
ReplyDelete:)
Deleteकविता की कविता ... सैर की सैर ... जय हो सर जी | हम जैसों को तो घर बैठे बैठे ही डबल जैकपॉट लग गया ... :)
ReplyDeleteअरे हाँ ज़रा जोड़े से हमारा प्रणाम स्वीकारते हुये यह आशीर्वाद दीजिये कि पचासवां हनीमून मनाने का मौका हमें भी मिले |
Deleteअपन चाहें तो एक सल मे पचासवां मना सकते हैं ! ललेकिन वो थोड़ा ज्यादा हो जाएगा ! :)
Deleteवाह बहुत खूब .. इस कवितामय सफ़र और यात्रा का रोचक वर्णन ... गज़ब के चित्र ... फिर पचासवें हनीमून के नुस्खे भी दे दिए आपने ... अच्छा है जवानी में ही मना लेने चाहियें ...
ReplyDeleteI was recommended this website through my cousin. I'm now not positive
ReplyDeletewhether or not this put up is written by way of him as no one else know
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Mr Anonymous , I am not able to comprehend what you want to say ! Are you a blogger ? Please introduce yourself properly . Thanks ...
Deleteसुंदर तस्वीरों से सजी सार्थक भवाभिव्यक्ति ...
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