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Saturday, October 13, 2012

ब्रह्मचर्य का पालन ही मनुष्य को सात्विक बनाता है ...


पिछली पोस्ट पर विषय अति संवेदनशील होने के कारण डिस्क्लेमर तो लगा दिया था लेकिन विश्वास भी था कि हमारे परिपक्व ब्लॉगर मित्र हल्के फुल्के अंदाज़ में भी विषय की गंभीरता को समझेंगे। यह देखकर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई कि लगभग सभी महिला और पुरुष मित्रों ने इसे स्पोर्ट्समेन स्पिरिट में लिया।

हालाँकि, अनअपेक्षित रूप से एक पुरुष मित्र ने किसी दूसरे मित्र के कंधे पर बन्दूक रखकर लगभग हमारे चरित्र पर ही ट्रिगर दबा दिया . पता नहीं जिंदगी को इतने रूखेपन से क्यों जीते हैं लोग .

बेशक अब ज़माना बदल रहा है . महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं। लेकिन अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पुरुषों की सोच महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा निम्न स्तर तक पहुँच जाती है। ऐसा ही एक क्षेत्र है , स्त्री पुरुष के सम्बन्ध। आज भी आम तौर पर स्त्रियाँ अपने परिवार, अपने पति और अपने बाल  बच्चों में मस्त रहकर ख़ुशी के अहसास का अनुभव करती है। लेकिन पुरुषों के बारे में ऐसा कहना सदैव संभव नहीं है।  क्योंकि इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों ने अपने मनोरंजन के लिए अनेक अवैध , अनैतिक और दुराचारी मार्ग अपना रखे हैं .

ऐसा ही एक मार्ग है वेश्यावर्ती। हालाँकि इस व्यवसाय में लिप्त लड़कियों और महिलाओं को दोष देना बड़ा आसान है लेकिन निश्चित ही इसके लिए जिम्मेदार तो पुरुष समाज ही है . सदियों से पुरुषों ने अपनी अनैतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्त्री जाति का शोषण  किया है . कभी जिस्म का सौदागर बनकर , कभी उपभोगता बनकर . नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर बड़े बड़े शहरों में तथाकथित कोठों पर बिठाकर जो अमानवीय अत्याचार पुरुषों द्वारा किया जाता है , उससे तो भगवान भी अपनी कृति पर शर्मशार हो जाता  होगा .

लेकिन इसका एक दूसरा पहलु भी है . बड़े बड़े फाईव स्टार होटलों, क्लबों और बार्स में ग्लैमर का मुखौटा ओढ़े जो लड़कियां पुरुषों को लुभाती हैं , वे कहीं से भी पीड़ित या शोषित नहीं लगती।  ज़ाहिर है,पैसे की चमक धमक  में अंधी होकर वे नैतिकता को ताक पर रखकर पुरुषों की कमजोरी का नाज़ायज़ फायदा उठाते हुए सम्पूर्ण समाज को दूषित करने में अपना उतना ही योगदान देती हैं जितना कि पुरुष .


डांस बार में अत्यंत लुभावनी पोशाक में थिरकती बालाओं को देखकर जो विचार मन में उभरे , वे स्वयं को विचलित करने वाले थे :

* जो लड़कियां पैसा कमाने के लिए वहां डांस कर रही थी , क्या उनके मात पिता जानते होंगे कि जिस कमाई पर वे घर चला रहे हैं या बेटी से गिफ्ट में पा रहे हैं , वह इस तरह कमाई जा रही है ! यदि जानते हैं तो सबसे गिरे हुए वे ही हैं . यदि नहीं जानते तो निश्चित ही बड़े धोखे में रह रहे हैं और दया के पात्र हैं .

* क्या पैसा कमाने के लिए इस राह पर चलकर ये लड़कियां सहानुभूति की पात्र बन सकती हैं !

* जो पुरुष यहाँ आकर और अपने से आधी उम्र की बालाओं से रूबरू होकर रोमांचित होते हैं , क्या अपना ज़मीर घर छोड़कर आते हैं !

* क्या पुरुष वास्तव में बहुयामी होते हैं -- एक साथ पति , पिता और रसिक होने का रोल निभा पाते हैं !


पुरुष के लिए पर स्त्री का आकर्षण सदैव प्रलोभित करने वाला रहा है . बड़े बड़े ऋषि मुनि भी इस आकर्षण से बच नहीं सके . वर्तमान परिवेश में पद , पैसा और पॉवर मनुष्य को राजसी प्रवृति की ओर ले जाता है . इसीलिए नेता , ब्यूरोक्रेट्स , बिजनेसमेन और सेलेब्रिटीज अपनी मनमानी करने में कामयाब रहते हैं .

गीता के सतरहवें अध्याय में बताया गया है , ब्रह्मचर्य के बारे में . इसके अनुसार गृहस्थ मनुष्य को पराई स्त्री को नहीं छूना चाहिए . और यदि सन्यासी हों तो स्त्री का विचार भी मन में नहीं लाना चाहिए .
यह अलग बात है कि आजकल सन्यासी भी नकली हैं और मनुष्य भी . इसलिए सभी ओर व्यभिचार का बोलबाला है . 

यह एक मृग मरीचिका है . जिंदगी के रेगिस्तान में दौड़ते जाइए , जो प्यास मिटा सके वो पानी कभी नहीं मिलेगा .

ये वो आतिश है ग़ालिब , जो जलाये न जले और बुझाये न बुझे . 

और अब एक लतीफ़ा जो लाफ्टर चेलेंज में टी वी पर सुना था और बहुत पसंद आया : 

बीमार पत्नि -- जी मैं मर गई तो आप क्या करेंगे ?
पति -- मैं तो पागल ही हो जाऊँगा . 
पत्नि -- लेकिन दूसरी शादी तो नहीं करोगे ना ?
पति -- नहीं पागल तो कुछ भी कर सकता है .   


40 comments:

  1. bahut vicharaniy or prerak abhivykti .............abhaar

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  2. read your last post also today and this one also

    this one is apt and to the point

    thanks for such a post

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    1. thanks rachna ji .

      पिछली पोस्ट आँखों देखी मौज मस्ती की पोस्ट थी . यह उसका सार है जो असलियत है . हम इधर जाएँ या उधर जाएँ , फैसला खुद हमारा ही होता है .

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  3. * क्या पुरुष वास्तव में बहुयामी होते हैं -- एक साथ पति , पिता और रसिक होने का रोल निभा पाते हैं !
    जो पुरुष संयमित नहीं होते वो कोई भी रोल नहीं निभा पाते .... ऐसा मुझे लगता है ।

    सार्थक लेख ।

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    1. बिल्कुल सही लगता है , संगीता जी .

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  4. अभी पढी दोनो पोस्ट ………एक सार्थक आलेख

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  5. ...ब्रह्मचर्य का पालन इस लिहाज़ से ठीक है कि हर कोई संयमित और अनुशासित जीवन जिए...और इसमें स्त्री-पुरुष दोनों भागीदार हैं !

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    1. ब्रह्मचर्य वो जो गीता सिखाये .

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  6. जैसा आपने लिखा, "यह एक मृग मरीचिका है . जिंदगी के रेगिस्तान में दौड़ते जाइए , जो प्यास मिटा सके वो पानी कभी नहीं मिलेगा"! जैसा आम माना जाता है, मानव जीवन का सत्य है!
    यद्यपि वर्तमान में यह संभव नहीं जान पड़ता, किन्तु यदि गहराई में जा सके कोई तो इस का उत्तर भी शायद गीता में ही मिलेगा जहां तथाकथित सर्वगुण सपन्न अन्तर्यामी कृष्ण को कहते दर्शाया गया है कि माया से सभी उन को अपने भीतर देखते हैं, जबकि वास्तव में वे किसी के भी भीतर नहीं हैं, अपितु सम्पूर्ण सृष्टि उनके भीतर समाई है!!!
    जैसा हमारे पहुंचे हुवे पूर्वज भी जाने होंगे भूत में, आज सत्यान्वेषी खगोलशास्त्रियों आदि वैज्ञानिकों के माध्यम से हम भी जानते हैं कि सम्पूर्ण साकार ब्रह्माण्ड एक निरंतर बैलून समान फूलते अनंत शून्य के भीतर समाया हुवा है!!! अर्थात यह शून्य ही संदर्भित कृष्ण है!!!
    और योगियों, सिद्ध आदि ने कहा मानव ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप है! जबकि मानव शरीर को क्षणभंगुर जान, शायद माया को समझाने के लिए, पश्चिम में कहा गया कि भगवान् ने आदमी को अपने ही रूप में बनाया (दर्पण में उभरते अपने रूप को हम मायावी ही कहते हैं)... इत्यादि इत्यादि...

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  7. आपका स्वस्थ पोस्ट सदैव मन को तरंगित और दिशा देती है प्रणाम स्वीकारें

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  8. विचारणीय विषय है, मनुष्य भोग चाहता है पर उसका दोष औरों पर मढ़ता है ।

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  9. पुरुष हो या महिला दोनों संयमित अनुशाशित रूप में अपनी२ भागीदारी निभाए,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  10. चलिए कुछ अब प्रायश्चित भी हो जाय और गीता का उपसंहार !
    पूर्ण सहमति-मगर मुझे नहीं लगता कि स्वेच्छा से इन धंधों में लोग जाते होंगे (सनी लिओन को छोड़कर )
    सबसे बड़ी है आग पेट की ! :-)

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    1. हाई प्रोफाइल सोसाइटी में पेट की मजबूरी नहीं होती पंडित जी . :)

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  11. लग नहीं रहा एक डॉ की पोस्ट है यह ...
    बधाई !
    दोनों पोस्ट बेजोड और आवश्यक हैं !

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  12. इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निर्णय पर छोडिये पर, क्या आप कह सकते हैं सप्रमाण कि यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तथ्य है? आप तो वैज्ञानिक है

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    1. जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता अपना ही ली , तो वैज्ञानिक प्रमाण की क्या ज़रुरत ! :)

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  13. This comment has been removed by the author.

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  14. आज पहली बार आपके ब्लॉग में आना हुआ यहाँ आकर आपके विचार अपने विचारों से मिलते देख बहुत खुशी हुई मैं आपकी हर बात से सहमत हूँ आपने अपनी बात को बहुत सपष्ट शब्दों में कहा है अक्सर लोग बिना सोचे समझे बस एक ही पहलु को उजागर कर उस बात पर हाँ में हाँ मिलाते जाते हैं, न सोचना न समझना बस किसी ने सही कहा है तो बात सही ही होगी | मेरे ख्याल से हर बात के कई पहलूँ होते हैं हमें हर बात को सोच समझकर उसपर निर्णय लेना सीखना चाहिए |
    आपका लेख इस बात को सिद्ध करता है कि कभी भी सिर्फ औरत या फिर सिर्फ मर्द ही गलत नहीं होता और हर बार कोई एक ही सही हो ऐसा भी नहीं इसलिए हमें हर मुद्दे को बहुत बारीकी से सोच समझकर फैसला लेना चाहिए |

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    1. मीनाक्षी जी , आपका स्वागत है .
      एक ईमानदार टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार .

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  15. आज के जीवन की चकाचौंध में आँखें कुछ नहीं देख पातीं और अधिक से अधिक पैसा कमाने की लालसा में लड़कियाँ ये सब धंधे करने लगती हैं.अपने पर संयम के लिये आज की भोग-प्रधान संस्कृति में जगह नहीं है

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  16. सब कुछ मानस पर निर्भर है, ऐसा भी नहीं है जो गीता जी पढ़ते हैं वे सही करते हैं, सब जगह नकली माल भरा पड़ा है जो कि मानसिक दीवालियेपन की निशानी होता है। या यूँ भी कह सकते हैं यह मानसिक अराजकता है ।

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    1. सही कहा . फोलो करना भी ज़रूरी है .

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  17. डॉक्टर साहिब, जिसकी चर्चा मैंने पहले की, ब्रह्माण्ड का अनंत शून्य और पतले से रबर के फूलते ही जाते गुब्बारे में समानता बस यही है कि दोनों एक पिंड समान सोचे जा सकते हैं! छोटे से साकार गुब्बारे में तो हवा बाहर से भरी जाती है, जबकि ब्रह्माण्ड अपने आप आदिकाल से फूलता ही चला जा रहा है उसके केंद्र में अवस्थित अनंत जीव (?) की अनंत शक्ति के कारण, जिसे नादबिन्दू (अर्थात अनंत ध्वनि ऊर्जा का स्रोत) कहा गया प्राचीन ज्ञानी योगी, सिद्ध, हिन्दुओं द्वारा ...
    अब यदि हम अपनी पृथ्वी को ही देखें तो एक आम पिंड रुपी ग्लोब इसका एक छोटे स्केल पर मोडल समझा जा सकता है... और हम जानते हैं कि यह वर्तमान में अंतरिक्ष में इस रूप में साढ़े चार अरब वर्षों से विद्यमान है इस के केंद्र में अवस्थित संचित गुरुत्वाकर्षण शक्ति की कृपा से...
    और इसी प्रकार सौर-मंडल के अन्य विभिन्न रुपी सदस्य पिंड भी आदिकाल से इस का साथ देते आ रहे हैं अपनी अपनी विभिन्न गुरुत्वाकर्षण शक्ति की कृपा से... यह दूसरी बात है कि यद्यपि जिसकी मुख्य सदस्य हमारे पृथ्वी-चन्द्र मुख्य सदस्य हैं उस सौर-मंडल का राजा सूर्य है, किन्तु जिसके बीच सौर-मंडल अवस्थित है उस हमारी मिल्की वे गैलेक्सी को ब्रह्माण्ड का मोडल मानें और सूर्य और अन्य ग्रह आदि को उससे शक्ति पाते, तो असली राजा गैल्क्सी के केंद्र में संचित सुपर गुरुत्वाकर्स्गन शक्ति को कहा जा सकता है......

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  18. ताली एक हाथ से नहीं बजती. उसी तरह वेश्यावृत्ति के लिये दोनों पक्ष स्त्री और पुरुष जिम्मेदार है.

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  19. बढ़िया लगी आपकी पोस्ट। काम की बात भी मिल गई..गृहस्थ मनुष्य पराई स्त्री को छू नहीं सकता लेकिन विचार ला सकता है।:)

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  20. पैसा ही आज की जीवन शैली का मुख्य कारण है आज कल हर किसको बस पैसा चाहिए फिर वो किसी भी कीमत पर क्यूँ न मिले वैसे मैंने तो आज तक अपने जीवन में कोई बार गर्ल या डांसर देखी नहीं सिवाय फिल्मों के तो उस विषय में बस इतना ही कह सकती हूँ कि पहले फिल्में देखकर भी लगता था कि बहुत ही मजबूरी में ऐसा करने पर विवश होती है लड़कियां, मगर आज कल तो जो कुछ टीवी पर न्यूज़ में दिखाया जाता है और समाचार पत्रों में छापता है उसे तो यही लगता है कि आज कल पैसा ही सब कुछ है इसलिए यह फील्ड अब पैसा कमाने का जरिया ज्यादा है मजबूरी नहीं...बहुत ही सार्थक एवं विचारणीय आलेख।

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  21. जो लड़कियां पैसा कमाने के लिए वहां डांस कर रही थी , क्या उनके मात पिता जानते होंगे कि जिस कमाई पर वे घर चला रहे हैं या बेटी से गिफ्ट में पा रहे हैं , वह इस तरह कमाई जा रही है ! यदि जानते हैं तो सबसे गिरे हुए वे ही हैं . यदि नहीं जानते तो निश्चित ही बड़े धोखे में रह रहे हैं और दया के पात्र हैं .

    * क्या पैसा कमाने के लिए इस राह पर चलकर ये लड़कियां सहानुभूति की पात्र बन सकती हैं !

    * जो पुरुष यहाँ आकर और अपने से आधी उम्र की बालाओं से रूबरू होकर रोमांचित होते हैं , क्या अपना ज़मीर घर छोड़कर आते हैं !

    कभी ये सारे प्रश्न बहुत vichlit kiyaa karte थे ....
    अब पता है इसी समाज के bich jinaa है अपने आक्रोश को कहीं भीतर dbaa kar ......!!

    @ हम इधर जाएँ या उधर जाएँ , फैसला खुद हमारा ही होता है .

    आपने सही कहा ...खुद को पता होना चाहिए हमारे लिए क्या गलत है क्या सही ....

    @ मगर मुझे नहीं लगता कि स्वेच्छा से इन धंधों में लोग जाते होंगे

    नहीं स्वेच्छा से भी लड़कियां यह रास्ता चुनती हैं सिर्फ पैसे की खातिर ....
    जबकि वे यही पैसा मेहनत मजदूरी से भी कमा सकती हैं पर करना नहीं चाहती .....


    आपको सरस्वती सुमन पत्रिका मिल गई ....?

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    1. स्वेच्छा से तो अधिकाँश सरकारी कर्मचारी भी काम नहीं करते!!!

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    2. जे सी जी , कुछ हमारे जैसे होते हैं जो स्वेच्छा से काम करते हैं , कुछ पर इच्छा से और कुछ हर इच्छा से . :)
      हरकीरत जी , पत्रिका अभी नहीं मिली . कहाँ से मिलेगी ?

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    3. पत्रिका तो सभी को भेजी जा चुकी है ...दिल्ली में कइयों को मिल भी गयी ....
      कुछ दिन और इन्तजार करें मिलते ही सूचित करें न मिले तो बताएं .....और समीक्षा के लिए तैयार रहे ....:))

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    4. डॉक्टर तारीफ जी, (मनसा, कर्मा, वाचा) कार्य करते सभी हर इच्छा से किन्तु कुछ भाग्यशाली को वो स्वेच्छा प्रतीत होता है और अधिकतर को पर इच्छा ;)

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  22. मैंने कहीं पढ़ा था..किसी ऐसे ही बिजनेस में लिप्त कुछ कन्यायों के विचार..कि जिसके पास जो है बेच रहा है.समस्या क्या है ? जिसके पास दिमाग है वो दिमाग बेच रहा है और जिसके पास शरीर वो शरीर, है तो अपनी ही चीज. अब जब मानसिकता ऐसी हो जाये तो क्या कहा सुना जाये.सही कहा आपने समाज में व्याप्त कोई भी बुराई हो दोषी कोई एक नहीं हो सकता.

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  23. यदि कोई " नॉर्मल " आम आदमी ( ) भी अपने चारों और देखे तो पायेगा कि केवल आदमी ही असंख्य क्षेत्रों में आदि काल से काम नहीं कर रहा है अपितु अपनी अपनी क्षमता के अनुसार सभी अन्य असंख्य प्राणी भी और, यहाँ तक, सौर-मंडल के पिंड, ग्रह आदि, भी कुछ न कुछ " भला "/ " बुरा " काम का रहे है - (सूर्य, भले ही दूर से, हमें प्रकाश और शक्ति प्रदान कर रहा है, और उस के पास पतंगे समान जाने का तो हम सोच भी नहीं सकते...;)... इत्यादि इत्यादि...
    डॉक्टर तारीफ जी, अब आपके और हमारे जैसे " बुद्धिजीवी " कहलाने वालों के लिए सोचने वाली बात यह रह जाती है कि क्या इन सभी के पीछे किसी एक ही अदृश्य सर्वगुण संपन्न जीव का हाथ हो सकता है, केवल जो सक्षम है शक्ति का रूपांतर कर विभिन्न भौतिक रूप बनाने के लिए - जबकि यह भी हम जानते हैं कि प्रकृति में विद्युत्/ ताप/ प्राकश/ ध्वनि/ चुम्बकीय शक्ति आदि का रूपांतर संभव है???!!!

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  24. जे सी जी , जैसे सुन्दरता देखने वाले की आँखों में होती है, वैसे ही भला बुरा भी परिस्थिति पर निर्भर करता है . सूर्य की किरणें हमें ऊर्जा और प्रकाश तो देती हैं लेकिन यही किरणें जला भी देती हैं . यु वी किरणों से स्किन कैंसर तक हो सकता है . इसलिए कभी कभी लगता है -- जो बुरा है वह सदैव बुरा नहीं होता और जो अच्छा दिखता है वह सदा अच्छा नहीं हो सकता . :)

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    1. JCOctober 18, 2012 11:31 AM
      जहां तक मानव शरीर के अधिक से अधिक समय के लिए रख-रखाव का प्रश्न है, कह सकते हैं कि मानव जीवन नट के ऊंची रस्सी पर चलने समान है - ज़रा सी गलती हुई, आ गिरे नीचे...;)

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  25. डॉ। साहब आप सही कह रहे हैं ज़बरिया देह मंडी को छोड़ इस दौर में चयन सारे स्वेच्छिक हैं अलावा इसके :All choices are informed choices.

    इस दौर में पटौदी के साम्राज्य में आज भी कुँवारी कन्याएं जा रहीं हैं ,जूठन का वरण कर रहीं हैं .दुहेजियों का चयन कर रहीं हैं .हाई -फाई लाइफ स्टाइल

    infidelity को बढ़ा रहा है .लो प्रोफाइल ज़िन्दगी आज भी भली .स्वस्थ और निर्मल .आदमी तो स्वभाव से स्वान प्रवृत्ति ही लिए हुए है .ग्रुप सेक्स और

    लाइव शोज़ इस दौर की हकीकत हैं आकर्षण हैं .

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  26. हमारा समाज पितृसत्तात्‍मक समाज है, जब से पुरूष प्रधान समाज की कल्‍पना आयी है तभी से व्‍यभिचार बढ़ा है। पुरुष पिता की भूमिका के स्‍थान पर सदैव पुरुष रहने की कामना करने लगा है और महिला भी माँ के स्‍
    थान पर सदैव नारी बने रहने की कल्‍पना करती है। इसलिए प्रयास कीजिए कि हमारा समाज पितृसत्तात्‍मक ही रहे। भूले से भी पुरुष प्रधान समाज कहने की कल्‍पना भी ना करें।

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