यह भी इत्तेफाक की ही बात है , जब इस समारोह की घोषणा हुई , ठीक उसी समय हमारा भी दुबई जाने का कार्यक्रम बना था . आखिर , हम मित्रों का वर्षों पुराना सपना पूरा हो रहा था , बाल बच्चों समेत विदेश भ्रमण का . लेकिन इस बारे में विस्तार से बात बाद में . अभी तो नेट पर हो रही ब्लॉग चर्चा पढ़कर कुछ बातें करने का मन कर रहा है .
एक हिंदी फिल्म में अनुपम खेर ने नेगेटिव रोल प्ले करते हुए संवाद बोला था --- " ये खून भी साला बड़ी अज़ीब चीज़ है . अपना निकलता है तो दर्द होता है . लेकिन जब किसी और का निकलता है तो राम कसम बड़ा मज़ा आता है ." कुछ ऐसा ही माहौल पुरुस्कारों को लेकर ब्लॉग जगत में दिखाई दे रहा है . यह मानवीय प्रवृति ही है -- जब स्वयं को पुरुस्कार मिलता है तो बड़ी ख़ुशी होती है . लेकिन जब लेकिन जब स्वयं को नहीं मिलता और किसी दूसरे को मिलता है तो ईर्ष्या सी होती है .
ऐसे ही एक पुरुस्कार वितरण समारोह में किसी ने कहा था -- जिन्हें मिला है वे ज्यादा खुश न हों और जिन्हें नहीं मिला वे निराश न हों . क्योंकि --
" जब मैं खुश होता हूँ तो मेरा दिल कहता है -- बेटा ज्यादा खुश मत हो , क्योंकि जब वो दिन नहीं रहे तो ये भी नहीं रहेंगे . और जब मैं दुखी होता हूँ तो मेरा दिल कहता है -- ज्यादा दुखी मत हो , क्योंकि जब वो दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे . "
इसलिए वे ब्लॉगर जिन्हें बेस्ट ब्लॉगर्स की सूची में जगह नहीं मिली , कदापि यह न सोचें , की वे इस श्रेणी में आ गए हैं जिन्हे एक हरियाणवी कहावत में फिट होना पड़े -- " गीतां में गाईये , ना रोजां में रोईये . "
सब के विचार पढ़कर कुछ सवाल मन में उठ रहे हैं ---
आखिर ऐसे सम्मान समारोह का आयोजन करने की सचमुच कोई आवश्यकता है ?
जो कार्य अनेक विवादों को जन्म दे , क्या उसे करना सही है ?
क्या किसी को हक़ है की वो दूसरों को सार्वजानिक रूप से योग्यता की तराजू में तोलें ?
हालाँकि कोई भी समारोह आयोजित करना एक बहुत कठिन कार्य होता है जिसमे आयोजकों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. इसके बावजूद सभी को खुश कर पाना लगभग असंभव होता है . ऐसे में मन मुटाव की स्थिति उत्पन्न होना स्वाभाविक है . व्यक्तिगत तौर पर मैं इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ -- सम्मान देने के लिए चयन प्रक्रिया को छोड़कर, समय समय पर विभिन्न लोगों या संस्थाओं द्वारा ब्लॉगर मिलन आयोजित कर उपस्थित सभी ब्लॉगर्स को सम्मानित कर नए ब्लॉगर्स में एक नई चेतना का प्रवाह करना चाहिए. बेशक इसके लिए धन की आवश्यकता होगी , लेकिन जिनमे धन एकत्रित करने की सामर्थ्य है , वे ऐसा अवश्य कर सकते हैं .
दराल साहब,,छोडिये इन बातो को,,,जिनको पुरस्कार मिलना था मिल गया,
ReplyDeleteचयन कैसे हुआ उसका माप दंड क्या है,ये काम आयोजक का है,,,,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
यह भी खूब रही ... ;-)
Deleteब्लॉग पर खूब एक्टिव हूँ..मगर कौन जला,कौन भुना,कौन हंसा,कौन लड़ा...कौन भिड़ा....
ReplyDeleteमुझे पता ही नहीं लगता ?????
शायद अच्छा ही है :-)
सादर
अनु
ReplyDelete(1)कुछ न होने से कुछ होते रहना बेहतर है।
(2)प्रशंसा से आलोचना सुनना बेहतर है।
(3)आलोचना सुनकर झुंझलाने से आत्ममंथन करना बेहतर है।
(4)अपमानित करने से सम्मान न करना बेहतर है।
(5)सभी ब्लॉगर्स को एक ही पलड़े पर तौलने के बजाय उन्हें पढ़ना, समझना और उनके बारे में समझ कर ही लिखना बेहतर है।
(6) संभावना के फूल खिलें इसके लिए मिलजुल कर रहना बेहतर है।
छै के छै बेहतर -- बेहतरीन .
Deleteimandar atma ke vichar
Deletepranam.
...अब हमें भी तो शिकायत है कि हम उदीयमान कैसे हुए ? अच्छे-खासे महंत और स्थापित,प्रख्यात-कुख्यात हो गए हैं जि !
ReplyDelete...बहरहाल,हम तो ऐसे आयोजनों को सम्मान की वज़ह से नहीं,मेल-मिलाप की वज़ह से तरजीह देते हैं.अपमान तो उसी का होता है जिसे सम्मान की भूख होती है !
आप पर तो हम पोस्ट लिखने वाले है ... बस इंतज़ार कीजिये ... ;-)
Deleteवही तो . मेल मिलाप तक ही सीमित रहे तो बेहतर है .
Deleteहम तो पहली बार ऐसे किसी आयोजन मे गए थे सो हर पल का भरपूर आनंद लिया ! काफी लोगो से मिलना हुआ जिन को अब तक केवल उनकी ब्लॉग या फेसबूक प्रोफ़ाइल से ही जानता था !
ReplyDeleteहमारे लिए तो काफी सुखद अनुभव रहा !
आपका सपना पूरा होने की बधाई। विदेश यात्रा के किस्से सुनने के इंतजार में हैं।
ReplyDeleteअनुपम खेर का संवाद संसोधन मांगता है। शायद बदले रूप में यह इस तरह हो- " ये खून भी साला बड़ी अज़ीब चीज़ है . अपना निकलता है तो दर्द होता है . जब किसी और का निकलता है तो बड़ा मज़ा आता है . लेकिन जब फ़ालतू में बहता है रामकसम बड़ा खराब लगता है। "
सम्मान जब भी बंटेंगे इस तरह तो उस बारे में लोगों के अपने-अपने विचार होंगे। ब्लॉगर जो आते हैं सम्मलेनों में वे मिलने-मिलाने के लिये ही आते हैं। किसी को सम्मान मिला तो और अच्छा। किसी को सम्मान मिलने से दूसरे जलें ऐसा कम ही होता है ब्लॉग जगत में। ज्यादातर लोग भले मानुष जैसा ही आचरण करते हैं। अब यह आयोजक की समझ और क्षमता पर है कि कैसे वह कोई कार्यक्रम आयोजित करता है कि कम से कम लोग खफ़ा हों। लोगों से मिलना-जुलना हो जाना, मिल-बैठकर बुराई-भलाई हो जाना, फोटो-सोटो, पक्ष-विपक्ष में पोस्टें हो जाना किसी भी सम्मेलन,सम्मान समारोह में यही हो पाता है। अगर कार्यक्रम का मीडिया कवरेज अच्छा हुआ तो जिस शहर में कार्यक्रम होता है वहां के लोगों को ब्लॉगिंग के बारे में पता चल जाता है।
बाकी इससे ज्यादा कुछ अपेक्षा रखना दुखदायी ही होगा ! :)
अनूप जी , kher ka sanvad negetiv sens में है . इसलिए संसोधन नहो हो सकता .
Deleteसम्मान मिलना न मिलना किसी vyakti vishesh के sandarbh में nahi है .
lekin afsos, hyuman सायकोलोजी ऐसी ही है .
यहाँ केवल संसोधन संशोधन मांगता है :-)
Deleteआप भी ना पंडित जी , कोई मौका नहीं छोड़ते . :)
Deletevo check karane ke liye likha tha ki Misir ji ko ye pata hai ki nahee. Is test me Misir ji paas ho gaye :)
Delete:)
Deleteतेरी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद कैसे ? इसी लिए सब कालिख ले कर दौड़ पड़े हैं ....
ReplyDeleteकभी भी किसी समारोह का आयोजन होता है तो उसमें कमियाँ रह ही जाती हैं .... ज़रूरी है प्रशंसा करने वाली बात कि प्रशंसा की जाये और कमियों को बताया जाये जिससे आगे सुधार हो सके .... बाकी तो ऐसे कार्यक्रम मेल मुलाक़ात के लिए ही माने जाने चाहिए ....
संगीता स्वरुप जी मैं भी आपकी बात का समर्थन करती हूँ हर सम्मलेन में कोई ना कोई कमी रह जाती है जिन्होंने अपनी पीड़ा जाहिर की उससे भी यह फायदा होगा की अगले सम्मेलनों में उस गलती को सुधार दिया जाए मन की पीड़ा को मन में दबाकर ज्वालामुखी बनाना भी ठीक नहीं ब्लॉग्गिंग वातावरण व् आपसी सम्बन्ध स्वस्थ रहें तभी अच्छा है लखनऊ सम्मलेन का मैंने हर पल जिया बहुत से लोगों से रूबरू मिलना हुआ मानो सपना साकार हो गया कुछ लोगों को वहां ना पाकर मायूसी भी हुई उनमे से रश्मि प्रभा जी भी थी |
Delete"समय समय पर विभिन्न लोगों या संस्थाओं द्वारा ब्लॉगर मिलन आयोजित कर उपस्थित सभी ब्लॉगर्स को सम्मानित कर नए ब्लॉगर्स में एक नई चेतना का प्रवाह करना चाहिए"
ReplyDeleteनिष्कर्षतः डाक्टर साहब यही बात है ..ये पता नहीं युवा ब्लागरों को क्या हो गया है ..उनकी उम्र मेर्री रही होती तो कितने ब्लागर फैन क्लब खुले होते अब तक और आये दिन मिलन समारोह और गुलछर्रे उड़ाते -यह हर प्रोफेसन और ग्रुप में होता है तो ब्लॉगर ही बिचारे इस मौज मस्ती आनंन्द से क्यों वंचित रहें
बाकी तो अकर्मण्य लोग हर बात की खुंदक निकलते रहते हैं -यह खाप पंचायती प्रवृत्ति है !
मेर्री ,आनंन्द
Deleteinake matalab kya hote hain.
Vartanee ke prati itana gair jemmedaar ravaiyaa ? :)
बहुत पैनी नज़र है अनूप जी !
Deleteयहाँ दिल्ली में तो सब चलता है -- रवैया चलता है .
JCSeptember 02, 2012 6:38 AM
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, धन्यवाद! कम से कम हम जैसे 'अवकाश प्राप्त' व्यक्तियों को भी ब्लॉग के माध्यम से बाहरी संसार की विभिन्न गतिविधयों की सूचना समय समय पर मिल जाती है...
प्राचीन लोगों की मानें तो, सबसे बड़ा सम्मान तो ईश्वर द्वारा आपको, आपकी आत्मा को, मोक्ष के रूप में दिया जाना ही है...:)
जी , वो सम्मान असली हक़दार को ही मिलता है . :)
Delete@ आखिर ऐसे सम्मान समारोह का आयोजन करने की सचमुच कोई आवश्यकता है?
ReplyDeleteअजी, "आवश्यकता" की परवाह किसे है? :(
हम तो आप को खुद को बेस्ट ब्लागर ही मानते हैं। तब भी कोई जरूरत है क्या किसी सम्मान और ईनाम की?
ReplyDeleteइसका मतलब डाक्टर साहब भी दुबई रिटर्न हो गए...अब आपसे डर के तो नहीं रहना पड़ेगा...
ReplyDelete
जय हिंद...
डर तो हमारा ख़त्म हुआ -- वहां जाकर . :)
Deleteसारी कमीजों को ऋण से धोना पड़ेगा.
ReplyDeleteयदि इसे ब्लॉगर मिलन जैसे लिया जाय तो अच्छा हो और मनमुटाव की सम्भावना भी समाप्त हो जाये.
लाबी करना सीखिए ,बिन लाबी सब सून ,लाबी बिना न ऊबरे ,लाबिगर परचून ......
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/
सादा भोजन ऊंचा लक्ष्य
स्टोक एक्सचेंज का सट्टा भूल ,ग्लाईकेमिक इंडेक्स की सुध ले ,सेहत सुधार
वीरुभाई जी ,
Deleteयहाँ बात हमारी नहीं
बात है ज़माने की !
ग़ालिब का शे'र है .
बहुत बढ़िया समसामयिक प्रस्तुति हेतु आभार
ReplyDeleteडाक्टर साहब सम्मान मांगने की चीज़ है क्या ,जिसे नहीं मिला वो मागने चल दे ऐसी तो परंपरा नहीं है शायद. हां ब्लॉग जगत में विचारों को बेबाक व्यक्त करने की स्वतंत्रता है .जो मन में आया कहने की स्वतंत्रता है वही करते है लोग.ब्लॉगजगत कथन को तभी गंभीरता लिया जायेगा जब उसके कुछ मानदंड निर्धारित होंगे नहीं तो ये कुस्ती चलती रहेगी . आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों का बेसब्री से इंतज़ार .
ReplyDeleteनिष्पक्ष रूप से चिंतन करने योग्य पोस्ट !
ReplyDeleteबस एक बात समझ में आती है
ReplyDeleteहम हर जगह भारतीय होते हैं
सौ प्रतिशत प्रूफ हो जाती है !
अच्छा लिखा दराल जी --आपके यात्रावृतांत और तस्वीरों का इन्तजार है
ReplyDeleteआपसे न मिलने का मलाल रहेगा ... आप हमारे दुबई आए पर मुलाक़ात न हुई ...
ReplyDeleteआपकी नज़रों से दुबई को देखने का इंतज़ार है ...
नसवा जी , न मिल पाने का अफ़सोस तो हमें भी बहुत है . लेकिन क्या करते , मित्रों ने स्ड्युल इतना टाईट बना रखा था की समय मिला ही नहीं . अभी तक थकावट नहीं उतरी है .
Deleteचलिए कोई बात नहीं अगली बार सिर्फ अपने दुबई वाले मित्र से मिलने का प्रोग्राम बनाइएगा ... अभी आपने पूरा अमीरात नहीं देखा होगा ... बहुत कुछ है अभी देखने वाला ...
Delete:)))))) आपकी यात्रा के संस्मरणों का इंतज़ार है।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteअनु जी से पूर्णत : सहमत ! यही वजह है कि मैं तो गन्दा होने के डर से सफ़ेद कमीज ही नहीं पहनता :) खैर, डा ० साहब, दुबई यात्रावृतांत की प्रतीक्षा !
ReplyDeleteहा हा हा ! गोदियाल जी , हमने कई काले दिल वालों को भी सफ़ेद कमीज़ पहने देखा है . :)
Deleteअब यदि आपने संवादों के स्तर पर बात कही है डॉ सहाब, तो फिर आपने शायद फिल्म 3 idiot भी ज़रूर देखी होगी उसमें भी एक संवाद था कि "दोस्त यदि fail हो जाये तो दुख होता है लेकिन यदि वही दोस्त खुद से भी अधिक नंबरों से पास हो जाये तो और भी ज्यादा तकलीफ़ होती है" यह पृस्कारों का भी कुछ ऐसा ही फलसफा है। :)
ReplyDeleteइसी तरह के मंथन से कुछ सही हल निकल जाए।
ReplyDeleteइतजार रहेगा,तस्वीरों सहित आपके यात्रा संस्मरण का
ReplyDeleteआयोजन के अंत में कुछ न कुछ तो निकालता है सो हो जाये क्या बुरा है रही बात पुरुष्कारों की तो मिले तो क्या बुरा और न भी मिला तो कौन सा स्वर्ग छुट गया आप श्रेष्ठ लिखते रहिये
ReplyDeleteऐसे ही एक पुरुस्कार वितरण समारोह में किसी ने कहा था -- जिन्हें मिला है वे ज्यादा खुश न हों और जिन्हें नहीं मिला वे निराश न हों . क्योंकि
ReplyDelete" जब मैं खुश होता हूँ तो मेरा दिल कहता है -- बेटा ज्यादा खुश मत हो , क्योंकि जब वो दिन नहीं रहे तो ये भी नहीं रहेंगे . और जब मैं दुखी होता हूँ तो मेरा दिल कहता है -- ज्यादा दुखी मत हो , क्योंकि जब वो दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे . "
मूल मन्त्र है....बस इसे ही सब याद रखें तो बढ़िया बढ़िया होगा सब.....!
apki post se bahut kuchh janane samajhane ka mouka mila .. abhaar ...
ReplyDeletebebaak baat likhane ka aabhaar , milan samaaroh ka sujhaav achchha hai
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