बच्चों को शोर मचाते देख कर झुंझलाने लगे हैं,
बात बात पर संगी साथियों को गरियाने लगे हैं।
किसी भी बात पर कभी बिना बात आता है गुस्सा,
लगता है हम सत्तर साल से पहले ही सठियाने लगे हैं।
आजकल मैं ना कोई काम करता हूं,
बस दिन भर केवल आराम करता हूं।
जब आराम करते करते थक जाता हूं,
तो सुस्ताने को फिर से आराम करता हूं।
आज के युवाओं में देशप्रेम की लौ जलती ही नहीं,
पॉश एरिया के मतदान केंद्रों में भीड़ दिखती ही नहीं।
हम बड़े जोश से मतदान करने गए पर कर ना सके,
अधिकारी बोला, शक्ल आधार कार्ड से मिलती ही नही।
गर्म कपड़ों को जब अलमारी में रख देते हैं धोकर,
मायूस से देखते हैं जब रोज सुबह उठते हैं सोकर।
कि सर्दी खत्म होते ही गर्म कपड़े ऐसे वेल्ले हो गए हैं,
जैसे सेवानिवृत होने के बाद होते हैं सरकारी नौकर।
जाने क्यों कुछ लोग बालों पर खिजाब लगाते हैं,
सिर के सफेद बाल तो अनुभव का अहसास दिलाते हैं,
एक सफेद बालों वाले युवक ने जब हमें अंकल कहा,
तब जाना कि भैया बाल धूप में भी सफेद हो जाते है।
आधुनिकता ने लोगों की जिंदगी को ही मोड़ दिया है,
रहा सहा कोरोना ने आपसी रिश्तों को भी तोड़ दिया है,
घर में पति और बाहर बुजुर्गों की बात कोई नहीं सुनता,
इसलिए हमने तो भैया अब बोलना ही छोड़ दिया है।
सचमुच मजेदार मुक्तक हैं सर , सारे एक से बढ़कर एक।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पसंद और साझा करने के लिए दिल से आभार। 😊🙏
Deleteवाह
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteरोचक
ReplyDeleteआप सभी का शुक्रिया। 🙏
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लगे!!
ReplyDeleteशुक्रिया। 😊
Deleteवाह ... बहुत खूब
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