ज़िंदगी का सफ़र
वक्त के वाहन पर होकर सवार
चलता जाता है अविरल, अनवरत।
सफ़र की पगडंडी में
आते हैं कई मोड़।
हर एक मोड़ पर
दिखती है एक नयी डगर।
अंजानी डगर पर लगता है
अंजाना सा डर।
एक राह से पहचान होती है
कि फिर आ जाता है एक मोड़।
और एक नयी अंजान डगर,
आगे बढ़ने के लिए
अंजानी मंज़िल की ओर।
मन करता है मुड़कर देखना
पीछे छूट गये
पहचाने रास्ते की ओर।
लेकिन जीने के लिए चलना पड़ता है
आगे ही आगे, अविरल, अनवरत।
राहों की तरह ज़िंदगी की मंज़िल भी
अंजानी होती है।
फिर भी चलना ही पड़ता है
अविरल, अनवरत।
इसी अंजाने सफ़र का नाम जिंदगी है।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२५-११-२०२१) को
'ज़िंदगी का सफ़र'(चर्चा अंक-४२५९ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी शुक्रिया।
Deleteसुंदर दर्शन से भरा सफरनामा।
ReplyDeleteमन करता है मुड़कर देखना
ReplyDeleteपीछे छूट गये
पहचाने रास्ते की ओर।
लेकिन जीने के लिए चलना पड़ता है
आगे ही आगे, अविरल, अनवरत।
सही कहा आपने...
बहुत ही सुन्दर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ नवंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी आभार।
Deleteसटीक उपमाओं से सजी सुंदर रचना । ज़िन्दगी इसी सफर का नाम है ।।
ReplyDelete😊🙏🏻
Deleteजीवन यात्रा का सटीक दर्शन । अनवरत रास्ते, कुछ मोड़ और अनचीन्हा गंतव्य --- यही है जीवन की परिभाषा। सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय डाक्टर साहब 🙏🙏🌷🌷
ReplyDeleteजी शुक्रिया। 😊🙏🏻
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteज़िंदगी में पीछे मुड़ कर देखना तो इतिहास जानना है.
और
ज़िंदगी में आगे बढ़ना इतिहास बनाना है.
बहुत सही।
Deleteराहों की तरह ज़िंदगी की मंज़िल भी
ReplyDeleteअंजानी होती है।
फिर भी चलना ही पड़ता है
अविरल, अनवरत।
इसी अंजाने सफ़र का नाम जिंदगी है।
बहुत ही शानदार प्रस्तुति आदरणीय सर!
जिंदगी के खेल बड़े निराले हैं!
कितनी भी तकलीफ क्यों न दे जिंदगी फिर भी मौत से प्यारी है!
राहों की तरह ज़िंदगी की मंज़िल भी
ReplyDeleteअंजानी होती है।
फिर भी चलना ही पड़ता है
अविरल, अनवरत।
इसी अंजाने सफ़र का नाम जिंदगी है।