अभी तो टायर्ड हुए भी नही थे,
कि हम फिर से रिटायर्ड हो गये।
रिटायर्ड होकर घर मे ही बैठे बैठे,
निष्काम रह रह कर टायर्ड हो गये।
मूड कुछ डाउन रहने लगा जब,
टाउन सब लॉक डाउन हो गए।
लोग जब घरों में निश्चल न बैठे तो,
हम अपने घर मे रनडाउन हो गये।
लॉक होकर अनलॉक होने लगे,
थे जो सपने कहीं लॉक हो गए।
बंद थे कभी वक्त की पाबंदी में,
उन बंदिशों से अनलॉक हो गये।
अब काम हैं कम और वक्त है ज्यादा,
काम भी अब वक्त से आज़ाद हो गए।
मर्ज़ी के लिए लगानी पड़ती थी अर्जी,
अब अपनी मर्ज़ी के सरताज़ हो गये।
बस्ते में बंद पड़े थे कुछ छंद और लेख,
वेंटिलेटर से ज्यों निकल जीवंत हो गये।
एक दौर जिंदगी का खत्म हुआ तो क्या,
एक नयी ज्वाला से हम प्रज्वलंत हो गये।
बहुत खूब आदरणीय डॉक्टर साहब। बहुत मस्त अंदाज में दर्दे कोरोना। बहुत समय है इस समय में। एक नियमित जीवन की आदत छूट गई है। और रिटायर्ड व्यक्ति का दर्दे कई गुना ज्यादा है। सादर शुभकामनाए और आभार 🙏🙏
ReplyDeleteकृपया व्यक्ति का दर्द पढें 🙏🙏
Deleteजिंदादिल इंसान कभी रिटायर नहीं होते
ReplyDeleteबहुत खूब!