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Friday, June 25, 2021

छपास का मारा , भोला कवि बेचारा --


एक बड़े हास्य कवि की किताब देख ,  

बक्से में बंद हमें, 

अपनी हास्य कविताओं की याद आई,

तो हमने फ़ौरन प्रकाशक महोदय को कॉल लगाईं।  

और कहा भाई, 

हम भी छोटे मोटे हास्य कवि कहलाते हैं ,

पर लगता है आप तो सिर्फ 

मोटे कवियों की किताब ही छपवाते हैं।   

क्या आप हमारी कवितायेँ छपा पाएंगे ?

वो बोले ये तो हम ,

आपकी कवितायेँ पढ़कर ही बता पाएंगे। 


हमने कहा अच्छा ये तो समझाइये 

आपकी क्या शर्तें हैं 

और छापने का क्या लेते हैं। 

वो बोला 

हम कोई ऐसे वैसे प्रकाशक नहीं हैं,

हम छापने का कुछ लेते नहीं बल्कि देते हैं। 

हमने अपनी ख़ुशी जताई 

और कहा भाई 

लगता है हमारी आपकी कुंडली मिलती है ,  

क्योंकि हम भी कविता सुनाने का कुछ लेते नहीं 

बल्कि अपनी जेब से देते हैं।  


पर अब ज़रा काम की बात पर आइये ,

और ये बताइये कि ,

यदि पसंद नहीं आई तो क्या आप 

हमारी कवितायेँ वापस करेंगे, 

या अपने पास ही धर लेंगे। 

वो बोला टेक्नोलॉजी का ज़माना है ,  

आप अपनी कवितायेँ हमे ई मेल कर दीजिये,

हम ई मेल से ही वापस कर देंगे।   

उनकी ईमानदारी हमे बहुत भाई , 

और कॉपीराइट की चिंता मन से निकाल , 

सारी कवितायेँ फ़ौरन ई मेल से भिजवाईं। 


अब बैठे हैं इंतज़ार में क्योंकि,

अभी तक ना कवितायेँ वापस आईं, 

और ना ही मंज़ूरी आई।  

10 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
    'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. भोला कवि बेचारा…🌝

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  3. बहुत सुंदर।
    वो बोला टेक्नोलॉजी का ज़माना है ,
    आप अपनी कवितायेँ हमे ई मेल कर दीजिये,
    हम ई मेल से ही वापस कर देंगे..गज़ब कहा👌

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  4. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर...
    लाजवाब।

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  5. बहुत सुंदर

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  6. बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ और ज़बरदस्त कटाक्ष मिला पढ़ने को ।
    बहुत बढ़िया ।

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    1. आभार संगीता जी। हम भी अब ब्लॉगिंग को टाइम नहीं दे पाते हैं। लेकिन लिखते ज़रूर हैं। .

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