जिंदगी के तीन पड़ाव -- पूर्वव्यापी।
१) बचपन :
ये दिल तो बच्चा है जी।
दिल तो अभी बच्चा है जी।
जो काम कभी नहीं किये ,
उन्हें करने की इच्छा है जी।
किसी बगिया से आम तोड़ कर लाएं ,
कभी पेड़ से चढ़ अमरुद तोड़ कर खाएं।
गन्ने के खेत से गन्ना चुराकर चूसें ,
कोल्हू के गन्ने का ताज़ा रस पी जाएँ।
पर गांव की नदी में कूदने में गच्चा है जी ,
क्योंकि अपुन तैरने में अभी कच्चा है जी।
२) जवानी :
कभी पब , बार और डिस्को में जाते ,
किसी हसींना को देख सीटी बजाते ।
कभी रात रात भर घर से गायब रहते ,
लेट क्लास का घर में बहाना बनाते ।
काहे अपनी सच्चाई पर इतना गुमान है ,
नेकी छोड़ यार , दिल तो अभी जवान है।
३ ) बुढ़ापा :
ना किसी से बैर , ना ही किसी से यारी ,
धर्म कर्म करने की उम्र हो गई हमारी।
मोह माया के जाल से मुक्त हो जाएँ ,
ख़त्म हो जाये जब सारी जिम्मेदारी ।
दिल को संभालें वरना, टूटना पक्का है जी ,
दिल ना अब जवान है , न ये बच्चा है जी।
१) बचपन :
ये दिल तो बच्चा है जी।
दिल तो अभी बच्चा है जी।
जो काम कभी नहीं किये ,
उन्हें करने की इच्छा है जी।
किसी बगिया से आम तोड़ कर लाएं ,
कभी पेड़ से चढ़ अमरुद तोड़ कर खाएं।
गन्ने के खेत से गन्ना चुराकर चूसें ,
कोल्हू के गन्ने का ताज़ा रस पी जाएँ।
पर गांव की नदी में कूदने में गच्चा है जी ,
क्योंकि अपुन तैरने में अभी कच्चा है जी।
२) जवानी :
कभी पब , बार और डिस्को में जाते ,
किसी हसींना को देख सीटी बजाते ।
कभी रात रात भर घर से गायब रहते ,
लेट क्लास का घर में बहाना बनाते ।
काहे अपनी सच्चाई पर इतना गुमान है ,
नेकी छोड़ यार , दिल तो अभी जवान है।
३ ) बुढ़ापा :
ना किसी से बैर , ना ही किसी से यारी ,
धर्म कर्म करने की उम्र हो गई हमारी।
मोह माया के जाल से मुक्त हो जाएँ ,
ख़त्म हो जाये जब सारी जिम्मेदारी ।
दिल को संभालें वरना, टूटना पक्का है जी ,
दिल ना अब जवान है , न ये बच्चा है जी।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वेटर का बदला - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteबुढ़ापा अब रोमांस की उम्र है भाई
ReplyDeleteबीबी अपनी है तो अच्छा है
वरना चल जाती है नार पराई
दिल टूटना अब कौन नई बात जी
दिल की उम्र में बुढ़ापा कहाँ जी ....... :)
आपकी कविता बढ़िया है !
अच्छा ख़ासा मजा आ रहा था अंत ने दिल तोड़ दिया. हम तो ये कहेंगे...
ReplyDeleteदिल को संभालें वरना, टूटना पक्का है जी ,
दिल ना बूढ़ा न जवान, अभी बच्चा है जी।
एक दिन तो बचपना छोड़ना ही पड़ता है।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-12-2017) को "क्रिसमस का त्यौहार" (चर्चा अंक-2828) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार आपका।
Deleteजीवन के तीनों सोपानों का अच्छा वर्णन ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआभार आपका।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीय ।
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