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Wednesday, September 2, 2015

कुछ साल पहले जब हम जवान थे ...


जिंदगी ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि एक अर्से से कोई हास्य कविता नहीं लिख पाए हम । अब फुर्सत मिली है तो प्रस्तुत है , अधेड़ उम्र के हालातों पर एक हास्य कविता :


कुछ साल पहले जब हम प्रमाणित जवान थे ,
सर पर रंगत थी बालों के लहराते खलिहान थे।
याद बहुत आता है वो गुजरा हुआ ज़माना ,
जब अपने घर में हम भी शाहरुख़ ख़ान थे।


सोचते हैं ग़र बालों पर हम भी लगा लें खिज़ाब,
फिर क्या लगा पाओगे , हमारी उम्र का हिसाब।
दिल तो करता है हम भी दें ज़ुल्फ़ों को झटका ,
पर अब सर पर बाल ही कितने बचे हैं ज़नाब।


हेयर ट्रांसप्लांट का कभी मन में बनता है प्लान ,
पर कीमत सुनकर ही  दिल हो जाता है हलकान।
दो बाल भी दिख जाएँ कंघी में तो कहती है पत्नी ,
लो कर दिया सुबह सुबह डेढ़ हज़ार का नुकसान।


इश्क़ और बुढ़ापे में नींद भी कहाँ आती है ,
दोनों में दिल की धड़कन बढ़ जाती है ।
कभी नींद में भी आते थे हसींन ख्वाब ,
अब कम्बख़्त नींद ही ख्वाब में आती है।


बाल ग़र सारे गिर जाएँ तो ग़म नहीं ,
नींद भले आये रातों में हरदम नहीं ।
मूंह में न रहें दांत भी तो मत समझो ,
कि इन चिकने मसूढ़ों में अब दम नहीं।


अंगारों पर राख हो तो आंच कम नहीं होती ,
बुढ़ापे में भी इश्क की आग कम नहीं होती।
मुँह में दांत और पेट में आंत नहीं तो क्या है ,
जीवन की भूख और प्यास कम नहीं होती।


उम्र एक नम्बर होती है , मगर जिंदगी नहीं ,
जिंदगी में खुश रहने पर कोई पाबन्दी नहीं।
हंसने हंसाने का ही दोस्तो नाम है जिंदगी ,
खुल कर हंसो , हंसने पर कोई पाबन्दी नहीं।


जो लोग हँसते हैं, वे अपना तनाव भगाते हैं , 
जो लोग हँसाते हैं, वे दूसरों के तनाव हटाते हैं।  
हँसाना भी एक परोपकारी काम है दुनिया में , 
चलो हास्य कवियों के लिए तालियां बजाते हैं।  


नोट :  इस रचना का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है।

8 comments:

  1. हफीज जालंधरी की लिखी और मलिका पुखराज की गायी वो ग़ज़ल सुनने से कुछ फ़र्क पड सकता है.

    " हरेक लब पर हो सदा, न हाथ रोक साकिया,
    पिलाये जा, पिलाये जा, अभी तो मैं जवान हूँ "

    जरा आजमाइए तो सही. आखिर देश जवान हो रहा है.

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  2. बाल ग़र सारे गिर जाएँ तो ग़म नहीं ,
    नींद भले आये रातों में हरदम नहीं ।
    मूंह में न रहें दांत भी तो मत समझो ,
    कि इन चिकने मसूढ़ों में अब दम नहीं।

    वाह -वाह.....!
    जब हम जवां थे,
    माशाअल्लाह ,
    क्या हमारे चाल-ढाल थे,
    लाल हमारे गाल थे,
    और सर पर हमारे भी बाल थे। :-)

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    1. हा हा हा । आप तो कमाल थे।

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  3. वाह डाक्टर साहब वाह , सच है ..........न जाने कैसे सरक गई जवानी, रह गई बस कसक और कहानी ...... शुभकामनायें

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  4. बहुत खूब ... देखते देखते ही जवानी निकल जाती है ...खाली हाथ रह जाता है इंसान और जागता है तो बुढापा सामने होता है ...
    पर एक बात तो है दिल फिर भी जवान रहता है ...

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  5. शुक्रिया शास्त्री जी।

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  6. इतना इमोशनल न हो यारो , बस एक हास्य कविता है।

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