आजकल शहरों में चिड़ियाएं लगभग गायब ही हो चुकी हैं । लेकिन ऐसा लगता है कि इनकी जगह कबूतरों ने ले ली है। कबूतरी रंग के ये कबूतर झुण्ड के झुण्ड नज़र आते हैं। इनकी बहुतायत से शहरी लोग भी परेशान हो गए हैं क्योंकि ये बालकनी में बैठ कर अपनी बीट से सारी बालकनी को गन्दा कर देते हैं। इसलिए हमारे आस पास बहुत से घरों में लोगों ने बालकनी को शीशे लगाकर बंद कर दिया है। लेकिन हमें तो खुला आसमान , खुली हवा और खुला वातावरण ही अच्छा लगता है। इसलिए हमने अभी तक अपनी बालकनी को खुला ही रखा है। हालाँकि , इसकी कीमत तो अदा करनी ही पड़ती है।
जब भी घर बंद होता है , अक्सर जंगली कबूतर अपना साम्राज्य स्थापित कर लेते हैं और घर की बालकनी को ही अपनी टॉयलेट समझ लेते हैं। हमारे सामने कोई आ भी जाये और शांति से बैठ जाये तो हमारे समीप आते ही शंकित हो उड़ जाते हैं। इन कबूतरों का हम जैसे शरीफ़ इंसान पर भी अविश्वास अक्सर हमें बहुत खटकता है। अपनी इस असफलता पर हमें बड़ा क्षोभ होता है।
लेकिन एक शाम को अँधेरा होने के बाद जब हमने बालकनी में झाँका तो इस कबूतर को आराम से बैठा पाया।
सफ़ेद रंग का कबूतर हमारी बालकनी में पहली बार आया था। इसलिए कौतुहलवश हम उसे देखने के लिए बाहर आ गए। लेकिन इसने हमारी उपस्थिति को पूर्णतया अनदेखा कर दिया। परन्तु हम इसके रूप पर मोहित हो चुके थे । इसलिए हमने अपना मोबाइल उठाया और फोटो खींचने की कोशिश की ,लेकिन उसमे अँधेरे की वज़ह से कुछ नहीं आया। एक दूसरे कैमरे में भी फलैश नहीं थी। अंतत : हमें अपना विश्वासपात्र कैमरा ही निकालना पड़ा जिसमे फलैश थी। हैरानी की बात यह रही कि हमारे फोटो खींचने पर उसे बिल्कुल भी कोई एतराज़ नहीं था और वह आराम से बैठा फोटो खिंचवाता रहा।
बालकनी की रेलिंग पर यह सफ़ेद कबूतर इत्मीनान से बैठा था। न हिल डुल रहा था न कोई प्रतिक्रिया थी। हमारे बहुत पास जाने पर भी उसने बस हमें ज़रा सी गर्दन घुमाकर ही देखा और अनदेखा कर दिया। उसका यह दुस्साहस हमें चिंतित करने लगा। हमें लगने लगा कि कहीं यह बीमार तो नहीं ! एक डॉक्टर के रूप में हमें पक्षियों से मनुष्य को लगने वाली बीमारियों का भी भान था। इसलिए थोडा सचेत होते हुए हमने उसे हाथ न लगाने का निर्णय लिया। वैसे भी हमने कभी किसी पक्षी को आज तक हाथ नहीं लगाया था।
रात को ११ बजे जब हम सोने के लिए आये तो देखा वह कबूतर तब भी उसी जगह उसी मुद्रा में बैठा था। हमारे किसी भी हस्तक्षेप पर उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी। अब हमें वास्तव में चिंता सी सताने लगी थी क्योंकि यह निश्चित सा लग रहा था कि आसमान में स्वतंत्र उड़ान भरने वाला यह सफ़ेद कबूतर भले ही अपने मालिक के घर का रास्ता भूल गया हो लेकिन यदि यह बीमार होने की वज़ह से हुआ था तो हमारे सर पर एक और बीमार की जिम्मेदारी आ पड़ी थी। हमारे सामने एक ऐसा रोगी था जिसके रोग के बारे में हमें कुछ भी पता नहीं था।
अब दो दो चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच मंत्रणा शुरू हुई। लेकिन दोनों ने से कोई भी पक्षी विशेषज्ञ न होने से हम स्वयं को अनपढ़ सा ही महसूस कर रहे थे। श्रीमती जी ने कहा कि कहीं इसे बुखार तो नहीं, आप हाथ लगाकर देखिये । हमने कहा भाग्यवान, हाथ लगाकर तो हम इंसान का भी तापमान नहीं देखते , फिर इसका कैसे देखें।इस पर उन्होंने कहा कि चलिए किसी पक्षी हॉस्पिटल को ही फोन किया जाये। हमने कहा कि पक्षियों के हॉस्पिटल में घायल पक्षियों का ईलाज किया जाता है और यह तो घायल भी नज़र नहीं आ रहा। वैसे भी रात के ११ बजे हम कहाँ तलाश करते। एक विचार आया कि कहीं यह ठंड में न मर जाये , इसलिए इसे एक कपड़ा उढ़ा देते हैं। लेकिन फिर लगा कि अभी तो किसी तरह रेलिंग पर पंजे गड़ाए बैठा है , फिर कहीं ऐसा नहो कि यह कपडे के बोझ से ही मर जाये।
आखिर यही सोचा कि इसे भगवान भरोसे ही छोड़ दिया जाये और हम राम का नाम लेते हुए सो गए। लेकिन सोने से पहले एक प्लेट में खाने के लिए दाने और एक कटोरी में पानी अवश्य उसके पास रख दिया ताकि भूख प्यास लगे तो अपना पेट भर सके। उस रात नींद भी उचटी सी ही आई।
सुबह ६ बजे जब नींद खुली और उसे वहीं बैठा पाया तो आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई। थोड़ी रौशनी होने पर हमने उसका एक और फोटो लिया। अब वह खुशमिज़ाज़ नज़र आ रहा था और पूरी तरह सजग और सचेत था । वहीँ बैठे बैठे वह नित्यप्रति क्रियाक्रम से निवृत हुआ। लेकिन उसने दाना पानी दोनों को छुआ तक नहीं था। उसने फोटो तो खिंचवा लिया लेकिन जब हमने उससे बात करने की कोशिश की तो उसने किसी अंजान को मुँह लगाना उचित नहीं समझा और खिसक कर पोजिशन बदल ली। ज़ाहिर था , उसे हमसे कोई लेना देना नहीं था।
लगभग ८ बजे उसने छलांग लगाई और खुले आसमान में उड़ान भर ली। और हम सोचते ही रह गए उस बिन बुलाये मेहमान के बारे में जो बिन बुलाया तो था लेकिन उसने हमारी मेहमाननवाज़ी को ठुकरा दिया था। हैरान हूँ कि उसे किस ने सिखाया होगा कि किसी अंजान व्यक्ति से लेकर कुछ नहीं खाना चाहिए -- कि मुफ्त का माल समझ कर भी नहीं -- कि किसी अंजान का विश्वास नहीं करना चाहिए ! सोचता हूँ कि क्या वह रतोंधी से ग्रस्त था जो रात होने पर देख नहीं पा रहा था ! या रात में रास्ता भटक गया था ! और यह भी कि वह पालतू था इसलिए हमसे घबरा नहीं रहा था। बेशक , इंसान अपने व्यवहार से पशु पक्षियों का भी मन जीत लेता है। बस इंसान इंसान पर विश्वास करने लायक हो जाये तो यह संसार रहने लायक हो जाये।
अंत में :
मायावती के नॉयडा स्थित हाथियों के पार्क में बैठा यह कुक्कुर हमें देख कर क्या सोच रहा है , यह सोचने की बात है।
मनोरंजक.....पशु-पक्षी भी ज्ञान रखते हैं...
ReplyDeleteवाह कबूतर जी की मेहमान नवाज़ी का पूरा किस्सा बडा ही रोचक निकला और आपके लिखने के अंदाज़ ने इसे और भी दिलचस्प बना दिया
ReplyDeleteबड़ा अजीब किस्सा है कबूतर जान का। … बस सही सलामत उड़ गया यही गनीमत है .... हो सकता है उसे रात में कम दीखता हो ....
ReplyDeleteकुकुर महाशय तो बड़े क्यूट लग रहे हैं … बिलकुल फोटो खींचने के मुड में ....
जी , वास्तव मे बड़ा क्यूट लग रहा है . कबूतर शायद रात मे रास्ता भटक गया था जो सुबह होने पर अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गया होगा !
Deleteरोचक .... आज का सच भी है इन बातों में
ReplyDeleteरोचक, कबूतरों में होमिंग की प्रवृत्ति होती है -वह कोई पालतू कबूतर है फिर वापस हो लिया होगा
ReplyDeleteकुत्ता कुछ चाह रहा है -सोच रहा है अजब कंजूस सा आदमी है कुछ दे क्यों नहीं रहा! :-)
सही कहा अरविंद जी . हम तो उसकी सेहत के लिये परेशान थे लेकिन अच्छा हुआ वो ठीक निकला . कुत्ता वास्तव मे इंसान का सबसे करीबी दोस्त होता है . यह इस फोटो मे देखकर भी आभास हो रहा है .
Deleteब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteजय हिन्द ... जय हिन्द की सेना ||
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गणतंत्र दिवस और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
काश के अंतिम पंक्तियों में लिखी बात सच हो जाये और इंसान, फिर इंसान पर पुनः विश्वास करना सीखा जाये। आमीन
ReplyDeleteशांति दूत उड़ गया सान्तवना दे कर.हमें भी अति प्रसंन्ता हुई,वोह भी प्रसन्नता पूर्वक उड़ गया.प्रकृति प्रेमी ही हर जीव-आत्मा से स्नेह रखता है.प्रकृति उसका संरक्षण करती है.
ReplyDeleteवह आपका दोस्त बन चुका है , बापस आयेगा !! इंतज़ार करिए :)
ReplyDeleteपक्षियों की अजब आदत होती है , कई बार उनके लिए रखे गए दाना -पानी की ओर देखते भी नहीं और इधर -उधर बहते पानी या बिखरे दानों को चुगते मिल जायेंगे !
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरें !
वह पालतू कबूतर था। रास्ता भटक गया था। रात भर इंतजार करता रहा। सुबह हुई, घर चला गया।
ReplyDeleteपरंतु क्या उसे भूख नहीं लगी ? या दूसरों का नहीं खाता !
Deleteमन में संवेदनशीलता बनी रहनी चाहिए और मूक पंछियों और जानवरों के प्रति तो खास कर ... ये बिचारे अपनी तकलीफ बताएं तो कैसे और किसको ... अच्छी लगी आपकी पोस्ट ...
ReplyDeleteमेरे कार्यालय की खिड़की में कबूतरबाज़ रहते हैं, इतने ध्यान से देखते हैं, मानों कुछ कहना चाहते हों।
ReplyDeleteआपकी संवेदनशीलता और कबूतर का व्यवहार .....बहुत प्रासंगिक हैं ....!!!
ReplyDeleteआपके मुंडेर पर आया कबूतर और आपको लिखने का एक विचार दे गया। लेकर कुछ नही गया बस दे ही गया। मनुष्य शायद ऐसा नहीं करते, बस लेना ही जानते हैं।
ReplyDeleteबहुत सही बात कही अजित जी .
ReplyDeleteमुझे कबूतर कभी कभी थोड़े स्टुपिड से लगते हैं....खोजबीन करती हूँ उनके कुछ अटपटे/अनमने व्यवहार पर...
ReplyDeleteहालांकि trained किये जा सकते है ये,इसलिए stupid होते तो न होंगे....
nice click....nice post as always!!
regards
anu
अनु जी , सफेद कबूतर ट्रेन किये जा सकते हैं . लेकिन जंगली कबूतर तो हमे भी स्टुपिड ही लगते हैं .
Deleteएक मूक पक्षी के प्रति आपका प्रेम स्नेह सराहनीय है .. आपका आलेख बढ़िया लगा .... आभार
ReplyDeleteसरल हृदय हैं आप, पक्षियों के मन की बात सरलमना ही समझ सकते हैं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बड़ा अच्छा लगा ये कबूतर वृत्तान्त !
ReplyDeleteआपकी संवेदनशीलता
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