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Sunday, January 5, 2014

सड़क पर लगे बेरीकेड -- आपका इम्तिहान !


आज एच टी में करन थापर का पुलिस बेरिकेडिंग पर लिखा दिलचस्प लेख पढ़कर हमें अपनी सालों पहले लिखी एक हास्य व्यंग कविता याद आ गई। लीजिये आप भी पढ़िए और देखिये कितनी समानताएं हैं दोनों में।  


सड़क पर पुलिस के बैरिकेड गड़े थे ,
ट्रैफिक जाम में फंसे हम बेचैन खड़े थे ।

मैंने एक पुलिसवाले से पूछा, भई कितने आतंकवादी पकड़े ?
वो बोला -एक भी नहीं , सुबह से ख़ाली खड़े हैं ठण्ड में अकड़े ।

मैंने कहा तो फिर इसे हटाओ, क्यों बेकार समय की बर्बादी करते हो ।
वो बोला -चलो थाने, मुझे तो तुम्ही कोई आतंकवादी लगते हो ।

मैंने कहा --थाने क्यों चलूँ  ,मैंने क्या जुर्म किया है ?
वो बोला -नहीं किया तो करो, मैंने कब मना किया है ।

पर ज़नाब जुर्माना तो देना पड़ेगा ,
तुमने इक पुलिसवाले का वक्त घणा लिया है ।

अरे यदि तुमने मुझे बातों में ना जकड लिया होता ,
तो अब तक मैंने एक आध आतंकवादी तो ज़रूर पकड़ लिया होता ।

अब कैसे करूँगा मैं भरे पूरे परिवार का भरण पोषण ,
जब आतंकवादी ही न मिला, तो कैसे मिलेगा आउट ऑफ़ टर्न प्रोमोशन ।

अच्छा मोबाईल पर बात करने का निकालो एक हज़ार रूपये जुर्माना ।
मैंने कहा -मेरे पास तो मोबाईल है ही नहीं,मैं तो ऍफ़ एम् पर गुनगुना रहा था गाना ।

तो फिर ये बताओ आपने गाड़ी पचास के ऊपर क्यों चलाई ?
मैंने कहा -ये खटारा ८६ मोडल चालीस के ऊपर चलती ही कहाँ है भाई ।

रेडलाईट के १०० मीटर के अन्दर हॉर्न तो ज़रूर बजाया होगा ।
मैंने कहा -हॉर्न तो तब बजाता जब हॉर्न कभी लगवाया होता ।

फिर तो चलान कटेगा गाड़ी में हॉर्न ही नहीं है ,
मैंने कहा --सामने से हट जाओ, इसमें ब्रेक भी नहीं है ।

इस पर वो बोला - आपकी गाड़ी के शीशे ज़रुरत से ज्यादा काले हैं ।
मैंने उस कॉन्स्टेबल से कहा ज़नाब, आप भी इन्स्पेक्टर बड़े निराले हैं ।

ज़रा आँखों से काला चश्मा हटाओ, और आसमान की ओर नज़र घुमाओ।
अरे यह तो कुदरत की माया है, काले शीशे नहीं , शीशे में काले बादलों की छाया है ।

थक हार कर वो बोला, अच्छा कम्प्रोमाइज कर लेते हैं ।
चलो सौ रूपये निकालो, जुर्माना डाउनसाइज कर देते हैं ।

पर सौ रूपये किस बात के, यह बात समझ नहीं आई ?
वो बोला दिवाली का दिन है, अब कुछ तो शर्म करो भाई ।

अरे घर से बार बार फोन करती है घरवाली।
दो दिन से यहाँ पड़े हैं, हमें भी तो मनानी है दिवाली ।

मैंने कहा -यह बात थी तो हमारे अस्पताल चले आते ।
और हम से दो चार दिन का नकली मेडिकल ले जाते ।

यह कह कर तो मैंने उसका गुस्सा और जगा दिया ।
वो बोला मैं गया था, लेकिन आपके सी एम् ओ ने भगा दिया ।

और अब जो खाई है कसम , वो कसम नहीं तोडूंगा।
और मां कसम उस अस्पताल के डॉक्टर को नहीं छोडूंगा ।

और जब मुक्ति की कोई युक्ति समझ न आई ।
तो अगले साल का प्रोमिस देकर ही जान छुड़ाई ।


अगले दिन मैं घर से बिना सीट बेल्ट बांधे ही निकल पड़ा था ।
वो पुलिसवाला उसी जगह उसी चौराहे पर मुस्तैद खड़ा था ।

पर उस दिन वो निश्चिंत था , अपनी धुन में मस्त था ।
उसने मुझे न टोका , न गाड़ी के सामने आकर रोका ।

क्योंकि भले ही कोई आतंकवादी न मिला हो
इस वर्ष दिवाली पर कोई बम नहीं फूटा ।

हमारे पुलिस वाले कितनी विषम परिस्थितियों में काम करते हैं । 
इसके लिए हम इनको कोटि कोटि सलाम करते हैं ।


15 comments:

  1. सब कुछ अनिश्चितता में जीते हैं फिर भी निश्चितता की आशा रखते हैं।

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  2. डॉ साहब ,वार्तालाप बहुत पसंद आई ,व्यंग के साथ हास्य रस भी है !
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |

    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति

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  3. बढ़िया व्यंग्य

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  4. :-)
    बहुत बढ़िया...
    सटीक रचना.............

    सादर
    अनु

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  5. सही है...सार्थक भाव लिए सटीक रचना।

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  6. डाक्‍टर ने भी 100 रू तो नहीं देने थे तो नहीं ही‍ दिए।

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    1. जी, सी एम ओ का नाम सुनते ही तो वैसे भी पुलिस वाले नर्म पड जाते हैं !

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  7. सार्थक और सटीक हास्य रचना ... अंततः उसने अपना काम कर ही लिया मुस्तैदी से ...

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  8. अपने यहाँ हर कोई विषम परिस्थितियों में काम करता है :):)..
    बढ़िया रचना.

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    1. जी हाँ, 'हमारे' यहाँ और 'अपने' यहाँ मे अंतर तो है ! :)

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  9. वाह...मजेदार और सटीक....बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

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  10. व्यंग के साथ एक निर्मम सच

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