लखनऊ यात्रा के दौरान कुछ घंटों का समय था , इसलिये शहर घूमने के लिये निकल पड़े. देखने के लिये एक ही एतिहासिक जगह थी -- बड़ा इमामबाड़ा. शहर के पुराने क्षेत्र मे इस शानदार कृति को लखनऊ के नवाब असफ़ उद् दौला ने अठारहवीं सदी मे बनवाया था.
१८ मीटर ऊंचे रूमी दरवाज़े से होकर जब आप अंदर आते हैं तो यह नज़ारा दिखाई देता है.
हरे भरे लॉन के चारों ओर रास्ता बना है.
दायीं ओर एक मस्जिद है.
इसे आसफ़ी मस्जिद कहते हैं.
मुख्य इमामबाड़ा मे एक करीब ५० मीटर लम्बा हॉल बना है जिसकी खूबसूरती यह है कि इसमे एक भी बीम का सहारा नहीं लिया गया है. इस हॉल मे आसफा उद् दोला का मक़बरा बना है और साथ ही इसके आर्किटेक्ट की कब्र भी. कहते हैं इसे नवाब साहब ने उस समय बनवाया था जब वहां अकाल पड़ा हुआ था. इसे बनवा कर उन्होने लोगों को काम दिया जिससे गुजर बसर हो सके. इस हॉल के चारों ओर अनेक चेम्बर बने हैं जिनमे विभिन्न प्रकार के ताज़िये रखे हैं। इन चेंबर्स के उपर जो भवन है , उसे भूल भुलैया कहते हैं क्योंकि इसमे इतने रास्ते और सीढ़ियाँ बनी हैं कि यदि बिना गाइड के घुस गए तो थक कर चूर हो जायेंगे लेकिन बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलेगा.
यहाँ गाइड तो वैसे भी अनिवार्य है.
इमामबाड़ा के आगे और पीछे वाली दीवारों मे इस तरह की गैलरी बनी हैं जिनमे सारे रास्ते खुलते हैं. ज़ाहिर है , यदि भूल हुई तो एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने मे ३३० फुट पैदल चलना पड़ेगा. अंदर गर्मी भी होती है और सीढ़ियाँ चढ़ने से पसीना आता है , इसलिये पानी की बोतल साथ ले जाना एक अच्छा विकल्प है.
छत का एक दृश्य.
छत से पीछे की ओर नज़र आ रहा है , किंग ज्योर्ज मेडिकल कॉलेज.
चारों ओर बनी आर्चेज से शहर का सुन्दर नज़ारा दिखाई देता है.
मुख्य भवन के बाहर बनी है एक बावली. इसके सबसे निचले तल मे पानी भरा है जो सीधा गोमती नदी से आता है. इसमे कई मंज़िलें हैं जिनमे छत की ऊँचाई को बस ५ फुट रखा गया है. गाइड ने बताया कि पुराने ज़माने मे अंग्रेज़ जो लम्बे होते थे , उन्हे झुकाने के लिये ऐसा किया गया था. लेकिन सच तो यही था कि जो भी यहाँ आयेगा , उसे सर झुकाना ही पड़ेगा वर्ना सर फूट जायेगा. सर झुकवाने का यह तरीका भी बड़ा दिलचस्प लगा. बावली की उपरी मंज़िल पर पीछे से निचले तल के पानी मे द्वार पर खड़े लोग साफ नज़र आते हैं. इसके अनेक झरोखों से गुप्त रूप से द्वार पर नज़र रखी जा सकती है.
घूमते घूमते धूप निकल आई थी. सुहानी धूप मे रूमी दरवाजे का एक फोटो ले कर हम निकल पड़े सीधे एयरपोर्ट की ओर.
नोट : फोटो मोबाइल कैमरे से. यहाँ के कुछ और मेघ आच्छादित फोटो यहाँ देख सकते हैं.
आज इस निर्माण की कल्पना करना भी मुश्किल है भले ही हम तकनीक में आगे बढ़ गए हैं इतनी बड़ी जमीन कहाँ पाएंगे और किसे है फुर्सत आपने अपना कीमत वक़्त हमें दिया हमारा प्रणाम आप अपने खाते में दर्ज करने की कृपा करें ताकि ऐसे पोस्ट आते रहें
ReplyDeleteबेशक समयनुसार उस वक्त भी बुद्धिमानी से काम लेकर बेहतरीन निर्माण किये गए हैं। इमामबाड़ा मे बने झरोखों से सड़क और द्वार साफ नज़र आते थे लेकिन अंदर का कुछ नहीं दिखता था।
Deleteवाह! आपने गजब की फोटुएँ खींच डाली।
ReplyDeleteलेकिन आपके साथ कोई और नहीं था शायद जो आपकी फोटू भी वहाँ उतार सकता। :)
त्रिपाठी जी , अब हमे सिर्फ फोटो खींचने का शौक रह गया है.
Deleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteपूरा लखनऊ घुमा दिया आपने . . .
ReplyDeleteकवाब और खिला देते :)
हम सिर्फ हरे कबाब ही खाते हैं !
Deleteइमामवाडा का सचित्र सुन्दर वर्णन ...!
ReplyDeleteनवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
RECENT POST : पाँच दोहे,
Badhiya chitra
ReplyDeleteनयनाभिराम -आप भूले तो नहीं ?
ReplyDeleteगाइड नहीं होता तो शायद निकल पाना संभव नहीं होता !
Deleteप्रणाम |बहुत ही खूबसूरत चित्रों से सजी सुंदर पोस्ट |
ReplyDeleteहम भी लखनऊ के नए वशिन्दो में शुमार हैं |
मार्गदर्शक करता लेखन |
भूलभुलैया है बड़े मजेजार !
ReplyDeletelatest post: कुछ एह्सासें !
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय
नव रात्रि की शुभकामनायें-
बेहतरीन लखनू भ्रमण कराया, आभार.
ReplyDeleteरामराम.
वर्तनी सुधार:-
ReplyDeleteलखनू = लखनऊ
रामराम.
badhiya foto sahit janakari ...abhaar
ReplyDeleteग़ज़ब चित्र, देख कर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteलाजवाब तस्वीरें.
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ReplyDeleteदेख लिया हमने भी लखनऊ !
सुन्दर तस्वीरें !
कुछ बहुत पुराणी यादें ताज़ा कर दीं आपने ... इस इमामबाड़े से जुडी ...
ReplyDeleteपर अब ये बदला बदला स लग रहा है कुछ ... सफाई भी अच्छी लग रही है ... ये सच में है या आपकी तस्वीरों का कमाल ...
नासवा जी , दोनो का असर है , ज़रा ज़रा.
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