आज से २५ -३० वर्ष पूर्व जब हमने गृहस्थ जीवन मे प्रवेश किया तब इंपोर्टेड इलेक्ट्रॉनिक संयंत्रों की बहुत मांग होती थी. क्योंकि तब आर्थिक उदारीकरण लागू नहीं था, इसलिये अधिकतर सामान बाहर से मंगाया जाता था जो अवैधानिक तौर पर ज्यादा होता था. इसीलिये जगह् जगह इंपोर्टेड सामान बेचने की ग्रे मार्केट्स खुली थी जिनमे सारा सामान महंगे सस्ते दाम पर मोल भाव कर खरीदा बेचा जाता था. लेकिन हम जैसे कानून के दायरे मे रहने वालों के लिये सस्ता और इंपोर्टेड सामान खरीदने का एक और तरीका भी था . वह था , एम्बेसी सेल्स का . अक्सर जब कोई विदेशी राजनयिक स्थानांतरित होकर देश छोड़कर जाता तो वह अपने घर के सारे सामान की सेल लगाकर सस्ते दाम पर बेच जाता . हालांकि हमने भी कई बार इन सेल्स के चक्कर लगाये लेकिन खरीद कभी नहीं पाये क्योंकि इस्तेमाल किया हुआ पुराना सामान खरीदने का मन ही नहीं किया . फिर आहिस्ता आहिस्ता घर गृहस्थी का सारा सामान जुटा लिया. इस बीच सरकार की आर्थिक नीतियाँ भी बदली और देश मे ही सभी तरह का सामान मिलने लगा . अब हालात ऐसे हैं कि पुराना सामान आप बेचना भी चाहें तो कोई खरीदार नहीं मिलता क्योंकि अब मध्यम वर्गीय समाज की सामर्थ्य भी नया सामान खरीदने की हो गई है .
लेकिन एक समाज ऐसा भी है जिन्हे आज भी पुराने सामान की कद्र होती है क्योंकि न उनकी इतनी सामर्थ्य होती है कि वे नया सामान खरीद सकें , न ही उन्हे आवश्यकता होती है . हमे घरेलू सेवाएं प्रदान करने वाले ये निम्नवर्गीय लोग जैसे काम वाली बाई , सुरक्षा कर्मचारी तथा सफाई कर्मचारी आदि लोग पुराने सामान को भी पाकर स्वयं को धन्य समझते हैं. ऐसे मे भाग्यशाली धनाढ्य लोगों का फ़र्ज़ है कि वे अपने पुराने सामान को फेंकने के बजाय इन गरीबों को ही दान कर दें ताकि उनके बच्चे भी इन आधुनिक संयत्रों का आनंद ले सकें .
हमारी काम वाली भले ही छोटे से किराये के मकान मे रहती हो , लेकिन उसके ठाठ बाठ देख कर उसके गावं वाले बड़े प्रभावित होते हैं . उसका कहना है कि उसके गांव मे उसकी इज़्ज़त और रुतबा एक सेठानी जैसा है . हमे भी लगता है कि कहीं उसके घर पर इनकम टैक्स वालों की रेड ही न पड़ जाये ! क्योंकि घर मे २९ इंच का रंगीन टी वी , १००० वॉट का थ्री इन वन म्यूजिक सिस्टम , और कम्प्यूटर समेट सुख सुविधाओं का सारा साजो सामान मौजूद है . यह अलग बात है कि यह अधिकांश सामान हमारा ही दिया हुआ है.
हमे भी लगता है कि पुराने समान का जब कोई खरीदार ही नहीं तो क्यों ना ऐसे व्यक्ति को दे दिया जाये जिसके लिये वह भी एक उपलब्धि सी हो. आखिर दान करना भी एक पुण्य का काम है . लेकिन सही मायने मे दान तभी सार्थक होता है जब वह सुपात्र को किया जाये .
वर्तमान परिवेश मे अधिकांश लोग राजसी प्रवृति के तहत इच्छा पूर्ति के लिये दान करते हैं. अक्सर लोग मंदिरों मे दान बाद मे करते हैं , मन्नत पहले मांग लेते हैं . यानि यह दान सशर्त होता है . यह अज्ञानता की निशानी है . इसी तरह कई बार देखा जाता है कि दान किया गया धन न तो ज़रूरतमंद के पास पहुंच पाता है और ना ही उसका सही उपयोग हो पाता है . ऐसा दान वास्तव मे धन को नष्ट करना है .
सभी मध्यम वर्गीय परिवारों के घरों मे अनेक सामान ऐसे होते हैं जो वर्षों से या तो पेकेट मे बंद पड़े होते हैं या जिन्हे सालों तक इस्तेमाल कर दिल भर जाता है. विशेषकर पुराने सामान को अब कोई नहीं खरीदता. ऐसे सामान को यदि किसी गरीब और ज़रूरतमंद को दान कर दिया जाये तो निश्चित ही पाने वाले को अपार खुशी का अहसास होगा। और यही सार्थक दान होगा.
गीता अनुसार दान भी तीन प्रकार के होते हैं -- सात्विक , राजसी और तामसी .
सात्विक दान : जो दान उत्तम ब्राह्मण को किया जाये , जिसे संसारी कामना की इच्छा न हो, स्वयं बिना इच्छा के किया जाये, वह सात्विक दान कहलाता है .
राजसी दान : किसी इच्छा की कामना करते हुए किया गया दान जिसमे दान के बदले उपकार की अपेक्षा हो, वह राजसी दान कहलाता है .
तामसी दान : क्रोध और गाली देकर कुपात्र को दिया गया दान तामसी होता है .
सभी मध्यम वर्गीय परिवारों के घरों मे अनेक सामान ऐसे होते हैं जो वर्षों से या तो पेकेट मे बंद पड़े होते हैं या जिन्हे सालों तक इस्तेमाल कर दिल भर जाता है. विशेषकर पुराने सामान को अब कोई नहीं खरीदता. ऐसे सामान को यदि किसी गरीब और ज़रूरतमंद को दान कर दिया जाये तो निश्चित ही पाने वाले को अपार खुशी का अहसास होगा। और यही सार्थक दान होगा.
नोट : त्यौहारों के इस मौसम मे अपना घर साफ करके भी आप दूसरों के घर रौशन कर सकते हैं !
सही किया आपने . .
ReplyDeleteमदद वही जो बिना स्वार्थ की जाए !
आपके इस सात्विक शूद्र दान को सचमुच प्रणाम -हम भी यह यथाशक्ति करते हैं !
ReplyDeleteअरविंद जी , ब्राह्मण दान अब बस सांकेतिक रह गया है . असली ज़रूरतमंद तो यही लोग हैं .
Deleteहमारा भी सारा सामान हमारी कामवाली को ही जाता है और आज इसी कारण उसके घर में धुलाई मशीन तक है। कल ही की-बोर्ड बदला है और उसने ले जाने की पहल कर दी है। अच्छा लगता है जब हमारे सामान का कोई कद्रदान मिलता है।
ReplyDeleteजी , सामान किसी के काम आये, यही सही है .
Deletesupaatr ko diya gaya Dan sarthak hota hai ....abhaar
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट ...वैसे पूरी पोस्ट तो बहुत अच्छी है ही :)) किन्तु हमें आपका नोट सबसे ज्यादा पसंद आया...आभार
ReplyDeleteदान हमेशा सुपात्र या जरूरत मंद लोगों को ही देना चाहिए ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
बिलकुल सही बात.. हम भी यही करते हैं और घरवालों को भी यही करने को कहते हैं.
ReplyDeleteअब लोग OLX पे बेच देते हैं ...
ReplyDeleteलेकिन पुराने सामान का मिलता क्या है !
Deleteमैने अपना कुछ सामान जरूरतमंद लोगों को दिया... जो मेरे यहां काम करते थे या काम छोड चुके थे...सामान देने के बाद बाहर से फीडबैक आया कि जब इन लोगों के मतलब का नहीं रह गया तो हमें दे दिया.... इतने बड़े दानी हो तो नया खरीद कर देते....
ReplyDeleteयहाँ आपको यह समझना पड़ेगा कि लेने वाला ज़रूरतमंद है या नहीं . सुपात्र वही होता है जो ज़रूरतमंद होता है .
Deleteबहुत साल पहले की बात है. एक बार हमने हरिद्वार मे गरीबों को खाना खिलाने के लिये भंडारे का आयोजन किया. वहां भिखारी तो बहुत थे लेकिन भूखा कोई नहीं था . उनके नखरे देख कर हमने कान पकड़े कि फिर कभी इस तरह का भंडारा नहीं करेंगे . खाने कि कद्र सिर्फ भूखा व्यक्ति ही जान सकता है .
Deleteबिल्कुल दुरुस्त..वैसे भी अगर सही लोगो तक दान पहुंचे तो अब भी देश में करोड़ों लोग हैं जिनके लिए कपड़ा और पहनने के लिए चप्पल या जूता किसी लग्जरी से कम नहीं है।
ReplyDeleteबिलकुल सही फरमाया आपने |
ReplyDeleteमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश लिए है आपकी यह पोस्ट। यहाँ अमरीका में गराज सेल का चलन है सारा पुराना सामान हाथों हाथ सस्ते दामों में बिकता है गोरे काले सब उमड़ते हैं कुछ का तो यह साइड बिजनेस ही है इधर से खरीदा उधर बेचा। यहाँ हर चीज़ का सर्कुलेशन है काले गोरों के बीच अमीर में न तड़ी है गरीब में न तो असहायता का भाव है स्वाभिमान सबमें यकसां है। यही है अमरीकी समाज की सबसे बड़ी उपलब्धि।
ReplyDeleteविश्व के सबसे ज्यादा स्लेव इंडिया में हैं ये अभी अभी खबर मे कहा गया हैं। कारण यही दान हैं। आप / हम अपनी बिना जरुरत की चीज़े बाँट कर यश बटोरते हैं और "सुपात्र" को "निकम्मा " बनाते हैं। अगर किसी को कुछ चाहिये तो उसको वो खरीदने के लिये धन चाहिये। आप अपने घर में काम करने वाले जिन लोगो को गरीब समझते हैं वो गरीब हैं ही नहीं , वो केवल अपना पैसा बचाते हैं और गाँव में अपनी जमीन इत्यादि खरीदते हैं। सामान फ़ालतू हैं घर के बाहर रखिये या बेच दे चाहे २ पैसे ही क्यूँ ना मिले क्युकी अमूमन जो लोग भी अपने घर में काम करने वालो को सामान देते हैं उनसे पैसा लेते ही हैं कुछ कम हो सकता हैं पर मुझे आज तक कोई भी नहीं दिखा हैं जिसने अपना टी वी , फ्रिज , वाशिंग मशीन बिना पैसे के किसी को दी हो।
ReplyDeleteदान शब्द के साथ दिया हुआ कुछ भी केवल और केवल और केवल दुसरे को अपने से कमतर आंकना होता हैं।
रचना जी , गरीब तो गरीब ही होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह सदा गरीब ही रहेगा . उसे भी तरक्की करने का अधिकार है . लेकिन इस तरक्की मे पैसा एक बाधा बनता है . ऐसे मे जो भी मदद की जा सकती है , करनी चाहिये . हमने भी यह नहीं कहा कि सारा सामान मुफ्त मे दे दिया . सहमत हूँ कि मुफ्त मे देने से न सिर्फ आदत बिगड़ती है बल्कि सामान की भी कद्र घटती है . बेशक बाज़ार मे कुछ पैसा ज्यादा मिल सकता है लेकिन थोड़ा कम मे उन्हे देने से यदि उनको खुशी मिलती है तो ज़रूर देना चाहिये .
Deleteगरीब की परिभाषा हैं जो आर्थिक आय से जुड़ी हैं , हम सब अपने अहम की तुष्टि के लिये अपने से कम आय वाले को गरीब कहते हैं। आज एक मैड को भी ४ हज़ार मिलते हैं एक महिना काम करने के और एक एक "गरीब " घर में ३-४ लडकियां ये काम करती हैं यानी १६ हज़ार की आय हुई अगर उनके स्तर को सुधारना हैं तो ह्यूमन राईट वाले कहते हैं उनको काम पर ही मत रखे।
Deleteदान - जहां तक मुझे पता हैं दान में केवल और केवल नयी वस्तुये ही दी जाती
पुराना सामान अगर किसी को भी दिया जाता हैं और पैसे लिये जाते हैं तो बेचना ही हुआ और अधिकतर गृहणी एक बार कबाड़ी वाले से पूछने के बाद ही ये सो कॉल्ड दान करती हैं और कम पैसे में बेचने का पुण्य कमाती हैं
कभी सोच कर देखिये वो टी वी या फ्रीज जहां चल रहा हैं वहाँ बत्ती चोरी की तो नहीं हैं क्युकी गरीब के लिये बिल देना ना मुमकिन हैं
@तरक्की करने का अधिकार है . लेकिन इस तरक्की मे पैसा एक बाधा बनता है
this is the most astonishing sentence because you are trying to say that by giving old things to people who work under us and for us we are giving them " growth "
tv , fridge , washing machine , expensive old cloths are symbolic of growth , I AM AMAZED
a person can never grow like this
यह सिर्फ सोच पर निर्भर करता है। baiyon के घरों मे aksar ३-४ betiyan bhi hoti hain . fir bhala १६००० मे kya hoga . upar se mard kuch nahi karte aur sharaab pite rahte hain . aajakl inke bachche bhi skool मे padhte hain jinko bhi kampyutar chahiye . khareedne wala १५ मे khareedega lekin bechega ५००० मे . zahir है , baai ko lene dene मे kya hani है !
Deleteओपन मार्केट में जिस सामान की कीमत महज १५ रूपए थी उसको घर में काम करने वालो को ज्यादा दाम में बेच दिया
Deleteऔर इसको दान कहा ???
ये तो महज बिज़नस हैं और कुछ नहीं बस फर्क ये हैं की खरीदार घर में ही काम करता हैं
गीता में बताये किसी भी दान में ये नहीं आता हैं और पात्र सुपात्र इत्यादि की बात करना ही यहाँ बेकार हैं
सीधा सीधा फायदा का सौदा हैं उनका जिनका सामान हैं
पैसा भी मिला और अहम की तुष्टि भी
तारीफ दरल जी आपका लेख विचारनीय है | कुछ बातें जो दिमाग में आती है उसे साझा करना उचित समझता हूँ \इसीलिए बता रहाहूँ
ReplyDelete.पहली -- मैं कुछ हद तक रचना जी से सहमत हूँ --कौन सुपात्र --कौन कुपात्र , इसका निर्णय कैसे हो ,कौन करे जहाँ धर्म के आड़ लेकर आशाराम जैसे कुपात्र ,सुपात्र का अभिनय करते रहते है ?
दूसरा -- दान अर्थात भिक्षा ,सुभाषित शब्दों में दान ,प्रचलित भाषा में भिक्षा ने एक वर्ग को निकम्मा बना दिया है | बिना काम किये पैसे मिल जाय ,बिना काम किए आवश्यकता की चीजे मिल जाय तो काम कौन करना चाहेगा ? दान के प्रथा ही एक को अहम् की संतुष्टि कराता है तो दुसरे को आलसी निकम्मा |
तीसरा --यदि आपके पास पुराने कपडे इत्यादि है तो आप उसे अनाथालय में जाकर दे सकते है जहां उसकी जरुरत है |कई वृद्धाश्रम भी इसे स्वीकार करते हैं | अन्य धंधा की भांति भिक्षा भी एक धंधा हो चूका है |
नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
latest post महिषासुर बध (भाग २ )
काली प्रसाद जी , विचार रखने के लिये आभार .
Deleteमेरा मानना है कि पात्र का निर्णय तो स्वयं ही लेना पड़ता है समझ बूझ कर . पैसे की आवश्यकता सब को होती है . बिना काम किये कोई धनाढ्य नहीं हो सकता . लेकिन गिफ्ट मे मिली हुई किसी भी चीज़ से सभी खुश होते हैं , अमीर लोग भी . हालांकि इसकी सबसे ज्यादा अहमियत गरीबों मे ही होती है . सेवाकर्मियों को भिखारी नहीं कहा जा सकता . भिक्षा मांगना तो एक धंधा है . मैने आज तक किसी को भीख नहीं दी . जहां तक कपड़ों की बात है , हम सदा ही घर मे ही छोटे बड़े के कपड़े पहनते आए हैं . आज भी हम गांव मे भिजवा देते हैं जहां बखूबी इस्तेमाल होते हैं .
सात्विक दान : जो दान उत्तम ब्राह्मण को किया जाये , जिसे संसारी कामना की इच्छा न हो, स्वयं बिना इच्छा के किया जाये, वह सात्विक दान कहलाता है .
ReplyDeleteराजसी दान : किसी इच्छा की कामना करते हुए किया गया दान जिसमे दान के बदले उपकार की अपेक्षा हो, वह राजसी दान कहलाता है .
तामसी दान : क्रोध और गाली देकर कुपात्र को दिया गया दान तामसी होता है .
phir kanyadaan kyaa hotaa haen
दान का यह विवरण गीता मे बताया गया है .
Deleteकन्यादान एक पारम्परिक शब्द है जिसका वर्तमान परिवेश मे कुछ अर्थ नहीं रह गया है .
aaj kal sochne ka samay kis ke paas hai
ReplyDeleteआज पढ़ा ये आलेख , जहां तक मेरा अनुभव है, मैं या मेरे आस-पास के लोग, घर का पुराना सामान ,कामवालियों को देते हैं तो उसका एक भी पैसा नहीं लेते और न ही इसे दान मानते हैं. कामवालियां भी इसे कोई उपकार नहीं समझतीं बल्कि यही कहती हैं कि "आपने अपने घर का कचरा साफ़ किया .". एक बार एक सहेली ने अपना घर रिनोवेट किया और सारा सामान मुफ्त में काम वाली को दे दिया . उसके बाद कई बार कामवाली बहुत देर से आती ,जब उसने टोका कि तुम्हे इतना सामान दिया फिर भी तुम ठीक से काम नहीं करती तो कामवाली ने टका सा जबाब दिया, "लौटा देती हूँ आपका सारा सामान "..सहेली को ही चुप रह जाना पड़ा.
ReplyDeleteरश्मी जी , यह लेने और देने वाले दोनो पर निर्भर करता है . अभी एक दिन हमारी कामवाली दिखा रही थी ki kisi ne use sirke ki band botal दी . lekin dekha to panch sal pahle ki expired botal थी । aise bhi log hote hain .
Deleteपहले व्यापार भी एक सेवा थी। अलग अलग इलाक़ों में पैदा होने वाली उपज को व्यापारी जन-जन तक पहुंचाने का काम करते थे। अब सेवा भी व्यापार बन गई है।
ReplyDeleteपहले मालिक दाता होता था। वह अपने सेवकों को कुछ देता था तो बदले में कुछ लेता नहीं था लेकिन अब लेने लगा है। ज़माना बदल गया है लेकिन शब्द आज भी पुराने ही चल रहे हैं।
दान भी एक पुराना शब्द है, जिसका पुराना अर्थ अब कम लोगों के जीवन में है।
पुराना सामान फेंकने से अच्छा है कि उसे किसी को दे दिया जाए और मुफ़्त में देने से अच्छा है कि बदले में कुछ ले लिया जाए। जो ज़्यादा दयालु होते हैं वे लोग सामान देकर पैसे सेवक की सैलरी में से काटते रहते हैं। हां, बचा हुआ खाना और पहने हुए कपड़े ये लोग मुफ़्त भी दे देते हैं। ऐसा हमने देखा है।
बेशक शहरों में ग़रीब भी गांव के अमीर जैसे रूतबे से रहता है लेकिन भारत में भयानक ग़रीबी मौजूद है। आजकल बुंदेलखंड में लोग जंगली चारे ‘पसई’ का चावल खाकर ज़िन्दा हैं। मध्य प्रदेश के भूखे देखकर राहुल गांधी को अफ़्रीक़ा याद आ गया।
गीता के काल से सुपात्र को दान देने की परंपरा है लेकिन भूखे की भूख और ग़रीब की ग़रीबी आज तक ख़त्म क्यों नहीं हुई?
हमें इस पर विचार करने की भी ज़रूरत है। दान की लुप्त हो चुकी प्राचीन रीति को उसके वास्तविक भाव के साथ ज़िन्दा करना हमारी प्राथमिकताओं में से होना चाहिए।
जिसने जितना ज़्यादा समेट रखा है। उसकी ज़िम्मेदारी उतनी ही ज़्यादा है।
दान के नाम पर यहाँ काफी विचार-दान, बहस-दान, अभिव्यक्ति-दान देख कर मैं खुद को नहीं रोक पायी कुछ शब्द-दान करने से।
ReplyDeleteहाँ तो हमारे कनाडा में भी दान दिया जाता है लेकिन वो हाथ घुमा कर कान पकड़ने के जैसा होता है, कई संस्थाएं हैं जैसे साल्वेशन आर्मी, डायेबेटीक सोसाईटी इत्यादि। हम अपने घरों के पुराने सामान, बर्तन, फर्नीचर, स्टोव, वाशिंग मशीन, फ्रिज,कपडे-लत्ते, कंप्यूटर, जूते, छाते इत्यादि इत्यादि किसी नियत दिन ये संस्थाएँ, हमारे घरों से उठा कर ले जातीं हैं । फिर वो उन सभी सामानों की अच्छी तरह से सफाई करवा के और ठीक ठाक करके अपनी दूकान, जहाँ सिर्फ पुराने सामान ही बिकते हैं, वहां बेचने को लगा देते हैं, जहाँ से अमीर-गरीब कोई भी अपनी पसंद का सामान खरीद ले जाता है, और बदले में उनको पैसा मिल जाता है.। अब ये पैसा ज़रुरत मंदों के काम आ जाता है।
आज जहाँ लोग अपना बुख़ार तक किसी को देना नहीं चाहते, वहां घर में पड़ा फ़ालतू सामान घर में काम करने वालियों को उठा कर देने पर संतुष्टि और ख़ुशी ज़रूर होती है, लगता है चलो यहाँ बेकार पड़ा था इनके काम आ जायेगा , और ऐसा अनुभव करने में क्या बुराई है ?
जहाँ तक कुपात्र-सुपात्र का प्रश्न है, उनकी पहचान तो सिर्फ अपने विवेक से ही किया जा सकता है.।
सही कहा जी , यदि लेने aur dene wale dono ko khushi hoti hai to yah ek nek kaam hi kahlayega .
Delete100 percent sach galat ya kupatrako diya daan mushkil la sakata hai
ReplyDeleteसार्थक लेख ओर ठीक दिवाली के समय लिखा हुआ ... सभी को चिंतन शील करने का अच्छा प्रयास ...
ReplyDeleteहम सभी खास के हिन्दुस्तानी घर में सामान भरते रहते हैं ... पुराने सामान को निकालते नहीं ... किसी जरूरतमंद को देते नहीं ... इस आदत में सुधार जरूर लाना चाहिए ...
मध्यवर्गीय चितन की एक झलक बहुत सारे ब्लोगों पे देखने को मिल जाती है. भारत की गरीबी और गरीब लोग शहरी मध्यवर्गीय लोगों को कई तरह के सुख देने का काम कर रहे हैं - घरेलु काम और बच्चा सँभालने से लेकर दान पुण्य का अवसर भी प्रदान कर रहे हैं. बीच बीच में भंडारा वगैरह कर के स्वर्ग में अपना स्थान पक्का कर रहे हैं और ये गरीब लोग इन दान में मिली वस्तुओं से अपना जीवन किसी सेठानी(?) की तरह ठाठ से बिता रहे हैं.. और अपने पैसे से गाँव में जमीन खरीद रहे हैं. ...कोई बता रहा है की कामवालियों 16 हज़ार तक की आमदनी कर रही हैं ..कोई बता रहा है की कामवालियों को मुफ्त में सामान देकर उनकी आदत बिगाड़ रहे हैं या सामान की क़द्र कम हो रही है ..डॉ. अनवर जमाल जी ने पूछा है की गरीबी और भुखमरी इतने सारे दानी और दाता के होते हुए ख़त्म क्यों नही हो रही है - अमां अगर गरीबी ख़त्म हो जाए तो घरों में काम करने को नौकरानियां कहाँ से आएगी और आपको नवाब होने का सुखद अनुभूति कैसे होगा और फिर दान-वान करके आप पुण्य कैसे कमाएंगे? अगर कामवालियां/ गुलाम/ गरीब न हो तो आर्थिक रूप से स्वतंत्र प्रगतिशील महिलाए बेकार से घरेलु कामो में जकड के ना रह जाए ????? भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गुलाम पाए जाते हैं ये तो हमारे तरक्की और समृधि की निशानी है की हम इतने सारे गुलाम और बेगार को मैनेज कर रहे हैं.
ReplyDeletewow - what a comment ... great negative attitude ... har kisi par vyangya - vaah
Deleteइस पोस्ट में मुझे कहीं भी पैसे लेकर सामान दिए जाने जैसा कुछ दिखा नहीं । बस पुराना सामान (जो एक्सचेंज में पैसे कम करा कर दिया जा सकता था ) काम वाली आदि को इस्तेमाल में देने की बात मिली - जो काफी अच्छा लगा । यह बिजनेस तो किसी दृष्टि से नहीं लगता ।
ReplyDeleteसुपात्र कुपात्र आदि तो अपने विवेक से ही समझना होता है ।
सही कहा शिल्पा जी . साफ नियत से किया गया कोई भी काम बुरा नहीं होता . ऐसे मे तर्क वितर्क से कमिया निकालना सही नहीं .
Deleteड़ा साहब .... घणा घमासान मचा दिया इब तो ...
ReplyDeleteदान के प्रति सुन्दर प्रस्तुती।
ReplyDeleteफिर भी कहा गया है,अन्न दान महा दान -विद्या दान महतरम।
इस आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स युग में, नए नये नये उपकरण आते है।
हम नये का उपभोग करते करते जब उकता जाते है,,पुराने उपकरणों का इस्तमाल
होता रहे, हम किसी जरुरत मंद को दान कर देते है।
अमर्त्यसेन ने अपने अर्थ शाश्त्र में यही दर्शाया है, कमजोर वर्ग के प्रति दान की प्रवाभूती
विकासशील होती है। ओर फिर आप तो विद्या दान भी करते है। जो सर्व श्रेष्ठ है।