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Friday, October 18, 2013

सुपात्र को दिया गया दान ही सात्विक और सार्थक दान होता है --


आज से २५ -३० वर्ष पूर्व जब हमने गृहस्थ जीवन मे प्रवेश किया तब इंपोर्टेड इलेक्ट्रॉनिक संयंत्रों की बहुत मांग होती थी. क्योंकि तब आर्थिक उदारीकरण लागू नहीं था, इसलिये अधिकतर सामान बाहर से मंगाया जाता था जो अवैधानिक तौर पर ज्यादा होता था. इसीलिये जगह् जगह इंपोर्टेड सामान बेचने की ग्रे मार्केट्स खुली थी जिनमे सारा सामान महंगे सस्ते दाम पर मोल भाव कर खरीदा बेचा जाता था. लेकिन हम जैसे कानून के दायरे मे रहने वालों के लिये सस्ता और इंपोर्टेड सामान खरीदने का एक और तरीका भी था . वह था , एम्बेसी सेल्स का . अक्सर जब कोई विदेशी राजनयिक स्थानांतरित होकर देश छोड़कर जाता तो वह अपने घर के सारे सामान की सेल लगाकर सस्ते दाम पर बेच जाता . हालांकि हमने भी कई बार इन सेल्स के चक्कर लगाये लेकिन खरीद कभी नहीं पाये क्योंकि इस्तेमाल किया हुआ पुराना सामान खरीदने का मन ही नहीं किया . फिर आहिस्ता आहिस्ता घर गृहस्थी का सारा सामान जुटा लिया. इस बीच सरकार की आर्थिक नीतियाँ भी बदली और देश मे ही सभी तरह का सामान मिलने लगा . अब हालात ऐसे हैं कि पुराना सामान आप बेचना भी चाहें तो कोई खरीदार नहीं मिलता क्योंकि अब मध्यम वर्गीय समाज की सामर्थ्य भी नया सामान खरीदने की हो गई है .  

लेकिन एक समाज ऐसा भी है जिन्हे आज भी पुराने सामान की कद्र होती है क्योंकि न उनकी इतनी सामर्थ्य होती है कि वे नया सामान खरीद सकें , न ही उन्हे आवश्यकता होती है . हमे घरेलू सेवाएं प्रदान करने वाले ये निम्नवर्गीय लोग जैसे काम वाली बाई , सुरक्षा कर्मचारी तथा सफाई कर्मचारी आदि लोग पुराने सामान को भी पाकर स्वयं को धन्य समझते हैं. ऐसे मे भाग्यशाली धनाढ्य लोगों का फ़र्ज़ है कि वे अपने पुराने सामान को फेंकने के बजाय इन गरीबों को ही दान कर दें ताकि उनके बच्चे भी इन आधुनिक संयत्रों का आनंद ले सकें . 

हमारी काम वाली भले ही छोटे से किराये के मकान मे रहती हो , लेकिन उसके ठाठ बाठ देख कर उसके गावं वाले बड़े प्रभावित होते हैं . उसका कहना है कि उसके गांव मे उसकी इज़्ज़त और रुतबा एक सेठानी जैसा है . हमे भी लगता है कि कहीं उसके घर पर इनकम टैक्स वालों की रेड ही न पड़ जाये ! क्योंकि घर मे २९ इंच का रंगीन टी वी , १००० वॉट का थ्री इन वन म्यूजिक सिस्टम , और कम्प्यूटर समेट सुख सुविधाओं का सारा साजो सामान मौजूद है . यह अलग बात है कि यह अधिकांश सामान हमारा ही दिया हुआ है.  

हमे भी लगता है कि पुराने समान का जब कोई खरीदार ही नहीं तो क्यों ना ऐसे व्यक्ति को दे दिया जाये जिसके लिये वह भी एक उपलब्धि सी हो. आखिर दान करना भी एक पुण्य का काम है . लेकिन सही मायने मे दान तभी सार्थक होता है जब वह सुपात्र को किया जाये .
गीता अनुसार दान भी तीन प्रकार के होते हैं -- सात्विक , राजसी और तामसी . 

सात्विक दान : जो दान उत्तम ब्राह्मण को किया जाये , जिसे संसारी कामना की इच्छा न हो, स्वयं बिना इच्छा के किया जाये, वह सात्विक दान कहलाता है .  
राजसी दान : किसी इच्छा की कामना करते हुए किया गया दान जिसमे दान के बदले उपकार की अपेक्षा हो, वह राजसी दान कहलाता है . 
तामसी दान : क्रोध और गाली देकर कुपात्र को दिया गया दान तामसी होता है . 

वर्तमान परिवेश मे अधिकांश लोग राजसी प्रवृति के तहत इच्छा पूर्ति के लिये दान करते हैं. अक्सर लोग मंदिरों मे दान बाद मे करते हैं , मन्नत पहले मांग लेते हैं . यानि यह दान सशर्त होता है . यह अज्ञानता की निशानी है . इसी तरह कई बार देखा जाता है कि दान किया गया धन न तो ज़रूरतमंद के पास पहुंच पाता है और ना ही उसका सही उपयोग हो पाता है . ऐसा दान वास्तव मे धन को नष्ट करना है .  

सभी मध्यम वर्गीय परिवारों के घरों मे अनेक सामान ऐसे होते हैं जो वर्षों से या तो पेकेट मे बंद पड़े होते हैं या जिन्हे सालों तक इस्तेमाल कर दिल भर जाता है. विशेषकर पुराने सामान को अब कोई नहीं खरीदता. ऐसे सामान को यदि किसी गरीब और ज़रूरतमंद को दान कर दिया जाये तो निश्चित ही पाने वाले को अपार खुशी का अहसास होगा। और यही सार्थक दान होगा. 
      
नोट : त्यौहारों के इस मौसम मे अपना घर साफ करके भी आप दूसरों के घर रौशन कर सकते हैं !